अध्याय-03
(सदमा-उपन्यास)
अंदर
ड्राइंग रूम में कुछ देर बैठ कर नेहालता के सभी यार दोस्त हंसी मजाक कर रहे थे।
देखते ही देखते चाय नाश्ता मेज पर लग गया। सब चाय नाश्ता करने की तैयारी करने लगे।
नेहालता को एक बार तो घबराहट हुई की ये सब क्या हो रहा है?
कुछ ही पल में सब वहां से चले जायेंगे और वह फिर अकेली हो जायेगी।
परंतु कहीं अचेतन एकांत भी चाहता था। परंतु ये कैसा द्वंद्व था। वह उसे अच्छी तरह
से समझ नहीं पा रही थी। सब यार दोस्त चाय नाश्ता कर लेने के बाद ये कहते हुए खड़े
हो गए की अब तुम आराम करो थक गई होगी। बहुत लम्बा सफर तय कर के आई हो। कल फिर से मिलते
है। कहीं दूर चलने का प्रोग्राम बनाते है। तुम्हारे बिना तो हमारी पार्टी
अधुरी-अधुरी रह जाती थी। अब तुम आ गई हो तो देखना अब हम कितनी मोज मस्ती करते है।
परंतु नेहालता कहती है, नहीं नवीन अभी कुछ दिन के लिए मैं विश्राम
करना चाहती हूं, बहुत थक गई हूं। इस बात से सब को कुछ अचरज तो
जरूर होता है। परंतु वह सब नेहालता की हालत को जाने है। तब यही उचित समझा गया की
कुछ दिन के लिए नेहालता को विश्राम करने दिया जाये।
अच्छा अंकल आंटी अब हम जाते है। कह कर सब यार दोस्त खड़े हो गए, श्रीमति राजेश्वरी मल्होत्रा को बाये-बाये कहते हुए सब गेट से बाहर चले गए। नेहालता बाहर बाल कॉनी में खड़ी हो सब यार दोस्तों को जाता हुआ देख रही थी। सब ने कार के अंदर बैठने से पहले हाथ हिला कर नेहा को फलाईंग किस किया। और देखते ही देखते कार दूर-और दूर होती चली गई। जब तक वह मोड़ नहीं आया नेहालता अपलक उन्हें निहारती रही। सब कितना बेगाना सा लगता था।


















