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बुधवार, 4 दिसंबर 2019

मेरी प्रिय पुस्तकें-(सत्र-11)

मेरी प्रिय पुस्तकें-ओशो

सत्र-ग्यारहवीं

 ओ. के.। पोस्टस्क्रिप्ट में अब तक मैंने कितनी पुस्तकों के बारे में बताया होगा?
‘‘अब तक चालीस पुस्तकें पोस्टस्क्रिप्ट में हो गई हैं, ओशो।’’
ठीक है। मैं एक जिद्दी आदमी हूं।
 पहली: कॉलिन विलसन की दि आउटसाइडर।यह इस सदी की सबसे प्रभावशाली पुस्तकों में से एक है--लेकिन आदमी साधारण है। वह अदभुत क्षमतावानविद्वान है, और हां, यहां-वहां कुछ अंतर्दृष्टियां हैं--लेकिन पुस्तक सुंदर है।
जहां तक कॉलिन विलसन का सवाल है, वह खुद आउटसाइडर, बाहरी व्यक्ति नहीं है; वह एक सांसारिक आदमी है। मैं एक आउटसाइडर हूं, इसीलिए यह पुस्तक मुझे अच्छी लगती है। मुझे यह अच्छी लगती है क्योंकि--हालांकि वह जिस आयाम की बात करता है वह खुद उसको नहीं जानता है--उसका लेखन सत्य के बहुत, बहुत निकट है। लेकिन ध्यान रहे, भले ही तुम सत्य के निकट होओ तुम अभी भी हो असत्य ही। या तो तुम सत्य हो या असत्य, बीच में कुछ भी नहीं होता है।

विलसन ने अपनी तरफ से आउटसाइडर के संसार को बाहर से समझने का जो भरसक प्रयास किया है, यह पुस्तक दि आउटसाइडरउसका प्रतिनिधित्व करती है; वह बाहर रह कर आउटसाइडर के भीतर झांकने का प्रयास करता है, जैसे कि कोई तुम्हारे दरवाजे के की-होल से भीतर झांके। वह थोड़ा सा देख सकता है--और कॉलिन विलसन ने देखा है। पुस्तक पढ़ने योग्य है--सिर्फ पढ़ने योग्य, अध्ययन के लिए नहीं। इसे पढ़ो और कचरे के डिब्बे में फेंक दो, क्योंकि जब तक कोई पुस्तक वास्तविक आउटसाइडर से नहीं आती है तब तक वह सिर्फ दूर, बहुत दूर की प्रतिध्वनि मात्र है... प्रतिध्वनि की प्रतिध्वनि, परछाई की परछाई।

