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गुरुवार, 1 अक्टूबर 2009

रामेश्‍वरम और गंगा जल-----

हिंदुओं न बड़ा अद्भुत काम किया है।
पृथ्‍वी पर कि‍सी जाति ने ऐसा अद्भुत काम नहीं किया।
बाहर तो प्रतीक है और प्रतीकोमें जब हम भटक गण्ए
तो हिंदुओं की सारी जीवन-चेतना खो गई।
हम कहते है कि गंगाजल-रामेश्‍वरम में ले जा कर चढ़ा रहे है।
वे सब भीतर शरीर के बिंदु है।
एक बिंदु से ऊर्जा को लेना है और दूसरे बिंदु पर चढ़ाना है।
एक बिंदु से ऊर्जा को खीचना है, और दूसरे बिंदु तक पहुंचना है।
तब तीर्थयात्रा हुई।
पर हम अब पानी ढ़ो रहे है, गंगा से और रामेश्‍वरम तक।
हमने पूरी पृथ्‍वी को नकशे की तरह बना लिया था, आदमी का फैलाव।
आदमी के भीतर बड़ा सूक्ष्‍म है सब कुछ।
उसको समझने के लिए ये प्रतीक थे।
और इन प्रतीकों को हमने सत्‍य मान लिया हम भटक गए।
प्रतीक कभी सत्‍य नहीं होते, सत्‍य की तरफ इशारे होते है।

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