इ चिंग-(ओशो की प्रिय पुस्तके)
दि बुक ऑफ चेंजेस-(I Ching: Book of Changes)
(प्राचीन चीन की गहन प्रज्ञा, संस्कृति और दर्शन का सार-निचोड़ है ‘’इ चिंग’ अर्थात दि बुक ऑफ चेंजेस—परिवर्तनों की किताब उसी ऊँचाई से लिखी गई है जिससे उपनिषाद, ब्रह्म सूत्र, धम्म पद, या अन्य आध्यात्मिक ग्रंथ। फर्क इतना ही है कि इसे किसी एक लेखक ने नहीं लिखा है। इस किताब में संग्रहीत ज्ञान सदा से है, जो इन पृष्ठों में केवल प्रगट हुआ है
। सूत्र रूप में।)
एक और फर्क जो भारतीय और चीनी साहित्य में बहुत स्पष्ट है, वह यह कि चीनी चित्रमय है। ये सूत्र शुरूआत में चित्रों और रेखाओं के ज़रिये अभिव्यक्त हुए, और बाद में शब्द बनकर। रेखाओं के द्वारा बात कहनी चीनी भाषा की विशेषता है। इन रेखांकनों को हैक्साग्राम कहा जाता है। शब्दों में लिखे गए सूत्र इन रेखांकनों की व्याख्या करने की खातिर बनाने पड़े।
इ चिंग एक प्राचीन चीनी विधि है स्वयं के जीवन की स्थितियों को समझाने की। तीन हजार पहले चीन में ताम्र युग, ब्रॉंज एज था। उस समय से लेकर आज तक सभी सदियों में यह किताब राजा और प्रजा दोनों के लिए रहनुमा साबित हुई है। लाओत्से की ‘’ताओ तेह चिंग’’ और उससे भी पुरानी ‘’इ चिंग’’ चीनी संस्कृति और चिंतन के दो आधार स्तंब रहे है।
यह किताब कम है, अपने अवचेतन को और वर्तमान परिस्थिति को समझने का साधन अधिक। इसकी प्रकृति कुछ टैरो कार्ड जैसी, ज्योतिष या तिलिस्म जैसी है। भविष्य को जानने का एक उपाय। पहले ‘’यारो’’ नाम के एक पौधे की तीलियां फेंककर नंबर गिने जाते थे। उन नंबरों का मतलब किताब में समझाया गया है। किताब के सिर्फ शब्दों को पढ़कर इसे समझना असंभव है। यह किताब उस जमाने की है जब अरस्तू की तर्क प्रणाली पैदा नहीं हुई थी। बीसवीं सदी के साधारण बुद्धिजीवी के लिए यह या तो बेबूझ रही या बकवास। इसलिए चीन और जापन के अलावा पूरा विश्व ‘’इ चिंग’’ के रहस्य से अंजान रहा।
तर्क और बुद्धि से आविष्ट आधुनिक मनुष्य के लिए ‘’इ चिंग’’ जंतर-मंतर मालूम होती है। पाँसे फेंककर अपना भविष्य जानने का एक उपाय, बस। लेकिन ‘’इ चिंग’’ बहुत गहन है, अथाह समुंदर की भांति। यह उस कोटि की किताब है जिसे ओशो बहुआयामी किताब कहते है। बुद्धि से लिखी गई किताबें एक आयामी होती है। उनमें सीधे सपाट शब्दों के पार कुछ नहीं होता। उनमें ऐसे इशारे छिपे होते है जो हमारे जीवन की समस्याओं को हल करने में करते है।
‘’इ चिंग’’ चीनी मनुष्य का, अस्तित्व को समझने का पहला प्रयास है। लगभग तीन हजार साल पुरानी, या हो सकता है उससे भी पुरानी किताब। उस युग में समय को नापने का दु: साहस कौन करता था? लाओत्से की प्रेरणा स्त्रोत यही किताब है। कन्फूशियस ने विस्तार से इन सूत्रों की व्याख्या कि है। इसलिए उसके साथ इन सूत्रों के रहस्य लोक में नैतिक मापदंड प्रविष्ट हुआ।
