कुल पेज दृश्य

रविवार, 13 नवंबर 2011

1--लाइट ऑन का पाथ--एम0 सी0(ओशो की प्रिय पुस्‍तकें)

1--लाइट ऑन का पाथ--एम0 सी0
उन दिनों लेखकों को उनके लेखन के लिए पुरस्कार नहीं दिया जाता था। नोबेल पुरस्कार या साहित् अकादमियां किसी के ख्याल में नहीं थी। क्योंकि रचना क्रम में लेखक सिर्फ एक वाहक था। ज्ञान तो आस्तित् में भरा पडा है। उससे थोड़ा सुर साध लिया बस।
            ‘’लाईट ऑन दा पाथ’’  याने राह की रोशनी। रोशनी को मानव समाज के बीच लाने के लिए बहाना बनी मेबिल कॉलिन्एक अंग्रेज महिला जो थियोसाफी आंदोलन की एक सदस् थी। उन्नीस वीं सदी के मध् में और बीसवीं सदी के दूसरे-तीसरे दशक तक पश्चिम में थियोसाफी जीवन दर्शन का बहुत प्रभाव था। थियोसाफी की जन् दाता मैडम ब्लावट्स्की एक रशियन रहस्य दर्शी थी। उसके पास अतींद्रिय शक्ति थी और वह अशरीरी सद गुरूओं के आदेशों का पालन कर सकती थी।
            थियोसाफी चिंतन का पूरा जोर दूसरे लोक पर अदृश् पर था। वे पृथ्वी से कम जुड़े थे। आकाश से अधिक। दो आँखो से देखना उन्हें गँवारा नहीं था। वे हमेशा तीसरी आँख से संसार को देखने की चेष्टा करते रहते। ब्लावट्स्की के साथ, गुहा ज्ञान में उत्सुक स्त्री पुरूषों का बहुत बड़ा समूह जुड़ा। एक से एक प्रतिभाशाली खोजी उनमें शरीक थे। मेबिल कॉलिन् और एनी बेसंट इस संध की महत्वपूर्ण महिलाएं थी। एनी बेसंट भारत आई और उसने भारत में थियोसाफी की जड़ें जमाई। आज वह बहुत कम लोगों को मालूम होगा की भारतीय काँग्रेस की स्थापना एक अंग्रेज महिला, एनी बेसंट की थी।
            ओशो की दृष्टि यह है कि जे कृष् मूर्ति को मैत्रेय बुद्ध का वाहन बनाने के लिए पूरे थियोसाफी का आंदोलन निर्मित किया गया। पूरी धरती पर एक आबोहवा निर्मित की गई। ताकि उसमें यह अपूर्व घटना घट सके। लेकिन बड़े ही नाटकीय ढंग से थियोसाफी का आंदोलन समाप् हो गया।
            वर्षो मेहनत करके लेडबीटर और एनी बेसंट ने कृष्ण मूर्ति के शरीर और मन को तैयार किया और जब बुद्ध के अवतरण का क्षण  तब खुद कृष् मूर्ति ने किसी और चेतना का वाहन बनने से मना कर दिया। तब तक वे स्वयं इतने शक्ति मान बन गए थे। कि उनकी अपनी चेतना ही बुद्धत् को उपलब् हुई। इस अप्रत्याशित घटना के बाद थियोफिसी का आंदोलन लड़़खडा गया।
            मेबिल कॉलिन् को प्रसाद रूप में हुए ये वचन समझने के लिए यह पृष् भूमि उपयोगी होगी। थियोसाफी के सदस्यों का मार्ग दर्शन तिब्बत के कुछ अशरीरी सद्गुरु ने किया था। जिनमें ‘’के0 एच0’’ सबसे अधिक चर्चित थे। थियोसाफी की कई किताबें के0 एच0 ने लिखवाई है। कृष् मूर्ति भी उन्हीं से जुड़े हुए थे।
            चूंकि ये किताबें सीधे गुरु से प्रगट हुई है, शिष्यों के लिए उनकी साधना के दौरान जो भी आवश्यक सूचनाएं थी वे इनमें दी गई है। मेबिल कॉलिन् की यह किताब वाकई में पथ का प्रदीप है।
            किताब की शैली सूत्र मय है। इसके दो भाग है और हर भाग में 21 सूत्र है। ये सूत्र सदगुरू से सीधे उतरे है जैसे गंगोत्री से गंगा उतरी हो। इन सूत्रों में जो भी अंश है उन्हें समझने के लिए मेबिल कॉलिन् ने नोटस लिखे हे। वे नोटस स्पष् रूप से उसकी बुद्धि से उपजे है और सूत्रों में छिपे हुए अर्थों को उजागर करते है।
            इन सूत्रों को ओशो ने प्रवचन माला के लिए चुना। 1973 में जिन दिनों ओशो खुद ध्यान शिवरों का संचालन करते थे। माउंट आबू के एक शिविर में सात दिन तक ओशो इन सूत्रों पर प्रवचन करते रहे। वे प्रवचन अंग्रेजी में है। ‘’दि न्यू अल्केमी टु टर्न यू ऑन’’ शीर्षक से इन प्रवचनों का संकलन प्रकाशित हुआ है। जो जिज्ञासु इन सूत्रों की गहराईयों में गोते लगाना चाहते हों वे इस किताब को पढ़कर आनंदित हो सकते है।
            ‘’लाईट ऑन दि पाथ’’ के पहले भाग में सभी शिष्यों के लिए कुछ नियम बताये गये है। पहले भाग के अंत में यह मान गया है कि शिष् अब समझ गया है और मौन में डूब गया है। दूसरे भाग में शिष् से कहा जाता है कि तूने जो पाया है। उसके बीज अब दूसरे के लिए बो। दूसरा भाग ये मानकर लिखा गया है कि साधक अब शिष् बन गया है, अपने पैरों पर खड़ा हो गया है। चल सकता है। नाच सकता है। आनंदित हो सकता है।
            चूकि सूत्र बहुत छोटे है, उन्हें समझाने के लिए लेखिका ने कुछ सूत्रों पर नोटस लिखे है। और उनके बाद उसकी अपनी लंबी समीक्षा है: कमेन्टस ऑन लाईट ऑन दि पाथ’’ लाइट आन दा पाथ पर टिप्पणी है।
            यह टिप्पणी इन सूत्रों को पढ़ने की भूमिका बनाती है। एक निगाह देती है। सदगुरू के इन वचनों को कैसे पढ़ा जाये। क्योंकि यह कोई उपन्यास या अख़बार नहीं है।
            लेखिका कहती है:
            इस पुस्तक को पढ़ने वाले सभी पाठक यह स्मरण रखें कि उनमें से जो भी सोचेगा कि यह सामान् अंग्रेजी में लिखी गई है उन्हें  इसमें थोड़ा-बहुत दर्शन शास्त्र नजर आयेगा। लेकिन खास मतलब नहीं दिखाई देगा। जो इस तरह पढ़ेंगे उन्हें यह पुराना अचार नहीं बल्कि तीखा नमक मिला हुआ ऑलिव का फल प्रतीत होगा। सावधान इस तरह पढ़ें। इसे पढ़ने का एक और तरीका है, जो कई लेखकों के बारे में सही बैठता है। दो पंक्तियों के बीच छिपा हुए गहन आशय को खोजें।  वस्तुत: यह गहन, गुप् भाषा का अर्थ खोलने की कला है। सभी रूपांतरण का रसायन प्रस्तुत करने वाली रचनाएं इसी गुप् भाषा में लिखी जाती है। बड़े से बड़े दार्शनिकों और कवियों ने इसका उपयोग किया है। ये लोग अपनी गहन प्रज्ञा को बांटते है लेकिन उन्हें शब्दों में रहस् भर देते है जो उसी रहस् को आकार देते है। प्रत्येक व्यक्ति रहस्यों को खुद ही उघाड़़ेयही प्रकृति का नियम है। इसमें कोई किसी की मदद नहीं कर सकता
            थियोसाफी की रीति के अनुसार लेखिका कहती है कि संपूर्ण किताब सूक्ष् तल के अक्षरों में लिखी गई है इसलिए उसी तल पर पढ़न जरूरी है। यह शिक्षा सूक्ष् शरीर को विकसित और पोषित करने के लिए दी गई है। वह एक बात स्पष् करती है कि यह सूत्र केवल शिष्यों के लिए लिखे गए है। उनके लिए जो गुहा ज्ञान के लिए उत्सुक है।

