हकीम सनाई के बारे में जो थोड़ी सी जानकारी है वह किंवदंती अधिक है। ऐतिहासिक तथ्य कम है। गझाना में, सन 1118-1152 के दौरान बहरा शाह राज करता था। उसी दौर में हकीम सनाई पनापा। उसकी इंतकाल सन 1150 में बताया जाता है। पैदा कब हुआ इसका कोई लेखा-जोखा नहीं है। उसके संबंध में एक ही किस्सा पाया जाता है।
हकीम सनाई ने गझाना के सुलतान इब्राहिम की तारीफ में एक कविता लिखी थी और वह सुलतान को सुनाने के लिए उसके दरबार की और चल पडा। सुलतान इब्राहिम हिंदुस्तान पर एक और हमला करने की तैयारी कर रहा था। हिंदुस्तान की और जाते हुए रास्ते में एक खुशबूदार हदीक़ा, (बग़ीचा) पडा। बग़ीचे से गाने के पुख्ता सुर लहराते हुए आये। सुलतान उन्हें सुनने की खातिर रुका। गानेवाला शख्स आइ-खुर था—एक पियक्कड़ और पागल आदमी। लेकिन उसके ढीठ उदगारों के भीतर सचाई धधकती थी।
लाई-खुर कह रहा था, शराब ले आओ और पियो एक जाम अंधे सुलतान के नाम।
‘’यह क्या कह रहे हो?’’ लोगों न पूछा
‘’अंधा नहीं तो क्या।‘’ वह खिल खिलाकर बोला, यहां घर में उसकी जरूरत है और वह जा रहा है इस पागल जंग के लिए।‘’
दूसरा जाम लाई-खुर ने भरा ‘’हकीम सनाई के अंधेपन के लिए।‘’
इस पर लोगों ने और भी एतराज किया क्योंकि सनाई तब तक एक अज़ीज शायर बन चुका था। लेकिन लाई-खुर ने कहां यह और भी सही है, क्योंकि सनाई को इसका ख्याल ही नहीं है कि वह किस काम के लिए पैदा हुआ है। जब खुदा के सामने उसकी सुनवाई होगी तो उसे दिखाने के लिए उसके पास सुलतान की तारीफ़ में बनाए गये गीतों के अलावा कुछ न होगा। सुलतान—जो कि उसके जैसा ही मिट्टी का पुतला है।‘’
यह सुनकर हकीम सनाई की जड़ें हिल गई। वह सब कुछ छोड़कर सूफी मुर्शिद युसूफ़ हमदानी की शरण में गया। बाद में वह मक्का गया। और लौटने के बाद उसने ‘’हदीक़त’’ लिखना शुरू किया जो कि सन 1130 में पूरा हुआ। इस किताब का पूरा नाम ‘’हदीक़त-उल-हक़ीकत।’’
इस किताब ने इतनी बुलंदी पाई कि सूफी सद गुरूओं को जो त्रिकोण है: जलालुद्दीन रूमी, अत्तार और हकीम सनाई उसमें सनाई को एक दीप स्तंभ का दर्जा मिला। ‘’हदीक़त’’ के बारे में खुद सनाई ने लिखा है: ‘’जब तक आदमी की जबान है तब तक इसे पढ़ा जाएगा।‘’ पिछले आठ सौ सालों में हदीक़त सूफी पाठय पुस्तक की तरह पढ़ी जाती है।
‘’हदीक़त’’ पर्सियन भाषा में लिखा गया, 12,000 दोहों का एक बहुत बड़ा ग्रंथ है। जिसमे से कुछ गीतों का अनुवाद डी.एल.पेंडलवरी ने अंग्रेजी में किया है। ‘’दि बॉलड् ऑफ ट्रूथं’’ के नाम से, इसे प्रकाशित किया है। लंदन के औक्टेगन प्रेस ने। संपूर्ण हदीक़त का अनुवाद मेजर स्टीफेन सन ने अंग्रेजी में किया था।