मूल चीनी किताब को रिचर्ड विलेहम ने जर्मन में अनुवादित किया। उस अनुवाद को अँगरेजी में लाया कैरी वाइन्स। 1951 में प्रकाशित इस संस्करण की भूमिका कार्ल गुस्ताख जुंग ने। यह भूमिका इसलिए पठनीय है क्योंकि पश्चिम और पूरब की मानसिकता पर प्रखर प्रकाश डालती है।
जुंग ने सीधे ही स्वीकार किया कि चीनी मस्तिष्क जिस तरह की अनुभूति करता है वैसा पाश्चात्य दिमाग सोच भी नहीं सकता। पाश्चात्य दिमाग कार्य कारण के नियम में उलझा हुआ है। इसलिए वहां विज्ञान विकसित हुआ। चीन में कोई विज्ञान पैदा नहीं हो सका क्योंकि चीन प्रज्ञा संयोग में विश्वास रखती है, कार्य कारण में नहीं। उस संयोग के लिए जुंग ने नाम खोजा है: सिंक्रॉनिसिटी चीजें एक सामंजस्य के अनुसार घटती है, उनका कोई कारण नहीं होता।
‘’इ चिंग’’ चीनी जनता की रोजमर्रा की जिंदगी में प्रवेश कर गई है। सड़क के किनारे अपनी छोटी सी मेज लगाये बैठा ज्योतिषी ‘’इ चिंग’’ के सूत्रों के सहारे सितारों का गणित करता है। गली-कूचे में मकानों की सज्जा करने के लिए इ चिंग के सूत्र और रेखांकन कलापूर्ण ढंग से लिखकर टांगे जाते है। जापान के राजनेता आज भी राजनैतिक समस्याओं का हल ढूंढने के लिए ‘’इ चिंग’’ के पन्ने पलटते है।
‘’इ चिंग’’ की शुरूआत चीनी लोगों की संप्रेषण पद्धति से हुई है। चीनी ‘’हां’’ को इंगित करने के लिए—लंबी रेखाओं का उपयोग किया जाता था और ‘’ना’’ टूटी रेखा से कहा जाता था। एक व्याख्या यह भी है कि याँग (पुरूष) और यान (स्त्री)---। फिर धीरे-धीरे इन दो रेखाओं के मेल से आठ तरह के चित्र बने।
इन आकृतियों में वह सभी समाता है जो आकाश में और पृथ्वी पर घटता है। ये आठ चित्र निरंतर बदलते रहते है। और अस्तित्व में सतत हो रही बदलाहट के प्रतीक है। ये रेखाएं छह पंक्तियों में लिखी गई है जिसे हैक्साग्रास कहा जाता है।
जैसा कि सभी पुराने आध्यात्मिक ग्रंथों के साथ हुआ है, ‘’इ चिंग’’ की कई व्याखाएं है। मूल सूत्रों में बहुत कुछ जूड़ गया है। अंत: चीनी परंपराओं में इसके चार लेखक बताये जाते है। जिनमें एक कन्फूशियस भी है। इस किताब में कुछ चौंसठ चित्रों का हैक्साग्रास की व्याख्या की गई है। ये सूत्र लिखने की चीनी शैली अनूठी है।
किताब के दो भाग है। पहले भाग में चौंसठ हैक्साग्रास और सूत्र है और दूसरा भाग यह बताता है कि पहले भाग को किस तरह से पढ़ा जाये। क्योंकि ये सूत्र महज पहेलियाँ है। जो शब्दों से कहा गया है वह बहुत थोड़ा है। जो नहीं कहा गया वह विराट है। यदि हम केवल शब्दों को पढ़ें तो वह ऐसा होगा जैसे सात बक्सों के अंदर रखे हुए हीरे को देखने की कोशिश करें।
‘’इ चिंग’’ या ‘’दि बुक ऑफ चेंजेस’’ कैसे बनी। दूसरा भाग टीका करों की व्याख्याओं से बना है। ये व्याख्याएं भी दो से ढाई हजार साल पुरानी है। उनमें लिखा है:
प्राचीन समय पवित्र ऋषियों ने बुक ऑफ चेंजेस इस प्रकार बनाई:--
