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गुरुवार, 1 अक्टूबर 2009

खिलने का आनंद---

एक फूल खिला है,
वह किसी के लिए नहीं खिला है।
और किसी बाजार में बिकने के लिए भी नहीं,
राह से कोई गूजरें और उसकी सुगंध ले,
इस लिए भी नहीं खिला है,
कोई गोल्ड मैडल उसे मिले, कोई महावीर चक्र मिले,
कोई पद्मश्री मिले, इसलिए भी नहीं खिला है।
फूल बस खिला है, क्‍योंकि खिलना आनंद है।
खिलना ही खिलने का उद्देश्य है।
इसलिए ऐसा भी कह सकेते है कि फूल निरूद्देश्य खिला है।
और जब कोई निरूद्देश्य खिलेगा तभी पूरा खिल सकता है।
क्‍योंकि जहां उद्देश्य है भीतर वहां थोड़ा अटकाव हो जाएगा।
अगर फूल इसलिए खिला है कि कोई निकले,
उसके लिए खिला है, तो अगर वह आदमी
अभी रास्‍ते से नहीं निकल रहा तो फूल अभी बंद रहेगा,
जब आदमी आएगा तब ही खिलेगा,
लेकिन जो फूल अधिक देर बंद रहेगा, हो सकता है
उस आदमी के पास आ जाने पर भी खिल न पाएँ,
क्‍योंकि न खिलने की आदत मजबूत हो जाएगी।
नहीं, फूल इसलिए पूरा खिल पाता है कि कोई उद्देश्य नहीं है।

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