दूसरी: दि एनालेक्ट्‌स ऑफ कनफ्यूशियस। कनफ्यूशियस को मैं बिलकुल पसंद नहीं करता, और इसके लिए मुझे कोई अपराध-भाव भी महसूस नहीं होता कि मैं उसे पसंद नहीं करता हूं। इस बात को लिखवा कर मुझे वास्तव में हलकापन महसूस हो रहा है। कनफ्यूशियस और लाओत्सु समसामयिक थे। लाओत्सु उम्र में थोड़े से बड़े थे; कनफ्यूशियस लाओत्सु से मिलने भी गया था और कांपते हुए वापस लौटा था, उसकी जड़ें हिल गई थीं, पसीना-पसीना हो गया था। उसके शिष्यों ने पूछा: ‘‘गुफा में क्या हुआ? ...क्योंकि आप दोनों ही वहां थे और कोई नहीं था।’’
कनफ्यूशियस ने कहा: ‘‘यह अच्छा हुआ कि किसी ने नहीं देखा। हे भगवान, वह आदमी है या ड्रैगन! वह तो मुझे मार ही डालता, लेकिन मैं भाग निकला। वह सच में ही खतरनाक है।’’
कनफ्यूशियस सही कह रहा है। लाओत्सु जैसा आदमी तुम्हें पुनर्जीवित करने के लिए मार भी सकता है; और जब तक कोई मरने के लिए तैयार न हो तब तक उसका पुनर्जन्म भी नहीं हो सकता है। कनफ्यूशियस अपने ही पुनर्जन्म से भाग निकला।
मैंने पहले से ही लाओत्सु को चुन लिया है, और सदा के लिए। कनफ्यूशियस बहुत साधारण, सांसारिक दुनिया का आदमी था। परंतु यह नोट कर लो कि मैं उसे पसंद नहीं करता; वह एक पाखंडी है। आश्चर्य है कि वह इंग्लैंड में पैदा नहीं हुआ। लेकिन वैसे भी, उन दिनों का चीन इंग्लैंड जैसा ही था। उन दिनों इंग्लैंड बिलकुल जंगली, बर्बर था, वहां कुछ भी मूल्यवान नहीं था।
कनफ्यूशियस एक राजनीतिज्ञ था, चालाक, होशियार, लेकिन वह सच में बुद्धिमान नहीं था; वरना वह लाओत्सु के चरणों में झुक गया होता, भाग खड़ा नहीं होता। वह केवल लाओत्सु से ही भयभीत नहीं था, वह मौन से भी भयभीत था...क्योंकि लाओत्सु और मौन एक ही हैं।
लेकिन मैं कनफ्यूशियस की सबसे प्रसिद्ध पुस्तकों में से एक को शामिल करना चाहता था, सिर्फ उसे उचित ठहराने के लिए। एनालेक्ट्‌सउसकी सबसे महत्वपूर्ण पुस्तक है। मेरे लिए यह सिर्फ एक वृक्ष की जड़ों की भांति है, कुरूप लेकिन बहुत अनिवार्य--जिसे तुम अनिवार्य बुराई कहते हो। एनालेक्ट्‌सएक अनिवार्य बुराई है। इसमें वह संसार और सांसारिक मामलों, राजनीति और इसी तरह के विषयों के बारे में बात करता है। एक शिष्य ने उससे पूछा: ‘‘मास्टर, मौन के बारे में क्या?’’
कनफ्यूशियस चिढ़ गया, नाराज हो गया। वह शिष्य पर चिल्लाया और कहा: ‘‘चुप रहो! मौन?--मौन की जरूरत तुम्हें कब्र में होगी। जीवन में इसकी जरूरत नहीं है, करने के लिए और भी बहुत अधिक महत्वपूर्ण काम हैं।’’
उसका यह दृष्टिकोण था। तुम समझ सकते हो मैं उसे पसंद क्यों नहीं करता। मुझे उस पर दया आती है। वह एक अच्छा आदमी था। कितने दुख की बात है कि वह श्रेष्ठतम व्यक्तियों में से एक लाओत्सु के बहुत करीब आया था, लेकिन फिर भी चूक गया। उसके लिए मैं बस आंसू बहा सकता हूं।

