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रविवार, 22 जनवरी 2012

दि वे ऑफ झेन-(ऐलन वॉटस)-043

दि वे ऑफ झेन-(ऐलन वॉटस)–ओशो की प्रिय पुस्तकें

The Way of Zen-

आध्‍यात्‍मिक अनुभवों का सौंदर्य यह है कि उनके घटने से विश्‍व की और देखने का नजरिया बदल जाता है। विश्‍व एक समस्‍या नहीं रहता। उल्‍टे ऐसा लगता है कि जो भी है बिलकुल ठीक है, इससे अन्‍यथा हो ही नहीं सकता।   
      इस बार ऐलन वॉटस की दो किताबों को एक साथ प्रस्‍तुत कर रहे है। ये दोनों किताबें ओशो ने एक साथ गिनाई है। ऐलन वॉटस ओशो का प्रिय लेखक है। बहुत कम लेखक है जिनकी शख्‍सियत ओशो को प्रसंद आती है। और ऐलन वॉटस उनमें से एक है। आम तौर पर लेखक और उनकी रचना में जमीन आसमान का फर्क होता है। लेकिन ऐलन वॉटस उसका अपवाद है।

      ‘’दि इज़ इट’’ ऐलन वॉटस के अनुभवों से उपजे हुए लेखों का संकलन है। इन लेखों से जाहिर होता है कि वह केवल विचारक या दार्शनिक नहीं वरन खोजी भी है। उसका कंठ पानी पीने के लिए प्‍यासा है, उसे पानी की बौद्धिक चर्चा नहीं करनी। पहले पृष्‍ठ पर ही ये पंक्‍तियां है: झेन और आध्‍यात्‍मिक अनुभव पर एक निबंध’’ किताब 1961 में प्रकाशित हई है। उसके आमुख में ऐलन वॉटस ने जो वर्णन किया है उससे इन निबंधों की प्रकृति समझ में आती है। 

‘’पहले चार वर्षो के आध्‍यात्‍मिक और रहस्‍यपूर्ण अनुभव और साधारण भौतिक जीवन से उनका संबंध।‘’ और ध्‍यान रहे, इन निबंधों का पूरा उद्देश्‍य यह है कि भौतिक और आध्‍यात्‍मिक, विशिष्‍ट और साधारण, इनके बीच हमने जो खाई बनाई है उसे मिटा दिया जाए। हमारे विचार और वक्‍तव्‍यों की आदतें ऐसी बन गई है कि हम इन दो लोको को अलग करते है। और यह नहीं मानते कि जो सामान्‍य है, अभी है, रोजमर्रा का है वही परम है, आत्‍यंतिक है।‘’
      ऐलन वॉटस की दृष्‍टि बहुमूल्‍य है जो उसे झेन के अध्‍ययन से मिली है। गहन आध्‍यात्‍मिक अनुभवों का अर्थ यह नहीं है कि हम संसार से मुंह मोड़ लें, उल्‍टे उन अनुभवों का आनंद ही दूसरों को बांटने में है। लेकिन यह बांटना किसी शिक्षक या उपदेशक की भांति नहीं वरन कुछ ऐसा है जैसे हम स्‍नान करते हुए गुनगुनाते है या सागर में उतर कर लहरों के साथ खेलते है।
      ‘’आध्‍यात्‍मिक अनुभवों का सौंदर्य यह है कि उनके घटने से विश्‍व की और देखने का नजरिया बदल जाता है। विश्‍व एक समस्‍या नहीं रहती उल्‍टे ऐसा लगता है कि जो भी है बिलकुल ठीक है, इससे अन्‍यथा हो ही नहीं सकता।‘’
