इस घटना के बाद निकू कभी कभार ही घर पर आता था। शायद दुकान पर ही आ कर वहीं से ही कुछ खा पी कर चला जाता होगा। ये मैं इसलिए जानता हूं कि पापा जी बच्चों को बता रहे थे कि निकू की हालत कुछ ठीक नहीं थी। ये सब पाप भी मेरे सर पर ही मंढ़ा जायेगा। न मैं ये खुराफात करता और न उस बेचारे की ये हालत होती। क्योंकि वह शायद समझ गया की अब मेरा इस घर से अधिकार खत्म हो गया। मैं बूढ़ा हो गया हूं क्या ये सब मेरे साथ भी होगा तब मैं कुछ डर गया था। पर जिस दवाई ने मेरे शरीर पर कुछ असर दिखाया था, उसी दवाई से भी उसके शरीर पर कोई असर नहीं हुआ। शायद मेरी भी यही हालत होती पर अभी मैं बच्चा था। मेरा शरीर अभी बलिष्ठ था। उस की प्रतिरोधक शक्ति थोड़ी अधिक थी। वह झेल गया। उस समय तक निकू का शरीर बूढ़ा हो गया था। जो उस ज़हरीले खरगोश के जहर को झेल नहीं पाया जिससे उसकी हालत इतनी खराब हो गई।
उसने भी इस पीड़ा को ज्यादा नहीं भोगा। कई बार दुखद सी घटना भी मन को कितनी राहत दे जाती है। एक गहरी उसांस के बाद चलो अच्छा ही हुआ। परंतु वह खरगोश इतना जहरीला था। इस खरगोश में इतना जहर कहां से आया। उसे अभी कुछ ही दिन पहले तो पापा जी लेकर आये थे।
फिर शायद बेचने वाले इनके खाने में कोई दवाई जरूर मिलाते होंगे, जिससे ये मरे ना। इसी तरह से वो चिड़ियां दूसरी बार पापा जी लेकर के आये थे। वह एक दो दिन ही घर पर ही थी। उसी सब में चार-पाँच मर गई थी। भला ऐसे भी कोई मरता है। खरगोश खोने के करीब एक महीने बाद निकू की मौत हो गई। पाप जी और वरूण भैया उसे एक कपड़े में बाँध कर जंगल में किन्हीं झाड़ियों में छुपा कर एक गढ़े में उसे दबा आये थे। ताकि उसे कोई जंगली जानवर न खा सके। वरना तो नाहक वह बेचारा भी बीमार हो सकता था। पर ये भी कुदरत का एक चमत्कार है या फिर रहस्य, कि कोई भी मांसाहारी पशु दूसरे मांसाहारी प्राणी को क्यों नहीं खाता? क्या मांसाहार से निर्मित शरीर कुछ विषाक्त हो जाता है? एक बार जब हम जंगल में घूमने गये तब मैंने उस जगह को देखा जहां पर उसका शरीर को दबाया गया था। उस पर आज भी उसी तरह से पत्थर रखे हुए थे। बरसात के कारण उस पर जंगली घास व खरपतवार भी उग गई थी। साफ पता चल रहा था किसी जंगली जानवर ने भी उसे नहीं खाया था। एक तो वह जगह झाड़ियों के अधिक बीच में थी। दूसरा उसे जो रोग था। वह उसके मांस मज्जा में रच बस गया था। जंगली पशु हमारी तरह पागल थोड़े ही होते है। कि जो चाहे खा लिया।इस सब के बाद पापा जी और दीदी एक दिन उन सब खरगोशों को एक पेटी में बंद कर के जंगल में चले गए। और उन्हें कही छोड़ दिया। ये मुझे पता नहीं परंतु वह जरूर पानी के नाले के आस पास ही छोड़ा होगा। पता नहीं अब वो वहां कितनी दिन जीवित रहेंगे। क्योंकि वह जंगली खरगोशों की तरह से तेजी नहीं दौड़ सकते थे। परंतु अब ये सब खेल पापा जी ने खत्म कर दिया।
