मेरी प्रिय पुस्तकें-ओशो
सत्र-नौवां
अब मेरा समय है। मुझे नहीं लगता है कि किसी ने भी एक दंत-चिकित्सक की कुर्सी पर बैठ कर बोला होगा। यह मेरा विशेषाधिकार है। मैं देख रहा हूं कि संबुद्ध लोगों को भी मुझसे ईर्ष्या हो रही है।
पोस्टस्क्रिप्ट जारी है...
आज की पहली पुस्तक: हास की ‘दि डेस्टिनी ऑफ दि माइंड।’ मुझे पता नहीं कि उसके नाम का उच्चारण कैसे किया जाता है: एच-ए-ए-एस--मैं उसे हास कहूंगा। यह पुस्तक बहुत प्रसिद्ध नहीं है, इसका सीधा सा कारण यह है कि यह बहुत गहरी है। मुझे लगता है कि यह व्यक्ति हास जर्मन होना चाहिए; फिर भी उसने अत्यंत महत्वपूर्ण पुस्तक लिखी है। वह कवि नहीं है, वह एक गणितज्ञ की तरह लिखता है। यही वह व्यक्ति है जिससे मैंने ‘फिलोसिया’ शब्द पाया है।
फिलॉसफी का अर्थ है: ‘बुद्धिमत्ता के प्रति प्रेम;’ ‘फिलो’ का मतलब है प्रेम, और ‘सोफिया’ का मतलब है बुद्धिमत्ता, लेकिन यह ‘दर्शन’ पर लागू नहीं होता, जो पूर्ण को देखने का पूर्वीय ढंग है। फिलॉसफी कठोर शब्द है।
अपनी पुस्तक ‘डेस्टिनी ऑफ दि माइंड’ में, हास ने दर्शन के लिए ‘फिलॉसफी’ शब्द का नहीं, बल्कि ‘फिलोसिया’ का प्रयोग किया है। फिलो का अर्थ यहां भी प्रेम है, लेकिन ओसिया का अर्थ है सत्य, यथार्थ, आत्यंतिक रूप से यथार्थ--ज्ञान या बुद्धिमत्ता के प्रति प्रेम नहीं, बल्कि सत्य के प्रति प्रेम, फिर चाहे वह प्रिय हो या अप्रिय, इससे कोई अंतर नहीं पड़ता।
यह उन पुस्तकों में से एक है जो पूरब और पश्चिम को करीब ले आई हैं--लेकिन बस करीब, पुस्तकें इससे ज्यादा और कुछ कर भी नहीं सकती हैं। पूरब और पश्चिम के मिलन के लिए एक मनुष्य की जरूरत है, पुस्तक की नहीं, और हास वह व्यक्ति नहीं था। उसकी पुस्तक सुंदर है, लेकिन वह स्वयं बस एक साधारण व्यक्ति है। वास्तविक मिलन के लिए किसी बुद्ध, बोधिधर्म, जीसस, मोहम्मद या एक बाल शेम की जरूरत है। या संक्षेप में कहा जाए तो ध्यान की जरूरत है, और मैं नहीं समझता कि इस व्यक्ति हास ने कभी ध्यान किया हो। उसने एकाग्रता साध ली होगी--जर्मन लोगों को कनसनट्रेशन के बारे में ज्यादा जानकारी है, कनसनट्रेशन कैम्प। गजब! मैं मेडिटेशन कैम्प का संचालन किया करता था और वे कनसनट्रेशन कैम्प का संचालन करते थे! कनसनट्रेशन जर्मनी का है, मेडिटेशन, ध्यान नहीं। हां, कभी-कभी जर्मनी में भी कोई मेडिटेटर, ध्यानी हुआ है, लेकिन यह कोई नियम नहीं है, केवल अपवाद है, और अपवाद हमेशा नियम को सिद्ध करता है। मैं इकहार्ट को जानता हूं, और मैं बोहमे को जानता हूं...
