दि सर्मन ऑन दि माउंट—ओशो की प्रिय पुस्तके
ये सूत्र ईसाई धर्म ग्रंथ ‘’पवित्र बाइबल’’ का एक अंश हे। बाइबल, अंत: प्रज्ञा से परि पूर्ण विभिन्न व्यक्तियों के वक्तव्यों का संकलन है। जो लगभग सौ साल की अवधि में संकलित किया गया। जैसे जोशुआ, सैम्युएल, सेंट मैथ्यूज इत्यादि। जीसस जब सत्य को उपलब्ध हुए तब उन्होंने अपना सत्य लोगों को संप्रेषित करना चाहा। समय-समय पर भिन्न-भिन्न समूह के साथ उनका जो उद्बोधन हुआ वह सब बायबल में संकलित है। ये वक्तव्य उनके शिष्यों ने अपनी स्मृति के अनुसार संकलित किये है।
बाइबल के दो हिस्से है: दि ओल्ड टैस्टामैंट ओ दि न्यू टैस्टामैंट। ‘’सर्मन ऑन दि माउंट’’ न्यू टैस्टामैंट में ग्रंथित है जो सेंट मैथ्यू ने संकलित किया है।
बाइबल में निश्चित ही इतनी आध्यात्मिक शक्ति है कि दो हजार साल तक वह पृथ्वी की आधी से अधिक जनसंख्या का धार्मिक प्रेरणा स्त्रोत बनी। उसने मनुष्य जाति की नैतिक, सांस्कृतिक, सामाजिक और राजनैतिक विचार धारा को शिल्पिता तथा प्रभावित किया। अपने संदेश को संप्रेषित करने के लिए जीसस ने जो माध्यम चुना वह है कहानियों का। उनके शिष्य भी जीसस की कहानियों और संवादों द्वारा गहन विचारों को अभिव्यक्ति करते है।
‘’दि सर्मन ऑन दि माउंट’’ बाइबल के सर्वाधिक लोकप्रिय संकलनों में से एक है। इस पर बहुत सी टीकाएं और किताबें लिखी गई है। इनमें से एक टीकाकार एमेट फॉक्स कहते है: जीसस अपने शिष्यों को व्याख्यान दिया करते थे। एक लेखक के अनुसार इन्हें ‘’समर स्कूल’’ ग्रीष्म ऋतु के विद्यालय कहा जा सकता है। ऐसे ही एक अवसर पर दिये गये व्याखान के दौरान उन वक्तव्यों को अपने-अपने ढंग से दर्ज किया गया। उनमें से सेंट मैथ्यू का संकलन सबसे प्रामाणिक और यथातथ्य था। उसमें जीसस क्राइस्ट के धर्म के सभी मूलभूत बिंदू आ गये है। यह सटीक है, सुनिश्चित है, और सूत्रों पर स्पष्ट रोशनी डालता है। एक बार क्राइस्ट की देशना का सम्यक अर्थ समझ में आ जाये तो फिर उसे आचरण में लाना शेष रहा जाता है। और यह प्रत्येक की ईमानदारी पर निर्भर करता है कि वह कितनी समग्रता से उसमें उतर जाता है।
यदि आप वास्तव में अपना जीवन बदलना चाहते है, आप ईश्वर और मनुष्य की आंखों में सर्वथा नया मनुष्य बनना चाहते है, आध्यात्मिक विकास करना चाहते है, मानसिक स्वास्थ और शांति चाहते है। तो आप ‘’सर्मन ऑन दि माउंट’’ पढ़ें।
भूमिका के अंत में श्री फॉक्स ने जो शब्द लिखे है ( सन 1817 ) उनमें ओशो की सुस्पष्ट प्रतिध्वनि है: यदि आप कीमत चुकाने के लिए तैयार है, पुराने मनुष्य के साथ सचमुच, समग्रता से नाता तोड़ता चाहते है, और नये मनुष्य का निर्माण करना चाहते है तो ‘’सर्मन ऑफ दि माउंट पढ़ें।‘’
भूमिका के अंत में श्री फॉक्स ने जो शब्द लिखे है, (सन 1817 में) उनमें ओशो की सुस्पष्ट प्रतिध्वनि है: यदि आप कीमत चुकाने के लिए तैयार है, पुराने मनुष्य के साथ सचमुच समग्रता से नाता तोड़ता चाहते है। और नये मनुष्य का निर्माण करना चाहते है तो सर्मन ऑन दि माउंट आपके लिए स्वतंत्रता का पर्वत, दि माउंट ऑफ लिबरेशन बन जायेगा।
किताब की एक झलक:
दि बीटिटयूडस:--
भीड़ को देखकर वह पर्वत पर गया। जब वह स्थिर हुआ तब उसके शिष्य उसके पास आये।
