प्रश्न—क्या हम अपने अतीत के जन्मों को जान सकते है?
ओशो—निश्चित ही जान सकते है। लेकिन अभी तो आप इस जन्म को भी नहीं जानते है, अतीत के जन्मों को जानना तो फिर बहुत कठिन है। निश्चित ही मनुष्य जान सकता है। अपने पिछले जन्मों को। क्योंकि जो भी एक बार चित पर स्मृति बन गई है, वह नष्ट नहीं होती। वह हमारे चित के गहरे तलों में अनकांशस हिस्सों में सदा मौजूद रहती है। हम जो भी जान लेते है कभी नहीं भूलते।
अगर मैं आपसे पुछूं कि उन्नीस सौ पचास में एक जनवरी को आपने क्या किया था? तो शायद आप कुछ भी न बता सके, आपको कुछ भी याद न हो। आप कहेंगे की मुझे तो कुछ भी याद नहीं है? एक जनवरी उन्नीस सौ पचास, कुछ भी ख्याल में नहीं आता।
लेकिन अगर आपको सम्मोहित किया जा सके, हिप्रोटाइज किया जा सकें—और सरलता से किया जा सकता है—और आपको बेहोश करके पूछा जाए कि एक जनवरी उन्नीस सौ पचास में अपने क्या किया? तो आप सुबह से सांझ तक का ब्यौरा इस तरह सक बता देंगे जैसे अभी वह एक जनवरी आपके सामने से गुजर रही है। आप यह भी बता देंगे कि एक जनवरी को सुबह जो मैंने चाय पी थी उसमे थोड़ी शक्कर कम थी। आप यह भी बता देंगे की जिस आदमी ने मुझे चाय दि थी, उस आदमी के शरीर से पसीने की बदबू आ रही थी। आप इतनी छोटी बातें बता देंगे कि जो जूता मैंने पहने हुए था वह मेरे पेर में काट रहा था।
सम्मोहित अवस्था में आपके भीतर की स्मृति को बहार लाया जा सकता है। मैंने उस दिशा में बहुत से प्रयोग किये है। इसलिए आपसे कहता हूं। और जिस मित्र को भी इच्छा हो अपने पिछले जन्मों में जाने की, उसे ले जाया जा सकता है।
लेकिन पहले उसे इसी जन्म में पीछे लौटना पड़ेगा। इस जन्म की ही स्मृतियों में पीछे लौटना पड़ेगा। वहां तक पीछे लौटना पड़ेगा, जहां वह मां के पेट में कंसीव हुआ। गर्भ-धारण हुआ। और बाद में फिर दूसरे जन्मों की स्मृतियों में प्रवेश किया जा सकता है।
लेकिन ध्यान प रहे, प्रकृति ने पिछले जन्मों की व्यवस्था आकारण नहीं कर रखी है। कारण बहुत महत्व पूर्ण है। और पिछला जन्म तो दूर है, अगर आपको इस महीने की भी सारी बातें याद रह जाये, तो आप पागल हो जायेंगे। एक दिन की भी अगर सुबह से सांझ तक की सारी बातें याद रह जाएं तो आप जिंदा नहीं रह सकते।
तो प्रकृति की सारी व्यवस्था यह है कि आपका मन कितने तनाव झेल सकता है। उतनी ही स्मृति आपके भी तर शेष रहने दी जाती है। शेष अंधेरे गर्त में डाल दि जाती है। जैसे घर में कबाड़-घर होता है। डालकर दरवाजा बंद कर दिया है। वैसे ही स्मृति का एक कलेक्टिव हाऊस है, एक अनकांशस घर है, एक अचेतन घर है, जहां स्मृति में जो बेकार होता है, जिसे चित में रखने की कोई जरूरत नहीं है, वह सब संग्रहीत होता रहता है। लेकिन अगर कोई आदमी अनजाने , बिना समझे हुए उस घर में प्रविष्ट हो जाए तो तत्क्षण पागल हो जाएगा। इतनी ज्यादा है वे स्मृतियां।
एक महिला मेरे पास प्रयोग करती थी। उनको बहुत इच्छा थी कि वे पिछले जन्मों को जानें। मैंने उन्हें कहा कि यह हो सकता है। लेकिन आगे की जिम्मेवारी समझ लेनी चाहिए। क्योंकि हो सकता है पिछले जन्म को जानने से आप बहुत चिंतित हो जाए। और अधिक परेशान हो जाएं। उन्होंने कहा कि नहीं, ‘’मैं क्यों परेशान होऊंगी? पिछला जन्म तो हो चुका है, अब क्या फिक्र की बात।
उन्होंने प्रयोग शुरू किया। वे एक कालेज में प्रोफेसर थी। बुद्धिमान थी, समझदार थी, हिम्मतवर थी। उन्होंने प्रयोग शुरू किया। और जिस भांति मैंने कहा, उन्होंने गहरे से गहरे मेडिटेशन किए। गहरे से गहरा ध्यान किया। धीरे-धीरे स्मृति के नीचे की पर्तों को उघाड़ना शुरू किया। और एक दिन जिस दिन पहली बार उन्हें पिछले जन्म में प्रवेश मिला, वे भागती हुई मेरे पास आई, उसके हाथ पैर कांप रहे थे। आँख से आंसू बह रहे थे। वे एकदम छाती पीटकर रोने लगी और कहने लगी कि मैं भूलना चाहती हूं उस बात को जो मुझे याद आ रही है। मैं पिछले में अब आगे नहीं जाना चाहती।
मैंने कहा, अब मुश्किल है, जो याद आ गई उसे भूलने में फिर बहुत वक्त लग जायेगा। लेकिन इतनी घबराहट क्यों?
उन्होंने कहां, कि नहीं-नहीं, मत पूछिये, मैं तो सोचती थी कि मैं बहुत पवित्र हूं, बहुत सच्चरित्र हूं, लेकिन पिछले जन्म में एक मंदिर में वेश्या थी। दक्षिण के। मैं देवदासी थी। और मैंने हजारों पुरूषों के साथ संभोग किया। मैंने अपने शरीर को बेचा। नहीं, मैं उसे भूलना चाहती हूं, मैं उसे एक क्षण भी याद नहीं करना चाहती हूं।
पिछले जन्म में जाया जा सकता है। और जिसकी भी मर्जी हो, उसके रास्ते है। मैथिोलिजी है। महावीर और बुद्ध दोनों मनुष्य को ये मनुष्य जाती को अद्भुत दान दिया है। वह उनकी अहिंसा-वहिंसा का सिद्धांत नहीं है। वह सबसे बड़ा दान है जाति-स्मरण का सिद्धांत। वह है पिछले जन्मों की स्मृति में उतने की कला। महावीर और बुद्ध दोनों ही पहले आदमी है पृथ्वी पर, जिन्होंने प्रत्येक साधक के लिए यह कहा कि तब तक तुम आत्मा से परिचित नहीं हो सकते, जब तक कि तुम पिछले जन्म में न जा सको। और प्रत्येक साधक ने पिछले जन्म में जाने की फर्क की।
और एक बार कोई आदमी अपने पिछले जन्मों की स्मृतियों में जाने की हिम्मत जुटा ले, वह दूसरा आदमी हो जाएगा। क्योंकि उसे पता चलेगा कि जिन बातों को मैं हजारों बार कर चूकि हुं, उन्हीं बातों को बार-बार कर रहा हूं। कैसा पागल हूं। कितनी बार मैंने संपति इकट्ठी की। कितनी बार मैंने करोड़ों के अंबार लगाये। कितनी बार मैं महल खड़े कर चूका हूं, कितनी बार इज्जत और शान और पद और सिंहासनों पर बैठा हूं। कितनी बार कितनी अंनत बार, और फिर बार-बार मैं वहीं सब कर रहा हूं। और हर बार यह यात्रा असफल होती है। तत्क्षण उसके पदों का मोह भंग हो जायेगा। वह आदमी जानेगा मैंने हजारों-हजार बार कितनी स्त्रियों को भोगा है, स्त्री जानेगी कि मैंने हजारों पुरूषों को भोगा है। और कहीं किसी पुरूष से तृप्ति नहीं मिली। और न किसी स्त्री से ही तृप्ति मिली। और अब भी मैं यह सोच रहा हूं कि इस स्त्री को भोगूं। उस स्त्री को भोगूं। यह सब करोड़ो बार दोहराया जा चूका है....जो एक थका देनेवाली अंतहीन यात्रा हे।
एक बार स्मरण आ जाए इसका तो फिर यह दोबारा नहीं हो सकता। क्योंकि इतनी बार जब हम कर चुके हों ओर कोई फल न पाया हो, तो फिर आगे उसे दोहराए जाने का कोई उपाय नहीं है। कोई अर्थ नहीं है। बुद्ध और महावीर दोनों ने जाति-स्मरण के गहरे प्रयोग किए—स्मृति के, अतीत जन्मों की स्मृति के। और जो साधक एक बार उस स्मृति से गुजर गया। वह आदमी दूसरा हो गया। ट्रांसफार्म हो गया, बदल गया।
ओशो
मैं मृत्यु सिखाता हूं,
प्रवचन—2
(संस्करण-1995)
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