प्रश्न—कुछ धर्म पुनर्जन्म में विश्वास करते है और कुछ नहीं करते। आप अपने बारे में कैसे जान सकते है कि आपने भी जीवन जिया है और पुन: जीएंगे?
ओशो—सिद्धांतों में मेरा विश्वास नहीं हे। मैं एक साधारण आदमी हूं कोई सिद्धांतवादी नहीं। सिद्धांतवादी तो महान विचारक होते है। वह यथार्थ के बारे में कुछ भी नहीं जानते, मगर वह इसके बारे में सिद्धांत गढ़ता रहते है। उसकी पूरा जीवन घूमता ही रहता है। और सत्य, यर्थाथ तो बस केंद्र में ही रह जाता है। किंतु सिद्धांतवादी इधर-उधर की हांकने में माहिर होता है।
जिस क्षण तुम किसी दूसरे पर भरोसा करने लगते हो, तो अपनी व्यक्तिगत खोज बंद कर देते हो। और मैं नहीं चाहूंगा। कि तुम अपनी व्यक्तिगत खोज बंद करों। हजारों वर्ष से व्यक्ति को इसी तरह छला गया और उसका शोषण किया गया है। मैं इस पूरी रणनीति को समूल नष्ट कर देना चाहता हूं। केवल अपने अनुभव पर भरोसा रखो। मैं हां कहूं या न, इससे कोई अंतर नहीं पड़ता। अंतर इस बात से पड़ता है कि तुमने इसका अनुभव किया या नहीं। वहीं निर्णायक होगा। उससे तुम्हारे जीवन में निश्चय ही परिवर्तन आ जाएगा।
तीन धर्म है—यहूदी, ईसाइयत, इसलाम, जिनका पूनर्जन्म के सिद्धांत पर नकारात्मक रूख रहा है। वे कहते है कि यह सच नहीं है। यह एक नकारात्मक विश्वास है। इन तीनों धर्मों के समानांतर—हिंदू, बौद्ध और जैन, तीन धर्म है जिनका सकारात्मक दृष्टिकोण है। वे कहते है, पुनर्जन्म एक वास्तविकता है। किंतु वह भी एक विश्वास है; एक सकारात्मक विश्वास।
मेरी मान्यता तीसरी है, जिसे अभी आजमाया नहीं गया है। मैं कहता हूं, इस सिद्धांत को परिकल्पना मान कर स्वीकार करो, न तो हां कहो और न ना। परिकल्पना मान कर स्वीकार करने का अर्थ है: ‘’मैं इसके बारे में किसी सकारात्मक अथवा नकारात्मक पूर्वाग्रह के बिना इसी जांच-पड़ताल करने के लिए तैयार हूं। मैं इसकी सच्चाई जानने के लिए किसी पूर्व कल्पित विचार के बिना इसकी गहराई में जाऊँगा।
धर्मों ने परिकल्पना शब्द का प्रयोग किया ही नहीं है। तुम या तो विश्वास करे या अविश्वास। अविश्वासी भी विश्वासी होता है। केवल नकारात्मक ढंग से। उनमें कोई गुणात्मक भिन्नता नहीं है। वे एक तरह के लोग है। जब तुम्हारा कोई नकारात्मक विश्वास या कोई सकारात्मक विश्वास होता है, तो तुम्हारे मन ने यह निर्णय कर लिया होता है कि सच्चाई क्या है। इसे मैं अप्रामाणिक, बेईमान कहता हूं। और तुम किसी वस्तु को नकारात्मक अथवा सकारात्मक दृष्टि से स्वीकार कर लेते हो। तो मन की यह क्षमता है कि वह उस तरह का भ्रम पैदा कर देता है।
इसलाम में, ईसाइयों में, यहूदियों में तुम्हें ऐसे बच्चे नहीं मिलेंगे जिन्हें अपने पूर्वजन्म की याद हो। किंतु हिंदू, बौद्ध, और जैन धर्मों में लगभग प्रत्येक दिन कहीं ने कहीं किसी बच्चे को अपने पूर्व जन्मों की याद आती है। लोगों ने यह समझने का प्रयत्न किया है कह उसकी स्मृति में कोई तथ्य होता है या यह मात्र कल्पना होती है। और ऐसे बहुत से मामले मिले है जिनमे तथ्य इसका स्पष्ट रूप से समर्थन करते है।