अभी भी मैं पूरी तरह से स्वास्थ्य नहीं हुआ था। मुझे लग रहा था कहीं अब निकू के बाद मेरी ही बारी तो नहीं। पर जब भी हम जंगल में जाते में खूब भागता और शरीर को अति तक थका लेता, मेरा पूरा शरीर गर्म हो जाता था, आप को यह जानकर अचरज जरूर होगा की हमें पसीना नहीं आता। उन सभी जानवरों को जिनके की शरीर पर बाल होते है। अपने शरीर के तापमान को कम करने के लिए हमें अपनी जीभ और नाक का सहारा लेना होता है। जिससे छूकर हवा ठंडी हो जाये। या मात्र एक नाक जिस पर बाल नहीं होते वह भी हमारे शरीर को गर्मी से बचाती है। और शरीर के बाल शरदी से बचाते है। परंतु मुझे पहले तो पानी से बहुत भय लगता था, परंतु अब मैं उसमें जाकर नहाने का पूर्ण आनंद लेता हूं। मेरी देखा-देखी टोनी भी डरा सहमा सा मेरे साथ पानी में आ जाता था। हमारे गांव के पास जो तालाब था जिसका नाम ‘’रामतला’’ था। उसके आस पास की चिकनी कीचड़ होती उस में खूब मस्त होकर उसमें लेटता था। वह मिट्टी इतनी चिकनी और मुलायम जैसे मुल्तानी मिट्टी। उस में लेट जाने के बाद शरीर में एक प्रकार की शांति आ जाती थी। फिर में बहार जब आता तो पापा जी और दीदी भैया खूब मेरा मजाक बनाते। मेरा शरीर उस मिट्टी के लेप के कारण सुकड़ कर चूहे की तरह पतला हो जाता। फिर जब में बहार निकल कर दो तीन बार शरीर को झाड़ता। कुछ मिट्टी इधर उधर गिर जाती थी। और में सुखी मुलायम रेत और घास में आपने शरीर को खूब रगड़ कर साफ करता। और उसके बाद जोरों से मैं खूब भागता। भागने के कारण थोड़ी ही देर में वह मिट्टी न जाने कहां गायब हो जाती और में एक दम साफ सुथरा और पहले से कुछ अधिक तंदरूस्त महसूस करता था। एक दो दिन ऐसा करने के बाद पापा जी ने जब दवाई लगाने के लिए मेरी गाँठें देखी तो वह बहुत खुश हुए। और हम सब को कहने कि देखों पोनी की गाँठें और जख्म बहुत कम हो गये है। ये जो जंगल में जाकर रामतला की कीचड़ में खूब लेटता था ये उस मिट्टी का कमाल था। सच वो तालाब राम तला ही था। मेरे 10—15 बार वहां स्नान करने से लगभग मैं ठीक हो गया था। इसे एक चमत्कार भी कहा जा सकता है। क्योंकि कुदरती तोर पर हमारा शरीर या किसी भी प्राणी का शरीर एक बार खराब हो जाता है, तो पूर्ण रूप से कभी उस अवस्था में नहीं आता। शरीर हो या उसका कोई अंग जब उस में कुछ गड़बड़ आ जाती है। तो वह सौ प्रतिशत कभी ठीक हो ही नहीं सकता। बस काम चलाऊ ही समझो उसे। जब हम किसी मिट्टी में लेटते है तो होता क्या है.. ये शरीर हमारा मिटी से बना है, कीचड़ से निकल कर जब हम बहार धूप में आ जाते है। तब साथ में जल हवा व सूर्य का प्रकाश पांचों तत्व अपनी पूर्णता में उस अवस्था में हमारे साथ होते है। कितने पानी जरूरी है, कितनी मिट्टी वा प्रकाश या खुली हवा वो सब हम से दूर होता जा रहा है। हम सब पक्के घरों में रहते है प्रकृति से दूर। जिसके कारण हमारे शरीर में नित किसी न किसी तत्व की कमी होती रहती है। जिस कमी के कारण आज प्रत्येक प्राणी के शरीर की संरचना कमजोर होती जा रही है। सौ प्रतिशत तो परमात्मा ही हमें देता है। परंतु हम तो केवल एक उपचार ही कर सकते है।
