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गुरुवार, 1 अक्तूबर 2009

प्रेम करो—स्वोयं को प्रेम करो-------


 प्रेम करो—स्‍वयं को प्रेम करो।
अपने को प्रेम से भरो।
उससे बहुत ऊर्जा का जन्‍म होता है।
प्रेम अद्भुत शाक्ति है।
और जब आप स्‍वयं अपने प्रति प्रेम से भरते हो।
चित अपने रहस्‍य क्रमश: खोलने लगता है,
और उसके प्रेम पूर्ण निरीक्षण से उसके भीतर आपका प्रवेश होता है।
प्रेम संतुलन लाता है, धृणा और दमन नहीं।
प्रेम निरीक्षण को संभव बनाता है,
धृणा और विरोध नहीं, इस लिए मुझे आज्ञा दें कि
मैं आपको स्‍वयं से प्रेम करना सिखाऊ।
यह कहना कैसा अजीब लगता है पर सत्‍य यहीं है।
हम अपने से प्रेम नहीं करते है,
और जो अपने से प्रेम नहीं करता,
वह अपना सम्‍मान भी नहीं करता,
वह अपने जीवन का भी आदर नहीं करता।

और इसलिए उसे कैसे भी व्‍यय और व्‍यतीत करता रहता है।

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