तीसरी: खलील जिब्रान ने कई पुस्तकें अपनी मातृभाषा में लिखी हैं। जिन पुस्तकों को उसने अंग्रेजी में लिखा है वे बहुत विख्यात हुई हैं: जिनमें सबसे ज्यादा प्रसिद्ध हैं दि प्रोफेटऔर दि मैडमैन’...और भी कई हैं। लेकिन, उसने कई पुस्तकें अपनी खुद की भाषा में लिखी हैं, जिनमें से कुछ का ही अनुवाद हुआ है। स्वभावतः अनुवाद हूबहू तो हो नहीं सकता, लेकिन खलील जिब्रान इतना महान है कि अनुवाद में भी तुम्हें कुछ न कुछ मूल्यवान मिल जाता है। आज मैं कुछ अनुवाद का जिक्र करने जा रहा हूं। तीसरी है खलील जिब्रान की दि गार्डन ऑफ दि प्रोफेट।यह अनुवाद है, लेकिन यह मुझे महान एपिकुरस की याद दिलाती है।
मुझे नहीं पता कि मेरे अलावा किसी और ने भी एपिकुरस को महान कहा हो। सदियों से उसकी निंदा ही की गई है। लेकिन मैं जानता हूं कि जब भीड़ किसी व्यक्ति की निंदा करती है तो निश्चित ही उसमें कुछ श्रेष्ठ होगा। खलील जिब्रान की पुस्तक दि गार्डन ऑफ दि प्रोफेटमुझे एपिकुरस की याद दिलाती है, क्योंकि वह अपने कम्यून को उपवनकहता था। व्यक्ति जो भी करता है उसमें उसकी छवि छलकती है। प्लेटो अपने कम्यून को दि एकेडेमीकहता था--स्वाभाविक है; वह एक शिक्षाविद, एक महान बुद्धिवादी दार्शनिक था।
एपिकुरस अपने कम्यून को उपवनकहता था। वे लोग वृक्षों के तले, सितारों के नीचे रहते थे। एक बार सम्राट एपिकुरस को देखने आया, क्योंकि उसने सुना था कि ये लोग बहुत आनंदित रहते हैं। वह जानना चाहता था, वह यह जानने में उत्सुक था कि ये लोग इतने आनंदित क्यों हैं: इसका क्या कारण हो सकता है?--क्योंकि उनके पास कुछ भी नहीं था। वह हैरान था, क्योंकि वे सचमुच आनंदित थे, वे गा रहे थे और नाच रहे थे।
सम्राट ने कहा: ‘‘मैं आप और आपके लोगों के साथ बहुत खुशी महसूस कर रहा हूं, एपिकुरस। क्या आप मुझसे कोई भेंट लेना पंसद करेंगे?’’
एपिकुरस ने सम्राट से कहा: ‘‘अगर आप फिर से आते हैं, तो थोड़ा सा मक्खन लेते आना, क्योंकि कई सालों से मेरे लोगों ने मक्खन नहीं देखा है। वे मक्खन के बिना रोटी खा रहे हैं। और एक बात और: अगर फिर से आते हैं तो कृपया एक बाहरी व्यक्ति की तरह खड़े मत रहिएगा; कम से कम जब तक आप यहां हैं हमारे हिस्से बन जाएं। सम्मिलित हों, हमारे साथ एक हो जाएं। नाचें, गाएं। आपको देने के लिए हमारे पास और कुछ भी नहीं है।
खलील जिब्रान की पुस्तक मुझे एपिकुरस की याद दिलाती है। मुझे अफसोस है कि मैंने एपिकुरस का जिक्र नहीं किया, लेकिन मैं इसके लिए जिम्मेवार नहीं हूं। उसकी पुस्तक जला दी गई थी, ईसाइयों द्वारा नष्ट कर दी गई। जितनी भी प्रतियां उपलब्ध थीं उन सभी को सैकड़ों साल पहले जला दिया गया था। इसलिए मैं उसकी पुस्तक का जिक्र नहीं कर सकता, परंतु मैं खलील जिब्रान और उसकी पुस्तक दि गार्डन ऑफ दि प्रोफेटके द्वारा उसको ले आया हूं।

चौथी...अच्छा...खलील जिब्रान की एक और पुस्तक का अनुवाद दि वाइस ऑफ दि मास्टर।यह पुस्तक मूल रूप में बहुत सुंदर रही होगी, क्योंकि अनुवाद में भी यहां और वहां सुंदरता के निशान, पदचिह्नों की छाप है। परंतु ऐसा होगा ही। जो भाषा जो खलील जिब्रान बोलता था वह जीसस की भाषा के बहुत करीब है। वे पड़ोसी हैं। खलील जिब्रान का घर लेबनान में था। उसका जन्म लेबनान की पहाड़ियों में, देवदार के वृक्षों की छाया में हुआ था। वे संसार में सबसे बड़े वृक्ष हैं। लेबनान के देवदार के वृक्षों को देख कर तुम्हें वानगॉग पर भरोसा आ जाएगा कि पृथ्वी की सितारों को छू लेने की आकांक्षा ही वृक्ष हैं। वे सैकड़ों फीट ऊंचे हैं और हजारों वर्ष पुराने हैं।
खलील जिब्रान एक तरह से जीसस का प्रतिनिधित्व करता है; वह उसी आयाम से संबंधित है, हालांकि वह कोई मसीहा नहीं था। वह हो सकता था। कनफ्यूशियस की तरह वह भी चूक गया। जिब्रान के जीवनकाल में ही ऐसे लोग जीवित थे जिनके पास वह जा सकता था, लेकिन वह बेचारा न्यूयार्क की गंदी गलियों में ही घूमता रहा। वह महर्षि रमण के पास जा सकता था, जो उस समय जीवित थे, जो एक मसीहा थे, एक बुद्धपुरुष थे।

पांचवीं है रमण महर्षि की पुस्तक। यह कोई पुस्तक जैसी नहीं है, बस एक छोटी सी पुस्तिका, जिसका शीर्षक है: हू एम आइ?--मैं कौन हूं?’
रमण न तो विद्वान थे न ही बहुत ज्यादा पढ़े-लिखे थे। उन्होंने केवल सत्रह वर्ष की आयु में घर छोड़ दिया था और फिर वे कभी नहीं लौटे। जब असली घर मिल जाए तो कौन लौट कर साधारण घर में आता है? उनकी विधि एक सरल जिज्ञासा है अपने अंतर्तम केंद्र में पूछने की कि ‘‘मैं कौन हूं?’’ वे वास्तव में एनलाइटनमेंट इंटेंसिव, गहन संबोधि के रचियता हैं, न कि कोई अमरीकन व्यक्ति--या कोई महिला--जो इसके आविष्कारक होने का दावा करते हैं।
मैंने कहा कि यह कोई महान पुस्तक नहीं है, लेकिन वे महान व्यक्ति हैं। कभी-कभी मैं ऐसी पुस्तकों जिक्र का करता हूं जो कि श्रेष्ठ हैं, लेकिन बहुत ही साधारण और औसत दर्जे के लोगों द्वारा लिखी गई हैं। अब मैं एक व्यक्ति का जिक्र कर रहा हूं जो कि वास्तव में महान है, जिसने एक बहुत ही छोटी पुस्तक लिखी है, बस कुछ पन्नों की, एक छोटी पत्रिका। वरना वे सदा मौन रहते थे। वे बहुत कम बोलते थे, बस कभी-कभार। अगर खलील जिब्रान रमण महर्षि के पास गया होता तो वह बहुत ही लाभान्वित हुआ होता। तब उसने दि वाइस ऑफ दि मास्टर--सदगुरु की वाणीसुनी होती। रमण महर्षि भी खलील जिब्रान से लाभान्वित हुए होते। क्योंकि उसके जैसी लेखन क्षमता किसी और में नहीं थी। रमण एक मामूली लेखक थे और खलील जिब्रान एक मामूली व्यक्ति था, लेकिन एक महान लेखक। दोनों मिल कर विश्व के लिए एक वरदान साबित होते।

छठवीं: मूरहेड और राधाकृष्णन की दि माइंड ऑफ इंडिया।न तो मूरहेड को भारत का कुछ पता था न राधाकृष्णन को, लेकिन आश्चर्य कि उन्होंने एक सुंदर पुस्तक लिखी, जो पूरी भारतीय विरासत का प्रतिनिधित्व करती है। बस इस पुस्तक में ऊंचाइयों की कमी है, जैसे कि एक बुलडोजर सतत चलते हुए हिमालय की चोटियों को नष्ट करते हुए उसे एक सपाट मैदान बनाता जा रहा हो। हां, इन दोनों व्यक्तियों ने एक बुलडोजर का काम किया है। यदि कोई भारत की आत्मा को जानता है--मैं इसे माइंड नहीं कह सकता--तो इस पुस्तक का शीर्षक होना चाहिए दि नो-माइंड ऑफ इंडिया।
यद्यपि यह पुस्तक श्रेष्ठतम का प्रतिनिधित्व नहीं करती है, यह अभी भी निम्नतम का प्रतिनिधित्व करती है, और निम्नतम की ही संख्या बहुत ज्यादा है, निन्यानबे दशमलव नौ प्रतिशत। तो यह सचमुच पूरे भारत का प्रतिनिधित्व करती है। यह सुंदर ढंग से लिखी गई है, लेकिन केवल एक अनुमान से। एक अंग्रेज था, दूसरा भारतीय राजनेता--गजब का मेल! और दोनों ने मिल कर दि माइंड ऑफ इंडियाको लिखा।

सातवीं: अब अपनी लंबी सूची के अंत में मैं दो पुस्तकों का परिचय दे रहा हूं, मुझे लगता है कि उनका स्वाद तुम पहले ही चख चुके होगे: लुइस कैरोल्स की एलिस इन वंडरलैंडऔर आठवीं है एलिस थ्रू दि लुकिंग ग्लास।दोनों ही गैर-गंभीर हैं, इसीलिए मुझे प्रिय हैं। दोनों पुस्तकें बच्चों के लिए लिखी गई हैं, इसीलिए मैं इन पुस्तकों का बहुत आदर करता हूं। दोनों सौंदर्य, भव्यता, और रहस्य की छोटी-छोटी कहानियों से भरी हुई हैं, जिन्हें कि अनेक स्तरों पर समझा जा सकता है। एक कहानी मुझे सदा ही प्रिय रही है, उदाहरण के लिए...
एलिस राजा के पास आती है--या शायद रानी के पास, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता--और राजा एलिस से पूछता है: ‘‘क्या मेरा दूत तुम्हें मिला था रास्ते में मेरी तरफ आता हुआ?’’
एलिस कहती है: ‘‘मुझे कोई नहींमिला, सर।’’
राजा फिर कहता है: ‘‘तो उसको अब तक यहां आ जाना चाहिए था।’’
एलिस को अपने कानों पर भरोसा न आया, लेकिन उसके प्रति सम्मान के कारण, हैरान थी, फिर भी एलिस चुप रही, एक अंग्रेज महिला की तरह शांत रही।
गुडिया, क्या तुम यहां हो? अभी कुछ दिन पहले तुम पूछ रही थी: ‘‘क्या मेरे भीतर अभी भी अंग्रेज महिला है, ओशो?’’ बस थोड़ी सी बची है, ज्यादा नहीं--चिंता की कोई बात नहीं। और थोड़ा सा बचा रहना अच्छा है।
एलिस पक्की अंग्रेज महिला रही होगी। औपचारिकता के कारण वह दबे मुंह हंसी भी नहीं। उसने कहा था कि उसे कोई नहींमिला, और राजा समझा कि वह कोई नहींनाम के किसी आदमी से मिली थी। हे भगवान, वह समझा कि कोई नहींकोई आदमी है, कि कोई नहींकोई व्यक्ति है...! फिर एलिस कहती है, ‘‘सर, मैंने आपसे कहा न कि मुझे कोई नहीं मिला? ‘कोई नहींका अर्थ कोई भी नहीं!’’
राजा हंसा और बोला: ‘‘हां, निश्चित ही कोई नहींका अर्थ कोई भी नहीं, लेकिन वह अब तक आया क्यों नहीं?’’
इसी तरह की छोटी-छोटी सुंदर कहानियां, ‘एलिस इन वंडरलैंडऔर एलिस थ्रू दि लुकिंग ग्लासदोनों पुस्तकों में भरी पड़ी हैं। स्मरण रखने जैसी सबसे अजीब बात यह है कि लुइस कैरोल्स लेखक का असली नाम नहीं है...क्योंकि वह एक गणितज्ञ और एक अध्यापक था; इसीलिए उसने एक झूठे नाम का उपयोग किया। लेकिन यह कितने दुख की बात है वह झूठा नाम पूरी दुनिया के लिए एक वास्तविकता बन गया और असली आदमी पूरी तरह से भुला दिया गया है। यह अजीब बात है कि एक गणितज्ञ और अध्यापक इतनी सुंदर पुस्तकें लिख सकता है।
तुम्हें आश्चर्य होगा कि मैं इन पुस्तकों को क्यों शामिल कर रहा हूं। मैं शामिल कर रहा हूं क्योंकि मैं दुनिया को यह कहना चाहता हूं कि मेरे लिए ज्यां पाल सार्त्र की बीइंग एंड नथिंगनेसऔर लुइस कैरोल्स की एलिस इन वंडरलैंडदोनों ही समान हैं। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। असल में, यदि मुझे दोनों के बीच चुनाव करना हो तो मैं एलिस इन वंडरलैंडको चुनूंगा और बीइंग एंड नथिंगनेसको समुद्र में फेंक दूंगा, प्रशांत महासागर में इतनी दूर फेंकूंगा कि कोई उसे दुबारा न पा सकेगा। मेरे लिए ये दो छोटी पुस्तकें अत्यधिक आध्यात्मिक मूल्य रखती हैं। हां, मैं मजाक नहीं कर रहा हूं...मैं सच कह रहा हूं।