      ‘’आध्‍यात्‍मिक अनुभव का केंद्र है यह अंतर्दृष्‍टि का जन्‍मना कि जो अभी है, यहीं है वही सभी जीवों का अंतिम लक्ष्‍य है। इस अंतर्दृष्‍टि को घेरे हुए और इससे बहती हुई एक भावनाओं की मस्‍ती होती है, एक तीव्र राहत, मुक्‍ति, निर्भारता और विश्‍व के प्रति एक असहनीय प्रेम का झरना फूट पड़ता है—लेकिन वह गौण है।
      अपने अनुभवों की पुष्‍टि की खातिर ऐलन वॉटस ने जगह-जगह उन लोगों के वक्‍तव्‍य उद्धत किये है जिन्‍हें ऐसे अनुभव हुए है। ध्‍यान के अनुभव तो नि: शब्द गहराइयों में होते है लेकिन वे जब भाव के तल पर उतरते है तो प्रतीकों के वस्‍त्र पहन लेते है। उनके बगैर निर्वस्‍त्र अनुभव को कहना असंभव है। उदाहरण के लिए बर्नार्ड ब्रैन्सन का एक वक्‍तव्‍य पढ़ें-
‘’वि ग्रीष्‍म की सुबह। नींबू के वृक्षों पर एक रूपहली पर्त झिलमिला रही थी। थिरक रही थी। वातास उन वृक्षों की सुगंध से बोझिल था। तापमान ऐसा कि मानों सहला रहा था। मुझे याद हे—मुझे स्‍मरण करने की जरूरत नहीं है—कि में एक वृक्ष के ठूंठ पर चढ़ा और अकस्‍मात ‘’उसमें’’ डूब गया। मैंने इसे कोई नाम नहीं दिया। मुझे शब्‍दों की कोई जरूरत नहीं थी। ‘’वह’’ और मैं एक थे।
      ऐसे कतिपय अनुभवों को प्रस्‍तुत कर ऐलन वॉटस लिखता है कि सामान्‍य जीवन में सोमवार की सुबह जब हम काम करने जाते है और संसार को जिन आंखों से देखते है वह हमारे सामाजिक संस्‍कारों के अलावा कुछ नहीं है।
      ऐलन वॉटस के आकस्मिक अनुभवों का विवरण पढ़ना बड़ा ही सुगंधित मालूम होता है। दूसरा अनुभव उसे तब हुआ जब वह भारतीय और चीनी दर्शन को पढ़ रहा था--
      ‘’एक रात आग के पास बैठा हुआ मैं ‘’ध्‍यान के लिए सही मनोदशा क्‍या हो’’ इसका चिंतन कर रहा था। हिंदू और बौद्ध पद्धतियों के अनुसार बहुत सी विभिन्‍न मन:स्‍थितियां हो सकती है। उसके बारे में सोचते-सोचते मैं इतना परेशान हो गया कि मैंने सोचना बंद कर उस सभी पद्धतियों को परे कर दिया। और तय किया कि मैं एक भी मनोदशा को नहीं अपना उगा। उन्‍हें एक साथ छोड़ने के प्रयास में मैंने अपने आपको भी हटा दिया। और अचानक मेरे शरीर का बोझ गायब हो गया। मुझे लगा मेरा कुछ नहीं है। आत्‍मा भी नहीं। और मैं किसी का नहीं हूं। पूरा विश्‍व किसी अवरोध के पारदर्शी नजर आने लगा। ठीक ऐसा जैसा इस क्षण मेरा मन था। जीवन की समस्‍या नि: शेष हो गई और लगभग अठारह घंटे तक मैं स्‍वयं और मेरा परिवेश ऐसा प्रतीत होता रहा। जैसे पतझड़ के किसी दिन हवा पत्‍तों को खेत में सब तरफ उड़ा रही है।‘’
      ऐलन वॉटस के ये पारदर्शी अनुभव जब शब्‍दों में प्रवाहित होते है तो उसकी कलम रस से सराबोर हो जाती है और उससे सत्‍य की चिनगारियां प्रस्फुटित होने लगती है। जैसे--