भारत में तो ऐसा हर दिन होता रहता है—एक स्थान में, दूसरे स्थान में, किसी ने किसी बच्चे को इसकी स्मृति होती है। और हिंदू, जैन और बौद्ध धर्म कोई भी इसकी जांच-पड़ताल नहीं करता। क्योंकि वे इस बात से भयभीत होते है कि उनका सिद्धांत गलत न सिद्ध हो जाये। मगर तुम किसी ईसाई देश में, यहूदी समुदाय में, किसी इस्लामिक भूमि में ऐसा नहीं कर सकते, क्योंकि उन्होंने इस बात को स्वीकार कर लिया है कि इस तरह की चीज पूर्ण रूप से असत्य है।
जहां तक मेरा संबंध है, पुनर्जन्म एक सच्चाई है। यह मेरा अपना अनुभव है। किंतु जो मेरे लिए सत्य है, तुम्हारे लिए वह सिद्धांत हो जाता है। और मैं अपने सत्य को तुम्हारा सिद्धांत नहीं बनाना चाहता। इसीलिए मैंने कहा: ‘’मेरा सिद्धांतों में, विश्वासों से कुछ लेना-देना नहीं है। सत्य मेरा व्यवसाय है।‘’
ओशो
फ्रॉम पर्सनैलिटी टु इंडीवीजुअलटी
प्रश्न--आप पुनर्जन्म की बात करते है। मुझे तो इसका अनुभव नहीं है और जिसका मुझे अनुभव नहीं होता है, ऐसी किसी वस्तु में मैं विश्वास नहीं करना चाहता। मुझे क्या करना चाहिए?
ओशो—पुनर्जन्म में विश्वास करने के लिए तुम्हें कौन कह रहा है? और तुम इसके बारे में कुछ करने के लिए चिंतित क्यों हो? लगता है तुम्हारे भीतर कहीं पडा हुआ विश्वास है। यदि तुम पुनर्जन्म में विश्वास नहीं करते हो तो वही पूर्ण विराम है। कुछ करने की चिंता क्यों करते हो?
पुनर्जन्म में विश्वास मत करो, बस यह जन्म जीओं, और तुम्हें अनुभव होगा कि पुनर्जन्म कोई सिद्धांत नहीं; यह एक सच्चाई है। क्या तुम इस जन्म में विश्वास करते हो। या नहीं करते? पुनर्जन्म या तो अतीत में है अथवा भविष्य में, किंतु तुम यहां हो, जीवित, तुममें जीवन का स्पंदन हो रहा है।
मैं जानता हूं कि पूनर्जन्म सत्य है। किंतु मैं यह नहीं कह रहा हूं कि तुम इसमें इसलिए विश्वास करो क्योंकि मैं ऐसा कह रहा हूं। किसी दूसरे के अनुभव पर कभी विश्वास न करो। यह एक बाधा है। मैं तुम से केवल यही कह सकता हूं कि बस, इसी जन्म को ही जीते रहो। उससे द्वार खुलेगा और तुम पीछे की और देखने में समर्थ हो सकोगे, तुम इसमें इसमे विश्वास करो या न करो। फिर ये तुम्हारे उपर निर्भर है। तब तुम इस पर विश्वास कर सकते हो। या नहीं कर सकते। इसे एक अनुभव बन जाने दो।
सभी धर्म विश्वास पद्धतियों पर ही आधारित होते है। में तुम्हें खोज करने की, संदेह करने की पूर्ण स्वतंत्रता देता हूं क्योंकि तुम्हारे अनुभव-अनुभव लेने का यही एकमात्र तरीका है। स्वयं अनुभव लो। विश्वास करने का कोई महत्व नहीं है।