नौवीं... बार-बार मैं खलील जिब्रान पर लौट आता हूं। खलील जिब्रान से मुझे प्रे्रम है और मैं उसकी सहायता करना चाहूंगा। मैंने उसकी प्रतीक्षा भी की है, लेकिन अभी उसका जन्म नहीं हुआ है। उसे भविष्य में किसी और सदगुरु की तलाश करनी होगी। नौवें नबंर के लिए मेरी पसंदीदा पुस्तक है दि वांडरर’--‘खानाबदोश।
खलील जिब्रान की दि वांडररकहानियों का एक संग्रह है। किसी भी गहरी बात को कहने के लिए कहानी सबसे पुरानी पद्धति है। वह जिसे नहीं कहा जा सकता उसे हमेशा कहानियों के द्वारा कहा जा सकता है। यह छोटी-छोटी कहानियों का एक सुंदर संग्रह है।
मैं भी कितना होशियार हूं! बंद आंखों से भी मैं देख रहा हूं कि देवगीत न केवल कुछ कहना चाहता है--वह तो अपने पैरों का भी उपयोग कर रहा है, जो बहुत शिष्ट बात नहीं है, और वह भी एक सदगुरु की पीठ के पीछे...! क्या कर सकते हैं, संसार ऐसा ही है।
यह सुंदर है, आशु। जरा नंबर तो बताना।
‘‘नौवें नंबर की चर्चा चल रही थी, ओशो।’’