      ‘’ मनुष्‍य के उद्देश्‍य और लक्ष्‍य एक विराट वर्तुलाकार विश्‍व के भीतर पाये जाते है। जिसका अपना कोई लक्ष्‍य नहीं है। प्रकृति एक खेल है, उसका कोई उद्देश्‍य नहीं है। और यह संभावना कि भविष्‍य में उसका कोई उदेश्‍य नहीं, और यह संभावना कि भविष्‍य में उसका कोई लक्ष्‍य नहीं है उसकी कोई खामी नहीं है। उल्‍टे प्रकृति की जो भी प्रक्रियाएं है जिन्‍हें हम आसपास के जगत में और हमारे शरीर की अनैच्‍छिक क्रियाओं में देखते है वे कला की मानिंद है, उद्योग, राजनीति या धर्म की तरह नहीं। वे संगीत और नृत्‍य कला जैसी है जो अपने आप ही खिलती जाती है। उनमें कोई भविष्‍य का लक्ष्‍य नहीं होता संगीत का लक्ष्‍य प्रतिपल उसे बजाने और उसे प्रतिपल सुनने में है, हमारे अधिकांश जीवन के संबंध में यहीं सच है। यदि हम अकारण उसे सुधारने में लग जाते है तो उसे जीना भूल जाते है। जिस संगीतज्ञ का लक्ष्‍य सिर्फ इतना ही है कि उसका यह कार्यक्रम पहले वाले से बेहतर हो, तो वह अपने खुद के संगीत में सहभागी होने से और उसका आनंद लेने से वंचित रह जायेगा। उसका पूरा ध्‍यान अपनी तकनीक की प्रवीणता दिखाकर श्रोताओं को प्रभावित करने में लगा रहेगा।‘’
      पहले निबंध के बाद अन्‍य दो निबंध मुख्‍यत: झेन के मौलिक विश्‍लेषण जैसे है। ‘’झेन एंड दि प्रॉब्‍लम ऑफ कंट्रोल’’ और बीट झेन, स्‍कवेअर झेन, झेन।‘’ अपने दूसरे निबंध के कारण ऐलन वॉटस अच्‍छी तरह से जानता है कि झेन का विशेषज्ञ कहलाने लगा। ऐलन वॉटस अच्‍छी तरह से जानता है कि झेन चीन प्रज्ञा की उपज है। और पश्‍चिम के तर्क निष्ठ मनस के लिये इसे समझना टेढ़ी खीर है। ताओ की अंत दृष्टि बुद्धि के लिए बेबूझ है। लाओत्से और च्‍वांत्‍सु कहते है, ‘’जब तक आप गलत नहीं होते तब तक सही नहीं हो सकते क्‍योंकि सही और गलत एक सिक्‍के के दो पहलु है। उन्‍हें अलग नहीं किया जा सकता।
      फिर भी यूरोप और अमेरिका में झेन की लोकप्रियता बढ़ती चली गई है। ऐलन वाटस के देखे इसका कारण है, झेन नैतिकता का उपदेश नहीं देता, या ईसाई और यहूदी पैगंबरों के अंदाज में लोगों को डाँटता फटकारता नहीं। और झेन के जो प्रबुद्ध गुरु है वे बौद्ध या हिंदू अवतारों की तरह असाधारण नहीं है। वे आम आदमी की तरह जीते है, लेकिन इस असुरक्षित और क्षणजीवी विश्‍व के समुंदर में बड़ी आसानी से तैरते है।
      एलन वॉटस की प्रज्ञा निरंतर मानव जीवन की दुई को मिटाने का प्रयास करती है। यह पूछता है कि रात को विराट आसमान में जब हम तारे और नक्षत्रों का जाल देखकर अवाक हो जाते है तो हमारे मन में यह भाव नहीं उठता कि ये तारे यही है और वो गलत। इसी तरह जीवन में भी सही और गलत के पार एक स्‍थिति होती है जहां से रोज का जीवन जिया जा सकता है। हम जितना अपने भीतर जाते है उतना पाते है की ‘’मैं नहीं हूं’’ लेकिन फिर भी यही मेरा केंद्र है।
      किताब के अंतिम निबंध ‘’दि न्‍यू अल्केमी’’ में नशीले पदार्थों द्वारा आध्‍यात्‍मिक अनुभव उत्‍पन्‍न करने के विषय में चर्चा की गई है। ऐलन वॉटस ने कुछ पदार्थों का सेवन भी किया था। उसके बाद उसे जो अतींद्रिय अनुभव हुए उन्‍हें वह ‘’बोतल में बंद आध्‍यात्‍मिक अनुभव’’ कहता है। यद्यपि उनमें आरे आध्‍यात्‍मिक अनुभवों में थोड़ी समानता है, वह उनके पक्ष में नहीं है, क्‍योंकि वे चेतना के विकास के द्वारा नहीं होते। कृत्रिम रसायनों द्वारा होते है। और स्‍वास्‍थ्‍य के लिए निश्‍चित रूपेण हानिकारक है।
     
दि वे ऑफ झेन--
      चीन और जापन में झेन बुद्धिज्‍़म का उदय और विकास हुआ। दूसरे विश्‍व युद्ध के बाद पाश्‍चात्‍य देश जापान की और आकर्षित हुए और झेन धीरे-धीरे अमेरिका में फैलता चला गया। झेन का इतिहास और दर्शन इस किताब में बड़े सरल और सुगम तरीके से समझाया गया है। ऐलन वॉटस स्‍वयं अंग्रेज था और अमरीका में रहा लेकिन उसे जो आध्‍यात्‍मिक अनुभवों की झलकें आती थी उनके कारण वह पूर्वीय दर्शनों का मर्म समझ सकता था। वह समझ इस किताब में प्रतिफलित होती है। इस किताब के दो भाग है—पहला है झेन की पृष्‍ठभूमि और इतिहास, और दूसरा झेन के सिद्धांत और आचरण। इस किताब को लिखने के लिए ऐलन वॉटस ने झेन पर लिखी हुई सारी अंग्रेजी किताबों को तो पढ़ा ही, और साथ में चीन के पुराने रिकार्डो को भी देखा। क्‍योंकि उसका मानना है कि झेन चीनी प्रज्ञा के अधिक करीब है बजाएं जापान के। झेन की जो गहराई है उसका स्‍त्रोत चीन है। जापान उथला है और बहुत कुछ अमरीकी संस्‍कृति जैसा है।
      पहले भाग में ताओ दर्शन और झेन बुद्धिज़्म के विकास का वर्णन है क्‍योंकि झेन ताओ से उपजा है। किताब के प्रारंभ में ऐलन वॉटस ने झेन बुद्धिज़्म का वर्णन इन शब्‍दों में किया है।
      ‘’झेन बुद्धिज़्म जीवन की एक शैली और मार्ग है जो किसी भी आधुनिक पाश्‍चात्‍य विचार में सम्‍मिलित नहीं हो सकता। वह न तो धर्म है और न दर्शन, यह न मनोविज्ञान है न विज्ञान की कोई शाखा। चीन और भारत में जिसे मोक्ष का मार्ग कहते है, वह इसका उदाहरण है। और इसीलिए वह ताओ वाद, वेदांत और योग से मिलता-झूलता है। मोक्ष मार्ग की सकारात्‍मक परिभाषा नहीं हो सकती। उसे ऐसे कहा जा सकता है कि वह नहीं है—ठीक ऐसे ही जैसे शिल्‍पकार पत्‍थर के टुकड़े हटाकर मूर्ति को खोदता है।‘’
      झेन ताओ से अधिक जुड़ा है क्‍योंकि बौद्ध मत जब पैदा हुआ तब ताओ वाद दो हजार साल पुराना हो चुका था। और विशाल वृक्ष की भांति फैल गया था। और इस प्रचीन चीनी प्रज्ञा प्रवाह में बौद्ध मत की नई धारा शामिल हुई। ताओ ने उसे आत्‍मसात कर लिया। इसीलिए ताओ वाद की गहनता, रहस्‍यवाद, विरोधाभास, सरलता और सहजता झेन बुद्धिज़्म के रक्‍त मांस मज्‍जा बने। और इसीलिए झेन कभी धर्म या संप्रदाय नहीं बन पाया। उसका संगठन नहीं बना, वह जीवन शैली ही बना रहा। और पश्‍चिम को इसी बात ने आकर्षित किया। पश्‍चिम के लोग संगठित धर्म, नैतिकता, उपदेश, पाप-पूण्‍य, चर्च इनसे ऊबे हुए थे। उन्‍हें झेन की पर्वतों से आयी हुई हवा की ताजी लहर बहुत भायी।
      झेन का अपना अनूठा स्‍वाद है, सुगंध है। माना कि उसका स्‍त्रोत बुद्धिज़्म है फिर भी वह उससे बिलकुल अलग हो गया। पहले तो चीन में जाकर वह ताओ वाद के रंग में रंग गया और बाद में जापान में जाकर उसकी शक्‍ल पूरी ही बदल गई, इतनी की उसे बौद्ध प्रवाह की एक धारा कहना भी मुश्‍किल मालूम होता है। न कोई क्रिया कांड, न संप्रदाय, न ध्‍यान की विधियां। न व्रत या जप-तप। झेन, बुद्धत्‍व के साथ सीधा संस्‍पर्श है। बौद्ध मत में बोधि या जागरण अत्‍यंत कठिन, अति मानवीय है। झेन में अगर कोई कठिनाई है तो वह है—वह बहुत सीधा-सादा है।
      झेन के उदय और विकास का इतिहास लिखने के बाद किताब के दूसरे भाग में प्रत्‍यक्ष झेन बताया गया है। झेन के विषय में ऐलन वॉटस की समझ सचमुच बहुत गहरी है। उसने लिखा है कि झेन का बेबूझ विरोधाभाष समझ में आये इसके लिए सापेक्षता को समझना जरूरी है। दो विपरीत ध्रुवों के बीच जो संबंध है, वह है झेन। जैसे, सफल होने का मतलब है असफल होना; इन अर्थों में कि व्‍यक्‍ति जितना सफल होता है उतना उसकी सदा सफल होने की भूख बढ़ती जाती है।  खाने का मतलब है, भूखा होने के लिए जीवित रहना।
      झेन गुरूओं का अतार्किक भाषण बुद्धिजीवी मस्‍तिष्‍क को एक चक्‍कर में डाल देता है। ऐसे अनेक गुरु शिष्‍य संवाद कहानियों के रूप में यहां प्रस्‍तुत किये गये है। झेन का अजीबोगरीब चेहरा इन कहानियो में जितना प्रकट होता है उतना और कहीं भी नहीं होता। मसलन,
      एक बार मात्‍सु और पो चांग सैर करने गये थे। तभी उन्‍होंने जंगली बत्‍तखों को ऊपर उड़ते हुए देखा।
      मात्सु ने पूछा: ‘’वे क्‍या है?’’