तुम मुझे प्रेम करते हो। स्वाभाविक ही, यदि मैं कहता हूं कि पुनर्जन्म होता है। वह एक सत्य है। तुम्हारे प्रेम के कारण तुम मुझ पर विश्वास करोगे। तुम कैसे कल्पना कर सकते हो कि मैं तुमसे कुछ झूठ बोलूगा। तुम मुझ पर भरोसा करते हो....ओर इसी भरोसे का लाखों वर्षों से शोषण हो रहा है। प्रत्येक धर्म द्वारा इस प्रेम का शोषण हो रहा है। मैं किसी तरह से शोषण तो नहीं करने जा रहा हूं, जो कुछ भी मुझे ज्ञात है इसके बारे में मैं अपना ह्रदय तुम्हारे सामने खोल सकता हूं, किंतु याद रखो, विश्वास के जाल में न गिरना। प्रेम अच्छा है, भरोसा अच्छा है—किंतु विश्वास जहर है।
मैं चाहता हूं कि तुम जानने वाले बनो। यदि तुम मुझे प्रेम करते हो और मुझ पर भरोसा करते हो, तब तो जांच-पड़ताल करते रहो, खोज-ढूंढ करते रहो। जब तक तुम्हें निष्कर्ष नहीं मिल जाता। कभी विश्वास न करना। मैं यह इतना निश्चय पूर्वक कह सकता हूं क्योंकि में जानता हूं कि यदि तुम जांच पड़ताल करोगे तो तुम्हें यह मिल जाएगा। यह वही है। मेरे एक भी शब्द पर विश्वास न किया जाए। किंतु अनुभव किया जाए। मैं तुम्हें इसका अनुभव लेने की विधि दे रहा हूं, अधिक ध्यानस्थ हो जाओ। पुनर्जन्म और परमात्मा, स्वर्ग-नरक से कोई अंतर नहीं पड़ता। जिससे अंतर पड़ता है, वह तुम्हारा सजग हो जाना है। ध्यान से तुम जाग्रत हो जाते हो। तुम्हें आंखे मिल जाती है। तब तो तुम जो कुछ भी देखते हो, तुम अस्वीकार नहीं कर सकते।
जहां तक मेरा संबंध है, पुनर्जन्म एक सत्य है। क्योंकि आस्तित्व में कुछ भी मरता नहीं। चिकित्सक भी कहेंगे कि कुछ भी मरता नहीं है। तुम हिरोशिमा और नागासाकी को नष्ट कर सकते हो। विज्ञान ने चिंपाजी राजनीतिज्ञों को इतनी शक्ति दे दी है—किंतु तुम पानी की एक बूंद भी नष्ट नहीं कर सकते।
तुम नष्ट नहीं कर सकते हो। चिकित्सक लोग इस असंभावना के प्रति सावधान हो गये है। तुम जो कुछ भी करते हो। केवल रूप परिवर्तित हो जाता है। तुम ओस की एक बूंद मिटा नहीं सकते। और वहां हाइड्रोजन व आक्सीजन है; वे इसके घटक है। तुम हाइड्रोजन व आक्सीजन को नष्ट नी कर सकते हो। यदि तुम प्रयत्न भी करते हो, तो तुम अणुओं से परमाणु तक आ जाते हो। यदि तुम परमाणु को नष्ट करते हो, तो तुम इलेक्ट्रॉन के पास आ जाते हो। हम अभी तक तो नहीं जानते कि हम इलेक्ट्रॉन को भी नष्ट कर सकते है। या तो तुम इसे नष्ट कर सकते ...यह वास्तविकता का चरम वस्तुपरक घटक है। या यदि तुम इसे नष्ट कर सकते हो, तब तो तुम्हें कुछ और मिल जायेगा। किंतु इस वस्तुपरक जगत में कुछ भी नष्ट नहीं हो सकता।
