बालशेम तोव—(हसीद दर्शन)-ओशो की प्रिय पुस्तके
The Baal Shem Tov-Tzavaat HaRivash
हसीद की धारा कुछ चंद रहस्यदर्शीयों की रहस्यपूर्ण गहराइयों से पैदा हुई है। बालशेम उनमें सबसे प्रमुख है। हमीद पंथ का जा भी दर्शन है वह शाब्दिक नहीं है, बल्कि उसके रहस्यदर्शीयों के जीवन में, उनके आचरण में प्रतिबिंबित होता है। इसलिए उनका साहित्य सदगुरू के जीवन की घटनाओं की कहानियों से बना है। हसीदों की मान्यता है कि ईश्वर का प्रकरण स्तंभ इन ज़द्दिकियों में प्रवेश करता है और उनका आचरण इस प्रकाश की किरणें है अंत:, स्वभावत: दिव्य प्रकाश से रोशन है।
The Baal Shem Tov-Tzavaat HaRivash
हसीद की धारा कुछ चंद रहस्यदर्शीयों की रहस्यपूर्ण गहराइयों से पैदा हुई है। बालशेम उनमें सबसे प्रमुख है। हमीद पंथ का जा भी दर्शन है वह शाब्दिक नहीं है, बल्कि उसके रहस्यदर्शीयों के जीवन में, उनके आचरण में प्रतिबिंबित होता है। इसलिए उनका साहित्य सदगुरू के जीवन की घटनाओं की कहानियों से बना है। हसीदों की मान्यता है कि ईश्वर का प्रकरण स्तंभ इन ज़द्दिकियों में प्रवेश करता है और उनका आचरण इस प्रकाश की किरणें है अंत:, स्वभावत: दिव्य प्रकाश से रोशन है।
बालशेम तोव हसीदियों का सर्व प्रथम सदगुरू है। ‘’बालशेम तोव’’ असली नाम नहीं है, वह एक किताब है जो इज़रेलबेन एलिएज़र नाम के रहस्यदर्शी को मिला हुआ था। हसीद परंपरा में उसे बेशर्त कहा जाता है। इसका अर्थ है: दिव्य नामों वाला सदगुरू। बालशेम एक यहूदी रबाई था जिसके पास गुह्म शक्तियां थी। वह गांव-गांव घूमता था और अपनी स्वास्थ्य दायी आध्यात्मिक शक्तियों से लोगों का स्वस्थ करता था। उसने अपनी शक्तियां तब तक छुपा रखी थी। जब तक कि उसने खुद को आध्यात्मिक सदगुरू घोषित नहीं किया। वह किस्से-कहानियों में अपनी बात कहता था। हसीद साहित्य में बहुत गुरु गंभीर ग्रंथ नहीं है। हसीद फ़क़ीरों द्वारा कही गई किस्से कहानियों ही कुल हसीद साहित्य है। हसीद मिज़ाज यहूदियों से बिलकुल विपरीत है। यहूदी लोग गंभीर और व्यावहारिक होते है। और हसीद मस्ती और उन्मादी आनंद में जीते है। हसीदों की प्रज्वलित आत्माएं, ‘’Soul on fire’’ कहा जाता है।
बालशेम की जन्म की तारीख पक्की नहीं है। कुछ कहते है 1698 और कुछ कहते है 1700।
हसीद कहानियों को बाहर से समझा नहीं जा सकता। उनके भीतर प्रवेश किया जाता है। तब कहीं वे समझी जाती है। लगभग दो शताब्दियों तक इज़ रेल में हसीद कहानियां पीढ़ी दर पीढ़ी सुनायी जाती रही है। बालशेम तोव कहता था, कहानी इस ढंग से कही जानी चाहिए कि वह एक मार्गदर्शन बन जाये। कहानी कहते वक्त बालशेम कूदता-फांदता था, नाचता था। ये कहानियां बौद्धिक नहीं है। उसके रोएं-रोएं से प्रस्फुटित होती है। हसीदों का मूल सिद्धांत है: ऐसा नहीं है कि परमात्मा है, जो कुछ है, परमात्मा ही है। बालशेम तोव परमात्मा प्रेम से आविष्ट हो जाता था, इतना अधिक कि उसकी जबान खामोश हो जाती थी। उसकी स्मृति पटल से सब कुछ मिट जाता था। वह रोशनी का एक खाली स्तंभ हो जाता था। बालशेम ने विद्घान और पंडितों की प्रतिभा को नहीं झकझोरा, उसका योगदान यह है कि वह दीन-दरिद्र साधारण जनों के मुरझाये, कुचले हुए दिलों में दिव्य प्रकाश की आग जलाता था।
बालशेम तोव बच्चों से बेहद प्यार करता था। दूर-दराज से मां-बाप अपने बच्चों को बालशेम के पास लाते थे। बालशेम उनका शिक्षक नहीं, दोस्त बन जाता था। उन्हें उपदेश नहीं देता, उनके प्राणों में नया जीवन फूंक देता था। उनमें बच्चों जैसी मासूमियत थी। उसकी कोई गद्दी नहीं थी। न कोई पीठ था, लेकिन वह जिस शान के साथ जन-साधारण के ह्रदय सिंहासन पर विराजमान था, वैसा कोई सम्राट भी कभी नहीं होगा।
