हिंदुओं न बड़ा अद्भुत काम किया है।
बाहर तो प्रतीक है और प्रतीको ं में जब हम भटक गण्ए
तो हिंदुओं की सारी जीवन-चेतना खो गई।
हम कहते है कि गंगाजल-रामेश्वरम में ले जा कर चढ़ा रहे है।
वे सब भीतर शरीर के बिंदु है।
एक बिंदु से ऊर्जा को लेना है और दूसरे बिंदु पर चढ़ाना है।
एक बिंदु से ऊर्जा को खीचना है, और दूसरे बिंदु तक पहुंचना है।
तब तीर्थयात्रा हुई।
पर हम अब पानी ढ़ो रहे है, गंगा से और रामेश्वरम तक।
हमने पूरी पृथ्वी को नकशे की तरह बना लिया था, आदमी का फैलाव।
आदमी के भीतर बड़ा सूक्ष्म है सब कुछ।
उसको समझने के लिए ये प्रतीक थे।
और इन प्रतीकों को हमने सत्य मान लिया हम भटक गए।
प्रतीक कभी सत्य नहीं होते, सत्य की तरफ इशारे होते है।
जी सर आपने बहुत सही फ़रमाया.
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