कुल पेज दृश्य

रविवार, 4 अक्टूबर 2009

देश-द्रोही या मानव द्रोही----

मैं कहूंगा कि भारत को पहला देश होना चाहिए जो राष्‍ट्रीयता छोड़ दे।
यह अच्‍छा होगा कि कृष्‍ण, बुद्ध, महावीर, पतंजलि और गोरख का देश
राष्‍ट्रीयता छोड़ दे और कहे की हम अंतर्राष्‍ट्रीय भूमि है।
भारत को तो संयुक्‍त राष्‍ट्र संघ की भूमि बन जाना चाहिए।
कह देना चाहिए, यह पहला राष्‍ट्र है,
जो हम संयुक्‍त राष्‍ट्र संघ को सौंपते है—सम्‍हालो।
कोई तो शुरूआत करे----। और यह शुरूआत हो जाए
तो युद्धों की कोई जरूरत नहीं है, ये युद्ध जारी रहेगें
जब तक सीमाएं रहेंगी। ये सीमाएं जानी चाहिए।
तो ठीक ही कहते हो, कह सकते हो मुझे देश-द्रोही—
इन अर्थों में कि मैं मानव-द्रोही नहीं हूं।
लेकिन तुम्‍हारे सब देश-प्रेम मानव-द्रोही है।
देश-प्रेम का अर्थ होता है मानव-द्रोह।
देश-प्रेम का अर्थ होता खड़ों में बांटो।
तुमने देखा न जो आदमी प्रदेश को प्रेम करता है।
वह देश का दुश्‍मन हो जाता है,
और जो जिले को प्रेम करता है।
वह प्रदेश का दुश्‍मन हो जाता है।
और जो जिले को प्रेम करता है,
वह प्रदेश का भी दुश्‍मन हो जाता है।
मैं दुश्‍मन नहीं हूं देश का,

क्‍योंकि मेरी धारणा अंतर्राष्‍ट्रीय है।

यह सारी पृथ्‍वी एक है।

मैं बड़े के लिए छोटे को विसर्जित कर देना चाहता हूंद्य

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें