लिसन-लिटल मैन—विलहम रेक
ओशो की प्रिय पुस्तकें
ऑर्गोन इंस्टिट्यूट की आर्काइव्ज का एक दस्तावेज ‘’लिसन लिटल मैन’’ एक मानवीय पुस्तक है, वैज्ञानिक नहीं। यह ऑर्गोन इंस्टिट्यूट के आर्काइव्ज के लिए 1945 की गर्मी में लिखी गई थी। इसे प्रकाशित करने का कोई इरादा नहीं था। यह एक (Natural scientist) प्राकृतिक वैज्ञानिक और चिकित्सक के अंतर्द्वंद्व और आंतरिक आंधी तूफ़ानों का परिमाण है। इस वैज्ञानिक ने बरसों तक पहले भोलेपन से, फिर आश्चर्य से और अंतत: भय से देखा है कि सड़क पर जानेवाला छोटा आदमी अपने साथ क्या करता है। कैसे वह दुःख झेलता है। और विद्रोह करता है; कैसे वह अपनी दुश्मनों को सम्मान करकता है और दोस्तों की हत्या करता है। कैसे जब भी उसे लोक प्रतिनिधि बनने की ताकत मिलती है वह इस ताकत का गलत उपयोग कर उससे क्रूरता ही पैदा करता है। इससे पहले उच्च वर्ग के पर पीड़कों ने उसके साथ जो किया है। उससे यह क्रूरता अधिक भंयकर होती है।
ओशो की प्रिय पुस्तकें
ऑर्गोन इंस्टिट्यूट की आर्काइव्ज का एक दस्तावेज ‘’लिसन लिटल मैन’’ एक मानवीय पुस्तक है, वैज्ञानिक नहीं। यह ऑर्गोन इंस्टिट्यूट के आर्काइव्ज के लिए 1945 की गर्मी में लिखी गई थी। इसे प्रकाशित करने का कोई इरादा नहीं था। यह एक (Natural scientist) प्राकृतिक वैज्ञानिक और चिकित्सक के अंतर्द्वंद्व और आंतरिक आंधी तूफ़ानों का परिमाण है। इस वैज्ञानिक ने बरसों तक पहले भोलेपन से, फिर आश्चर्य से और अंतत: भय से देखा है कि सड़क पर जानेवाला छोटा आदमी अपने साथ क्या करता है। कैसे वह दुःख झेलता है। और विद्रोह करता है; कैसे वह अपनी दुश्मनों को सम्मान करकता है और दोस्तों की हत्या करता है। कैसे जब भी उसे लोक प्रतिनिधि बनने की ताकत मिलती है वह इस ताकत का गलत उपयोग कर उससे क्रूरता ही पैदा करता है। इससे पहले उच्च वर्ग के पर पीड़कों ने उसके साथ जो किया है। उससे यह क्रूरता अधिक भंयकर होती है।
‘’लिटल मैन’’ के साथ यह बातचीत अपने बारे में फैलायी गई अफ़वाहों और बदनामी के लिए दिया गया विलहेम रेक का खामोश जवाब था। वर्षों से, ‘’भावनात्मक प्लेग’’ ने ऑर्गोन रिसर्च को कुचल डाने का प्रयास किया है—उसे गलत सिद्ध करके नहीं, उसकी बदनाम करके। दुर्भाग्य से वह लेखक को ही मारने में सफल हुआ। लेकिन लेखक का काम अभी भी स्थापित वैज्ञानिकों और
सामाजिक संस्थानों को चुनौती दे रहा है। ऑर्गोन रिसर्च पर मानव जीवन और स्वास्थ्य की बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। इसे ध्यान से रखते हुए इस ऐतिहासिक वार्तालाप को प्रकाशित किया गया है।
सामाजिक संस्थानों को चुनौती दे रहा है। ऑर्गोन रिसर्च पर मानव जीवन और स्वास्थ्य की बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। इसे ध्यान से रखते हुए इस ऐतिहासिक वार्तालाप को प्रकाशित किया गया है।