हदीक़त के सही अनुवाद करने में काफी मुश्किलें है। एक मुश्किल यह है कि हदीक़त के पाँच अलग-अलग संस्करण है। हदीक़त एक विशाल दिया है जिसमें सनाई के दोहे बेतरतीब भरे हुए है। इन पाँच संस्करणों में से असली संस्करण कौन सा है, है भी कि नहीं, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है।
दूसरे, पर्सियन भाषा बहुत ही गहरी और मुहावरेदार है। सूफियों का बात कहने का अंदाज रहस्यमय है। एक शब्द के कई अर्थ हो सकते है। उनका एक कोड लेंग्वेज है। सतह पर कुछ अर्थ होते है, गहराई में कुछ और। अरेबिक शब्दों के विशिष्ट अंक होते है। जैसे:-
य=10, स=60, क=20, न=50
य स=10+60=70
क न=20+50=70
बहरहाल, जो अलफ़ाज़ हमें जिबरिश मालूम होते है। उनमें अर्थों के खजानें छिपे है।
सनाई के कुछ शब्द ऐसी कुंजियों भी हैं जिनसे उसने कुरान के गहरे ताले खोले है। अरेबिक, पर्सियन इत्यादि मध्य पूर्व की भाषाएं शब्दों के संग खेलती है। इस कारण कि वे भाषाएं बहुत अमीर है।
इस किताब का लेखक पेंडलबरी पूरब और पश्चिम की भाषाओं का फर्क समझाते हुए बड़ी गहरी बात कहता है: ‘’हमारे (पाश्चात्य) चिंतक शब्द लिखते और बोलते है। लेकिन उन शब्दों से वेजो संप्रेषित कर पाते है वह चिंतक नहीं बल्कि कोरे शब्द। हमारी भाषा पानी जैसी हो गई है; एक रंगहीन, गंधहीन, बेस्वाद माध्यम। और हमें मछली की मानिंद, उसका अहसास तभी होता है जब हम उससे वंचित हो जाते है। हम शब्दों के प्रति मूर्च्छित है और इसीलिए, उनसे अधिक बंधे हुए है जितने कि पूरे इतिहास में कोई तहजीब बंधी हुई नहीं था।‘’
आज की तहजीब में सबसे अधिक कोई शब्द परेशान हुआ है तो ‘’अल्लाह’’ या ‘’ईश्वर’’। इसका जिक्र करते हुए आधुनिक आदमी एक अपराध भाव सा महसूस करता है। लेकिन सनाई के लिए अल्लाह एक हक़ीकत है, हक़ है।
सनाई ने कहा है: जब तुम बेबस होकर पुकारते हो, ‘’या अल्लाह।‘’
सनाई ने कहा है: जब तुम बेबस होकर पुकारते हो, ‘’या अल्लाह।‘’
उसके जवाब में दोस्त कहता है, ‘’मैं यहां हूं।‘’
सनाई, अत्तार, रूमी के त्रिकोण में सनाई अव्वल है—तारीख़ी तौर पर और बुलंदी के तौर पर भी। सनाई का अहसान मानते हुए ही अत्तार और रूमी आगे बढ़ते है।
जलालुद्दीन रूमी ने लिखा है:
अत्तार रूह थी और सनाई, आंखे
हम सनाई और अत्तार के साये में चलते है।
किताब की एक झलक:--
1- हमने अपना तरीका उसे
जताने की खूब कोशिश की
लेकिन सफल नहीं हुए
जब हमने छोड़ दिया--
तब कोई अवरोध ही नहीं बचा
2- उसने अपना परिचय आप दिया—
करूणावशा
अन्यथा हम उसे कैसे जान पाते?
बुद्धि हमें उसके द्वार तक ले गई,
लेकिन वह उसकी मौजूदगी थी
जिसने हमें भीतर प्रवेश दिया
3- लेेकिन तुम उसे कैसे जान पाओगे?
जब तक कि तुम खुद को नहीं जानते?
4- सथान का अपना कोई स्थान नहीं है
जिसने स्थान बनाया उसका
स्थान कैसे होगा?
जिसने स्वर्ग बनाया
उसका स्वर्ग कहां से होगा?