हसीद पंथ: एक छोटा सा झरना
ओशो का नज़रिया--
यह ज्ञात नहीं है कि अत्यंत परंपरागत, सनातन यहूदी घर्म में भी कुछ महान बुद्धत्व प्राप्त सदगुरू पैदा हुए है। कुछ तो बुद्धत्व के पर चले गये। उनमें से एक है बालशेम तोव।
तोव उसके शहर का नाम था। उसके नाम का मतलब इतना ही हुआ: तोव शहर का बालशेम। इसलिए हम उसके केवल बालशेम कहेंगे। मैंने उसे पर प्रवचन दिये क्योंकि जब मैं हसीद पंथ के विषय में बात कर रहा था तब मैंने कुछ भी सारभूत बाकी नहीं छोड़ा। ताओ, ज़ेन, सूफी, हसीद, सब पर मैंने बात की। मैं किसी परंपरा का हिस्सा नहीं हूं। इसलिए में किसी भी दिशा में जा सकता हूं। मुझे नक्शे की जरूरत नहीं है। मैं तुम्हें फिर एक बार याद दिला दूँ:
भीतर आते, बहार जाते।
पीनी का बतख़ कोई चिन्ह नहीं छोड़ता।
न ही उसे मार्ग दर्शक जरूरत है।
बालशेम तोव ने कोई शास्त्र नहीं लिखा। रहस्यवाद के जगत में शास्त्र एक वर्जित शब्द है। लेकिन उसने कई खुबसूरत कहानियां कही है। वह इतनी सुंदर है कि उनमें से एक मैं तुम्हें सुनाना चाहता हूं। यह उदाहरण सुनकर तुम उस आदमी की गुणवत्ता का स्वाद ले सकते हो।
बालशेम तोव के पास एक स्त्री आई, वह बांझ थी। उसे बच्चा चाहिए था। वह निरंतर बालशेम तोव के पीछे पड़ी रही।
आप मुझे आशीर्वाद दें, तो सब कुछ हो सकता है। मुझे आशीर्वाद दें, मैं मां बनना चाहती हूं।‘’
आखिरकार तंग आकर—हां सतानें वाली स्त्री से बालशेम तोव भी तंग आ जाते है—वे बोले, बेटा चाहिए की बेटी।
वह बोली—‘’ निश्चय ही बेटा चाहिए’’
बालशेम तोव ने कहा तो फिर तुम यह कहानी सुनो। मेरी मां का भी बच्चा नहीं था। और वह हमेशा गांव के रबाई के पीछे पड़ी रहती थी। आखिर रबाई बोला, एक सुदंर टोपी ले आ।
मेरी मां ने सुदंर टोपी बनवाई और रबाई के पास ले गई। वह टोपी इतनी सुदंर बनी कि उसे बनाकर ही वह तृप्त हो गई। और उसने रबाई से कहा, ‘’मुझे बदले में कुछ नहीं चाहिए।‘’ आपको इस टोपी में देखना ही अच्छा लग रहा है। आप मुझे धन्यवाद दें, मैं ही आपको ही आपको धन्यवाद दे रही हूं।‘’
‘’और मेरी मां चली गई, उसके बाद वह गर्भवती हो गई। और मेरा जन्म हुआ। बालशेम तोव ने कहानी पूरी की।
इस स्त्री ने कहा, बहुत खुब अब कल मैं भी एक सुंदर टोपी ले आती हूं, दूसरे दिन वह टोपी लेकर आई। बालशेम तोव ने उसे ले लिया। और धन्यवाद तक न दिया। स्त्री प्रतीक्षा करती रही। फिर उसने पूछा बच्चे के बारे में क्या।
बालशेम ने कहां की बच्चें के बारे में भूल जाओं। टोपी इतनी सुंदर है कि मैं आभारी हूं। मुझे धन्यवाद करना चाहिए।। वह कहानी याद है। उस स्त्री ने बदले में कुछ नहीं मांगा इस लिए उसके बच्चा हुआ। और वह भी मेरे जैसा बच्चा।
लेकिन तुम कुछ लेने की चाहत से आई हो। इस छोटी सी टोपी के बदले में तू बालशेम जैसा बेटा चाहती है।
कई बातें ऐसी है जो केवल कहानियों द्वारा कहीं जा सकती है। बालशेम तोव ने बुनियादी बात कह दी: ‘’माँगों मत और मिल जायेगा।‘’
मांग मत—यह मूल शर्त है।
बालशेम की कहानियों से जिस हसीद पंथ का निर्माण हुआ वह एक बहुत सुंदर खिलावट है। जो आज तक हुई है। हसीदों की तुलना में यहूदियों ने कुछ भी नहीं किया है। हसीद पंथ एक छोटा सा झरना है—अभी भी जीवंत, अभी भी खिलता हुआ।
ओशो
बुक्स आय हैव लव्ड
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