सन 1947 में इस दस्तावेज को प्रकाशित करने का निर्णय लिया गया। उससे पहले किसी को यह ख्याल भी नहीं था कि कोई सरकारी एजेंसी राजनैतिक और मनोविश्लेषकों के साथ सांठ-गांठ करके ऑर्गोन रिसर्च पर जबर्दस्त आक्रमण करेगी।
इस भाषण का यह मतलब है कि कोई इसे अपने जीने का ढंग बनाये। किसी भी रचनात्मक, प्रसन्न व्यक्ति के जीवन में जो आंधी-तूफान आते है उनका यह वर्णन है। वह किसी को जीतना या स्वयं के साथ राज़ी करवाना नहीं चाहता। इसमे अनुभव को उस तरह चित्रित करता है। जरूरी नहीं है कि पाठक इसे समझे। यह इसे पढ़े या न पढ़े इसमे कोई उदेश्य या कार्यक्रम नहीं है। इसकी एक ही इच्छा है कि खोजी या विचारक को प्रतिक्रिया करने का वही हक मिले जो कवि या दार्शनिक को मिलता है। यह निषेध है। भावनात्मक प्लेग है, गुप्त और अंजान इरादों के खिलाफ यह प्लेग मेहनती अन्वेषकों की और विषैले तीर फेंकता है। सुरक्षित स्थानों में छुपकर। भावनात्मक प्लेग क्या है। कैसे काम करता है। और प्रगति को रोकता है। यह दर्शाना इसका प्रयोजन है। मनुष्य की प्रकृति की गहराइयों में अपरिसीम खजानें है जिनकी खुदाई नहीं हुई है, उनमें विश्वास जगाना है और उन्हें मनुष्य की आशाओं की सेवा में लगाना है।
इस अद्भुत किताब की खोज मेरे लिए लगभग उतनी ही दूभर और रोमांचकारी थी जितनी कि स्वयं विलहेम रेक लिए उसकी अपनी खोज रही होगी। जब से इस किताब के बारे में ओशो का वक्तव्य पढ़ा, मैं इसे पाने के लिए बेचैन हो उठा। ओशो कहते है; ‘’मेरा हर संन्यासी इस किताब पर ध्यान करे।‘’ कैसे होगी यह किताब जिसे ओशो हमारे ध्यान के काबिल समझते है।
ओशो का पढ़ने का अंदाज अद्वितीय है—उनके ही जैसा। हर किताब के पहले पृष्ठ पर उनके हस्ताक्षर, जिनकी स्याही का रंग और लिखने का ढंग उस किताब के आशय से मेल खाता है और अंतिम पृष्ठ पर हिंदी में तारीख जिसमे उनके हाथ यह किताब आई, और उस शहर का नाम जहां उन्हें ये किताब मिली। जैसे इस किताब में—बम्बई 25-2-1970
किताब के पन्नों पर जो अंश उन्हें महत्वपूर्ण लगे उनकी पहली पंक्ति के पहले अक्षर के आगे लाल और नीले रंग से छोटे-छोटे बिंदू। कुछ शब्दों के नीचे लाल या नीले रंग की छोटी सी रेखा—सिर्फ पहले शब्द के नीचे। बाकी पूरा पन्ना बिलकुल साफ-सुथरा। क्या अर्थ होगा इन लाल-नीले बिंदुओं या रेखाओं का। अब कौन बता सकता है। सिवाय उनके।
यह ‘’किताब की झलक’’ के अंतर्गत जो अंश प्रस्तुत किये है वे ओशो के लाल नीले सौभाग्य तिलकों के साथ आये है।
किताब की एक झलक—
