कुरान शरीफ:-ओशो की प्रिय पुस्तके
इस्लाम उस परंपरा का हिस्सा है जिससे यहूदी और ईसाई धर्म पैदा हुआ। उसे इब्राहीम का धर्म कहते है। इब्राहीम का बेटा था इस्माइल। इब्राहीम को दूसरी पत्नी सारा से एक बेटा हुआ—इसाक। सारा के सौतेले पन से इस्माइल को बचाने की खातिर इब्राहीम इस्माइल को लेकर अरेबिया के एक गांव मक्का चले गए। उनके साथ एक इजिप्त का गुलाम हगर भी था। इब्राहीम और इस्माइल ने मिलकर क़ाबा का पवित्र आश्रम बनाया। ऐसा माना जाता था कि क़ाबा आदम का मूल आशियाना था। काबा में एक पुराना धूमकेतु गिरकर पत्थर बन गया था। कुरान के जिक्र के मुताबिक अल्लाह ने इब्राहीम को हुक्म दिया कि काबा को तीर्थ स्थान बनाया जाये। काबा में बहुत सी पुरानी मूर्तियां भी थी। जिन्हें अल्लाह की बेटियाँ कहा जाता था। उन देवताओं को काबा के पत्थर से ताकत मिलती थी।
मुस्लिम परंपरा कहती है कि वह इलाका ‘’अज्ञान के युग में’’ डूबा रहा, क्योंकि वह इब्राहीम के दर्शन से दूर हट गया। सदिया गुजरी और उस इलाके में रहने वाली एक जमात में एक लड़का पैदा हुआ जिसका नाम मुहम्मद था। पैदा होने से पहले ही उसके वालिद का इंतकाल हो गया, और बचपन में मां मर गई। एक चरवाहों की टोली की स्त्री ने उसकी परवरिश की।
मौहम्मद जैसे ही जवान हुआ। अपने चाचा के पास लोट आये। और उनके साथ घूमने लगे। सफर के दौरान सीरिया की और बढ़ते हुए, एक ईसाई पादरी की नजर उन पर पड़ी और उसने मुहम्मद की गहरी आध्यात्मिकता को पहचान लिया। मुहम्मद और उनके चाचा एक अमीर, खूबसूरत और अक़्लमंद स्त्री की सेवा में थे; जिसका नाम ख़दीजा था। मुहम्मद ने ख़दीजा का कामकाज इतने बेहतरीन ढंग से सम्हाला कि खुश होकर खदीजा ने उससे निकाह कर लिया। उस वक्त मुहम्मद पच्चीस साल के थे और खदीजा चालीस साल की।
क़ाबा पर चल रही बुतपरस्ती से तंग आकर कुछ लोग इब्राहीम के ‘’एक ही अल्लाह’’ वाले धर्म की अभीप्सा कर रहे थे। उन्हें ‘’हुनाफ’’ कहा जाता था। मुहम्मद भी उनमें से एक थे। मुहम्मद का उसूल था कि वह हर साल रमज़ान के महीने में, मक्का के क़रीब, हीरा की पहाड़ी पर अपने परिवार के साथ एक गुफा में जाकर रहते थे। और ध्यान में समय बिताते थे।
मुहम्मद जब चालीस बरस के हुए तब की बात है: रमज़ान के आखिरी दिनों में एक घटना घटी। वे या तो सोये हुए थे या फिर तंद्रा में थे, तब उन्होंने एक आवाज सुनी: ‘’पढ़’’
उन्होंने कहा, मैं पढ़ नहीं सकता।
फिर से आवाज आई: ‘’पढ़।’’
मुहम्मद बोले: ‘’मैं पढ़ नहीं सकता।‘’
आवाज फिर गरजी: ‘’पढ़।’’
मुहम्मद ने पूछा: ‘’क्या पढ़ूं?’’
पढ़ अल्लाह के नाम से शुरू जो बहुत मेहरबान और रहम बाला है।
1. पढ़ो अपने रब के नाम से जिसने पैदा किया।
2. आदमी को खून की पुटक से बनाया।
3. पढ़ो और तुम्हारा रब ही सबसे बड़ा करीम है।
4. जिसने क़लम से लिखना सिखाया।
5. आदमी को सिखाया जो न जानता था।......
जब वे जग गये तो वे अलफाज उनके ज़हन में ऐसे बस गये मानों दिल पर खुद गये हों।
वे गुफा के बाहर गये और पहाड़ी पर उन्होंने फिर से वहीं दबंग आवाज सुनी:
‘’ऐ मोहम्मद, तू अल्लाह का पैगंबर है और मैं जबराइल हूं।‘’
उन्होंने आंखे ऊपर उठाई तो उन्हें आदमी की हमशक्ल ऐ फरिश्ता आसमान और ज़मीन के बीच खड़ा दिखाई दिया। मुहम्मद स्तब्ध खड़े रह गये। जिधर मुंह करें वहीं उन्हें फरिश्ता दिखाई दे। आखिर जब फरिश्ता विलीन हुआ मुहम्मद कंपते हुए घर आये। ख़दीजा ने उन्हें बहुत धीरज बंधाना। उसे मुहम्मद की पाक रूह में बहुत भरोसा था।
वह मुहम्मद को अपने चचेरे भाई के पास ले गई जो बहुत बूढे और समझदार थे। उन्होंने फरमाया कि जो फरिश्ता पुराने मोज़ेज के पास आया था वही मुहम्मद के पास आया है। और मुहम्मद अपने लोगों के पैगंबर चुने गये थे।
मुहम्मद की परेशानी की वजह यों समझी जा सकती है कि हुनाफा सच्चे मज़हब को कुदरत में ढूंढते थे और अशरीरी आत्माओं के साथ होने वाले संपर्क पर भरोसा नहीं रखते थे। मुहम्मद यह नहीं समझ पा रहे थे कि उन्होंने देखा हुआ फरिश्ता अच्छा है या बुरा। मंत्र फेरने वाले, टोना-टोटका करने वाले, यहां तक कि उन दिनों शायद भी दावा करते थे कि उन पर जिन्न उतरा है। मुहम्मद विनम्र और ख़मोश तबीयत के शख्स थे: अकेले रहना, मौन और शांत जीवन बिताना पसंद करते थे। पूरी मनुष्य जाति में से उन्ही को चुना जाना, उसके बाद इतने बुलंद पैग़ाम को लेकर इंसानों का अगुआ बनना....उनमें डर पैदा हुआ।
बहरहाल, जैसे-जैसे कुरान का संदेश, उनके रग-रग में पैठता चला गया वैसे-वैसे उनमें नई ताकत लहराई। उन्हें सौंपी गई जिम्मेदारी का नया अहसास उभरता चला गया। लगभग तेईस साल तक उन पर कुरान की आयतें उतरने का सिलसिला जारी रहा। मजेदार वाक्य है कि जो पढ़, नहीं सकता था, उसे पढ़ने का आदेश दिया गया। इस पवित्र किताब को ‘’अल कुरान’’ कहा गया, जिसका मतलब है, पढ़ना—उस इंसान का पढ़ना जो पढ़ना नहीं जानता था।
तकरीबन तीन साल तक मुहम्मद अपना इलहाम अपने परिवार को संप्रेषित करते रहे। उनकी सबसे पहली शागिर्द थी उनकी बीबी खदीजा दूसरा था उनका चचेरा भाई अली, तीसरा अबूबकर (एक सौदागर) और चौथा उनका गुलाम झैद। उस दौरान मक्का के लोगबाग तो उन्हें पागल ही समझते थे। तीसरा साल खत्म होत-होते उन्हें फिर हुक्म हुआ, उठ और सावधान कर। तब से मुहम्मद लोगों के बीच जाकर उपदेश देने लगे। वे उन दिनों चल रही मूर्ति पूजा के खिलाफ बोलने लगे। कि रात और दिन विकास और विनाश, जिन्दगी और मौत, ये शक्तिशाली नियम अल्लाह की ताकत के प्रतीक है; उन्हें छोड़कर क्या मूर्तियों को पूजते फिरते हो।
बस इस उपदेश से कुरेशों की जमात और मुहम्मद के मानने वालों में चिनगारी लगी जो देखते ही देखते आग में भभक उठी। मुहम्मद की शांत और अंतर्मुखी जिंदगी जंग की भागदौड़ बन गई। मुहम्मद और उनके मानने वाले बेइन्तेहा सताएं गये।