हफ़्ते में एक बार मेरे पूरे शरीर पर दही का लेप होता था। उस में कुछ मिलाया जाता था जो मेरे चाटने के कारण कुछ कस्सायापन सा स्वाद लिये होता था। शायद वह गंधक थी उसकी गंध आज भी मैं अपने अंतस में महसूस कर सकता हूं। और फिर किसी खास साबुन से नहलाया जाता था। और उसके बाद एक कटोरा दही भी खाने को दी जाती थी। ये उपचार मेरा कई महीने तक चलता रहा था।
गाँठें और खारिश तो उस मिट्टी में लेटने से कम हो गई। पर शरीर की चमड़ी पर जो सुखा पन था उसका राम बाण दही ही है। वह चमड़ी की जड़ों को पोषित कर नरम और मुलायम कर देती थी। जिससे उस पर से सफेद पपड़ी निकलनी बंद हो गई थी। और उस खाली जगह पर धीरे—धीरे नरम और मुलायम बाल और रोया निकल आये थे। यानि उस चमड़ी को और मुझको एक नया जीवन मिल गये। यही तो उसके स्वास्थ की पहचान थी।
जैसे कोई बंजर जमीन जब उपजाऊ हो जाती है तो उसमें दूब और घास उग जाती है। परंतु एक बात और थी जिस दिन से हमने वो खरगोश खाया था। हम दोनों को अगल अलग तरह की शारीरक बिमारी हुई। पर टोनी के शरीर पर ऐसे कुछ लक्षण अभी तक नजर नहीं आये। उसके महीन रेशमी मुलायम बाल साबुत थे। उसके शरीर पर गाँठें भी नहीं पड़ी थी। बेचारा टोनी तो बच गया क्योंकि उसने तो उस खरगोश को खाया ही नहीं था। इस की मुझे खुशी भी थी। और अपने अंदर यह सब बातें सोचता और मनन कर के यही निष्कर्ष निकालता की टोनी ने नहीं खाया वह कितना भला है। और न खाया हो यही बात मन को अधिक तसल्ली देती थी।
बेचार टोनी उसकी गहरी काली आंखें अदखुली कैसी नशीली दिखती थी। जब मैं उसे मारता या चिड़चिड़े पन के कारण उसके साथ नहीं खेलता तब कितना उदास हो जाता था। कैसे मेरे पास आ मेरा महुँ चाटता रहता था। वह बहुत ही प्यार वाला कुत्ता था। वह किसी भी खिलौने से खेलता हो जब में उससे छिनता तो वह कभी ना नहीं करता था। पर मेरे जिराफ़ को उस दिन जब वह अंदर से मुख में पकड़ कर खेलने के लिए लाया था तो मेरे बदन में कैसे आग लग गई थी। सच मेरे अंदर जलन की भावन उन दोनों कही अधिक थी। कुल मिलाकर जब याद करता हूं तो मैं उन दोनों से बहुत ही खराब मन हो जाता है। मुझे सब ने प्यार दिया पर में अंदर से किसी को प्यार दे ही नहीं पाया। क्या कमी थी मेरे विकास या मेरे जीन में ही कुछ ऐसा था। परंतु वह उस दिन से उदास रहने लगा था। मैं सोचता था मेरे बीमार होने के कारण ऐसा था। क्योंकि उसे कोई साथी नहीं मिल पा रहा है, खेलने के लिए। पर कारण कुछ और ही था जिसे हम नहीं जान पाये। पर उसके अंदर कुछ और ही चल रहा था। इसे हम कोई भी नहीं देख पाये। कुछ ऐसा हो रहा था प्रकृति के गर्भ में जो उसे खत्म कर गया। हम से छीन ले गया। उस की मौत इतनी सहज और सहज थी की उसकी आहट हम में से कोई नहीं सून सका। या मेरी बीमारी का शोर इतनी विचलित करने वाला था की हमारा ध्यान उस और गया ही नहीं।