उन्होंने देवताओं के प्रकाश को सहायता देने की गरज से यारो नाम के पौधे की तीलियां लीं। अंतरिक्ष के लिए उन्होंने 3 नम्बर दिया और पृथ्वी को 2 नंबर। यहां से उन्होंने बाकी नंबर निर्मित किये।
अंधकार और प्रकाश में होनेवाले परिवर्तनों पर उन्होंने ध्यान किया और उनके अनुसार हैक्साग्राम बनाये।
उन्होंने अपने आपको ताओ और उसकी शक्ति के हिसाब से ढाला, और फिर उसके अनुकूल क्या सही है इसके नियम बनाये। बह्म जगत की जो व्यवस्था है उसका गहरा चिंतन, और स्वयं की प्रकृति के नियमों का गहन अन्वेषण कर उन्होंने भाग्य को समझ लिया।
‘’इ चिंग’’ के हैक्साग्राम का मूल उद्देश्य था, भाग्य के बारे में जानना। दिव्य आत्माएं अपने ज्ञान को सीधे नहीं कहती। उनके लिए कोई माध्यम खोजना जरूरी था जिसके द्वारा वे ज्ञान को प्रगट करतीं। अति मानवीय प्रज्ञा ने शुरू में अभिव्यक्ति के तीन माध्यम चुने है—मनुष्य, पशु-पक्षी, और वनस्पति। इन तीनों के भी तर जीवन एक अलग ही लयबद्धता से धड़कता है।
इन ऋषियों ने वनस्पति को दिव्य शक्ति के संवाहक की तरह चुना। अति मानवीय प्रज्ञा के साथ बातचीत करने के लिए नंबर और उनके प्रतीकों को चुना। हैक्साग्रास की रेखाओं की संरचना संसार की स्थितियों का प्रतीक है।
‘’यह ऐसी किताब है जिससे तटस्थ नहीं रहा जा सकता। उसका ताओ निरंतर बदल रहा है। बिना किसी विश्राम के सतत गतिमान। छह खाली स्थानों से बहता हुआ।
इसे कैसे पढ़ें:
पहले शब्दों को देखें।
फिर उनके अर्थों पर ध्यान करें।
उसके बाद शाश्वत नियम स्वयं को प्रगट करते है। लेकिन अगर आप सही आदमी नहीं है तो अर्थ आपके सामने प्रगट नहीं होंगे।
चौंसठ सूत्रों में मानव जीवन से संबंधित विषयों का बहुत ही खूबसूरत, सटीक विश्लेषण है। इनमें कुछ दार्शनिक है, कुछ नैतिक और कुछ व्यावहारिक। जैसे, पहले दो सूत्र है अंतरिक्ष और पृथ्वी पर। ये प्रतीक है। सृजन और शक्ति और ग्रहणशील शक्ति के। इसके बाद जो सूत्र है वह रोज की जिंदगी में काम आने वाले है। जैसे प्रतीक्षा, धीरज, शुरूआत, विनम्रता, स्थिरता, मैत्री, संघर्ष, इत्यादि गुण जो प्रत्येक मनुष्य के अवचेतन से जुड़े है। उनकी व्याख्याएं की गई है।
सूत्र शाब्दिक तल पर भी पढ़े जा सकते है। तब वह निर्मल काव्य है। बहुत सुंदर प्रतीकों से बना हुआ काव्य ह्रदय को गहरे छू जाता है।
लेकिन सूत्रों का वास्तविक उपयोग है—मन की दुविधा में, अनिर्णय की स्थिति में, किंकर्ततव्यविमूढ़ अवस्था में, जैसे हम किसी ज्ञानी से, पथप्रदर्शक से या गुरु से पूछते है। ‘’अब क्या करूं?’’ वैसे ही आप इन सूत्रों से पूछ सकते है, ओर ये आपको उत्तर देते है। ये उत्तर वस्तुत: हमारी ही अंतरात्मा की आवाज है। चूंकि हम उसे सीधे नहीं सुन सकते इसलिए बहार के तिलिस्मों का सहारा लेना पड़ता है।
