जीवन छोटे से राज ों पर निर्भर होता है।
और बड़े से बड़ा राज यह है कि सोया हुआ आदमी भटकता चला जाता है,
चक्कर में , जागा हुआ आदमी चक्कर के बाहर हो जाता है।
जागने की को श िश ही धर्म की प्रक्रिया है।
जागने का मार्ग ही योग है।
जागने की विधि का नाम ही ध्यान है।
जागना ही एक मात्र प्रार्थना है।
जागना ही एक मात्र उपासना है।
जो जागते है वे प्रभु के मंदिर को उपलब्ध हो जाते है।
क्योंकि पहले वे जागते है, तो वृत्तियां, व्यर्थताएं,
कचरा, कूड़ा-करकट चित से गिरना शुरू हो जाता है।
धीर-धीरे चित निर्मल हो जाता है जागे हुए आदमी का।
और चित निर्मल हो जाता है, तो चित दर्पण बन जाता है।
जैसे झील निर्मल हो तो, चाँद तारों की प्रति छवि बनती है।
और आकाश में चांद-तारें उतने सुंदर मालूम पड़ते,
जितने झील की छाती पर चमक कर मालूम पड़ते है।
जब चित निर्मल हो जाता है जागे हुए आदमी का,
तो उस चित की निर्मलता में परमात्मा की छवि
दिखाई पड़नी शुरू हो जाती है।
फिर वह निर्मल आदमी कहीं भी जाए--
फूल में भी उसे परमात्मा दिखाई पड़ने लगता है,
पत्थर में भी, मनुष्य में भी, पक्षियों में भी, पदार्थ में भी--जीवन की क्रांति का अर्थ है: जागरण की क्रांति।
बहुत आभार-जय ओशो.
जवाब देंहटाएंबहोत बहोत धन्यवाद...
जवाब देंहटाएंजीवन सार सूत्र 🙏
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