यही जीवन चेतना के, जीवन के जगत के बारे में सत्य है। वहां कोई मृत्यु नहीं है। मृत्यु तो एक आकार से दूसरे आकार में एक परिवर्तन मात्र है। और अंतत: आकार एक प्रकार की कारा है। जब तक तुम आकारहीन नहीं हो जाते, तब तक तुम दुःख, ईर्ष्या, क्रोध, धृणा, लोभ, भय से मुक्त नहीं हो सकते। क्योंकि ये तुम्हारे आकार से संबंधित है। जब तुम आकार हीन हो जाते हो तब हानि पहुंचाने के लिए तुम्हारे पास कुछ नहीं होता। और अब खोने के लिए कुछ भी नहीं है तुम्हारे पास। ऐसा कुछ भी नहीं होता जो तुम्हारे पास बढ़ सके। तुम चरम अनुभूति तक पहूंच जाते हो। वहां कुछ भी नहीं है, मात्र एक होना है।
अस्तित्व प्रत्येक स्तर पर जीवित होता है। कुछ भी मृत नहीं है। एक पत्थर भी...जिसे तुम पूर्ण रूप से मृत समझते हो। वह मृत नहीं है। तुम देख नहीं सकते, किंतु वे सब सजीव होते है। इलैक्ट्रा तुम्हारी तरह ही सजीव होते है। संपूर्ण अस्तित्व जीवन का ही पर्याय होता है। वस्तुएं एक आकार से दूसरे आकार में तब तक परिवर्तित होती रहती है जब तक वे पर्याप्त रूप से परिपक्व नहीं हो जाती। जिससे उन्हें पुन: स्कूल जाने की आवश्यकता नहीं होती। तब वे आकारहीन जीवन की और चलती है; तब वे स्वयं महासागर में एकाकार हो जाती है।
ओशो
फ्रॉम पर्सनैलिटी टू इंडीवीजुअलटी
पिछले जन्मों का क्या महत्व होता है, उसकी क्या उपयोगिता है?
क्या उन्हें याद करना लाभ दायी होगा?
ओशो—इस जन्म का भी तो कोई महत्व नहीं है; और वे बीते हुए जन्म भी एक ही चीज की बार-बार पुनरावृति के आलावा और कुछ नहीं था। उनका क्या महत्व हो सकता है। इस जीवन के स्वप्न को देख लो, तो तुमने वे सारे स्वप्न देख लिए जिन्हें तुमने पहले जीया है। स्वप्नों का कोई महत्व नहीं होता।
पाश्चात्य मनोविश्लेषण का बड़ा आग्रह है कि स्वप्नों का महत्व होता है। पूरब के देशों में, हम कहते है कि स्वप्नों को कोई महत्व नहीं होता। केवल स्वप्न द्रष्टा महत्वपूर्ण है। स्वप्न विषय है, उन्हें देखने वाला तुम्हारी आत्म परकता है। स्वप्न परिवर्तित होते रहे है। स्वप्न द्रष्टा वहीं रहता है। विज्ञान परिवर्तित होता रहता है। किंतु दृष्टा वहीं रहता है। दृष्टा का महत्व है। यही पर पाश्चात्य मनोविज्ञान और पूर्वीय मनोविज्ञान में भेद। पूरब के रहस्यवादी के लिए वे सारे खोल जो मनोविश्लेषण, उनकी शाखाएं वे उनके संस्थापक खेलते है, मात्र पहेली है। मनोविश्लेषण एक सुंदर खेल है। तुम खेलते रह सकते हो, मगर तुम पूर्ण रूप से वही रहते हो।
वास्तविक चीज तो परिवर्तन है, चेतना को स्वप्न से हटा कर स्वप्न द्रष्टा में ले जाना है। पूरे गेस्टाल्ट का परिवर्तन—वस्तु की और नहीं देखना बल्कि देखने वाले को देखना है। तब फिर सब कुछ सपना हो जाता है।
पुनर्जन्म, जन्म, और मृत्यु, अच्छा और बुरा। तुम सम्राट हो या भिखारी, तुम हत्यारे हो या महात्मा—सब कुछ सपना है।
लेकिन एक बात तय है कि सपने के लिए साक्षी की जरूरत नहीं है। साक्षित्व सत्य है। उस साक्षित्व को जान लेना अपने बुद्ध स्वभाव को जान लेना है
ओशो
टेक इट ईजी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें