मैं अपने धर्म को
मैं तो सतत बगावत सिखा रहा हूं,
विद्रोह शास्त्रों से है, विद्रोह शब्दों से है,
विद्रोह मन से है, विद्रोह नेतिकता से है।
फिर जो शोष रह जाता है,
वह अनाम है,
विशेषण-शून्य है।
उसी शून्य का नाम धार्मिकता है,
उसी शून्यता में पूर्ण का फूल खिलता है।
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