दसवीं: खलील जिब्रान की दूसरी पुस्तक है दि स्प्रिचुअल सेइंग्स’--‘आध्यात्मिक कहावतें।अब मुझे आपत्ति है, हालांकि यह आपत्ति खलील जिब्रान के विरुद्ध है जिसे मैं प्रेम करता हूं। उसे स्प्रिचुअल सेइंग्सलिखने की अनुमति नहीं दी जा सकती। आध्यात्मिक?--यद्यपि पुस्तक सुंदर है, लेकिन अच्छा होता अगर उसने इस पुस्तक का नाम ब्यूटीफुल सेइंग्स’ --‘सुंदर कहावतेंरखा होता, सुंदर न कि आध्यात्मिक। इसे आध्यात्मिक कहना बिलकुल बेतुकी बात है। लेकिन फिर भी यह पुस्तक मुझे प्रिय है, उसी तरह जैसे मुझे सारी बेतुकी बातें प्रिय हैं।
मुझे तर्तूलियन का स्मरण आ रहा है, जिसकी पुस्तक--मुझे क्षमा करना--जिसकी पुस्तक को मैंने शामिल नहीं किया है। सभी को शामिल करना तो मेरे लिए असंभव था। लेकिन कम से कम मैं उनके नाम का उल्लेख तो कर ही सकता हूं। तर्तूलियन का प्रसिद्ध कथन है: मेरा परमात्मा में भरोसा है क्योंकि वह तर्कातीत है।मैं नहीं समझता कि संसार में किसी अन्य भाषा में इससे अधिक सारगर्भित कथन होगा। और तर्तूलियन एक ईसाई संत है! हां, जहां मुझे सौंदर्य दिखाई पड़ता है मैं उसकी प्रशंसा करता हूं--यहां तक कि एक ईसाई संत की भी।
मेरा परमात्मा में भरोसा है क्योंकि वह तर्कातीत है’--इसे हीरों से लिखा जाना चाहिए, स्वर्ण अक्षरों से नहीं। स्वर्ण बहुत सस्ता है। यह कथन: मुझे परमात्मा में भरोसा है क्योंकि वह तर्कातीत है,’ कितना मूल्यवान है। तर्तूलियन स्प्रिचुअल सेइंग्सनाम की पुस्तक लिख सकता था लेकिन खलील जिब्रान नहीं।
खलील जिब्रान को ध्यान में उतरना चाहिए। अब समय आ गया है कि वह ध्यान करे। जैसे कि मेरे लिए समय आ गया है कि मैं बोलना बंद कर दूं। लेकिन मैं बंद नहीं कर सकता, क्योंकि कारण सीधा साफ है, मुझे पचास की संख्या पूरी करनी है।

दसवीं...क्या मैं सही हूं, देवगीत?
‘‘असल में हम पचास पूरी कर चुके हैं। अभी नंबर दस था, ओशो।’’
तब मुझे इक्यावनवीं करनी होगी, क्योंकि मैं इसे बाहर नहीं रख सकता। यह असंभव है, चाहे नंबर हो या न हो। जैसा मैंने किया वैसा ही तुम कर सकते हो: कहीं पर नंबर उलट-पुलट कर दो, और फिर उसी नंबर पर आ जाओ जैसे कि मैं आता हूं।

ग्यारहवीं: सैमुअल बेकेट्‌स की वेटिंग फॉर गोडोट।अब किसी को पता नहीं कि गोडोटका क्या अर्थ है, जैसे किसी को यह नहीं पता कि गॉडका क्या अर्थ है। दरअसल, बेकेट ने एक महान काम किया है गॉडके स्थान पर गोडोटका आविष्कार करके। हर व्यक्ति निरर्थक की प्रतीक्षा कर रहा है क्योंकि गॉड’, ईश्वर तो है ही नहीं। हर व्यक्ति प्रतीक्षा कर रहा है--प्रतीक्षा प्रतीक्षा प्रतीक्षा...और निरर्थक की प्रतीक्षा। इसलिए, हालांकि संख्या पूरी हो गई थी, फिर भी इस पुस्तक वेटिंग फॉर गोडोटको मैं शामिल करना चाहता था।
अब सिर्फ दो मिनट प्रतीक्षा करो... धन्यवाद।
आज इतना ही 

2 टिप्‍पणियां:

  1. नमस्कार नमस्कार (1)‘विमलकीर्ति का निर्देश-सूत्र’ (2)हार्टमैन ‘अवर लाइफ विद गुरजिएफ।’ (3) ज्यां पाल सार्त्र की ‘बीइंग एंड नथिंगनेस।’ओशो ने इसमें जो रस को गुँथा हैं इससे ही उसे ओर जानने की उत्सुकता तीव्रतर हो गयी हैं |

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