(एक आसाधारण इंसान द्वारा लिखी गई असाधारण किताब। बीसवीं सदी का रहस्यदर्शी जार्ज गुरजिएफ कॉकेशन में पैदा हुआ और उसने मूलत: योरोप और अमेरिका में अपना आध्यात्मिक संदेश फैलाया। यह किताब उसके जीवन के कुछ प्रसंगों का, उन प्रसंगों की प्रमुख भूमिका निभाने वाले कुछ अद्भुत व्यक्तियों का चित्रण है जिन्होंने गुरजिएफ की चेतना को प्रभावित और शिल्पित किया।)
गुरजिएफ सत्य का खोजी था। उसे कुदरत ने कुछ अतींद्रिय शक्तियां दे रखी थी। उनका विकास और उनका उपयोग कर जीवन के कुछ गहन रहस्यों को खोजने में और बाद में उन्हें अपने शिष्यों को बांटने में गुरूजिएफ का जीवन व्यतीत हुआ।
गुरजिएफ को जीवन के सफर में जो लोग मिले उनमें नौ लोगों को चुन कर उनका अनूठापन उसने इस किताब में सशक्त रूप से चित्रित किया है। ये दस लोग है: उसके पिता, पिता का जिगरी दोस्त, और गुरजिएफ के पहले शिक्षक डीन बॉर्श।
तीसरा चरित्र हे, बोगेचेस्की या फादर एवलिसी। यह व्यक्ति श्वेत ब्रदरहुड का सदस्य था जो कि ‘’डेड सी’’ के किनारे बसा हुआ था। यह ब्रदरहुड ईसा के जन्म के बारह सौ वर्ष पूर्व बना था। और कहा जाता है कि इस ब्रदरहुड में ईसा की प्रथम दीक्षा हुई थी।
गुरजिएफ लिखता है: ‘’बोगेचेस्की ने जब मुझे पढ़ाना शुरू किया तब वे फादर बनने ही बाले थे। वे बहुत ही मिलनसार आदमी थे इसलिए उनके पास कार्स शहर के बुद्धिमान लोगों का जमघट बना रहता था। वे लोग जीवन की गहन बातों पर चर्चा करते जिसे मैं बहुत ध्यान से सुनता था। वे लो प्ले चेट, आत्माओं के साथ वार्तालाप, सम्मोहन, इत्यादि के प्रयोग करते थे। मुझे उनमें बहुत रस था। अतींद्रिय घटनाओं का रहस्य खोजना मेरे जीवन का मकसद था।
नैतिकता:
नैतिकता के बारे में बोगेचेस्की के बहुत मौलिक विचार थे। उन्होंने मुझे सिखाया कि नीति दो तरह की होती है: वस्तुगत और व्यक्तिगत, वस्तुगत नीति जीवन में अंतर्निहित है; वह हर देश-काल में समान है लेकिन व्यक्तिगत नीति अनेक प्रकार के संस्कार, धारणाएं डालते है जब वे बहुत कोमल होते है। उनकी अंतरात्मा, जो कि प्रकृति से मिली हुई है, विकसित नहीं होने दी जाती। इसलिए बड़े होने पर वे दूसरे लोग को उन्हीं धारणाओं के माध्यम से परखते है। लेकिन तुम इस तरह मत बनना। अपनी अंतरात्मा की शुद्धता को बनाये रखना।
कैप्टन पोगोसिन या मिस्टर एक्स एक ऐसा खोजी है जो गुरजिएफ को उसकी अंतर जगत की खोज के दौरान मिला। ये दोनों एक पुराने असीरियन रहस्य विद्यालय को खोजने चल पड़े। इस विद्यालय का नक्शा उन्हें अलेक्झांड्रिया के पास, पुराने खंडहरों का उत्खनन करते हुए मिला। यह रहस्य विद्यालय बैबिलॉन में कोई 2500 बी. सी. (ईसा पूर्व) था। गुरूजिएफ के लेखन की खूबी यह है कि वह अपनी खोज के उतने ही पहलू को उभारता हे जिससे पढ़ने वाले की उत्सुकता जगह। जैसे ही पाठक उसके वर्णन में डूबने लगता है वैसे ही वह अपना रूख बदल देता है और कहानी को एक रहस्यमय मोड़ पर अधूरी छोड़ देता है।