‘’इ चिंग’’ का साधारण जिंदगी में उपयोग इस तरह किया जाता है। कोई भी प्रश्न मन में लेकिर आप तीन सिक्कों को हाथ में लें। सिक्के एक ही किस्म के हों, जैसे एक रूपया या दो रूपये। प्रश्न अगर वास्तविक है तो उसकी उर्जा हाथों में उतरेंगे। हाथों में सिक्के हिलाकर जमीन पर फेंकिए जैसे जुए में पाँसे फेंकते है। सिक्के को ‘’यन’’ नाम दें, दूसरें को ‘’याँग’’ याँग के तीन नंबर होते है, यन के दो। यदि तीनों याँग के सिक्के गिरते है तो उनके नौ नंबर बनते है और तीनों यंग के गिरते है तो छह नंबर। इन्हें हेड और टेल भी कहा जा सकता है।
इस प्रकार छह बार सिक्के फेंकने पर एक कागज पर छह लाइनें बनायी जा सकती है जिसे हैक्साग्रास कहते है।
मान लिए यह चित्र बना तो किताब के चौंसठ रेखाचित्रों में से किस नंबर के रेखाचित्र में यह संरचना है इसे ढूंढ़ निकालें। यह चित्र पांचवें सूत्र का है। जिसका नाम है, प्रतीक्षा। अब इस सूत्र को पढ़ें। इसमे प्रतीक्षा के विभिन्न पहलू दिखायें गये है। साथ ही इस क्षण में आपको क्या करना है इसका सुझाव भी है। यह सुझाव इस तरह है जैसे कोई प्रत्यक्ष आपके साथ बात कर रहा हो।
‘’अपने मन को शांति से इस क्षण पर केंद्रित करो, जब तक कि संकट के पदचाप सुनाई दे रहे है। जो आनेवाला है उस पर तुम्हारा कोई नियंत्रण नहीं है, तुम्हारा नियंत्रण अगर है तो इस क्षण पर। उसी पर ध्यान केंद्रित करो। लेकिन जो आयेगा उसका सामना करने के लिए तैयार हो जाओ।
अब ये शब्द समय से बंधे नहीं है। किसी भी समय, किसी भी व्यक्ति को ये कहे जा सकते है। अगर इन शब्दों पर अमल किया तो ये शब्द उसके गुरु बन सकते है।
इस समय ‘’इ चिंग’’ इंटरनेट पर अवतरित हुआ है। हर दुकानदार, व्यापारी, व्यवस्थापक, राजनेता या कोई भी जिसके पास अपना कंप्यूटर है, कोई महत्वपूर्ण काम करने से पहले अपने दफ्तर में बैठकर, तीन सिक्के फेंककर ‘’इ चिंग’’ से सलाह ले लेता है। 1960-70 के दशक में, पश्चिम में ‘’न्यू एज’’ और होलिस्टिक, संपूर्ण जीवन के दृष्टिकोण का एक नया आंदोलन छिड़ा, जिसमें ‘’इ चिंग’’ को घर-घर पहुंचा दिया। जब बुद्धि ओ तर्क से जीवन को उलझनों को सुलझाया नहीं जा सकता तब परामानवीय, अंत: प्रज्ञा और ह्रदय के चक्षुओं के द्वारा मन की बेबूझ पहेलियों को हल करने का प्रयास किया जाता है।
‘’इ चिंग’’ जैसे साधन जीवन की गहराई में डुबकी लगाने के द्वार बन सकते है—नहीं, अब कहना होगा, बन सकते है। क्योंकि ओशो इस तरह के जंतर-मंतर को मन के खेल कहा है। जहां तक इन्हें खेल मानकर खेला जाए वहां तक ठीक है। लेकिन बड़ी जल्दी ये सहारा बन जाते है। इनकी लत लगती है। आत्मविश्वास कम होने लगता है। ‘’इ चिंग’’ ‘’टैरो’’ ‘’ज्योतिष’’, भारत में लोकप्रिय ‘’भृगु संहिता’’, जैसी किताबें व्यक्ति को पंगु बना देते है। अंत: ओशो इसके अधीन होने के पक्ष में नहीं है। फिर भी उन्होंने अपनी मनपसंद किताबों में ‘’इ चिंग’’ ‘’दि बुक आफ चेंजेस’’ को सम्मिलित किया।
ओशो
बुक्स आई हैव लव्ड
दि बुक ऑफ चेंजेस-(I Ching: Book of Changes)
(प्राचीन चीन की गहन प्रज्ञा, संस्कृति और दर्शन का सार-निचोड़ है ‘’इ चिंग’ अर्थात दि बुक ऑफ चेंजेस—परिवर्तनों की किताब उसी ऊँचाई से लिखी गई है जिससे उपनिषाद, ब्रह्म सूत्र, धम्म पद, या अन्य आध्यात्मिक ग्रंथ। फर्क इतना ही है कि इसे किसी एक लेखक ने नहीं लिखा है। इस किताब में संग्रहीत ज्ञान सदा से है, जो इन पृष्ठों में केवल प्रगट हुआ है
। सूत्र रूप में।)
एक और फर्क जो भारतीय और चीनी साहित्य में बहुत स्पष्ट है, वह यह कि चीनी चित्रमय है। ये सूत्र शुरूआत में चित्रों और रेखाओं के ज़रिये अभिव्यक्त हुए, और बाद में शब्द बनकर। रेखाओं के द्वारा बात कहनी चीनी भाषा की विशेषता है। इन रेखांकनों को हैक्साग्राम कहा जाता है। शब्दों में लिखे गए सूत्र इन रेखांकनों की व्याख्या करने की खातिर बनाने पड़े।
इ चिंग एक प्राचीन चीनी विधि है स्वयं के जीवन की स्थितियों को समझाने की। तीन हजार पहले चीन में ताम्र युग, ब्रॉंज एज था। उस समय से लेकर आज तक सभी सदियों में यह किताब राजा और प्रजा दोनों के लिए रहनुमा साबित हुई है। लाओत्से की ‘’ताओ तेह चिंग’’ और उससे भी पुरानी ‘’इ चिंग’’ चीनी संस्कृति और चिंतन के दो आधार स्तंब रहे है।
यह किताब कम है, अपने अवचेतन को और वर्तमान परिस्थिति को समझने का साधन अधिक। इसकी प्रकृति कुछ टैरो कार्ड जैसी, ज्योतिष या तिलिस्म जैसी है। भविष्य को जानने का एक उपाय। पहले ‘’यारो’’ नाम के एक पौधे की तीलियां फेंककर नंबर गिने जाते थे। उन नंबरों का मतलब किताब में समझाया गया है। किताब के सिर्फ शब्दों को पढ़कर इसे समझना असंभव है। यह किताब उस जमाने की है जब अरस्तू की तर्क प्रणाली पैदा नहीं हुई थी। बीसवीं सदी के साधारण बुद्धिजीवी के लिए यह या तो बेबूझ रही या बकवास। इसलिए चीन और जापन के अलावा पूरा विश्व ‘’इ चिंग’’ के रहस्य से अंजान रहा।
तर्क और बुद्धि से आविष्ट आधुनिक मनुष्य के लिए ‘’इ चिंग’’ जंतर-मंतर मालूम होती है। पाँसे फेंककर अपना भविष्य जानने का एक उपाय, बस। लेकिन ‘’इ चिंग’’ बहुत गहन है, अथाह समुंदर की भांति। यह उस कोटि की किताब है जिसे ओशो बहुआयामी किताब कहते है। बुद्धि से लिखी गई किताबें एक आयामी होती है। उनमें सीधे सपाट शब्दों के पार कुछ नहीं होता। उनमें ऐसे इशारे छिपे होते है जो हमारे जीवन की समस्याओं को हल करने में करते है।
‘’इ चिंग’’ चीनी मनुष्य का, अस्तित्व को समझने का पहला प्रयास है। लगभग तीन हजार साल पुरानी, या हो सकता है उससे भी पुरानी किताब। उस युग में समय को नापने का दु: साहस कौन करता था? लाओत्से की प्रेरणा स्त्रोत यही किताब है। कन्फूशियस ने विस्तार से इन सूत्रों की व्याख्या कि है। इसलिए उसके साथ इन सूत्रों के रहस्य लोक में नैतिक मापदंड प्रविष्ट हुआ।