कुरान शरीफ इस्लाम का केंद्र बिंदू है। कुरान के पहले हिस्सों में एक अल्लाह को कायम किया हुआ है। बाद की आयतें संगठन के बारे में और मुस्लिम समूह की समाज व्यवस्था के विषय में है।
जैसे ही मुहम्मद को इलहाम होता था, वे उसे रटते थे और फिर अपने शिष्यों को कंठस्थ करने के लिए कहते थे। कुरान को कहने से उन आयतों का संगीत, सौंदर्य और शक्ति प्रगट होती है। कुरान को कुछ दबी हुई, कुछ उदास आवाज में पढ़ा जाता है। क्योंकि उस समय इन्सान की जो हालत थी उससे उदास हुए अल्लाह का यह इलहाम है। मुहम्मद कहते थे: ‘’जब तुम पढ़ते हो तब रोओ।‘’
कहते है कुरान पढ़ने से तन-मन के सारे जख्म भर जाते है। निर्मलता आती है। सब कुछ धुल जाता है। कोई जादू सा तारी होता है। कुरान में यहूदी और ईसाई इतिहास की कहानियां पायी जाती है। अदम और ईव का किस्सा शुरूआत में ही दर्ज है। वहीं फरिश्ता जबराइल जिसने मुहम्मद को संदेश दिया, मेरी के पास ईसा मसीह के आने का संदेश लेकर गया।
कुरान शरीफ के पाँच वर्ग है:
--खुदा का फरमान
--जो खुदा ने सुझाया है लेकिन अनिवार्य नहीं है।
--जिसमें खुदा ने इशारा किया कि ठीक नहीं है, लेकिन उसे करने से मना नहीं किया।
--जो खुदा ने बिल्कुल मना किया है।
यह किताब कानून की पाश्चात्य धारणा से कहीं अधिक व्यापक है। क्योंकि वह जीवन के हर पहलू को छूती है। अधिकतर क़ानूनों पर मानवीय आदलत अमल नहीं कर सकती थी। इसीलिए उसे रब की अदालत पर छोड़ा गया। कुरान शरीफ के बुनियादी कानून मुसलमानों के लिए है। खुदाई नूर ने जिस नक्शे को उघाड़, उसे हर मुस्लिम को निभाने की कोशिश करनी चाहिए।
कुरान के अलफ़ाज़ अल्लाह के अलफाज है। ये सत्य के इशारे है।
किताब की झलक:--
सूरए इख्लास (पारा न. 30)
अल्लाह के नाम से शुरू जो निहायत मेहरबान और रहम वाल है।
1—तुम फरमाओ वह अल्लाह एक है।
2—अल्लाह बे नियाज़ है।
3—न उसकी कोई औलाद है और न वह किसी से पैदा हुआ।
4—और न कोई उसके जोड़ का है।
सूरए रूम ( पारा न. 21 रूकूअ 3)
हिंदी अनुवाद: ‘’उसकी निशानियों में है कि तुम्हें पैदा किया मिटटी से फिर तभी तुम इंसान हो दुनिया में फैले हुए।
उसकी निशानियों में है कि तुम्हारे लिए तुम्हारी ही जीन्स से जोड़े बनाए कि उनसे आराम पाओ और तुम्हारे आपस में मोहब्बत और रहमत रखी, बेशक इसमे निशानियों है ध्यान करने वालों के लिए।
उसकी निशानियों से है आसमानों और ज़मीन की पैदाइश और तुम्हारी ज़बानों और रंगतों का इख्तिलाफ, बेशक इसमें निशानियों है। जानने वालों के लिए।
उसकी निशानियों से है रात और दिन में तुम्हारा सोना और उसका फज्ल़ तलाश करना, बेशक उसमें निशानियों है सुनने वालों के लिए।