आज के लिए मेरा दूसरा नाम है, इकहार्ट। काश, उनका जन्म पूरब में हुआ होता तो मुझे बहुत अच्छा लगता। जर्मनों के बीच पैदा होना और फिर परम के विषय में लिखना या बोलना एक मुश्किल कार्य है। लेकिन उन्होंने यह कार्य किया, और बहुत अच्छे से किया। जर्मन आखिर जर्मन हैं; वे जो भी करते हैं, अच्छी तरह से करते हैं। ऐसा लगता है कि एक जर्मन संन्यासी अभी भी कार्य में डूबा हुआ है। परिपूर्णता! उसकी खटखटाहट को सुनो, चारों ओर फैले इस मौन के बीच उनसे कितनी सुंदर ध्वनि आ रही है।
इकहार्ट पढ़े-लिखे नहीं थे। यह आश्चर्य की बात है कि रहस्यदर्शियों में अनेक अशिक्षित हैं। शिक्षा के साथ जरूर कुछ न कुछ गड़बड़ है। शिक्षित रहस्यदर्शी ज्यादा क्यों नहीं हैं? शिक्षा अवश्य ही किसी बात को नष्ट कर रही होगी, और यही शिक्षा लोगों को रहस्यदर्शी होने से रोक देती है। हां, शिक्षा नष्ट कर देती है। पच्चीस वर्ष लगातार--किंडरगार्डन से लेकर युनिवर्सिटी के पोस्ट ग्रैजुएट तक, तुम्हारे भीतर जो भी सुंदर और संवेदनशील है उसको नष्ट करती चली जाती है। कमल का फूल पांडित्य के नीचे कुचल दिया जाता है, ये तथाकथित प्रोफेसर, शिक्षक, उपकुलपति, कुलपति गुलाब के फूल को मार डालते हैं। इन लोगों ने अपने लिए कैसे-कैसे सुंदर नाम चुन रखे हैं!
वास्तविक शिक्षा अभी तक शुरू नहीं हुई है। यह शुरू होनी चाहिए। और यह शिक्षा हृदय की शिक्षा होगी, सिर की नहीं; तुम्हारे भीतर जो स्त्रैण-चित्त है उसकी, पुरुष-चित्त की नहीं।
यह एक आश्चर्य है कि इकहार्ट जर्मनों के बीच में रहते हुए--जो कि दुनिया की सबसे ज्यादा पुरुषप्रधान जाति है--अपने हृदय में बने रहे, और वहीं से बोले हैं। अशिक्षित, गरीब, न कोई राजनैतिक हैसियत, न कोई आर्थिक हैसियत, कोई हैसियत ही नहीं--बस एक भिखारी, लेकिन इतने समृद्ध। बहुत कम लोग इतने समृद्ध हुए हैं। अपने बीइंग में समृद्ध--अपने होने में।
‘बीइंग’ को, ‘होने’ को बड़े अक्षरो में लिखना।
इन दो शब्दों को, ‘बीइंग’ और ‘बिकमिंग’ को, ‘होना’ और ‘हो जाना’ को समझ लेना चाहिए। ‘हो जाना’ एक प्रक्रिया है जिसका न कोई प्रारंभ है और न कोई अंत, यह एक निरंतरता है। लेकिन ‘होना’ कोई प्रक्रिया नहीं है, यह बस है। इसे इ़जनेस कहो, है-पन कहो, और तुम इसके बहुत करीब हो जाओगे।
‘होना’ न समय में होता है न स्थान में, यह दोनों के पार है। पार--फिर से इस शब्द ‘पार’ को बड़े अक्षरों में लिखना। अफसोस है कि तुम इसे स्वर्ण-अक्षरों में नहीं लिख सकते। यही वह शब्द है जिसे स्वर्ण, शुद्ध स्वर्ण में लिखा जाना चाहिए--अठारह कैरेट में नहीं, चौबीस कैरेट में, सौ प्रतिशत स्वर्ण।
इकहार्ट ने कुछ थोड़ी सी ही बातें कहीं हैं, लेकिन फिर भी उन तथाकथित धर्मगुरुओं, पोप और इनके चारों ओर रहने वाले नासमझ लोगों को भड़काने के लिए काफी थीं। उन्होंने इकहार्ट पर तुरंत पाबंदी लगा दी। उन्होंने इकहार्ट को बताया कि क्या कहना है और क्या नहीं कहना है। मेरा जैसा दीवाना आदमी होना चाहिए जो ऐसे मूर्खों की एक न सुने। लेकिन इकहार्ट एक सरल व्यक्ति थे; उन्होंने उन लोगों की, सत्ताधिकारियों की बात मान ली। जर्मन आखिरकार जर्मन ही होता है। जब तुम कहते हो कि ‘‘बाएं घूम’’ तो वह बाएं घूम जाता है; और जब कहते हो कि ‘‘दाएं घूम’’ तो वह दाहिने घूम जाता है।
मुझे विश्वविद्यालय की आर्मी ट्रेनिंग से निष्कासित कर दिया गया था, क्योंकि जब वे ‘‘दाएं घूम’’ कहते, तो मैं इस पर विचार करने लगता। मुझे छोड़ कर सभी तुरंत घूम जाते। मिलिट्ररी ऑफिसर परेशान था। उसने कहा, ‘‘तुम्हारे साथ क्या मामला है? क्या तुम सुन नहीं सकते? क्या तुम्हारे कानों में कुछ गड़बड़ है?’’