फिर उसने बोलना शुरू किया और उन्हें देशना दी: ‘’धन्य है वे जो भीतर से गरीब है, क्योंकि स्वर्ग का राज्य उन्हीं का होगा।
धन्य है वे जो शोक मनाते है क्योंकि उन्हें सांत्वना दी जायेगी।
धन्य है वे जो दुर्बल है क्योंकि वे पृथ्वी के उत्तराधिकारी होंगे।
धन्य है वे जो निर्मल-ह्रदय है क्योंकि उन्हें ईश्वर के दर्शन होंगे।
धन्य है वे जो शांति दूत है क्योंकि वे ईश्वर के पुत्र कहलाये जायेंगे।
जैसा मनुष्य सोचता है
तुम पृथ्वी के नमक हो; लेकिन अगर नमक अपना खारापन खो दे तो नमक में खारापन कहां से भरे? उसके बाद वह किसी का नहीं होगा सिवाय फेंक देने और आदमी के पैरों तले कुचल जाने के।
तुम विश्व के आलोक हो। पर्वत के ऊपर जो शहर बना है वह छुप नहीं सकता।
कोई भी मोमबत्ती जलाकर उसे झाड़ियों में छिपा नहीं देते वरन उसे मोमबत्ती के स्टैंड पर रखते है। और फिर वह घर के सभी लोगों को रोशनी देती है।
तुम्हारे प्रकाश को लोगों के सामने इतना चमकने दो कि उन्हें तुम्हारे अच्छे कर्म दिखाई दें, और तब वे स्वर्ग में विराजमान तुम्हारे पिता का गुणगान करेंगे।
मैथ्यू, पाँच
ट्रेझर इन हैवन
और जब तुम प्रार्थना करते हो तब तुम पाखंडियों की तरह मत बरना क्योंकि वे सायनागॉग और रास्ते के कोनों-कोनों में खड़े रहकर प्रार्थना करते है ताकि लोग उन्हें देख लें। मैं तुमसे कहता हूं, उन्हें उनका पुरस्कार मिल जाता है।
लेकिन तुम—जब तुम प्रार्थना करते हो, बंद कमरे में छिप जाओ; और जब तुम दरवाजा बंद कर दोगे तब एकांत में तुम्हारे पिता से पार्थना करना और तुम्हारा पिता जो एकांत में देख लेता है, तुम्हें खुल आम पुरस्कार देगा।
और जब तुम प्रार्थना करोगे तब बार-बार दोहराओं मत जैसा कि अधार्मिक लोग करते है। वे सोचते है कि उनकी बकवास सुनी जायेगी।
तुम उनके जैसे मत बनों, क्योंकि तुम्हारा पिता जानता है, कि तुम्हें किस चीज की जरूरत है, इससे पहले कि तुम उससे पूछो।
मैथ्यू, छह
ट्रेझर इन हैवन
ओशो का नज़रिया--
जीसस के वक्तव्य बहुत काव्यात्मक है। ‘’सर्मन ऑन दि माउंट’’ लेकिन कविता के साथ मुश्किल यह है कि वह कल्पना होती है। सुंदर , प्रभावशाली, दिलकश, ह्रदय स्पर्शी, लेकिन बौद्धिक नहीं होती। वह नितांत अकार्तिक, अंधविश्वासी हो सकती है। और फिर भी आकर्षित कर सकती है। इसीलिए सभी पुराने धर्मों ने कविता का उपयोग किया पूरी श्रीमदभगवदगीता विशुद्ध कविता है।
यह सांयोगिक नहीं है कि सारे महान शास्त्र कविता में लिखे गये है। उसका बुनियादी कारण है—उन्हें जो कहना था वह सत्य का बहुत छोटा सा अंश है। उसे यथावत् कह देना आकर्षक नहीं होता।
यह ऐसे ही न है जैसे तुम कुर्सी का एक पैर ले आओ और कहो, यह कुर्सी है। कुर्सी बैठने के लिए होती है। तो लोग पूछने ही वाले है, हम एक पैर पर कैसे बैठे। कुर्सी का एक ही पैर यह सिद्ध नहीं कर सकता कि वह पूरी कुर्सी है। तो तुम्हें कुर्सी की कल्पना करनी होगी। और उन्हें पूरी कुर्सी की धारणा देनी होगी। तभी इस पर पैर का मतलब बनेगा। जो भी हो, तुम्हें काल्पनिक कुर्सी निर्मित करनी पड़ेगी।
ये सभी रहस्यदर्शी काव्यात्मक होंगे। कुछ लोग होंगे जिन्हें सत्य के अंश मिले होंगे लेकिन वे काव्यात्म नहीं थे। इसलिए मौन रहे।
ओशो
बुक्स आय हैव लव्ड
ये सूत्र ईसाई धर्म ग्रंथ ‘’पवित्र बाइबल’’ का एक अंश हे। बाइबल, अंत: प्रज्ञा से परि पूर्ण विभिन्न व्यक्तियों के वक्तव्यों का संकलन है। जो लगभग सौ साल की अवधि में संकलित किया गया। जैसे जोशुआ, सैम्युएल, सेंट मैथ्यूज इत्यादि। जीसस जब सत्य को उपलब्ध हुए तब उन्होंने अपना सत्य लोगों को संप्रेषित करना चाहा। समय-समय पर भिन्न-भिन्न समूह के साथ उनका जो उद्बोधन हुआ वह सब बायबल में संकलित है। ये वक्तव्य उनके शिष्यों ने अपनी स्मृति के अनुसार संकलित किये है।
बाइबल के दो हिस्से है: दि ओल्ड टैस्टामैंट ओ दि न्यू टैस्टामैंट। ‘’सर्मन ऑन दि माउंट’’ न्यू टैस्टामैंट में ग्रंथित है जो सेंट मैथ्यू ने संकलित किया है।
बाइबल में निश्चित ही इतनी आध्यात्मिक शक्ति है कि दो हजार साल तक वह पृथ्वी की आधी से अधिक जनसंख्या का धार्मिक प्रेरणा स्त्रोत बनी। उसने मनुष्य जाति की नैतिक, सांस्कृतिक, सामाजिक और राजनैतिक विचार धारा को शिल्पिता तथा प्रभावित किया। अपने संदेश को संप्रेषित करने के लिए जीसस ने जो माध्यम चुना वह है कहानियों का। उनके शिष्य भी जीसस की कहानियों और संवादों द्वारा गहन विचारों को अभिव्यक्ति करते है।
‘’दि सर्मन ऑन दि माउंट’’ बाइबल के सर्वाधिक लोकप्रिय संकलनों में से एक है। इस पर बहुत सी टीकाएं और किताबें लिखी गई है। इनमें से एक टीकाकार एमेट फॉक्स कहते है: जीसस अपने शिष्यों को व्याख्यान दिया करते थे। एक लेखक के अनुसार इन्हें ‘’समर स्कूल’’ ग्रीष्म ऋतु के विद्यालय कहा जा सकता है। ऐसे ही एक अवसर पर दिये गये व्याखान के दौरान उन वक्तव्यों को अपने-अपने ढंग से दर्ज किया गया। उनमें से सेंट मैथ्यू का संकलन सबसे प्रामाणिक और यथातथ्य था। उसमें जीसस क्राइस्ट के धर्म के सभी मूलभूत बिंदू आ गये है। यह सटीक है, सुनिश्चित है, और सूत्रों पर स्पष्ट रोशनी डालता है। एक बार क्राइस्ट की देशना का सम्यक अर्थ समझ में आ जाये तो फिर उसे आचरण में लाना शेष रहा जाता है। और यह प्रत्येक की ईमानदारी पर निर्भर करता है कि वह कितनी समग्रता से उसमें उतर जाता है।
यदि आप वास्तव में अपना जीवन बदलना चाहते है, आप ईश्वर और मनुष्य की आंखों में सर्वथा नया मनुष्य बनना चाहते है, आध्यात्मिक विकास करना चाहते है, मानसिक स्वास्थ और शांति चाहते है। तो आप ‘’सर्मन ऑन दि माउंट’’ पढ़ें।
भूमिका के अंत में श्री फॉक्स ने जो शब्द लिखे है ( सन 1817 ) उनमें ओशो की सुस्पष्ट प्रतिध्वनि है: यदि आप कीमत चुकाने के लिए तैयार है, पुराने मनुष्य के साथ सचमुच, समग्रता से नाता तोड़ता चाहते है, और नये मनुष्य का निर्माण करना चाहते है तो ‘’सर्मन ऑफ दि माउंट पढ़ें।‘’
भूमिका के अंत में श्री फॉक्स ने जो शब्द लिखे है, (सन 1817 में) उनमें ओशो की सुस्पष्ट प्रतिध्वनि है: यदि आप कीमत चुकाने के लिए तैयार है, पुराने मनुष्य के साथ सचमुच समग्रता से नाता तोड़ता चाहते है। और नये मनुष्य का निर्माण करना चाहते है तो सर्मन ऑन दि माउंट आपके लिए स्वतंत्रता का पर्वत, दि माउंट ऑफ लिबरेशन बन जायेगा।
किताब की एक झलक:
दि बीटिटयूडस:--
भीड़ को देखकर वह पर्वत पर गया। जब वह स्थिर हुआ तब उसके शिष्य उसके पास आये।
फिर उसने बोलना शुरू किया और उन्हें देशना दी: ‘’धन्य है वे जो भीतर से गरीब है, क्योंकि स्वर्ग का राज्य उन्हीं का होगा।
धन्य है वे जो शोक मनाते है क्योंकि उन्हें सांत्वना दी जायेगी।
धन्य है वे जो दुर्बल है क्योंकि वे पृथ्वी के उत्तराधिकारी होंगे।
धन्य है वे जो निर्मल-ह्रदय है क्योंकि उन्हें ईश्वर के दर्शन होंगे।
धन्य है वे जो शांति दूत है क्योंकि वे ईश्वर के पुत्र कहलाये जायेंगे।
जैसा मनुष्य सोचता है
तुम पृथ्वी के नमक हो; लेकिन अगर नमक अपना खारापन खो दे तो नमक में खारापन कहां से भरे? उसके बाद वह किसी का नहीं होगा सिवाय फेंक देने और आदमी के पैरों तले कुचल जाने के।
तुम विश्व के आलोक हो। पर्वत के ऊपर जो शहर बना है वह छुप नहीं सकता।
कोई भी मोमबत्ती जलाकर उसे झाड़ियों में छिपा नहीं देते वरन उसे मोमबत्ती के स्टैंड पर रखते है। और फिर वह घर के सभी लोगों को रोशनी देती है।
तुम्हारे प्रकाश को लोगों के सामने इतना चमकने दो कि उन्हें तुम्हारे अच्छे कर्म दिखाई दें, और तब वे स्वर्ग में विराजमान तुम्हारे पिता का गुणगान करेंगे।
मैथ्यू, पाँच
ट्रेझर इन हैवन
और जब तुम प्रार्थना करते हो तब तुम पाखंडियों की तरह मत बरना क्योंकि वे सायनागॉग और रास्ते के कोनों-कोनों में खड़े रहकर प्रार्थना करते है ताकि लोग उन्हें देख लें। मैं तुमसे कहता हूं, उन्हें उनका पुरस्कार मिल जाता है।
लेकिन तुम—जब तुम प्रार्थना करते हो, बंद कमरे में छिप जाओ; और जब तुम दरवाजा बंद कर दोगे तब एकांत में तुम्हारे पिता से पार्थना करना और तुम्हारा पिता जो एकांत में देख लेता है, तुम्हें खुल आम पुरस्कार देगा।
और जब तुम प्रार्थना करोगे तब बार-बार दोहराओं मत जैसा कि अधार्मिक लोग करते है। वे सोचते है कि उनकी बकवास सुनी जायेगी।
तुम उनके जैसे मत बनों, क्योंकि तुम्हारा पिता जानता है, कि तुम्हें किस चीज की जरूरत है, इससे पहले कि तुम उससे पूछो।
मैथ्यू, छह
ट्रेझर इन हैवन
ओशो का नज़रिया--
जीसस के वक्तव्य बहुत काव्यात्मक है। ‘’सर्मन ऑन दि माउंट’’ लेकिन कविता के साथ मुश्किल यह है कि वह कल्पना होती है। सुंदर , प्रभावशाली, दिलकश, ह्रदय स्पर्शी, लेकिन बौद्धिक नहीं होती। वह नितांत अकार्तिक, अंधविश्वासी हो सकती है। और फिर भी आकर्षित कर सकती है। इसीलिए सभी पुराने धर्मों ने कविता का उपयोग किया पूरी श्रीमदभगवदगीता विशुद्ध कविता है।
यह सांयोगिक नहीं है कि सारे महान शास्त्र कविता में लिखे गये है। उसका बुनियादी कारण है—उन्हें जो कहना था वह सत्य का बहुत छोटा सा अंश है। उसे यथावत् कह देना आकर्षक नहीं होता।
यह ऐसे ही न है जैसे तुम कुर्सी का एक पैर ले आओ और कहो, यह कुर्सी है। कुर्सी बैठने के लिए होती है। तो लोग पूछने ही वाले है, हम एक पैर पर कैसे बैठे। कुर्सी का एक ही पैर यह सिद्ध नहीं कर सकता कि वह पूरी कुर्सी है। तो तुम्हें कुर्सी की कल्पना करनी होगी। और उन्हें पूरी कुर्सी की धारणा देनी होगी। तभी इस पर पैर का मतलब बनेगा। जो भी हो, तुम्हें काल्पनिक कुर्सी निर्मित करनी पड़ेगी।
ये सभी रहस्यदर्शी काव्यात्मक होंगे। कुछ लोग होंगे जिन्हें सत्य के अंश मिले होंगे लेकिन वे काव्यात्म नहीं थे। इसलिए मौन रहे।
ओशो
बुक्स आय हैव लव्ड
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