और उसकी निशानियों में है कि तुम्हें बिजली दिखाता है, डराती और उम्मीद दिलाती। और आसमान से पानी उतारता है तो उससे ज़मीन को जिंदा करता है, बेशक उसमें निशानियों है अक़्ल वालों के लिए।
और उसकी निशानियों में है कि उसके हुक्म से आसमान और ज़मीन क़ायम है। फिर जब तुम्हें जमीन से एक निंदा फरमाएगा तभी तुम निकल पड़ोगे।
और उसके पास है जो कोई आसमानों और जमीन में है, सब उसके जे़रे हुक्म है।
और वहीं है कि अव्वल बनाता है, फिर उसे दोबारा बनाएगा और यह तुम्हारी समझ में ज्यादा आसान होना चाहिए। और उसी के लिए है सब से बरतर शान आसमानों और जमीन में और वहीं इज्जत व हिकमत वाला है।
बेशक कुरान शरीफ खुदा का करिश्मा है, जिसके ज़रिये हम खुदा की जात की तरु बड़ी आसानी से रुजू हो सकत है। खुदा के नूर से ताअररूफ हो सकते है। सबसे बड़ी रूकावट आदमी का खुद का मैं है, खुद का घमंड है। एक बार आदमी घमंड से भर जाए चाहे वह किसी भी चीज का हो, फिर वह खुदा की इबादत से बड़ी दूर छटक जाता है।
इसी लिए कुरान में आदम जात के घमंड को तोड़ने के लिए जगह-जगह उस नूर ने अपनी निशानियों की चर्चा की है, जैसे कि बिजली का चमकना, जमीन और आसमान का होना, रात ओर दिन का होना, चरन्द–परन्द और आदम जात के वुजूद का होना बगैरा-बग़ैरा।
कुरान में सब तरह की कोशिश की गई है कि किसी तरह से हमें याद आ जाए उस निराकार की जो सबमें रमा है, जो सारी मख़लूक़ के गोशे-गोशे में है। बेशक वह रहम वाला है जो सब तरफ से हमें पुकार देता है। उसमें फऩा होना ही इबादत की आखरी मंजिल है। उसे पाते ही सारी बेचैनी खो जाती है। न ख़तम होने वाला चैन आ पाता है।
ओशो का नज़रिया:
‘’कुरान ऐसी किताब नहीं है जिसे पढ़ा जाए, कुरान ऐसी किताब है जिसे गया जाए। अगर तुम पढ़ोगे तो चूक जाओगे। अगर गाओगे तो इनशाल्लाह पा लोगे।
कुरान किसी दार्शनिक या विद्वान की रचना नहीं है। मुहम्मद बे पढ़े-लिखे थे। वे अपने नाम के दस्तख़त भी नहीं कर सकते थे। लेकिन खुदा की खुदाई से सराबोर थे। उनकी मासूमियत की वजह से वे चुने गये और उन्होंने गीत गाना शुरू किया; और वह गीत कुरान।
अरेबिक मेरी समझ में नहीं आती, लेकिन मैं कुरान समझ लेता हूं, क्योंकि कुरान की लय समझता हूं। और अरेबिक सुरों की लय की खूबसूरती को समझता हूं। मतलब कि फिक्र किसे है। जब तुम एक फूल देखते हो तो क्या मतलब पूछते हो। फूल का होना काफी है। आग की लपट काफी है: उसकी खूबसूरती ही उसका मतलब है। उसकी अर्थहीनता अगर लयबद्ध है तो वही उसका अर्थ है।
कुरान वैसी ही है। और मैं धन्यवाद देता हूं परमात्मा ने मुझे इजाजत दी.....ओर ध्यान रहे, कोई परमात्मा नहीं है, यह सिर्फ कहने का एक ढंग है। कोई मुझे इजाजत नहीं दे रहा है।...इंशाअल्लाह इस माला का अंत मैं कुरान से करने जा रहा हूं—सबसे खूबसूरत सबसे अर्थहीन, सबसे अर्थपूर्ण लेकिन मनुष्य जाति के इतिहास में सबसे अतार्किक किताब।‘’
ओशो
बुक्स आई हैव लव्ड