मैंने कहा: ‘‘नहीं, मेरे साथ कुछ गड़बड़ है। मुझे इसमें कोई अर्थ नहीं दिखाई पड़ता। मुझे बाएं या दाएं क्यों घूमना चाहिए? इसकी कोई जरूरत नहीं, कोई कारण नहीं। और ये बेचारे मूर्ख, जो बाएं और फिर दाएं घूम रहे हैं, उसी जगह वापस आ जाएंगे जहां मैं पहले से ही खड़ा हुआ हूं।’’
स्वाभाविक मुझे निष्कासित कर दिया गया--और मैं बहुत प्रसन्न था। सभी ने सोचा कि यह मेरा दुर्भाग्य है, और मैंने सोचा यह मेरा सौभाग्य है। वे फुसफुसा रहे थे कि मेरे साथ कुछ गड़बड़ है: ‘‘वह निष्कासित कर दिया गया है और फिर भी आनंदित है।’’ मैंने इस खुशी में एक शानदार पार्टी दी।
इकहार्ट ने उन लोगों की सुन ली। कोई जर्मन वास्तव में संबुद्ध नहीं हो सकता है, यह बहुत कठिन बात है। संभवतः विमलकीर्ति शायद पहले जर्मन होंगे जो संबुद्ध हुए। लेकिन इकहार्ट बहुत करीब थे; एक कदम और, और संसार समाप्त हो जाता... और खिलावट घट जाती, और द्वार खुल जाते, परम के द्वार खुल जाते। लेकिन उन्होंने कहा--यद्यपि वे जर्मन थे, और पोप के दवाब के बावजूद भी--उन्होंने सुंदर बातें कही हैं। उनके वक्तव्यों में सत्य का सिर्फ एक छोटा सा अंश है, इसलिए मैं उन्हें शामिल करता हूं।
तीसरी: एक और जर्मन: बोहमे। मुझे पता नहीं कि उनके नाम का उच्चारण कैसे किया जाता है, लेकिन इसकी परवाह किसे है! लिखा तो यह ऐसे ही जाता है: बी-ओ-एच-एम-ई, बोहमे। जर्मन इसे अलग ही ढंग से उच्चारित करते होंगे, इतना मुझे पक्का है। लेकिन मैं जर्मन नहीं हूं। मुझे किसी के साथ किसी भी तरह का कोई समझौता नहीं करना है। मैंने उनको हमेशा ‘बूमे’ कहा है। अब चाहे वे खुद भी आ जाएं और कहें कि ‘‘मेरा सही नाम यह नहीं है।’’ मैं कहूंगा, ‘‘रास्ता पकड़ो! मेरे लिए तो तुम्हारा नाम यही है, और तुम्हारा नाम यही रहेगा, बूमे।’’
आश्चर्य की बात है, जब भी अर्पिता मेरे कमरे में प्रवेश करती है तो मुझे बोहमे का आभास होने लगता है, मुझे अचानक बोहमे की याद आ जाती है। हो सकता है कि यह सिर्फ एक ही जैसे कार्य करने के कारण हो, क्योंकि वे जूते बनाया करते थे और अर्पिता मेरे लिए जूते तैयार करती है। लेकिन अर्पिता, तुम धन्य हो कि तुम बोहमे की याद दिलाती हो, बोहमे श्रेष्ठतम जर्मनों में से एक हैं। फिर वही, वे बहुत गरीब थे। ऐसा लगता है कि बुद्धिमान होने के लिए गरीब होना जरूरी है; अब तक ऐसा ही होता आया है। लेकिन मेरे बाद ऐसा नहीं होगा। मेरे बाद तुम्हें संबुद्ध होने के लिए समृद्ध होना जरूरी होगा। फिर से दोहरा दूं: संबुद्ध होने के लिए तुम्हारा समृद्ध होना जरूरी होगा।
जीसस कहते हैं, धनी आदमी मेरे प्रभु के राज्य में प्रवेश नहीं कर सकेगा। वे पुराने ढंग की बातें कर रहे थे। मैं जोर देकर कहता हूं कि केवल सबसे धनी ही प्रभु के राज्य में प्रवेश कर सकेगा। और याद रखना, जो मैं कह रहा हूं वह ठीक वही है जो जीसस कह रहे थे, ये विरोधी बातें नहीं हैं। जीसस की भाषा का ‘निर्धन’ और मेरे शब्द ‘समृद्ध’ का अर्थ एक ही है। जिसने अपने आप को, अहंकार को विसर्जित कर दिया है जीसस उसे निर्धन कहते हैं; और उसी व्यक्ति को मैं समृद्ध कहता हूं। जितने तुम निर-अहंकारी हो उतने ही समृद्ध हो। लेकिन अतीत में, और खासकर पश्चिम में बोहमे जैसा व्यक्ति मुश्किल से ही धनी परिवार में जन्म लेता था।
पूरब में ऐसा नहीं हुआ है। बुद्ध राजकुमार थे, महावीर राजकुमार थे; जैनों के चौबीस तीर्थंकर राजा थे; कृष्ण राजा थे, राम राजा थे। सभी धनी थे, अत्यधिक धनी। इसमें कुछ अर्थ है। मैं जिस समृद्धि की बात कर रहा हूं यह वही है। जो व्यक्ति अहंकार को विसर्जित कर देता है वही समृद्ध है। जब वह नहीं बचता, तभी वह होता है।
बोहमे कुछ बातें, थोड़ी सी बातें कहते हैं। वे बहुत बातें नहीं कह सके, इसलिए भयभीत मत होओ। एक बात मैं बताना चाहूंगा: हृदय परमात्मा का मंदिर है। हां, बोहमे, हृदय ही उसका मंदिर है, सिर नहीं।
चौथी: एक व्यक्ति है, इदरीस शाह। मैं उसकी किसी पुस्तक का उल्लेख नहीं करूंगा, क्योंकि वे सभी सुंदर हैं। मैं इस व्यक्ति की प्रत्येक पुस्तक का समर्थन करता हूं।
घबड़ाओ मत, मैं अभी भी दीवानगी में हूं। दीवानगी से मुझे कोई डिगा नहीं सकता। लेकिन इदरीस शाह की एक पुस्तक उसकी अन्य सभी पुस्तकों से श्रेष्ठ है। सभी सुंदर हैं। मैं उन सभी का उल्लेख करना चाहूंगा, लेकिन पुस्तक ‘दि सूफीज’ तो बस एक कोहिनूर है। जो प्रयास उसने ‘दि सूफीज’ में किया है, वह बहुत बड़ा है।
हस्तक्षेप मत करो, सब ठीक चल रहा है।
मेरे लिए बात करना इतना आसान है। मैं नींद में भी बात कर सकता हूं, और वह भी बहुत तर्कपूर्ण ढंग से। ठीक है।
जब भी मैं ऐसी कोई चीज देखता हूं तो मैं हमेशा उसकी प्रशंसा करता हूं। और यह सुंदर है--अगर तुम इदरीस शाह की पुस्तक ‘दि सूफीज’ को समझ सके, तो मेरी यह बात भी तुम समझ जाओगे। मुल्ला नसरुद्दीन को पश्चिम से परिचित कराने का श्रेय इदरीस शाह को जाता है, और उसने यह एक अविश्वसनीय कार्य किया है। उसका ऋण चुकाया नहीं जा सकता है। पश्चिम हमेशा उसका आभारी रहेगा। इदरीस शाह ने नसरुद्दीन की छोटी-छोटी कहानियों को और भी सुंदर बना दिया है। कहानियों को ठीक-ठीक अनुवाद करने की क्षमता तो उसमें थी ही, लेकिन उसने उन्हें और भी ज्यादा सुंदर, हृदयस्पर्शी, चमकदार बना दिया है। मैं उसकी सभी पुस्तकों को शामिल करता हूं।
मेरी संख्या सही है?