मूल चीनी किताब को रिचर्ड विलेहम ने जर्मन में अनुवादित किया। उस अनुवाद को अँगरेजी में लाया कैरी वाइन्स। 1951 में प्रकाशित इस संस्करण की भूमिका कार्ल गुस्ताख जुंग ने। यह भूमिका इसलिए पठनीय है क्योंकि पश्चिम और पूरब की मानसिकता पर प्रखर प्रकाश डालती है।
जुंग ने सीधे ही स्वीकार किया कि चीनी मस्तिष्क जिस तरह की अनुभूति करता है वैसा पाश्चात्य दिमाग सोच भी नहीं सकता। पाश्चात्य दिमाग कार्य कारण के नियम में उलझा हुआ है। इसलिए वहां विज्ञान विकसित हुआ। चीन में कोई विज्ञान पैदा नहीं हो सका क्योंकि चीन प्रज्ञा संयोग में विश्वास रखती है, कार्य कारण में नहीं। उस संयोग के लिए जुंग ने नाम खोजा है: सिंक्रॉनिसिटी चीजें एक सामंजस्य के अनुसार घटती है, उनका कोई कारण नहीं होता।
‘’इ चिंग’’ चीनी जनता की रोजमर्रा की जिंदगी में प्रवेश कर गई है। सड़क के किनारे अपनी छोटी सी मेज लगाये बैठा ज्योतिषी ‘’इ चिंग’’ के सूत्रों के सहारे सितारों का गणित करता है। गली-कूचे में मकानों की सज्जा करने के लिए इ चिंग के सूत्र और रेखांकन कलापूर्ण ढंग से लिखकर टांगे जाते है। जापान के राजनेता आज भी राजनैतिक समस्याओं का हल ढूंढने के लिए ‘’इ चिंग’’ के पन्ने पलटते है।
‘’इ चिंग’’ की शुरूआत चीनी लोगों की संप्रेषण पद्धति से हुई है। चीनी ‘’हां’’ को इंगित करने के लिए—लंबी रेखाओं का उपयोग किया जाता था और ‘’ना’’ टूटी रेखा से कहा जाता था। एक व्याख्या यह भी है कि याँग (पुरूष) और यान (स्त्री)---। फिर धीरे-धीरे इन दो रेखाओं के मेल से आठ तरह के चित्र बने।
इन आकृतियों में वह सभी समाता है जो आकाश में और पृथ्वी पर घटता है। ये आठ चित्र निरंतर बदलते रहते है। और अस्तित्व में सतत हो रही बदलाहट के प्रतीक है। ये रेखाएं छह पंक्तियों में लिखी गई है जिसे हैक्साग्रास कहा जाता है।
जैसा कि सभी पुराने आध्यात्मिक ग्रंथों के साथ हुआ है, ‘’इ चिंग’’ की कई व्याखाएं है। मूल सूत्रों में बहुत कुछ जूड़ गया है। अंत: चीनी परंपराओं में इसके चार लेखक बताये जाते है। जिनमें एक कन्फूशियस भी है। इस किताब में कुछ चौंसठ चित्रों का हैक्साग्रास की व्याख्या की गई है। ये सूत्र लिखने की चीनी शैली अनूठी है।
किताब के दो भाग है। पहले भाग में चौंसठ हैक्साग्रास और सूत्र है और दूसरा भाग यह बताता है कि पहले भाग को किस तरह से पढ़ा जाये। क्योंकि ये सूत्र महज पहेलियाँ है। जो शब्दों से कहा गया है वह बहुत थोड़ा है। जो नहीं कहा गया वह विराट है। यदि हम केवल शब्दों को पढ़ें तो वह ऐसा होगा जैसे सात बक्सों के अंदर रखे हुए हीरे को देखने की कोशिश करें।
‘’इ चिंग’’ या ‘’दि बुक ऑफ चेंजेस’’ कैसे बनी। दूसरा भाग टीका करों की व्याख्याओं से बना है। ये व्याख्याएं भी दो से ढाई हजार साल पुरानी है। उनमें लिखा है:
प्राचीन समय पवित्र ऋषियों ने बुक ऑफ चेंजेस इस प्रकार बनाई:--