इस्लाम उस परंपरा का हिस्सा है जिससे यहूदी और ईसाई धर्म पैदा हुआ। उसे इब्राहीम का धर्म कहते है। इब्राहीम का बेटा था इस्माइल। इब्राहीम को दूसरी पत्नी सारा से एक बेटा हुआ—इसाक। सारा के सौतेले पन से इस्माइल को बचाने की खातिर इब्राहीम इस्माइल को लेकर अरेबिया के एक गांव मक्का चले गए। उनके साथ एक इजिप्त का गुलाम हगर भी था। इब्राहीम और इस्माइल ने मिलकर क़ाबा का पवित्र आश्रम बनाया। ऐसा माना जाता था कि क़ाबा आदम का मूल आशियाना था। काबा में एक पुराना धूमकेतु गिरकर पत्थर बन गया था। कुरान के जिक्र के मुताबिक अल्लाह ने इब्राहीम को हुक्म दिया कि काबा को तीर्थ स्थान बनाया जाये। काबा में बहुत सी पुरानी मूर्तियां भी थी। जिन्हें अल्लाह की बेटियाँ कहा जाता था। उन देवताओं को काबा के पत्थर से ताकत मिलती थी।
मुस्लिम परंपरा कहती है कि वह इलाका ‘’अज्ञान के युग में’’ डूबा रहा, क्योंकि वह इब्राहीम के दर्शन से दूर हट गया। सदिया गुजरी और उस इलाके में रहने वाली एक जमात में एक लड़का पैदा हुआ जिसका नाम मुहम्मद था। पैदा होने से पहले ही उसके वालिद का इंतकाल हो गया, और बचपन में मां मर गई। एक चरवाहों की टोली की स्त्री ने उसकी परवरिश की।
मौहम्मद जैसे ही जवान हुआ। अपने चाचा के पास लोट आये। और उनके साथ घूमने लगे। सफर के दौरान सीरिया की और बढ़ते हुए, एक ईसाई पादरी की नजर उन पर पड़ी और उसने मुहम्मद की गहरी आध्यात्मिकता को पहचान लिया। मुहम्मद और उनके चाचा एक अमीर, खूबसूरत और अक़्लमंद स्त्री की सेवा में थे; जिसका नाम ख़दीजा था। मुहम्मद ने ख़दीजा का कामकाज इतने बेहतरीन ढंग से सम्हाला कि खुश होकर खदीजा ने उससे निकाह कर लिया। उस वक्त मुहम्मद पच्चीस साल के थे और खदीजा चालीस साल की।
क़ाबा पर चल रही बुतपरस्ती से तंग आकर कुछ लोग इब्राहीम के ‘’एक ही अल्लाह’’ वाले धर्म की अभीप्सा कर रहे थे। उन्हें ‘’हुनाफ’’ कहा जाता था। मुहम्मद भी उनमें से एक थे। मुहम्मद का उसूल था कि वह हर साल रमज़ान के महीने में, मक्का के क़रीब, हीरा की पहाड़ी पर अपने परिवार के साथ एक गुफा में जाकर रहते थे। और ध्यान में समय बिताते थे।
मुहम्मद जब चालीस बरस के हुए तब की बात है: रमज़ान के आखिरी दिनों में एक घटना घटी। वे या तो सोये हुए थे या फिर तंद्रा में थे, तब उन्होंने एक आवाज सुनी: ‘’पढ़’’
उन्होंने कहा, मैं पढ़ नहीं सकता।
फिर से आवाज आई: ‘’पढ़।’’
मुहम्मद बोले: ‘’मैं पढ़ नहीं सकता।‘’
आवाज फिर गरजी: ‘’पढ़।’’
मुहम्मद ने पूछा: ‘’क्या पढ़ूं?’’
पढ़ अल्लाह के नाम से शुरू जो बहुत मेहरबान और रहम बाला है।
1. पढ़ो अपने रब के नाम से जिसने पैदा किया।
2. आदमी को खून की पुटक से बनाया।
3. पढ़ो और तुम्हारा रब ही सबसे बड़ा करीम है।
4. जिसने क़लम से लिखना सिखाया।
5. आदमी को सिखाया जो न जानता था।......
