तब व्यक्ति के प्राण ों पर अवतरित होता है।
सत्य भीड़ के ऊपर अवतरित नहीं होता।
सत्य को पकड़ने के लिए व्यक्ति का प्राण ही बीणा बनता है।
वही से झंकृत होता है सत्य।
भीड़ के पास उधार बातें होती है, जो कि असत्य हो गई है।
भीड़ के पास किताब ें है, जो कि मर चुकी है।
भीड़ के पास महात्माओं, तीर्थंकरों, अवतारों के नाम है।
जो सिर्फ नाम है, जिनके पीछे अब कुछ भी नहीं बचा,
सब राख हो गया है।
भीड़ के पास परंपराएं है, भीड़ के पास याददाश्तें है।
भीड़ के पास हजारों-लाखों साल की आदतें है।
लेकिन भीड़ के पास वह चित नहीं है।
जो मुक्त होकर सत्य
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