      ‘’जंगली बत्‍तख, ‘’पो-चांग ने कहां।‘’
      पो-चांग ने कहा, ‘’वे तो उड़ गये।‘’
      मात्सु ने पो-चांग की नाक को मरोड़ दिया।
पो-चांग पीड़ा से चीख उठा।
      ‘’वे ऐसे कैसे उड़ गये?’’ मात्‍झ़ु चिल्लाया।
      वह पो-चांग को जगाने का क्षण था।
      अंतिम दो परिच्‍छेदों में झेन के अन्‍य अंग जैसे झा झेन, कुआन (पहेली) और कला के संबंध में खुबसूरत विवरण है। वह वाकई अपने आप में एक कुआन है कि बाहर से इतनी रूखी-सूखी प्रतीत होनेवाली झेन शैली ने एक से एक नाजुम और नफीस कला को जन्‍म दिया। चित्रकला, हाइकु, चाय समारोह, बग़ीचे, ये सब झेन के स्‍त्रैण अंग कहे जा सकते है।
      झेन का सार क्‍या है? ऐलन वॉटस बहुत कुशल चित्रकार की तरह इन वाक्‍यों में झेन का सारांश चित्रित करता है—‘’झेन का कोई लक्ष्‍य नहीं है। वह एक यात्रा है जिसका कोई गंतव्‍य नहीं है। यात्रा करना जीवंतता का प्रतीक है लेकिन कहीं पहुंचना मृत्‍यु है। यह आधुनिक संसार जिसमे मंज़िलें ही मंज़िलें है और उनके बीच कोई यात्रा नहीं, यह जगत जिसमे कहीं पहुंचने की ही कीमत है, तेज से तेज रफ्तार से इस जगत में कोई सार नहीं।
      ये शब्‍द ऐलन वॉटस ने आज से 45 वर्ष पहले लिखे थे। और आज हम इसी नि: सार जगत में जी रहे है। सभी लोग कही न कहीं पहुँचना चाहते है। यात्रा में किसी को रस नहीं है। इस खोखले, तनावपूर्ण विश्‍व में क्‍या झेन ही एकमात्र आशा नहीं है?

ओशो का नज़रिया--
      मैं एक आदमी को, उसकी सभी किताबों के साथ सम्‍मिलित करना चाहता हूं। उसका नाम है ऐलन वॉटस1 मैंने इस आदमी से बेहद प्रेम किया है। मैंने बुद्ध से प्रेम किया है किन्‍हीं और कारणों से। मैंने सोलोमन से प्रेम किया और कारणों से। वे प्रबुद्ध थे। ऐलन वॉटस नहीं है। वह अमरीकी है....पैदाइशी नहीं, वह उसकी एकमात्र आशा है। वह सिर्फ वहां रहने गया। लेकिन उसने बहुत कीमती किताबें लिखी। ‘’दि वे ऑफ झेन’’ को अत्‍यंत महत्‍व पूर्ण किताबों में शामिल करना चाहिए।
      ‘’दिस इज़ इट’’ बहुमूल्‍य खूबसूरत रचना है। जिसमे उसकी समझ दिखाई देती है। और ये ऐसे आदमी ने लिखी है जो अभी जागा नहीं है। इसलिए सह और भी प्रशंसा योग्‍य है।
      जब तुम जाग जाते हो तब तुम जो भी करते हो वह सुंदर होता है। होना ही चाहिए। लेकिन जब तुम प्रबुद्ध नहीं हो, अंधेरे में टटोल रहे हो, और फिर भी अगर प्रकाश का एक छोटा सा झरोखा खोज लेते हो तो वह बहुत बड़ी बात है। अद्भुत है। ऐलन वॉटस शराबी था लेकिन बुद्धत्‍व के बहुत करीब था।
      एक समय ऐसा थ जब वह दीक्षित ईसाई पादरी था—कैसा दुर्भाग्‍य। लेकिन उसने उसका त्‍याग कर दिया। धर्मगुरू का पद छोड़ने का साहस बहुत कम लोगों में होता है। क्‍योंकि उसके साथ संसार की बहुत सी सुविधाएँ मिलती हे। उसने वह सब कुछ छोड़ दिया और साधारण हो गया। वह मुझे बोधिधर्म, बाशो और रिंझाई की याद दिलाता है।
      ऐलन वॉटस बुद्ध हुए बगैर बहुत दिन नहीं रह सकता। वह अब मर चूका है....लेकिन मेरे पास आने के लिए तैयार हो रहा होगा। मैं इन सब लोगों की प्रतीक्षा कर रहा हूं। ऐलन वॉटस उनमें से एक है।
ओशो
बुक्‍स आय हैव लव्‍ड

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