उन्होंने देवताओं के प्रकाश को सहायता देने की गरज से यारो नाम के पौधे की तीलियां लीं। अंतरिक्ष के लिए उन्होंने 3 नम्बर दिया और पृथ्वी को 2 नंबर। यहां से उन्होंने बाकी नंबर निर्मित किये।
अंधकार और प्रकाश में होनेवाले परिवर्तनों पर उन्होंने ध्यान किया और उनके अनुसार हैक्साग्राम बनाये।
उन्होंने अपने आपको ताओ और उसकी शक्ति के हिसाब से ढाला, और फिर उसके अनुकूल क्या सही है इसके नियम बनाये। बह्म जगत की जो व्यवस्था है उसका गहरा चिंतन, और स्वयं की प्रकृति के नियमों का गहन अन्वेषण कर उन्होंने भाग्य को समझ लिया।
‘’इ चिंग’’ के हैक्साग्राम का मूल उद्देश्य था, भाग्य के बारे में जानना। दिव्य आत्माएं अपने ज्ञान को सीधे नहीं कहती। उनके लिए कोई माध्यम खोजना जरूरी था जिसके द्वारा वे ज्ञान को प्रगट करतीं। अति मानवीय प्रज्ञा ने शुरू में अभिव्यक्ति के तीन माध्यम चुने है—मनुष्य, पशु-पक्षी, और वनस्पति। इन तीनों के भी तर जीवन एक अलग ही लयबद्धता से धड़कता है।
इन ऋषियों ने वनस्पति को दिव्य शक्ति के संवाहक की तरह चुना। अति मानवीय प्रज्ञा के साथ बातचीत करने के लिए नंबर और उनके प्रतीकों को चुना। हैक्साग्रास की रेखाओं की संरचना संसार की स्थितियों का प्रतीक है।
‘’यह ऐसी किताब है जिससे तटस्थ नहीं रहा जा सकता। उसका ताओ निरंतर बदल रहा है। बिना किसी विश्राम के सतत गतिमान। छह खाली स्थानों से बहता हुआ।
इसे कैसे पढ़ें:
पहले शब्दों को देखें।
फिर उनके अर्थों पर ध्यान करें।
उसके बाद शाश्वत नियम स्वयं को प्रगट करते है। लेकिन अगर आप सही आदमी नहीं है तो अर्थ आपके सामने प्रगट नहीं होंगे।
चौंसठ सूत्रों में मानव जीवन से संबंधित विषयों का बहुत ही खूबसूरत, सटीक विश्लेषण है। इनमें कुछ दार्शनिक है, कुछ नैतिक और कुछ व्यावहारिक। जैसे, पहले दो सूत्र है अंतरिक्ष और पृथ्वी पर। ये प्रतीक है। सृजन और शक्ति और ग्रहणशील शक्ति के। इसके बाद जो सूत्र है वह रोज की जिंदगी में काम आने वाले है। जैसे प्रतीक्षा, धीरज, शुरूआत, विनम्रता, स्थिरता, मैत्री, संघर्ष, इत्यादि गुण जो प्रत्येक मनुष्य के अवचेतन से जुड़े है। उनकी व्याख्याएं की गई है।
सूत्र शाब्दिक तल पर भी पढ़े जा सकते है। तब वह निर्मल काव्य है। बहुत सुंदर प्रतीकों से बना हुआ काव्य ह्रदय को गहरे छू जाता है।
लेकिन सूत्रों का वास्तविक उपयोग है—मन की दुविधा में, अनिर्णय की स्थिति में, किंकर्ततव्यविमूढ़ अवस्था में, जैसे हम किसी ज्ञानी से, पथप्रदर्शक से या गुरु से पूछते है। ‘’अब क्या करूं?’’ वैसे ही आप इन सूत्रों से पूछ सकते है, ओर ये आपको उत्तर देते है। ये उत्तर वस्तुत: हमारी ही अंतरात्मा की आवाज है। चूंकि हम उसे सीधे नहीं सुन सकते इसलिए बहार के तिलिस्मों का सहारा लेना पड़ता है।
