सूत्र:
रागो य दोसो वि य कम्मवीयं,
कम्मं च मोहप्पभवं
वयंति।
कम्मं
च जाईमरणस्य
मूलं,
दुक्खं
च जाईमरणं
वयंति।। 11।।
न
य संसारीम्मि
सुहं,
जाइजरामरणदुक्खगहियस्स।
जीवस्स अत्थि जम्हा,तम्हा मुक्खो
उवादेओ।।
12।।
तं
जइ इच्छसि
गंतुं,तीरं भवसायरस्स
घोरस्स।
तो
तव संजमभंडं,
सुविहिय गिण्हाहि
तूरंतो।।
13।।
जणे विरोगो जायइ,
तं तं सव्वायरेण
करणिज्जं।
मुच्चइ हु
संसवेगी,
अणतंवो होई
असंवेगी।।
14।।
एवं
ससंकप्पविकप्पणासुं,
सजायई समयमुवट्ठियस्स।
अत्थे
य संकप्पयओ
तओ से,
पहीयए कामगुणेसु
तण्हा।।
15।।
भावे
विरत्तो
मणुओ विसोगो,
एएण दुक्खो
परंपंरेण।
न
लिप्पई भवमज्झे वि
संतो, जलेण
वा पोक्खरिणीपलासं।।
16।।