अब मैं धीरे—धीरे अच्छा महसूस कर रहा था। खेलने का भी मन करता था भूख भी लगने लगी थी। एक दिन मैंने टोनी को कहां की चलो खोलते है। पर वह नहीं उठा। मैं उसे वैसे ही छोड़ कर इधर उधर खेलने लगा। पर वह बहुत देर तक ऐसे ही लेटा रहा। ये उसके स्वभाव के विपरीत था। तब मैं उसके पास गया। और मैंने उसका मुख चाट कर कहा की चलो उठो। पर वह हिल भी नहीं रहा था। उसने अपनी गहरी नशीली आँखों को खोल कर एक बार मुझे देखा। उन में कुछ दर्द था। एक लाचारी झलक रही थी।
क्योंकि टोनी की आंखें आप ज्यादा देर तक देख नहीं सकते उनमें आपको डूबने जैसा भाव महसूस होता था। ऐसा सब की आंखों में नहीं होता ये उसके गहरे पन और निश्चलता का कारण था। सच वह बहुत ही सरल था। पर आज उसकी आंखों में एक खास बेचैनी थी। उनमें वो पारदर्शीता जीवंतता कहीं दिखाई नहीं दे रही थी। उसको पेचिस भी लग गये थे। साधारण पेचिस नही उनमें कुछ गाढा चिपचिप पदार्थ के साथ खून भी था। श्याम होते उसकी आंखें अंदर को धंस गई थी। मूंह के किनारे जो लाल थे वह सफेद और निर्जीव हो गये थे। मैं पास जा कर उसको सूँघने लगा एक अजीब सी दुर्गंध उसके शरीर से आ ही थी।
जैसे किसी सड़े हुए मांस की हो। पर टोनी तो अभी जीवित था, फिर उसके शरीर से ये गंध क्यों? पापा जी सुबह से उसे तीन चार बार चम्मच भर कर दवाई दे रहे थे। पर उसे कोई आराम ही नहीं हो रहा था। उसे दही में दवाई डाल कर दी गई जो उसने सूंघ कर छोड़ दी मैं सोच रहा था। अगर यह उसे खा ले तो इसके लिए अच्छा रहेगा। पर उसके अंदर कुछ जा ही नहीं रहा था। कुदरत कुछ रहस्य अपने अंदर ही समेटे रहती है। जिन का पर्दा उठा कर हम कभी नहीं देखा पायेंगे। मरने से पहले हमारे खाने वाला तंत्र बंद हो जाता है। ये शायद सभी प्राणियों में होता होगा, बस समय का फर्क हो सकता है। पहले आपके शरीर में ठोस पदार्थ जाना बंद हो जाते है। आपके जबड़े चलने बंद हो जाते है। आप अंतिम एक या दो दिन केवल तरह पर्दाथ ही गले के नीचे उतार सकते है। या फिर पानी।
पर रात को जब पापा जी चम्मच से उसे दवाई पिलाने लगे तब उसका जबड़ा एक दम से अकड़ गया था। जबर दस्ती उसमें दवाई डाली जो बहार निकल गई। उसकी ये हालत देख कर मेरा भी कुछ खाने को मन नहीं कर रहा था। मैं समझ नहीं पा रहा था कि क्या कारण हो सकता है। टोनी कल तक एक दम ठीक था अचानक इसे क्या हो गया। और मैं जो इतना अधिक बीमार था जिसके बचने की कोई उम्मीद नहीं थी। वो एक दम से ठीक हो गया। मानो वह मुझे बचा कर खुद जा रहा था। नहीं टोनी तु मत जा मैं अकेला रह जाऊंगा।
पोनी की हालत ठीक नहीं थी। अब तो उससे उठा भी नहीं जा रहा था। पापा—मम्मी बहुत परेशान थे। रात हो गई थी। अब किसी डा0 को भी नहीं दिखा सकते थे। फिर हमारी जाति का डा0 मिलना भी कोई आसान नहीं था खास कर उस जमाने में। शायद मम्मी पापा बात कर रहे थे कि सुबह इसे किसी डा0 को दिखाया जाये। उसकी जो गंध थी जिसे हम पहचान करते थे। वह खत्म हो गई थी। वह एक अजीब सी हालत थी। जो मेरे लिए नई थी। ये बातें मुझे बाद में पता चला कि क्यों ऐसा हो रहा था।