‘‘हां, ओशो।’’
पांचवीं, मैं एक और व्यक्ति, एलन वाट्स, को उसकी सभी पुस्तकों के साथ शामिल करने जा रहा हूं। मैंने इस आदमी को बहुत अधिक प्रेम किया है। मैंने बुद्ध को अलग कारणों से प्रेम किया है; मैंने सोलोमन को अलग कारण से प्रेम किया है। ये बुद्धपुरुष हैं, एलन वाट्स बुद्धपुरुष नहीं है। वह एक अमरीकन है... पैदाइशी अमरीकन नहीं, यही उसकी एकमात्र आशा की किरण है; वह सिर्फ वहां रहने गया। लेकिन उसने बहुत कीमती पुस्तकें लिखी हैं। ‘दि वे ऑफ झेन’ को सबसे महत्वपूर्ण पुस्तकों में से एक गिना जाना चाहिए; ‘दिस इ़ज इट’ सौंदर्य एवं समझ से भरी हुई एक अदभुत पुस्तक है--और इन पुस्तकों को उस आदमी ने लिखा है जो अभी तक संबुद्ध नहीं है, इसलिए यह और भी प्रशंसनीय है।
जब तुम संबुद्ध हो जाते हो, तब तुम जो भी कहते हो वह सुंदर होता है; वह होना ही चाहिए। लेकिन जब तुम संबुद्ध नहीं हो और अंधकार में टटोल रहे हो, और फिर भी तुम्हें प्रकाश की एक झलक मिल जाती है, तो यह बहुत बड़ी बात है, यह अदभुत बात है। एलन वाट्स एक पियक्कड़ था, लेकिन फिर भी वह बुद्धत्व के बहुत करीब था। एक बार उसे विधिवत ईसाई पादरी नियुक्त किया गया था--कैसा दुर्भाग्य!--लेकिन उसने इस पद का त्याग कर दिया। धर्मगुरु का पद छोड़ने की हिम्मत बहुत कम लोगों में होती है, क्योंकि इसके साथ दुनिया की तमाम सुविधाएं मिल जाती हैं। उसने सब-कुछ त्याग दिया और करीब-करीब एक घुमक्कड़ भिक्षु की तरह हो गया। लेकिन किस तरह का भिक्षु!--यह मुझे बोधिधर्म, बाशो और रिंझाई की याद दिलाता है। एलन वाट्स संबुद्ध हुए बिना लंबे समय तक नहीं रह सकता है। उसका निधन हुए काफी समय बीत चुका है; अब तो वह दूसरा जन्म लेकर स्कूल की शिक्षा भी समाप्त कर चुका होगा... मेरे पास आने की तैयारी में होगा! मैं इस तरह के सभी लोगों की प्रतीक्षा कर रहा हूं। एलन वाट्स उनमें से एक है--मैं उसकी प्रतीक्षा कर रहा हूं।
छठवीं... अभी, यूं ही, मैंने रिंझाई का नाम लिया था। मेरी छठवीं पुस्तक है रिंझाई की ‘सेइंग्स,’ जिसमें रिंझाई के वचनों को संगृहीत किया गया है। क्या मेरी संख्या ठीक है?
‘‘हां, ओशो।’’
बहुत बढ़िया। तुमने आशु के कान में फुसफुसा कर कुछ कहा था, इसीलिए मुझे आश्चर्य हुआ। तुम्हें हस्तक्षेप करने के लिए मुझे क्षमा करना। तुम बहुत एकाग्रता से अपने नोट्स लिख रहे हो।
रिंझाई...चीनी भाषा में उनका नाम, लिन ची है; जापानी भाषा में रिंझाई है। मैं जापानी नाम रिंझाई को चुन रहा हूं। रिंझाई अधिक सुंदर, अधिक सुरुचिपूर्ण लगता है। ‘दि सेंइग्स ऑफ रिंझाई’ एकदम आग की तरह है। उदाहरण के लिए वे कहते हैं: अरे मूर्खों, बुद्ध के अनुयायियों, उनको छोड़ो! जब तक तुम उनको छोड़ोगे नहीं तब तक तुम उनको पा नहीं सकोगे। रिंझाई को बुद्ध से प्रेम था, यही कारण है कि उन्होंने यह बात कही। उन्होंने यह भी कहा: गौतम बुद्ध के नाम का प्रयोग करने से पहले यह याद रखना कि यह उनका वास्तविक नाम नहीं है। बाहर पैगोडा में बैठे हुए बुद्ध असली बुद्ध नहीं हैं। बुद्ध तुम्हारे भीतर हैं, जिनके प्रति तुम्हें जरा भी होश नहीं है, जिनके बारे में तुमने कभी सुना ही नहीं है। वही असली बुद्ध हैं। बाहर के बुद्ध से छुटकारा पा जाओ, जिससे कि तुम भीतर के बुद्ध को पा सको। रिंझाई कहते हैं: न कोई सिद्धांत है, न शिक्षा है, न बुद्ध है। और याद रखना, वे बुद्ध के शत्रु नहीं थे, बल्कि एक अनुगामी, एक शिष्य थे।
यह रिंझाई ही थे जो झेन को चीन से जापान ले गए। उन्होंने झेन की आत्मा का जापानी भाषा के साथ मिलन करवा दिया, और केवल भाषा में ही नहीं, बल्कि संस्कृति में भी--फूलों की सजावट, मिट्टी के बर्तन बनाना, बागवानी, और न जाने क्या-क्या। एक आदमी, एक अकेले आदमी ने पूरे देश का जीवन रूपांतरित कर दिया।
सातवीं: सातवां रिंझाई की तरह कोई बुद्धपुरुष नहीं है, लेकिन बहुत करीब है। हजरत इनायत खान, वह आदमी जिसने पश्चिम को सूफीइज्म से परिचित करवाया। उन्होंने कोई पुस्तक नहीं लिखी, लेकिन उनके सारे व्याख्यान बारह भागों में संगृहीत किए गए हैं। यहां-वहां कुछ सुंदर अंश हैं। क्षमा करना, मैं सभी को तो सुंदर नहीं कह सकता, लेकिन यहां-वहां, कभी-कभार, विशेषकर जब वे किसी सूफी कहानी के बारे में चर्चा कर रहे हैं, वह बहुत सुंदर है।
वे एक संगीतकार भी थे; उस विधा में वे वास्तव में एक कलाकार थे। वे आध्यात्मिक जगत के मास्टर नहीं थे, लेकिन संगीत की दुनिया के वे निश्चित ही उस्ताद थे। लेकिन कभी-कभी वे अध्यात्म के आकाश में उड़ान भरते थे, बादलों के पार उठ जाते थे, लेकिन फिर वे वापस नीचे आ गिरते थे। इससे उन्हें जरूर चोट लगी होगी... देवराज, क्या कहते हो तुम उसे? मल्टी-फ्रैक्चर? मल्टीपल फ्रैक्चर, शायद यह सही शब्द है।
आठवीं... हजरत इनायत खान के पुत्र। पश्चिम में उनके चाहने वालों के बीच उनका नाम विख्यात है: हजरत विलायत अली खान। वे एक सुंदर व्यक्ति हैं। वे अभी भी जीवित हैं। पिता तो नहीं रहे--विलायत अभी भी जीवित हैं, और जब मैं कहता हूं कि जीवित हैं, तो मेरा वास्तव में यही मतलब है कि जीवित हैं--केवल श्वास ही नहीं ले रहे हैं...निश्चित ही श्वास तो ले ही रहे हैं, लेकिन केवल श्वास ही नहीं ले रहे हैं। यहां पर उनकी सभी पुस्तकें शामिल की जा रही हैं। विलायत अली खान एक संगीतकार भी हैं, बिलकुल अपने पिता की तरह, वही एक उच्च गुणवत्ता, एक बड़ी गहराई। इनमें और अधिक गहराई है... और--इस अंतराल को सुनो--अधिक मौन भी हैं।