किताब की एक झलक--
            ‘’ये नियम सभी शिष्यों के लिए लिखें गये है। इन पर ध्यान दो।
            ‘’इससे पहले कि आंखे देख सकें, वे आंसुओं के काबिल रहें। इससे पहले कि कान सुनें, उनकी संवेदनशीलता खो जानी चाहिए। इससे पहले कि सद गुरूओं की सान्निध् में वाणी कुछ कहे, उसकी चोट करने की ताकत खत् होनी चाहिए।
            इससे पहले की आत्मा सद गुरूओं के सामने खड़ी रहे, उसके पाँव ह्रदय के रक् से घुलने चाहिए।
1—महत्वाकांक्षा को मार डालों।
2—जीवेषणा को मार डालों।
3—सुविधाओं की इच्छा को खत् करो।
4—इस तरह काम करो जैसे महत्वाकांक्षी करते है।
5—जीवन का सम्मान इस तरह से करो जैसे वासना से भरे लोग करते है।
6—इस तरह से खुश रहो जैसे खुशी के लिए जीने वाले रहते है।
7—अलगाव के भाव को समाप् करो।
8—उत्तेजना की इच्छा को समाप् करो।
9—विकास की भूख को मार डालों।
10—तुम अकेले और अलग-थलग खड़े होते हो। क्योंकि जो भी शरीर में बंधा है, जिसे भी अलग होने का अहसास है, जो भी शाश्वत से जुदा हुआ है, वह तुम्हारी मदद नहीं कर सकता। संवेदनाओं से सींखो और उनका निरीक्षण करो। क्योंकि ऐसा करने से ही तुम आत्-ज्ञान की शुरूआत कर सकते हो।
11—ऐसे विकसित होओ जैसे फूल होता हैअचेतन, लेकिन हवाओं के लिए अपनी आत्मा को खोलने को आतुर।’’ 
            ‘नोटस’’ शीर्षक के अंतर्गत मेबिल कॉलिन् अपने शब्दों में सूत्रों की व्याख्या करती है। पहले सूत्र ‘’महत्वाकांक्षा’’ पर उसकी व्याख्या बहुत सार गर्भित है। देखें—‘’महत्वाकांक्षा पहला अभिशाप है। जो आदमी अपने साथियों के तल से ऊपर उठ रहा है उसके लिए वह बहुत बड़ा सम्मोहन है। पुरस्कार पाने की चाह का यह सरलतम रूप है। इसकी वजह से बुद्धिमान और शक्तिशाली लोग अपनी श्रेष्ठतर संभावनाओं से सतत संचित रह जाते है। फिर भी यह एक आवश्यक शिक्षक है। उसके परिणाम मुंह में धूल और राख भर देते है। मृत्यु और वियोग की भांति वह अंतत: मनुष् को दिखाता है कि खुद के लिए काम करना निराशा के लिए काम करना है।
            यद्यपि यह पहला नियम सीधा सरल मालूम होता है। उसे दर किनार मत करो। क्योंकि साधारण आदमी के ये दोष एक सूक्ष् रूपांतरण से गुजरते है और चेहरा बदलकर शिष् के ह्रदय में प्रगट होते है। यह कहना आसान है कि ‘’मैं महत्वाकांक्षी नहीं हूं:’’ लेकिन यह कहना आसान नहीं है कि जब गुरु मेरे ह्रदय को पढ़ेगा तब यह उसे पूर्णतया शुद्ध पायेगा।‘’
            किताब के दोनों भागों के अंत में तीन शब् है:
            ‘’तुम्हें शांति मिले।‘’
            इन शब्दों में जाने क्या जादू है। इन्हें पढ़ते ही अंतस में शांति की तरंगें उठने लगती है। जाग्रत गुरूओं की वाणी में ही ऐसी शक्ति होती है। यदि ये सूत्र साधारण आदमी की समझ में नहीं आते तो इन गुरूओं को कोई परवाह नहीं है। उनकी तरफ से एक बात साफ है, ये सूत्र केवल शिष् के लिए कहे गये है।
ओशो का नजरिया:--

            ‘’मेबिल कॉलिन् की किताब ‘’लाईट ऑन दि पाथ।‘’ जो भी शिखर की यात्रा करना चाहता हो उसे लाईट ऑन दा पाथ। समझ लेनी चाहिए। यह छोटी-सी किताब है, जहां तक आकार का प्रश्न है। बस कुछ पन्ने। लेकिन जहां तक गुणवत्ता का संबंध है। वह बहुत बड़ी है, श्रेष्ठतम किताबों में से एक है। और आश्चर्य की बात, यह आधुनिक समय में लिखी गई है। कोई नहीं जानता यह लेखिका मेबिल कॉलिन् कौन है। वह अपना पूरा नाम भी नहीं लिखती। केवल एम0 सी0 लिखती है। संयोगवशात कुछ मित्रों के द्वारा मैं इसका पूरा नाम जान सका।
            एम0 सी0 क्यों? मैं इसकी वजह समझ सकता हूं। लेखक सिर्फ वाहन है। और ‘’लाइट आन दि पाथ‘’ के तो संबंध में तो यह विशेष रूप से सच है। शायद सूफी खिद्रमैंने तुम्हें इसके बारे में बताया था। वह आत्मा जो लोगों का मार्ग दर्शन करती है, उनकी मदद करती हैएम0 सी0 के काम के भी पीछे था।
            एम0 सी0 थियोसोफिस् थी। पता नहीं वह सूफी खिद्र द्वारा पथ प्रदर्शित करवाना पसंद करती या नहीं। लेकिन मैं यदि उससे समानांतर थियोसोफिकल नाम का उपयोग करूं तो एम0 सी0 निश्चित रूप से आनंदित होगीवे उसे के0 एच0 कहते है। कोई भी नाम चलेगा। नाम में कुछ नहीं रखा है। तुम उसे क्या कहते हो। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है। लेकिन किताब बहुत कीमती है। किसी ने भी लिखी हो, लेखिका की किसी ने भी मदद की हो। यह सवाल नहीं है। यह किताब सुनहरे पुष् की भांति रोशन है।
--ओशो    

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें