प्यारे ओशो,
अभी भी कहीं लोग और सामान्यजन हैं लेकिन हमारे पास
नहीं मेरे बंधुओ : यहां तो राज्य है..........
राज्य समस्त क्रूर दानवों में क्रूरतम है।
क्रूरतापूर्वक वह झूठ भी बोलता है; और यह झूठ उसके मुंह से रेगता हुआ बाहर आता है : 'मै — राज्य — ही लोग हूं।
यह एक झूठ है। ये सर्जक थे जिन्होंने लोगों का
सर्जन किया और उनके ऊपर एक भरोसा और एक प्रेम टांगा : इस प्रकार उन्होंने जीवन की
सेवा की।
ये विध्वंसक हैं जो बहुतों के लिए जाल बिछाते हैं
और उसे राज्य कहते हैं : ये उनके ऊपर तलवार और सैकड़ों इच्छाएं टलते हैं।
.......ऐसा जरूथुस्त्र ने कहा।
लोगों की भीड़, यद्यपि उनकी संख्या बहुत है, एक अकेले प्रामाणिक
व्यक्ति से बहुत ज्यादा कमजोर है। भीड़ों ने अपने आप को बस एक भेड़ मान रखा है,
मनुष्य नहीं।
निजतावान व्यक्ति अपनी गरिमा और अपने गौरव की घोषणा
करता है, और वह पेमनुष्यजाति का एक यात्रिक पुर्जा भर नहीं होना
चाहता। वह जगत को कुछ सौंदर्य, कुछ उल्लास, कुछ देना चाहता है। वह भिखारी नहीं है; और भिखारी न
होने का एकमात्र उपाय है अपने प्रेम को बांटना, अपनी छलकती
करुणा को, अपनी समझ को, अपनी प्रज्ञा
को, अपनी संबोधि को बांटना।
लेकिन भीड़, जैसा कि हमेशा
होता है, ऐसे निजतावान लोगों के खिलाफ चालबाज तरीकों से मजबूत
होने का प्रयास करती है।
कमजोर आदमी हमेशा चालबाज होता है — चालबाजी उसकी
प्रतिरक्षा है। और सबसे बड़ी चालबाजी जो भीड़ ने प्रतिपादित की है वह है राज्य की
रचना।
तब राज्य भीड़ की रक्षा करता है — कुंदबुद्धि, मृत, कमजोर, व्यर्थ की।
कोई भी जिसके पास मानवीय मामलों में कोई
अंतर्दृष्टि है वह राज्य के खिलाफ होगा, क्योंकि राज्य
मनुष्य की गुलामी का प्रतीक है। यद्यपि राज्य कहे चला जाता है, 'मैं लोगों का सेवक हूं ' वास्तविकता ठीक उलटी है। ये
सेवक मालिक बन जाते हैं क्योंकि उनके पास सत्ता है, उनके पास
नौकरशाही है, हथियार हैं। और यह सारी शक्ति उन कुछ निजतावान
लोगों के खिलाफ उपयोग की जा रही है जो विद्रोहात्मक हैं — विद्रोहात्मक असत्य के
खिलाफ, विद्रोहात्मक मृत परंपराओं के खिलाफ, विद्रोहात्मक सब तरह के अंधविश्वासों के खिलाफ।
लेकिन राज्य एक शक्ति बन गया है, और तुम किसी मूढ़ को किसी बड़े पद पर बिठा सकते हो और वह सम्माननीय बन जाता
है, वह शक्तिशाली बन जाता है। जहा तक उसका खुद का सवाल है,
वह कुछ भी नहीं है। जिस क्षण उसका पद चला जाता है, लोग उसके बारे में सर्वथा भूल जाते हैं। क्या तुम निक्सन के संबंध में कुछ
सुनते हो? एक वक्त था जब वह दुनिया का सर्वाधिक शक्तिशाली
व्यक्ति था, और आज वही व्यक्ति गुमनाम बन गया है। अपने आप
में उस व्यक्ति की कोई सत्यनिष्ठा नहीं है, लेकिन राज्य उसे
शक्ति प्रदान करता है। लोगों का सेवक बनाने के बजाय वह इन लोगों को देश का मालिक
बना देता है।
जरथुस्त्र राज्य के नितांत खिलाफ हैं। उसका अर्थ यह
नहीं कि कोई कामचलाऊ संगठन नहीं होना चाहिए। कामचलाऊ संगठन से मेरा मतलब है रेलवे
की तरह; उनके भी प्रेसीडेंट होते हैं लेकिन कोई उन्हें जानता तक
नहीं कि वह कौन हैं। और जानने की कोई जरूरत नहीं है। अथवा पोस्ट आफिस की तरह। एक
पोस्टमास्टर जनरल (महा डाकपाल ) होता है, लेकिन कोई नहीं
जानता कि वह महानुभाव कौन हैं — और कोई
जरूरत भी नहीं है।
प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति इसी कोटि में होने
चाहिए। उन्हें वेतन मिलना चाहिए, क्योंकि वे देश की सेवा कर
रहे हैं, लेकिन उन्हें ऐसा नहीं बन जाना चाहिए जैसे कि वे
महा विजेता हैं, जैसे कि देश उनका है
... ऐसा जरधुस्त्र ने कहा,
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