‘’इ चिंग’’ का साधारण जिंदगी में उपयोग इस तरह किया जाता है। कोई भी प्रश्न मन में लेकिर आप तीन सिक्कों को हाथ में लें। सिक्के एक ही किस्म के हों, जैसे एक रूपया या दो रूपये। प्रश्न अगर वास्तविक है तो उसकी उर्जा हाथों में उतरेंगे। हाथों में सिक्के हिलाकर जमीन पर फेंकिए जैसे जुए में पाँसे फेंकते है। सिक्के को ‘’यन’’ नाम दें, दूसरें को ‘’याँग’’ याँग के तीन नंबर होते है, यन के दो। यदि तीनों याँग के सिक्के गिरते है तो उनके नौ नंबर बनते है और तीनों यंग के गिरते है तो छह नंबर। इन्हें हेड और टेल भी कहा जा सकता है।
इस प्रकार छह बार सिक्के फेंकने पर एक कागज पर छह लाइनें बनायी जा सकती है जिसे हैक्साग्रास कहते है।
मान लिए यह चित्र बना तो किताब के चौंसठ रेखाचित्रों में से किस नंबर के रेखाचित्र में यह संरचना है इसे ढूंढ़ निकालें। यह चित्र पांचवें सूत्र का है। जिसका नाम है, प्रतीक्षा। अब इस सूत्र को पढ़ें। इसमे प्रतीक्षा के विभिन्न पहलू दिखायें गये है। साथ ही इस क्षण में आपको क्या करना है इसका सुझाव भी है। यह सुझाव इस तरह है जैसे कोई प्रत्यक्ष आपके साथ बात कर रहा हो।
‘’अपने मन को शांति से इस क्षण पर केंद्रित करो, जब तक कि संकट के पदचाप सुनाई दे रहे है। जो आनेवाला है उस पर तुम्हारा कोई नियंत्रण नहीं है, तुम्हारा नियंत्रण अगर है तो इस क्षण पर। उसी पर ध्यान केंद्रित करो। लेकिन जो आयेगा उसका सामना करने के लिए तैयार हो जाओ।
अब ये शब्द समय से बंधे नहीं है। किसी भी समय, किसी भी व्यक्ति को ये कहे जा सकते है। अगर इन शब्दों पर अमल किया तो ये शब्द उसके गुरु बन सकते है।
इस समय ‘’इ चिंग’’ इंटरनेट पर अवतरित हुआ है। हर दुकानदार, व्यापारी, व्यवस्थापक, राजनेता या कोई भी जिसके पास अपना कंप्यूटर है, कोई महत्वपूर्ण काम करने से पहले अपने दफ्तर में बैठकर, तीन सिक्के फेंककर ‘’इ चिंग’’ से सलाह ले लेता है। 1960-70 के दशक में, पश्चिम में ‘’न्यू एज’’ और होलिस्टिक, संपूर्ण जीवन के दृष्टिकोण का एक नया आंदोलन छिड़ा, जिसमें ‘’इ चिंग’’ को घर-घर पहुंचा दिया। जब बुद्धि ओ तर्क से जीवन को उलझनों को सुलझाया नहीं जा सकता तब परामानवीय, अंत: प्रज्ञा और ह्रदय के चक्षुओं के द्वारा मन की बेबूझ पहेलियों को हल करने का प्रयास किया जाता है।
‘’इ चिंग’’ जैसे साधन जीवन की गहराई में डुबकी लगाने के द्वार बन सकते है—नहीं, अब कहना होगा, बन सकते है। क्योंकि ओशो इस तरह के जंतर-मंतर को मन के खेल कहा है। जहां तक इन्हें खेल मानकर खेला जाए वहां तक ठीक है। लेकिन बड़ी जल्दी ये सहारा बन जाते है। इनकी लत लगती है। आत्मविश्वास कम होने लगता है। ‘’इ चिंग’’ ‘’टैरो’’ ‘’ज्योतिष’’, भारत में लोकप्रिय ‘’भृगु संहिता’’, जैसी किताबें व्यक्ति को पंगु बना देते है। अंत: ओशो इसके अधीन होने के पक्ष में नहीं है। फिर भी उन्होंने अपनी मनपसंद किताबों में ‘’इ चिंग’’ ‘’दि बुक आफ चेंजेस’’ को सम्मिलित किया।
ओशो
बुक्स आई हैव लव्ड
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