जब वे जग गये तो वे अलफाज उनके ज़हन में ऐसे बस गये मानों दिल पर खुद गये हों।
वे गुफा के बाहर गये और पहाड़ी पर उन्होंने फिर से वहीं दबंग आवाज सुनी:
‘’ऐ मोहम्मद, तू अल्लाह का पैगंबर है और मैं जबराइल हूं।‘’
उन्होंने आंखे ऊपर उठाई तो उन्हें आदमी की हमशक्ल ऐ फरिश्ता आसमान और ज़मीन के बीच खड़ा दिखाई दिया। मुहम्मद स्तब्ध खड़े रह गये। जिधर मुंह करें वहीं उन्हें फरिश्ता दिखाई दे। आखिर जब फरिश्ता विलीन हुआ मुहम्मद कंपते हुए घर आये। ख़दीजा ने उन्हें बहुत धीरज बंधाना। उसे मुहम्मद की पाक रूह में बहुत भरोसा था।
वह मुहम्मद को अपने चचेरे भाई के पास ले गई जो बहुत बूढे और समझदार थे। उन्होंने फरमाया कि जो फरिश्ता पुराने मोज़ेज के पास आया था वही मुहम्मद के पास आया है। और मुहम्मद अपने लोगों के पैगंबर चुने गये थे।
मुहम्मद की परेशानी की वजह यों समझी जा सकती है कि हुनाफा सच्चे मज़हब को कुदरत में ढूंढते थे और अशरीरी आत्माओं के साथ होने वाले संपर्क पर भरोसा नहीं रखते थे। मुहम्मद यह नहीं समझ पा रहे थे कि उन्होंने देखा हुआ फरिश्ता अच्छा है या बुरा। मंत्र फेरने वाले, टोना-टोटका करने वाले, यहां तक कि उन दिनों शायद भी दावा करते थे कि उन पर जिन्न उतरा है। मुहम्मद विनम्र और ख़मोश तबीयत के शख्स थे: अकेले रहना, मौन और शांत जीवन बिताना पसंद करते थे। पूरी मनुष्य जाति में से उन्ही को चुना जाना, उसके बाद इतने बुलंद पैग़ाम को लेकर इंसानों का अगुआ बनना....उनमें डर पैदा हुआ।
बहरहाल, जैसे-जैसे कुरान का संदेश, उनके रग-रग में पैठता चला गया वैसे-वैसे उनमें नई ताकत लहराई। उन्हें सौंपी गई जिम्मेदारी का नया अहसास उभरता चला गया। लगभग तेईस साल तक उन पर कुरान की आयतें उतरने का सिलसिला जारी रहा। मजेदार वाक्य है कि जो पढ़, नहीं सकता था, उसे पढ़ने का आदेश दिया गया। इस पवित्र किताब को ‘’अल कुरान’’ कहा गया, जिसका मतलब है, पढ़ना—उस इंसान का पढ़ना जो पढ़ना नहीं जानता था।
तकरीबन तीन साल तक मुहम्मद अपना इलहाम अपने परिवार को संप्रेषित करते रहे। उनकी सबसे पहली शागिर्द थी उनकी बीबी खदीजा दूसरा था उनका चचेरा भाई अली, तीसरा अबूबकर (एक सौदागर) और चौथा उनका गुलाम झैद। उस दौरान मक्का के लोगबाग तो उन्हें पागल ही समझते थे। तीसरा साल खत्म होत-होते उन्हें फिर हुक्म हुआ, उठ और सावधान कर। तब से मुहम्मद लोगों के बीच जाकर उपदेश देने लगे। वे उन दिनों चल रही मूर्ति पूजा के खिलाफ बोलने लगे। कि रात और दिन विकास और विनाश, जिन्दगी और मौत, ये शक्तिशाली नियम अल्लाह की ताकत के प्रतीक है; उन्हें छोड़कर क्या मूर्तियों को पूजते फिरते हो।
बस इस उपदेश से कुरेशों की जमात और मुहम्मद के मानने वालों में चिनगारी लगी जो देखते ही देखते आग में भभक उठी। मुहम्मद की शांत और अंतर्मुखी जिंदगी जंग की भागदौड़ बन गई। मुहम्मद और उनके मानने वाले बेइन्तेहा सताएं गये।