इस किताब के कुल 128 पृष्ठ है। इसे सर्वप्रथम सन 1947 में न्यूयार्क के नून डे प्रेस ने प्रकाशित किया था। इन तीस वर्षों में इसके पंद्रह संस्करण छप चूके है। विलहेम रेक के साथ दुनिया ने जो दुराचार, अत्याचार आरे अनाचार किया है उसकी प्रतिक्रिया है यह आक्रोश। हारकर, तिल मिलाकर वह अपनी बात लोगों तक पहुँचाता है। लिटल मैन अर्थात कॉमन मैन साधारण आदमी। जो दिखता तो बड़ा निरीह, असहाय है लेकिन तमाम असाधारण व्यक्तियों को कुचल डालने की विध्वंसक शक्ति रखता है। सदियों-सदियों से, सभी असाधारण आदमियों के साथ साधारण आदमी ने यही किया है। किसी को सूली दी, किसी को जहर दिया, किसी को जेल भिजवाया, किसी को बोटी-बोटी काट डाला।
इस साधारण आदमी की ताकत क्या है? समूह की शक्ति, भीड़ की शक्ति। भीड़ जब एक इकाई की तरह व्यवहार करती है तो एटम बम से भी अधिक खतरनाक हो जाती है। अपने जीवन भर के अनुभव, हताशा और विषाद को विलहेम रेक व्यांगात्मक ढंग व्यक्ति करता है। अपनी भावनाओं को उसने इस तरह शब्दों में ढाला है जैसे वह एक-एक लिटल मैन के साथ बात कर रहा है। साधारण आदमी के दिशाहीन जीवन का ओछापन, टुच्चापन; उसका स्वार्थ और पाखंड, उसकी दोगली जीवन शैली, उसके अंधेरे में किरण बनकर उतरने वाले असाधारण व्यक्ति के साथ किया हुआ दुर्व्यवहार और क्रुरता.....हर छोटा-मोटी बात पर रेक करारी चोट करता है। यह चोट उसका तिरस्कार करने के लिए नहीं है। उसके पीछे निहित रेक की पीड़ा है। उसकी व्याकुलता साफ दिखाई देती है। वह छटपटाता है कि इस साधारण आदमी को उसकी कीचड़ से कैसे निकाला जाये।
किताब की शुरूआत देखिए--
‘’वे तुम्हें लिटल मैन कहते है या कॉमन मैन कहते है। वे कहते है तुम्हारे दिन आ गए है—साधारण आदमी का यूग।
यह तुम नहीं कहते हो ‘’लिटल मैन’’ वे कहते है—महान राष्ट्रों के उपराष्ट्रपति मजदूर नेता, बूर्ज्वा के पश्चात्ताप करने वाले पुत्र, कूटनीतिज्ञ और दार्शनिक। वे तुम्हें भविष्य देते है, लेकिन अतीत के बारे में कोई सवाल नहीं पूछते।
तुम्हारा अतीत भयंकर रहा है। तुम्हारी विरासत तुम्हारे हाथों में एक जलता हुआ हीरा है। तुमसे मैं यही कहना चाहता हूं।
डॉक्टर हो या चमार, मजदूर या शिक्षक, उसे अपना काम कुशलता से करना हो और पैसे कमाने हों तो उसे अपनी कमज़ोरियों का पता चलना चाहिए। अब कुछ दशकों से पूरी दुनिया में तुम्हारा शासन चल रहा है। मनुष्य जाति का भविष्य तुम्हारे विचारों और कृत्यों पर निर्भर करेगा।
लेकिन तुम्हारे शिक्षक और गुरु तुम्हें ठीक-ठाक नहीं बताते कि तुम कैसे सोचते हो या तुम वास्तव में क्या हो। किसी की भी, तुमसे एक सत्य कहने की हिम्मत नहीं होती जिससे तुम तुम्हारे भविष्य के अडिग मालिक बन जाओ। तुम सिर्फ एक अर्थ में स्वतंत्र हो: खुद की आलोचना सुनकर ही तुम अपने जीवन को नियंत्रित कर पाओगे।
तुम महान आदमी से सिर्फ एक बात में अलग हो: महान आदमी भी कभी बहुत छोटा आदमी था। लेकिन उसने एक महत्वपूर्ण गुणवत्ता को विकसित किया उसने अपने विचारों और कृत्यों की संकीर्णता को पहचाना। किसी अर्थपूर्ण काम के दबाव के नीचे उसने यह देखना सीखा कि किस तरह उसका छोटापन, टुच्चापन, उसकी प्रसन्नता को बिगड़ता है। दूसरे शब्दों में महान आदमी जानता है कि कब और किस तरह वह छोटा आदमी है। छोटा आदमी नहीं जानता कि वह छोटा है और जानने से डरता भी है। वह ताकत और महानता की भ्रांति के पीछे अपनी क्षुद्रता और छोटापन को छिपाता है। वह अपने महान सेनाधिकारियों पर नाज करता है, खुद पर नहीं।
मैं तुमसे घबड़ाता हूं लिटल मैन, बेहद घबड़ाता है। क्योंकि तुम पर मनुष्य जाति का भविष्य निर्भर करता है। मैं तुमसे घबड़ाता हूं। क्योंकि तुम इतना किसी चीज से नहीं भागते जितना कि स्वयं से।
तुम रूग्ण हो, बहुत रूग्ण लिटल मैन। इसमें तुम्हारा दोष नहीं है। लेकिन इस रूग्णता को दूर करना तुम्हारा दायित्व है। अगर तुम दमन को स्वीकार नहीं करते तो तुम उत्पीड़कों को कभी के उठाकर फेंक देते। तुम उसे सिक्रय सहारा देते हो। अगर रोजमर्रा के व्यावहारिक जीवन में तुम्हारे पास थोड़ा भी आत्म सम्मान होता तो संसार की कोई पुलिस की ताकत तुम्हें दबा नहीं सकती थी। काश गहरे में तुम्हें पता होता है कि तुम्हारे बगैर जीवन एक घंटा भी नहीं चल सकता था। क्या तुम्हारे मुक्तिदाता ने तुम्हें यह बताया। नहीं उसने तुमसे कहा: ‘’प्रोलिटेरिएट ऑफ दि वर्ल्ड’’ लेकिन उसने तुमसे यह नी कहा कि तुम्हारे जीवन के लिए तुम, सिर्फ तुम ही जिम्मेदार हो तुम्हारी पितृभूमि के लिए नहीं हो।
तुम जीवन के सूख की भीख मांगते हो। लेकिन तुम्हारे लिए सुरक्षा अधिक कीमती है भले ही उसके लिए तुम्हें अपनी रीढ़ की या अपने जीवन की कीमत चुकानी पड़े। चूंकि तुमने कभी भी सुख को पैदा करना, उसे भोगना, और उसकी रक्षा करना नहीं सीखा है। तुम निर्भीक व्यक्ति के साहस को नहीं जानते। लिटल मैन, क्या तुम जानना चाहते हो कि तुम कैसे हो। तुम टी. वी. पर हाज मोला, टूथपेस्ट और डियोडोरंट के विज्ञापन देखते हो। लेकिन उसके पीछे प्रचार को के संगीत को नहीं सुनते। इन चीजों की असीम मूढ़ता और घटियापन को तुम नहीं देखते जो कि तुम्हें फंसाने के लिए बनायी गई है। नाइट क्लब में अनाउंसर जो मजाक सुनाता है क्या उन्हें तुमने बनायी गई। नाइट क्लब में अनाउंसर जो मजाक सुनाता है क्या उन्हें तुमने कभी ध्यान से सुना है। मजाक जो तुम्हारे बारे में है, उसके खुद के बारे में है, तुम्हारे छोटे दुःखी संसार के बारे में है....।
तुम अपने बारे में मजाक सुनते हो और दिल खोलकर हंसते हो। तुम इसलिए नहीं हंसते कि तुम अपनी ही हंसी उड़ा रहे हो। तुम जो दूसरे पर, लिटल मैन पर हंसते हो लेकिन तुम्हें यह पता नहीं है कि तुम अपने पर ही हंस रहे हो। लाखों लिटल मैन्स को यह पता नहीं है। कि तुम्हारी हंसी उड़ायी जा रही है। सदियों-सदियों से, इतने खुलकर दुष्ट प्रसन्नता के साथ तुम्हारी हंसी क्यों उड़ायी जा रही है लिटल मैन। क्या कभी तुम्हारे ख्याल में आया कि सिनेमा में साधारण लोगों को इतना हास्यास्पद क्यों दिखाया जाता है। मैं तुम्हें बताता हूं, कि मैं तेह दिल से तुम्हारी कद्र करता हूं।
अत्यंत संगत रूप ये यानि कि लगातार तुम्हारी सोच सत्य को चूक जाती है। ठीक वैसे ही जैसे कोई अनाड़ी तीरंदाज हमेशा अपने निशाने को चूक जाये। क्या तुम ऐसा नहीं सोचते। मैं तुम्हें दिखाता हूं। तुम कभी के अपने जीवन के मालिक बन चुके होते अगर तुम्हारी सोच सत्य की और उन्मुख होती। लेकिन तुम इस तरह सोचते हो--
‘’यह सब यहूदियों को दोष है।‘’
‘’यहूदी कौन है, मैं पूछता हूं।‘’
जिन लोगों में यहूदी खून है, तुम्हारा जवाब।
यहूदी खून और दूसरे खून में क्या फर्क है।
यह सवाल तुम्हें स्तब्ध कर दे है, तुम झिझकते हो, कन्फ्यूज हो जाते हो। लिटल मैन, तुम इस तरह बेहूदापन करते हो। तुम्हारे बेहूदेपन से तुम सशस्त्र सेनाएं बनाते हो और वे सेनाएं एक करोड़ यहूदियों की हत्या कर देती है। जब कि तुम इतना भी नहीं बता सकते कि यहूदी कौन है। इसीलिए हम तुम पर हंसते है। जब गहरा काम करना हो तो लोग तुमसे बचते है। इसीलिए तुम दलदल में फंसे हुए हो। जब तुम किसी को यहूदी कहते हो तो अपने आपको श्रेष्ठ समझते हो। यह जरूरी है क्योंकि भीतर तुम वस्तुत: दुःखी हो। और तुम इसलिए दुःखी हो क्योंकि तुम जिस कारण तथाकथित यहूदी को मारते हो, तुम वही हो। लिटल मैन, यह तुम्हारे संबंध में सत्य का एक छोटा सा अंश है।
लिटल वू मन, यदि तुम्हारे अपने बच्चे नहीं है, इसलिए तुम शिक्षक के पेशे में चली आई हो, तो तुम बच्चों का अविवेकपूर्ण नुकसान कर रही हो। तुम्हें बच्चों की परवरिश करनी है। बच्चों की परवरिश करने की सही तरीका है, उनकी लैंगिक ऊर्जा का सही प्रशिक्षण। बच्चे की लैंगिकता को ठीक से समझने के लिए व्यक्ति को प्रेम का अनुभव होना चाहिए। लेकिन तुम एक टब की तरह बनी हो, तुम ,खुद झिझक से भरी हो और शरीर से कुरूप हो। यह अकेली वजह तुम्हें हर जीवित आकर्षक शरीर के प्रति घृणा से, कड़वाहट भर
के लिए काफी है। मैं तुम्हें टब जैसी बनावट के लिए दोषी नहीं ठहराता, या प्रेम का अनुभव न करने के लिए और बच्चों में खिलते हुए प्रेम को न समझने के लिए भी कुछ नहीं कहता। लेकिन अपनी सारी कुरूपता को लेकर बच्चों के पास जाना और उनके भी के प्रेम का गला घोटना में बहुत बड़ा जुर्म मानता हूं। तुम उनके भी जन्मनें वाले स्वस्थ प्रेम का रूग्ण मानती हो, क्योंकि तुम स्वयं रूग्ण हो।
और लिटल मैन तुम ऐसी मोटी कुरूप महिलाओं को अपने बच्चों को सौपकर अपने बच्चों की स्वस्थ आत्माओं में जहर और कड़वाहट घोलते हो। इसीलिए तुम ऐसे हो जैसे कि तुम हो।
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तुम मेरे पास दौड़ें चले आते हो और पूछते हो, प्यारे महान डॉक्टर, हम क्या करे। मैं क्या करू, मेरा पूरा भवन गिर गया है। दीवार की दरारों में से हवा गुजर रही है। मेरा बच्चा बीमार है और मेरी पत्नी का बुरा हाल है। मैं खुद बीमार हूं। क्या करू?
अपने घर को ग्रेनाइट जैसी मजबूती पर बनाओ ग्रेनाइट से मेरा मतलब है तुम्हारा स्वभाव; जिसे तुम सता कर मटियामेट कर रहे हो। तुम्हारे बच्चे की काया में पनप रहा प्रेम के सपने सोलह साल की उमर में देखे तुम्हारे अपने सपने। तुम्हारे भ्रम को थोड़े से सत्य के साथ बदल लो। अपने राजनीतिज्ञों और कूटनीतिज्ञों को बाहर फेंक दो। अपनी किस्मत को अपने हाथ से लिखो और अपने जीवन को चट्टान पर खड़ा करो। अपने पड़ोसी को भूल जाओ और अपने भीतर झांको। इससे तुम्हारा पड़ोसी भी अनुगृहीत होगा। पूरे संसार में अपने साथियों से कह दो कि, अब तुम मृत्यु के लिए नहीं, जीवन के लिए काम करना चाहते हो। किसी की हत्या करने के लिए या निषेध करने के लिए जुलूस निकालने की बजाय मानव जीवन और उसके आशीषों की रक्षा करने के लिए कानून बनाओ। ऐसा कानून तुम्हारे घर की मजबूत बुनियाद का हिस्सा बनेगा।
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दिन भर के काम के बाद मैं अपने घर के आँगन में, हरी-हरी दूब पर अपनी प्रियतमा या अपने बेटे के साथ बैठता हूं। चारों और सांस लेती हुई प्रकृति के अहसास से भर जाता हूं तब मनुष्य जाति और उसके भविष्य के बारे में एक गीत मेरे जहर में उभरता है।
और फिर मैं जीवन से अनुरोध करता हूं, कि वह अपने हक को पुन: प्राप्त कर ले और जो दुष्ट और भयभीत लोग युद्ध का ऐलान करते है उनका ह्रदय परिवर्तन कर दे। वे इसलिए संहार करते है क्योंकि वे जीवन से वंचित हुए है।
मेरे बेटा मुझसे पूछता है: पिताजी सूरज विदा हो गया। कहां गया वह? क्या वह जल्दी लौट आयेगा? मैं उसे बांहों में भर कहता हूं, हां बेटा, सूरज फिर अपनी ममतामयी उष्मा को लेकर वापिस आ जायेगा।
लिटल मैन, मैं अपनी अपील के अंत पर आ रहा हूं, मैं तो अंतहीन रूप से लिख सिकता था। लेकिन तुमने यदि मेरे शब्दों को ध्यान से और निश्छलता से पढ़ा है तो तुम तुम्हारे भीतर के छोटे आदमी को उन संदर्भों में भी पहचान लोगे जिनमें मैंने कहा नहीं है। तुम्हारे हर ओछे कृत्यों और विचारों के पीछे एक ही मानसिकता है।
तुमने मेरे साथ जो भी व्यवहार किया है या करोगे, तुम मुझे जीनियस कहो या पागल कहार जेल में बंद कर दो। तुम्हारा मुक्तिदाता कहो या जासूस कहकर सताओ और फांसी दे दो। तुम्हारी पीड़ा तुम्हें देर अबेर यह देखने के लिए मजबूर करेगी कि मैने जीवंत ऊर्जा के नियम खोजें है और तुम्हारे जीवन की सुनियोजित करेन के लिए एक साधन तुम्हारे हाथ दिया है। तुम्हारे ऑर्गानिज्म़ के लिए मैं एक भरोसेमंद अभियंता इंजीनियर हूं। तुम्हारे नाती-पोते मेरे पद चिन्हों पर चलेंगे और मनुष्य स्वभाव के प्रज्ञावान अभियंता होंगे। मैंने तुम्हारे भीतर जीवंत ऊर्जा का, तुम्हारे वैश्विक सार-अंश का विराट लोक उद्घाटित किया है।
यह मेरा बड़े से बड़ा पुरस्कार है।
मैंने इस जगह में
पवित्र शब्दों का ध्वज रोपित किया है।
पाम वृक्ष के मुरझाने और चट्टान के चूर-चूर होने के अरसे बाद,
चमकते हुए सम्राट
सूखे पत्तों की धूल की तरह उड़ जायेंगे।
लेकिन उसके बाद भी हजारों नौकाएं
हर बाढ़ में मेरे शब्दों का वहन करेंगी
वे गूँजते रहेंगे
गूँजते रहेंगे।
ओशो का नजरिया--
यह एक अजीब किताब है, उसे कोई नहीं पढ़ता। तुमने शायद उसका नाम भी नहीं सुना होगा। हालांकि यह अमेरिका में ही लिखी गई है। किताब है: ‘’लिसन, लिटल मैन’’ लेखक विलहम रेक। बड़ी छोटी सी किताब है। लेकिन वह ‘’सर्मन ऑन माउंट’’, ‘’ताओ तेह किंग’’, ‘’दस स्पेस जुरतुस्त्र’’, ‘’दि प्रॉफेट’’ इनकी याद दिलाती है। वस्तुत: रेक की यह हैसियत नहीं थी की वह इस तरह की किताब लिखे, लेकिन लगता है वह कसी अज्ञात आत्मा से आविष्ट हो गया........
‘’लिसन लिटल मैन’’ ने रेक के प्रति बहुत दुश्मनी पैदा की—खास कर व्यावसायिक मनस चिकित्सकों के बीच, जो कि उसके सहयोगी थे क्योंकि वह हर किसी को ‘’लिटल मैन’’ छोटा आदमी कहा रहा था। और वह क्या सोचता था, वह बहुत महान है। मैं तुमसे कहना चाहता हूं; वह था। बुद्ध के अर्थों में नहीं लेकिन सिगमंड फ्रायड, कार्ल गुस्ताव युंग, अस गोली .... वह उसी कोटि का था।
वह महान आदमी था—आदमी ही था, महा मानव नहीं था, लेकिन बहुत बड़ा था। और यह उसके अहंकार से पैदा नहीं हुई। वह विवश था, उसे लिखना पडा। यह ऐसे ही है जैसे स्त्री गर्भवती हो तो उसे बच्चे को जन्म देना ही पड़ता है। इस छोटी सी किताब को यह वर्षो तक अपने भीतर सम्हाले रहा। उसे लिखने के ख्याल को दबाता रहा क्योंकि वह भलीभाँति जानता था। कि वह उसके लिए तूफान खड़ा करने वाला है। आरे वैसा ही हुआ।
इस किताब के बाद सब तरफ से उसकी भर्त्सना हुई।
इस संसार में किसी भी महान चीज का सर्जन करना महान अपराध है। आदमी जरा भी नहीं बदला है। सुकरात...उसने मार डाला। रेक....उसने मार डाला। कोई परिर्वतन नहीं। उन्होंने रेक को पागल करार दे दिया और उसे जेल में डाल दिया। वह वैसा ही सज़ा भुगतते हुए, पागल खाने में पागल होने का लेबल माथे पर लगाकर जेल में ही मर गया। बादलों के पार उठने की उसी क्षमता थी लेकिन उसे नहीं उठने दिया गया। सुकरात, जीसस, बुद्ध जैसे लोगों के साथ जीना अभी अमरीका को सीखना है।
मैं चाहता हूं, मेरे सभी संन्यासी इस किताब पर ध्यान करें। मैं इस किताब का बेशर्त समर्थन करता हूं।
ओशो
बुक्स आय हैव लव्ड
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