रहस्य:
रहस्य की खोज में उसे एक और हमसफर मिला, प्रिंस यूरी ल्युबोवेडस्की। वह शख्स एक खूबसूरत, रहस्यवादी राजकुमार था। अपनी समूची राज संपत्ति को ठुकरा कर वह गुरजिएफ जैसे खोजियों के साथ रहस्य विद्यालयों और गुप्त मठों, आश्रमों के साथ गोबी के रेगिस्तान में खोये हुए शहरों की खोज करने के लिए यात्रा करता रहा। गोबी रेगिस्तान हिंदु कुश और हिमालय पर्वत की उत्तर दिशा में बना है और इसकी रेत बहुत प्राचीन है। या तो वह एक विशाल समुंदरी भूमि था, या हिमालय की पर्वत श्रेणियों के पत्थर-कणों से बना था। जिन्हें तेज आंधियां उड़ा कर ले गई थी। जो भी हो, गोबी रेगिस्तान अपने सीने में कई रहस्य विद्यालय और गुह्म रहस्य छुपाए हुए है। जो केवल सुपात्र साधकों के लिए ही प्रकट होते है। इस अभियान के बीच एक आश्रम में यूरी ल्युबोवेडस्की का निधन हो जाता है।
डॉ एकिम बे एक महान जादूगर था जिसके साथ गुरजिएफ ने एशिया और अफ्रिका की यात्रा की। गुरजिएफ की लेखन-शैली का एक और मजेदार पहलू इस किताब में उभरता है। और वह यह कि इन असाधारण पुरूषों का वर्णन करने के बहाने वह अपनी यात्राओं के दौरान घटित अनेक असाधारण घटनाओं का बयान करता जाता है।
जैसे आमेंनिया में येजिदि जमात में प्रचलित परंपरागत संस्कार का चित्रण करते हुए गुरजिएफ ने एक बेबूझ घटना का जिक्र किया है। येजिदि बच्चे के चारों और अगर चॉक से एक वर्तुल खींच जाये तो वह बच्चा उस वर्तुल से बाहर नहीं आ सकता। आप लाख कोशिश करें, उस बच्चे को बाहर नहीं ला सकते। वह रोता-चीखता भीतर खड़ा रहता है। ऐसी घटनाओं को देखकर गुरजिएफ के मस्तिष्क में विचार-मंथन शुरू हो जाता है और वह मनुष्य के मन की जटिलता में उतर जाता है।
डॉ एकिम बे के साथ पर्शिया में भ्रमण करते हुए तेईस लोगों का समूह टेब्रिज शहर पहुंचता है। वहां वे एक पर्सियन दरवेश के बारे में सुनते है। वह उस क्षेत्र में मशहूर है। तेरह दिन की लंबी यात्रा करके वे लोग उस दरवेश के पास पहुंचते है। दरवेश के पास पहुंचकर एक मजेदार वाकया होता है। उन दिनों गुरजिएफ भारतीय योगियों से हठयोग सीख कर रोज उसका अभ्यास करता था। उसमें एक बात यह भी होती है कि भोजन को बहुत बारीक चबाया जाये। ताकि पेट की अंतड़ियों को पचाने में सुविधा हो। सब लोग खा चूकते है और गुरजिएफ चबाता ही रहता है। यह देखकर दरवेश उससे पूछता है: ‘’तू इस तरह क्यों खा रहा है?’’
गुरजिएफ कहता है यह मैंने भारतीय योगियों से सिखा है। इससे पेट की मांसपेशियों पर जोर नहीं पड़ता। दरवेश उसके सामने बिलकुल दूसरा पहलू रखता है: ‘’इस तरह तू अपनी अंतड़ियों को आलसी बना रहा है। उन्हें काम करने की आदत ही नहीं रहेगी। युवावस्था में तो भोजन बिना चबाये खाना चाहिए ताकि, अंतड़ियों की मांसपेशियों का व्यायाम होता रहे।
एक ही चीज को देखने का बिलकुल अलग पहलू गुरजिएफ को आश्चर्य चकित कर गया और वह दरवेश के सामने नतमस्तक हो गया।
अन्य दो असाधारण व्यक्ति है: प्योत्र कार्पेन्को और प्रोफेसर स्क्रिदलोव।
ये दोनों व्यक्ति गुरजिएफ की मंडली के सदस्य थे। जिसका नाम था ‘’Seekers of Truth‘’ सत्य के खोजी। प्रोफेसर स्क्रिदलोव गुरजिएफ से बहुत बुजुर्ग थे। वे गुरजिएफ के उस अभियान में शामिल हुए जिसमें गुरजिएफ, इस्लाम के रहस्यों को जानने के लिए बुखारा की यात्रा पर चल पडा। इन दोनों ने फ़क़ीरों का भेस धारण किया इस्लाम के कलाम और आयतें सीखी ताकि बुखारा में आजाद घूम सके। क्योंकि ये दोनों ईसाई थे। और ईसाई यानि काफ़िर। काफ़िरों को इस्लामिक देशों में रहने की इजाजत नहीं थी।
वहां उन्हें एक गुप्त ब्रदरहुड का वरिष्ठ सदस्य मिलता है। फादर जियोवानी, जो उन्हें उसके रहस्य विद्यालय में ले जाता है। फादर जियोवानी एक गहरा रहस्यदर्शी है। उसके अंतरतम में उठती हुई तरंगों और उसकी प्रज्ञा पूर्ण बातों से गुरजिएफ और उसके मित्र का अंतर जगत बहुत समृद्ध होता है।
अनेक असाधारण लोगों की रोमांचकारी दास्तानों से गुजरते हुए अंतत: पाठक के मनस पटल पर जो सर्वाधिक असाधारण व्यक्ति का चित्र अंकित होता है, वह स्वयं गुरजिएफ। गुरजिएफ सत्य के सागर की खोज में बहती हुई एक नदी है जिसके किनारे समय-समय पर कुछ असाधारण व्यक्तियों ने घाट बना दिये है। लेकिन सबसे प्रबल है गुरजिएफ की अदम्य अभीप्सा और अथक परिश्रम। उसके हाथों में इतने तरह के हुनर थे कि वह लगभग हर तरह की कला और कौशल जानता था। अंत: जब भी उसे पैसे की कमी महसूस होती वह सिलाई, कढ़ाई, बढ़ई का काम, मशीनों को दूरस्थ करना। सम्मोहन विद्या, और अन्य न जाने जमाने भर के काम कर के वह पैसा कमा लेता। और पर्याप्त धन इकट्ठ होने पर कामकाज बंद करके ये अभियान पर निकल पड़ता। वह अनेक बार भारत भी आया और वहां के रहस्य विद्यालयों में उसके गुह्म विद्या का प्रशिक्षण लिया।
पुस्तक की भूमिका में गुरजिएफ खुद ही असाधारण आदमी की परिभाषा देता है:
‘’मेरी दृष्टि में वह आदमी आसाधारण है जो अपने मस्तिष्क की सर्जनशील शक्ति के द्वारा अपने आसपास के व्यक्तियों से अलग दिखाई देता है। उसके अंतरतम से प्रतिभा की जो अभिव्यक्ति होती है। उसके बारे में वह संयमित होता है। साथ ही साथ दूसरों की कमज़ोरियों के विषय में विसहिष्णु और न्याय पूर्ण होता है।
गुरजिएफ की लेखन शैली के बारे में दो शब्द कहने जरूरी है। उसकी लेखन शैली प्राचीन ग्रंथों जैसी है। जो क़िस्सों और कहानियों से बनी होती है। भारतीय ग्रंथ हितोपदेश या पंच तंत्र की भांति गुरजिएफ एक कहानी से दूसरी कहानी निकालता है और बात को आगे बढ़ाता है।
उसकी अपनी शिक्षा अनूठे ढंग से हुई है। जो कि हर व्यक्ति की होनी चाहिए। उस शिक्षा ने उसके मन और भावों को विकसित कर उसे एक सुगठित निजता दी है। इसे वह ‘’मनुष्य का सुरीला विकास’’ कहता है। लेखन के दौरान वह आधुनिक सभ्यता संस्कृति, साहित्य, व्यक्तित्व इन सब पर कटाक्ष करता जाता है। और उनके विकल्प भी सुझाता है।
समस्त खोजियों के लिए यह पुस्तक पठनीय ही नहीं बल्कि चिंतनीय और माननीय भी है। पेंग्विन बुक्स द्वारा इंग्लैड में प्रकाशित यह पुस्तक भारत के बड़े पुस्तकों की दुकानों में सहज मिल जाती है।
ओशो की दृष्टि में:
यह अद्भुत रचना है। गुरजिएफ ने पूरे संसार में भ्रमण किया—खास कर मध्य पूर्व और भारत में। वह तिब्बत गय; इतना ही नहीं वह दलाई लामा का शिक्षक रहा—वर्तमान नहीं, इससे पहले जो था उसका। तिब्बती भाषा में गुरजिएफ का नाम ‘’दोरजेब’’ लिखा है। कई लोग सोचते है कि दोरजेब कोई और है। लेकिन वह जार्ज गुरजिएफ ही है। अंग्रेजी सरकार को यह बात मालूम थी कि गुरजिएफ कई साल तिब्बत रहा था। बल्कि वह ल्हासा के महल में कई साल रहा। उन्होंने उसे इंग्लैड नहीं रहने दिया। वह असल में इंग्लैड रहना चाहता था लेकिन उसे इजाजत नहीं मिली।
‘’मिटिंग्ज़ विद रिमार्केबल मैन’’ गुरजिएफ के संस्मरण है। इसमे उन सब विलक्षण लोगों की आदरणीय स्मृतियां है जिन्हें वह अपने जीवन में मिला था—सूफी, भारतीय रहस्यदर्शी, तिब्बती लामा, जापानी ज़ेन साधु....मैं कहना चाहूंगा कि उसने सभी के बारे में नहीं लिखा। उसके कईयों को इस दस्तावेज से बहार रखा। क्योंकि वह किताब बाजार में बिकने वाली थी। और उसे बाजार की मांग को पूरा करना था। मुझे किसी की मांग पूरी नहीं करनी। में वह आदमी नहीं हूं जो बाजार की कीमत करे। इसलिए मैं कह सकता हूं कि उसने सबसे अर्थपूर्ण लोगों को छोड़ दिया। लेकिन उसने जो भी लिखा है वह बहुत सुंदर लिखा है। उससे मेरी आंखों में आंसू आ जाते है। जब कुछ सुंदर होता है तब मेरी आँखो में आंसू आ जाते है। किसी का सम्मान करने का इससे अलावा और कोई उपाय नहीं है।
यह ऐसी किताब है जिसका पाठ होना चाहिए। उसे केवल पढ़ना ठीक नहीं है, अंग्रेजी में ‘’पाठ’’ के लिए कोई शब्द नहीं है। पाठ का अर्थ है, पढ़ना। एक चीज को रोज-रोज जीवन भर पढ़ना। उसका अनुवाद ‘’पढ़ना’’ नहीं हो सकता। पश्चिम में तुम एक पॉकेट बुक पढ़ते हो और उसे एक बार पढ़कर फेंक देते हो। यह अध्ययन भी नहीं है। क्योंकि अध्ययन एकाग्र होकर शब्दों के अर्थों को समझने का प्रयास है। पाठ न तो पढ़ना है, न अध्ययन कना है; वह कुछ और है। आनंदपूर्वक दोहराना—इतने आनंदपूर्वक कि वि तुम्हारे ह्रदय को छेदता है। तुम्हारी सांस बन जाता है। इस प्रकिया में पूरा जीवन लग जाता है। अगर तुम्हें असली किताबें पढ़नी हो तो यह जरूरी है।
जैसी कि, गुरजिएफ की मिटिंग्ज़ विद रिमार्केबल मैन’’ है।
यह ‘’डॉन जुआन’’ जैसा उपन्यास नहीं है। वह एक अमरीकी व्यक्ति कार्लोस कैस्टेनडा द्वारा निर्मित किया गया काल्पनिक चरित्र था। इस आदमी ने मनुष्य जाति का बड़ा नुकसान किया है। अध्यात्मिक उपन्यास नहीं लिखने चाहिए। क्योंकि फिर लोग सोचने लगते है कि अध्यात्मिक उपन्यास के अलाव कुछ भी नहीं है।
‘’मिटिंग्ज़ विद रिमार्केबल मैन’’ असली किताब है। गुरजिएफ ने जिन लोगों की चर्चा की है वे अभी जिंदा है। उनमें से कुछ एक से मैं खुद मिला हूं। मैं इस बात का गवाह हूं कि वे लोग काल्पनिक नहीं है। हालांकि मैं गुरजिएफ को भी माफ नहीं कर सकता क्योंकि उसने कुछ बहुत असाधारण लोगों का उल्लेख नहीं किया।
बाजार से समझौता करने की कोई जरूरत नहीं थी। कोई भी जरूरत नहीं थी। वह इतना ताकतवर आदमी था, मुझे अचरज होता है, उसने समझौता क्यों किया। उसने असली महत्वपूर्ण लोगों को क्यों छोड़ दिया। मैं उन लोगों से मिला हूं, और उन्होंने मुझे बताया कि गुरजिएफ उनके पास गया था। अब वे बहुत बूढे हो चुके है। फिर भी किताब अच्छी है; अधूरी है, आधी है लेकिन कीमती है।
ओशो
बुक्स आय हैव लव्ड
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