छ: महीने पूरे होते न होते प्रकृति अपनी आखिरी परीक्षा लेती है। समय प्रत्येक प्राणी की आयु के हिसाब से भिन्न होती है। जैसे मनुष्य का करीब सात साल, आदि-आदि। ये अपना हथियार वे सभी पर आज़माती है। मुझे अपने और टोनी से ये सब ज्ञात हुआ। प्रकृति अपना विकास चाहती है। वह कमजोर बीज, कमजोर प्राणी को सहन नहीं करती। जो सर्दी, गर्मी, और प्रकृति की हर बाधा को झेल ले वहीं जीवत रहने का अधिकारी है। जो कमजोर होगा। वह उसे नहीं पनपने देती।
ये हमारे साथ प्रकृति का बड़ा ही भद्दा और कुरूप खेल लगेगा परंतु है ये दम सत्य। वह कमजोर बीज को नहीं उगने देगी। अगर किसी कारणवश वह उग भी गया तो उसे वह वृक्ष बनने की क्षमता नहीं रखता वह मर जायेगा। तो वही बीज वृक्ष बनेगा जिसकी जीवेषणा प्रगाढ़ होगी। जो प्रत्येक बाधा को पार कर पायेगा। मनुष्य ने विज्ञान का सहारा ले कर प्रकृति को भी विभ्रम में डाल दिया है। जिस मनुष्य का शारीरिक तौर पर जीने का अधिकारी नहीं है फिर भी जीवत रहता दिखता है। ये विज्ञान के कारण है। खैर मैंने देखा टोनी इसी प्रकृति के जाल को पार कर रहा था। शायद मेरी बीमारी के कारण वह कमजोर पड़ गया। पर ये मेरे लिए विरोध क्यों शायद में अभी छ: माह का नहीं हुआ होगा। यहाँ इसी बीमारी के बीच में मेरा वो मध्य काल भी साथ आ गया दोनों एक साथ मेरे उपर टूट पड़े। जिस के बीच में बच कर निकल गया।
पर अचानक ऐसा लगा पीछे कोई आया है। मैंने पीछे देखा पापा जी खड़े थे। मुझे पापा जी को यूं आया देख कर बहुत खुशी महसूस हुई थी। और अपनी चिर परिचित पूछ हिला—हिला कर उनका स्वागत किया। उन्होंने पास कटोरी से एक चम्मच पानी लिया और टोनी को पिलाने के लिए उनका मुँह उपर उठाया। टोनी की असहाय आंखें पापा जी पर टिकी हुई थी। शायद जीवन की अंतिम किरण या आस या शायद आंखों में वो छवि जो सामने उसका सबसे प्रिय खड़ा हो उसे निहार लेना चाहती हो। उसने अपनी अध खुली आंख को बंध नहीं किया। उनमें एक ललक थी एक तमन्ना थी। पापा जी ने पानी टोनी के मुँह में डाला पर वह भीतर न जा कर मुँह के दोनों तरफ बह गया। उसने मुँह खोल कर कुछ कहना चाहा। वह एक दूर की यात्रा पर अकेले जा रहा था। पापा जी उसके पास ही बैठ गए। उसके सर को उसके पूरे शरीर को सहलाते रहे थे। मैं देख रहा था धीरे-धीर टोनों का चेहरा बदल रहा है। उसके चेहरे पर जो विकार थे। वह लुप्त हो रहे थे। उसका चेहरा शरीर एक दम शांत हो रहा था। मानो उसको कोई पीड़ा या दर्द ही नहीं हो। वह धीरे-धीरे एक गहरी निंद्रा में उतर रहा था पापा जी पास ही आंखें बंद किये उसे सहला रहे थे।
अचानक पापा जी ने अपनी आंखें खोली। तभी टोनी ने भी अपने बंद आंखों को खोला उसने मुझे देखा, फिर पापा जी को निहारने लगी। उसकी साँसे गहरी चलने लगी थी। ये सब मैं बहुत गोर से देख रहा था। मानो वह लंबी दौड़ लगा कर आया हो। ऐसा कैसे हो सकता है। सुबह तो वह अपने शरीर को हिला भी नहीं पा रहा था। परंतु अब और एक लंबी हिचकी ली और एक दम से सब शांत हो गया। पापा जी के हाथों में उनका निर्जीव मुँह लटक कर रह गया। अचानक इस सब के बाद एक अनहोनी घटना और घटी। शरीर छोड़ने के तुरंत बाद उसके शरीर से अब कोई दुर्गंध नहीं आ रही थी। मानो टोनी पूर्ण स्वस्थ हो गया हो। ऐसा कैसे हो सकता है। की जीवित के शरीर से तो दुर्गंध आ रही हो और मृत के शरीर से एक दम गायब। टोनी हमें छोड़ कर चला गया। पापा जी ने उसकी खुली आँखों को हथेली से बंध कर दिया। और उसे उसकी चादर से ढक दिया। मैं ये सब देख रहा था। कुछ भी मेरी समझ में नहीं आ रहा था। वह एक गहरी शांत निंद्रा में सो गया जिससे फिर कभी नहीं उठना होता। कहा चला गया टोनी, अब क्यो नहीं उठ सकता। क्या मुझे भी यूहीं मरना होगा। मरने के बाद क्या होता है। पहले निकू मरा, अब टोनी मरा कल मेरा नम्बर और में डर गया।
शायद टोनी ने आपने जीवन के एक नये आयाम में प्रवेश कर लिया था। इस छोटे से जीवन में रह कर उसने जो पाया वह हम कई-कई जन्म ले कर भी नहीं प्राप्त कर सकते है। एक पूर्णता....एक गृहणता एक अपनत्व एक प्रेम परितृप्ति एक परिपूर्णता एक आनंद। वहीं प्रेम तो हमें सब को एक उच्चता की और ले जाता है। जिसको विकास कहा गया है। इसी विकास क्रम में पूरी प्रकृति चल रही है। शायद उसका जन्म अब कुत्ते के रूप में नहीं होगा। क्योंकि वह तृप्त हो कर चला गया। पापा जी के संग साथ....ने उसे मृत्यु की भय और पीड़ा से मुक्त कर दिया मेरा प्यारा दोस्त चला गया।
बच्चों ने सुबह जब टोनी को मेरे हुए देखा तो उन्होंने पूछा, पापा जी टोनी क्यों मर गया। मरना क्या होता है। क्या सबको मरना होता है। अगर कोई न मरना चाहे तो उसे क्या करना चाहिए। फिर ये बेचार टोनी ही अकेला क्या मर गया। ये उठना चाहे तो क्या उठ नहीं सकता। क्या उठ कर क्यों नहीं खड़ा हो सकता। दीदी ने कहां कि मैं तो कभी नहीं मरूंगी, इसमें भी क्या है कौन रोकेगा। जब मरने लगेंगे तो उठ कर खड़े हो जायेंगे। ये एक बाल बुद्धि के प्रश्न और उत्तर थे। इन्हें वो खूद समय के साथ समझ जायेगे।
टोनी बच्चों का बहुत प्यारा था कहीं मुझसे भी अधिक। सब बच्चे घर में आते ही पहले हम दोनों को प्यार करते थे। फिर कही कुछ दूसरा काम करते थे। बच्चों ने अपने बहुत करीबी दोस्त को मरते देखा था। निकू जब आया होगा तब तो ये बच्चे छोटे होगें। कुछ डरते भी होगें। पर हम उम्र के साथ जो हिलना मिलना अधिक ही हो जाता है। वह बहुत गहरा में इन बच्चों के ही नहीं पूरे परिवार के ह्रदय में बस गया था। बच्चे तो अकेले हुए पर मैं तो बिलकुल अनाथ ही हो गया। जाति प्रेम भी कुछ होता है। वह मेरा सखा था। हम जोली था। कई महीनों तक में टोनी की मौत को भूल नहीं पाया। मुझे बार—बार भ्रम हो जाये की अभी टोनी आया। अभी वहां बैठा होगा। अभी वह भैया के खिलौने चोरी से छुपा कर कही खेल रहा होगा। और उनमें दाँत गड़ा कर उन्हें फाड़ने की नाकाम कोशिश कर रहा होगा। पर ऐसा था नहीं ये मेरे मन का भ्रम था....। उसके दाँत बहुत मजबूत थे। मेरा प्यारा टोनी मुझे धोखा दे गया।
मौत मेरी तलाश में थी और उसे बेचारे को ले कर चली गई।
भू.... भू..... भू.....
आज मन उदास है।
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