कुरान शरीफ इस्लाम का केंद्र बिंदू है। कुरान के पहले हिस्सों में एक अल्लाह को कायम किया हुआ है। बाद की आयतें संगठन के बारे में और मुस्लिम समूह की समाज व्यवस्था के विषय में है।
जैसे ही मुहम्मद को इलहाम होता था, वे उसे रटते थे और फिर अपने शिष्यों को कंठस्थ करने के लिए कहते थे। कुरान को कहने से उन आयतों का संगीत, सौंदर्य और शक्ति प्रगट होती है। कुरान को कुछ दबी हुई, कुछ उदास आवाज में पढ़ा जाता है। क्योंकि उस समय इन्सान की जो हालत थी उससे उदास हुए अल्लाह का यह इलहाम है। मुहम्मद कहते थे: ‘’जब तुम पढ़ते हो तब रोओ।‘’
कहते है कुरान पढ़ने से तन-मन के सारे जख्म भर जाते है। निर्मलता आती है। सब कुछ धुल जाता है। कोई जादू सा तारी होता है। कुरान में यहूदी और ईसाई इतिहास की कहानियां पायी जाती है। अदम और ईव का किस्सा शुरूआत में ही दर्ज है। वहीं फरिश्ता जबराइल जिसने मुहम्मद को संदेश दिया, मेरी के पास ईसा मसीह के आने का संदेश लेकर गया।
कुरान शरीफ के पाँच वर्ग है:
--खुदा का फरमान
--जो खुदा ने सुझाया है लेकिन अनिवार्य नहीं है।
--जिसमें खुदा ने इशारा किया कि ठीक नहीं है, लेकिन उसे करने से मना नहीं किया।
--जो खुदा ने बिल्कुल मना किया है।
यह किताब कानून की पाश्चात्य धारणा से कहीं अधिक व्यापक है। क्योंकि वह जीवन के हर पहलू को छूती है। अधिकतर क़ानूनों पर मानवीय आदलत अमल नहीं कर सकती थी। इसीलिए उसे रब की अदालत पर छोड़ा गया। कुरान शरीफ के बुनियादी कानून मुसलमानों के लिए है। खुदाई नूर ने जिस नक्शे को उघाड़, उसे हर मुस्लिम को निभाने की कोशिश करनी चाहिए।
कुरान के अलफ़ाज़ अल्लाह के अलफाज है। ये सत्य के इशारे है।
किताब की झलक:--
सूरए इख्लास (पारा न. 30)
अल्लाह के नाम से शुरू जो निहायत मेहरबान और रहम वाल है।
1—तुम फरमाओ वह अल्लाह एक है।
2—अल्लाह बे नियाज़ है।
3—न उसकी कोई औलाद है और न वह किसी से पैदा हुआ।
4—और न कोई उसके जोड़ का है।
सूरए रूम ( पारा न. 21 रूकूअ 3)
हिंदी अनुवाद: ‘’उसकी निशानियों में है कि तुम्हें पैदा किया मिटटी से फिर तभी तुम इंसान हो दुनिया में फैले हुए।
उसकी निशानियों में है कि तुम्हारे लिए तुम्हारी ही जीन्स से जोड़े बनाए कि उनसे आराम पाओ और तुम्हारे आपस में मोहब्बत और रहमत रखी, बेशक इसमे निशानियों है ध्यान करने वालों के लिए।
उसकी निशानियों से है आसमानों और ज़मीन की पैदाइश और तुम्हारी ज़बानों और रंगतों का इख्तिलाफ, बेशक इसमें निशानियों है। जानने वालों के लिए।
उसकी निशानियों से है रात और दिन में तुम्हारा सोना और उसका फज्ल़ तलाश करना, बेशक उसमें निशानियों है सुनने वालों के लिए।
और उसकी निशानियों में है कि तुम्हें बिजली दिखाता है, डराती और उम्मीद दिलाती। और आसमान से पानी उतारता है तो उससे ज़मीन को जिंदा करता है, बेशक उसमें निशानियों है अक़्ल वालों के लिए।
और उसकी निशानियों में है कि उसके हुक्म से आसमान और ज़मीन क़ायम है। फिर जब तुम्हें जमीन से एक निंदा फरमाएगा तभी तुम निकल पड़ोगे।
और उसके पास है जो कोई आसमानों और जमीन में है, सब उसके जे़रे हुक्म है।
और वहीं है कि अव्वल बनाता है, फिर उसे दोबारा बनाएगा और यह तुम्हारी समझ में ज्यादा आसान होना चाहिए। और उसी के लिए है सब से बरतर शान आसमानों और जमीन में और वहीं इज्जत व हिकमत वाला है।
बेशक कुरान शरीफ खुदा का करिश्मा है, जिसके ज़रिये हम खुदा की जात की तरु बड़ी आसानी से रुजू हो सकत है। खुदा के नूर से ताअररूफ हो सकते है। सबसे बड़ी रूकावट आदमी का खुद का मैं है, खुद का घमंड है। एक बार आदमी घमंड से भर जाए चाहे वह किसी भी चीज का हो, फिर वह खुदा की इबादत से बड़ी दूर छटक जाता है।
इसी लिए कुरान में आदम जात के घमंड को तोड़ने के लिए जगह-जगह उस नूर ने अपनी निशानियों की चर्चा की है, जैसे कि बिजली का चमकना, जमीन और आसमान का होना, रात ओर दिन का होना, चरन्द–परन्द और आदम जात के वुजूद का होना बगैरा-बग़ैरा।
कुरान में सब तरह की कोशिश की गई है कि किसी तरह से हमें याद आ जाए उस निराकार की जो सबमें रमा है, जो सारी मख़लूक़ के गोशे-गोशे में है। बेशक वह रहम वाला है जो सब तरफ से हमें पुकार देता है। उसमें फऩा होना ही इबादत की आखरी मंजिल है। उसे पाते ही सारी बेचैनी खो जाती है। न ख़तम होने वाला चैन आ पाता है।
ओशो का नज़रिया:
‘’कुरान ऐसी किताब नहीं है जिसे पढ़ा जाए, कुरान ऐसी किताब है जिसे गया जाए। अगर तुम पढ़ोगे तो चूक जाओगे। अगर गाओगे तो इनशाल्लाह पा लोगे।
कुरान किसी दार्शनिक या विद्वान की रचना नहीं है। मुहम्मद बे पढ़े-लिखे थे। वे अपने नाम के दस्तख़त भी नहीं कर सकते थे। लेकिन खुदा की खुदाई से सराबोर थे। उनकी मासूमियत की वजह से वे चुने गये और उन्होंने गीत गाना शुरू किया; और वह गीत कुरान।
अरेबिक मेरी समझ में नहीं आती, लेकिन मैं कुरान समझ लेता हूं, क्योंकि कुरान की लय समझता हूं। और अरेबिक सुरों की लय की खूबसूरती को समझता हूं। मतलब कि फिक्र किसे है। जब तुम एक फूल देखते हो तो क्या मतलब पूछते हो। फूल का होना काफी है। आग की लपट काफी है: उसकी खूबसूरती ही उसका मतलब है। उसकी अर्थहीनता अगर लयबद्ध है तो वही उसका अर्थ है।
कुरान वैसी ही है। और मैं धन्यवाद देता हूं परमात्मा ने मुझे इजाजत दी.....ओर ध्यान रहे, कोई परमात्मा नहीं है, यह सिर्फ कहने का एक ढंग है। कोई मुझे इजाजत नहीं दे रहा है।...इंशाअल्लाह इस माला का अंत मैं कुरान से करने जा रहा हूं—सबसे खूबसूरत सबसे अर्थहीन, सबसे अर्थपूर्ण लेकिन मनुष्य जाति के इतिहास में सबसे अतार्किक किताब।‘’
ओशो
बुक्स आई हैव लव्ड
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