5-उसने कहा, मैं एक गड़ा हुआ खजाना था
सृष्टि का निर्माण हुआ
ताकि तुम मुझे जान सको
मुझे क्यों बताते हो
जब कि तुम जिसे खोज रहे हो
वह है ही नहीं?
क्या तुम वहां पैदल जाना चाहते हो?
तुम जिस राह पर चलना चाहते हो
वह है ह्रदय के दर्पण को चमकाना
6- अगर तुम अपनी कीमत जानो
तो क्यों फिक्र करते हो
लोग तुम्हें स्वीकार करें या इंकार?
7- तुुम्हें समझ लेना चाहिए
कि यह उसकी रहनुमाई है जो
तुम्हें तुम्हारी राह पर चलाती है,
न की तुम्हारी ताकत
8- मेरे दोस्त, जो भी है, उसी से है
तुम्हारी अपनी हस्ती एक दिखावा है
बंद करो यह बकवास, मिटा दो खुद को--
और तुम्हारे दिल का जहन्नुम जन्नत बन जाता है
खुद को मिटा दो, और कुछ भी पा लो।
तुम्हारा स्वार्थ जंगली बछड़े की तरह है
9-
इस दरवाजे पर, क्या फर्क है
मुसलमान और ईसाई में?
सज्जन और दुर्जन में?
इस दरवाजे पर सभी खोजी है
और वह मंजिल है
10- क्या सूरज इसलिए है
कि मुर्गा उसे देखते ही बांग दे?
तुम हो या न हो, उसे क्या फर्क पड़ता है?
तुम्हारे जैसे कई उसके दर पर आये है
11- तुम जो हो , हो:
इसलिए तुम्हारे प्यार और नफ़रतें
तुम जो हो, हो:
इस लिए तुम्हारे विश्वास और अविश्वास
12- ईश्वर अकारण है:
तुम क्यों कारणों को खोज रहे हो?
सत्य का सूरज अपने आप उगता है
और उसके साथ ही डूबता है
ज्ञान का चाँद
13- अपने इर्दगिर्द जाला बुनना बंद करो
पिंजरे के बाहर कूद पड़ो—शेर की तरह
14- प्यार को वही जीतता है
जिसे प्यार जीतता है
15- उसकी खोज में दिल-ऑ-जान से निकल पड़ो।
लेकिन जब समुंदर तक पहु्ंचो
तो नदी की बात करनी छोड़ दो
ओशो का नजरिया:--
मेरे लिए हकीम सनाई ऐसा नाम है जैसे मीठी शहद या अमृत। हकीम सनाई विरले है, सूफियों की दुनिया में अनूठे। और कोई सूफी अभिव्यक्ति की इस ऊँचाई या इस गहराई तक नहीं पहुंचा है। हकीम सनाई ने लगभग असंभव को संभव कर दिया है।
अगर रहस्यदर्शीयों की दुनिया में मुझे सिर्फ दो किताबें चुनने के लिए कहा जाए तो एक होगी झेन जगत से—जो कि होश का मार्ग है—सोझान की ‘’सिन सिन मिंग’’ मैंने उस पर प्रवचन किये है। उसमें होश और ध्यान का मार्ग है। अर्थात झेन का सार-निचोड़ है। दूसरी किताब होगी, हकीम सनाई की ‘’हदीक़त-उल-हक़ीकत’’ संक्षेप में कहा जाए तो ‘’सत्य का बंध हुआ बगीचा।‘’
हदीक़त प्रेम-मार्ग की मूलभूत सुगंध है जैसे सोझान ने झेन की आत्मा को पकड़ लिया वैसे हकीम सनाई ने सूफीवाद की आत्मा को पकड़ लिया है।
ऐसी किताबें लिखी नहीं जाती—जन्मती है। उन्हें कोई लिख नहीं सकता है मस्तिष्क में नहीं बनती। वे उस पार से आती है। वे उपहार है वे वैसे ही रहस्यपूर्ण ढंग से आती है जैसे बच्चा पैदा होता है या पक्षी जन्मता है या गुलाब का फूल खिलता है। वे हम तक आते है—उपहार स्वरूप।
युनियो मिस्टिका
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