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रविवार, 4 अक्टूबर 2009

ब्रह्मचर्य--

सेक्‍स तो संपदा है।
उससे लड़ कर उसको नष्‍ट मत कर लेना।
उसे प्रेम से और आहिस्ता से बदलने की कीमिया है।
खोजना है उसकी केमिस्‍ट्री कि वह कैसे बदल जाए।
और मैं कहता हूं, उस किमिया के दो सूत्र है।
पहला सूत्र—सम्‍मान का भाव।
और दूसरा सूत्र है—प्रेम का निरंतर विकास
जितना प्रेम बढ़ेगा, उतनी सेक्‍स की शक्ति
प्रेम के मार्ग से प्रवाहित होने लगेगी।
और धीरे-धीरे आप पाएंगे—
सारा प्रेम, सारा सेक्‍स,
सारी प्रेम की शक्ति प्रेम का फूल बन गई है,
और जीवन प्रेम के फूलों से भर गया है।
सिर्फ प्रेम को उपलब्‍ध व्‍यक्ति ब्रह्मचर्य को उपलब्‍ध होता है।
जितना बड़ा प्रेम, उतना बड़ा ब्रह्मचर्य।

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