नौवीं: फिर से मैं खलील जिब्रान की एक और पुस्तक शामिल करना चाहता हूं, ‘जीसस, दि सन ऑफ मैन।’ यह उन पुस्तकों में से एक है जिसे करीब-करीब नजरअंदाज कर दिया गया है। ईसाइयों ने इसे नजरअंदाज किया, क्योंकि इसमें जीसस को आदमी का बेटा कहा गया है। वे इसे केवल नजरअंदाज ही नहीं करते, वे इसकी निंदा भी करते हैं। और निश्चित ही, कौन जीसस की परवाह करता है? यदि ईसाई खुद ही उनकी निंदा कर रहे हैं, तो ऐसा कौन है जो उनकी परवाह करे।
खलील जिब्रान सीरिया का निवासी है जो जेरुसलम के बहुत ही निकट है। असल में, सीरिया की पहाड़ियों में, लोग--कम से कम कुछ लोग--अभी भी अरेमैक भाषा बोलते हैं, जो कि जीसस की भाषा है। आसमान छूते देवदारों के वृक्षों के बीच, किसी को भी, यहां तक कि किसी मूर्ख को भी, रहस्य और आश्चर्य की अनुभूति हो सकती है। खलील जिब्रान का जन्म सीरिया में सितारों को छूते हुए देवदारों की छाया में हुआ था। उनके चार तथाकथित शिष्यों की तुलना में काफी करीब, जिन्होंने गॉस्पेल्स लिखे हैं, खलील जिब्रान असली आदमी जीसस को समझ पाने में काफी करीब रहा है। गॉस्पेल्स के स्थान पर वे गपशप अधिक लगते हैं। खलील जिब्रान जीसस के ज्यादा करीब है, लेकिन ईसाई बहुत नाराज थे, क्योंकि उसने जीसस को मनुष्य का पुत्र कहा है। यह पुस्तक मुझे प्रिय है।
इस पुस्तक में जीसस के बारे में कई लोगों की कहानियां कही गई हैं: एक मजदूर, एक किसान, एक मछुआरा, एक टैक्स-कलेक्टर--हां, यहां तक कि एक टैक्स-कलेक्टर की भी--एक आदमी, एक औरत, कोई भी हो सकता है। ऐसा लगता है कि जैसे खलील जिब्रान जीसस के बारे में बहुत लोगों से पूछताछ कर रहा है--असली जीसस, ईसाइयों के जीसस नहीं हैं; असली जीसस, हाड़-मांस के हैं...और कहानियां इतनी सुंदर हैं। हर कहानी पर ध्यान करने की जरूरत है। ‘जीसस, दि सन ऑफ मैन’; आज के लिए मेरी नौवीं पुस्तक है।
दसवीं: खलील जिब्रान की दूसरी पुस्तक है ‘दि मैडमैन।’ इस पुस्तक को मैं छोड़ नहीं सकता, हालांकि मैं यह स्वीकार करता हूं, मैं चाहता था कि इसे छोड़ दूं। इसे मैं छोड़ना नहीं चाहता था, क्योंकि मैं ही वह मैडमैन, पागल आदमी हूं जिसके बारे में वह बात कर रहा है। लेकिन मैं इसे छोड़ नहीं सकता। वह मैडमैन के अंतर्तम अस्तित्व के बारे में बहुत अर्थपूर्ण, बहुत प्रामाणिक ढंग से बात करता है। और यह मैडमैन साधारण मैडमैन नहीं है, बल्कि एक बुद्ध, एक रिंझाई, एक कबीर है। मुझे आश्चर्य है--मुझे हमेशा आश्चर्य होता है कि खलील जिब्रान यह सब कैसे कर पाया। वह स्वयं मैडमैन नहीं था, वह स्वयं संबुद्ध नहीं था। उसका जन्म सीरिया में हुआ था, लेकिन दुर्भाग्य से वह अमरीका में रहा।
लेकिन आश्चर्यों का आश्चर्य है, बिना उत्तर के प्रश्न हैं। यह वह कैसे कर पाया? शायद उसने स्वयं यह नहीं किया है...शायद कोई, कोई व्यक्ति--जिसे सूफी लोग खिज्र कहते हैं, और थियोसोफिस्ट के.एच., कूट हूमी कहते हैं--उसने इसको माध्यम बना लिया होगा। उस पर कभी-कभी अदृश्य शक्ति का अवतरण हुआ करता था, लेकिन हमेशा ऐसा नहीं होता था। जब वह नहीं लिख रहा होता था तो वह अत्यंत सामान्य आदमी बन जाता था, वस्तुतः तथाकथित सामान्य आदमी से भी अधिक सामान्य: जो ईर्ष्या, क्रोध, सभी प्रकार की वासनाओं से भरा होता है। लेकिन कभी-कभी उस पर अदृश्य शक्ति का अवतरण हो जाता था, और तब ऊपर से कोई दिव्यता उतरती थी, और तब उसके माध्यम से...चित्र, काव्य, कहानियां अभिव्यक्त होने लगती थीं।
ओशो
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