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सोमवार, 18 जून 2018

फूल और कांटे-(कथा--01)


कथा-एक  (सुलतान महमूद)

मैं देखता हूं कि प्रभु का द्वार तो मनुष्य के अति निकट है लेकिन मनुष्य उससे बहुत दूर है। क्योंकि न तो वह उस द्वार की ओर देखता ही है और न ही उसे खटखटाता है।
और मैं देखता हूं कि आनंद का खजाना तो मनुष्य के पैरों के ही नीचे है लेकिन न तो वह उसे खोजता है और न ही खोदता है।
एक रात सुलतान महमूद घोड़े पर बैठकर अकेला सैर करने निकला था। राह में उसने देखा कि एक आदमी सिर झुकाए सोने के कणों के लिए मिट्टी छान रहा है। शायद उसकी खोज दिन भर से चल रही थी। क्योंकि उसके सामने छानी हुई मिट्टी का एक बड़ा ढेर लगा हुआ था। और शायद उसकी खोज निष्फल ही रही थी। क्योंकि यदि वह सफल हो गया होता तो आधी रात गए भी अपना कार्य नहीं जारी न रखता। सुलतान क्षणभर उसे अपने कार्य में डूबा हुआ देखता रहा और फिर अपना स्वर्णिम बहुमूल्य बाजूबंद मिट्टी के ढेर पर फेंक कर वायु वेग से आगे बढ़ गया।

अगली रात वह फिर उसी राह से निकला तो उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा जब उसने देखा कि वह आदमी अब भी उसी तरह मिट्टी छानने में मशगूल है। उसने उस आदमी से कहाः पागल, कल तुझे जो बाजूबंद मिला, वह तो पूरी एक दुनिया खरीदने के लिए काफी है। फिर भी तू मिट्टी छानना बंद नहीं करता है?’
वह आदमी उत्तर में हंसा और बोलाः आह! इसीलिए तो अब जीवन भर खोज जारी रखनी पड़ेगी। कल ऐसी बढ़िया चीज मिली, इसीलिए तो अब अथक खोजना आवश्यक हो गया है।
मैं कहता हूं कि जो उसी आदमी की भांति सतत खोजना जारी रखता है, केवल वही और केवल वही परमात्मा के खजाने को उपलब्ध हो पाता है।
वह खजाना तो निकट है लेकिन मनुष्य खोदता ही नहीं है। वह द्वार तो सामने है लेकिन मनुष्य खोजता ही नहीं है।



(ओशो)

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