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शनिवार, 8 नवंबर 2025

ओम बोधि कम्यून और हथिया पिरामिड (देहरादून) -भाग-02

ओम बोधि कम्यून और हथियारी पिरामिड (देहरादून)

भाग -02

भारी कदमों से मैं मा मुक्ति के पास से उठ कर थका हार बाहर आया। सामने स्वामी अनुपम जी मेरा इंतजार ही कर रहे थे। शायद वह हालात को पहले से ही जानते थे। परंतु उनकी अपनी मजबूरी है। हालांकि ये उनके विश्राम का टाइम था। परंतु शायद उसे भी इस घटना को देख कर कुछ अजीब लगा होगा। वरना तो वह क्यों मेरा सामान मेरे साथ ले जाकर कमरे में रखवाता। कितने कमरे खाली है जगह है या नहीं ये तो स्वामी अनुपम की ड्यूटी है की कमरे देना पैसे आदि लेना। इस में मां मुक्ति का हस्तक्षेप न के बराबर होना चाहिए। परंतु शायद इस बार उसे भी जरूर कुछ डाट खाना पड़ी होगी। कि तुम हम से पूछे बिना कैसे कमरे में सामान ले गये।

खेर उनके के पास एक गाड़ी वाले का नम्बर था। उसने उसे फोन मिलाया और पूछा की गाड़ी है। उसने पूछा हां है कहां जाना है। तब स्वामी जी ने मुझे से पूछा की गंगा धाम या कहीं और तब मैंने कहां की नहीं हथियारी में ओशो पिरामिड चले जाते है। वहां का एकांत भी बहुत गहरा है। उपर से जमना का किनारा। मैं जानता था की मोहनी नीचे यमुना तक नहीं उतर सकेगी। फिर भी वहां के उतार चढ़ाव काफी नीचे थे। परंतु गंगा धाम में भी तो यहीं सब था। वहां हमेशा भीड़ ही रहती है। आखिर एक घंटे के इंतजार के बाद गाड़ी आई। 2000/-किराया मांगा। ज्यादा दूरी नहीं थी। परंतु उसे हमें छोड़ कर वापस भी तो आना था।

शुक्रवार, 7 नवंबर 2025

01-महान शून्य- (THE GREAT NOTHING—का हिंदी अनुवाद)

महान शून्य- (THE GREAT NOTHING—का हिंदी अनुवाद)

19/9/76 से 11/10/76 तक दिए गए व्याख्यान

12-दर्शन डायरी –(Darshan Diary)

23 अध्याय

प्रकाशन वर्ष: 1978

महान शून्य-(THE GREAT NOTHING—का हिंदी अनुवाद)

अध्याय -01

19 सितम्बर 1976 सायं 5:00 बजे चुआंग त्ज़ु ऑडिटोरियम में

[जाते हुए एक संन्यासी कहते हैं: मैं नई चीजों का सामना कर रहा हूं, जिनका मैंने पहले कभी सामना नहीं किया।]

बहुत बढ़िया। यह नया स्थान आपकी वास्तविकता है। अब तक आपने जो कुछ भी जाना है, वह वास्तव में आप नहीं थे। यह दूसरों द्वारा दी गई पहचान थी - माता-पिता, समाज, दुनिया। अब आप खुद से सामना करने आ रहे हैं।

कभी-कभी यह बहुत डरावना होगा - इसलिए इसे याद रखें। कभी-कभी आपको लगेगा कि आप अपनी पहचान खो रहे हैं... खो रहे हैं। इसलिए याद रखें, ऐसा ही होना चाहिए - और उसमें चले जाएँ। खुद का सारा ट्रैक खो दें, और फिर पहली बार आप घर वापस आ जाएँगे। आपको इस नई जगह में घुल-मिल जाना होगा।

27 - पोनी - एक कुत्‍ते की आत्‍म कथा -(मनसा-मोहनी)

पोनी – एक  कुत्‍ते  की  आत्‍म  कथा-(अध्याय - 27)

प्‍यार और दुलार

पिरामिड ऊपर और ऊपर उठता चला जा रहा था। इतना ऊपर की अब मैं उसे सर उठा कर देख भी नहीं सकता था। इतने ऊपर सर करने से मुझे चक्‍कर आने लग जाते थे। मुझे वह दूर आसमान के उस कोने को छूता सा प्रतीत होता था। उसके उस छोर तक मेरी आंखें अब उसे निहार नहीं पा रही थी। जैसे—जैसे वह ऊपर उठता जा रहा था चारों और से पतला और अपना आकार छोटा करता जा रहा था। लेकिन उस घटते आकार के कारण वह अति सुंदर प्रतीत हो रहा था। अंदर से देखने पर तो और भी अधिक भय लगता था। क्‍योंकि बीच से खाली होने के कारण चारों और से दीवारें ऐसे लग रही थी। जैसे अंदर की और अब गिरी की तब गिरी। ये नजारा जब तक आपकी आंखें नहीं देखेंगी आप उसकी कल्पना भी नहीं कर सकते है। की अंदर से कैसा लगता होगा अधूरा बना पिरामिड। उसके अंदर से चढ़ने के लिए जो पेड़ बंधी थी। और अब जब भी मैं मोका देख कर उस पर चढ़ जाता था। वह गिरने वाली बात तो न जाने मैं कब का भूल गया था। हमारे शरीर में कोई भय यह सोच इतनी देर तक थिर नहीं रह सकती। कोई पीड़ा या दुख हमारा पीछा मनुष्य की तरह नहीं करता जन्‍म—जन्‍म तक। यही हमारे लिए सुविधापूर्ण भी था। हम जल्दी ही उससे छुटकारा पा लेते है।

गुरुवार, 6 नवंबर 2025

46-धम्मपद–बुद्ध का मार्ग–(The Dhammapada: The Way of the Buddha, Vol-05)–(का हिंदी अनुवाद )

धम्मपद: बुद्ध का मार्ग, खंड -05–(The Dhammapada: The Way of the Buddha)–(का हिंदी अनुवाद )


अध्याय - 06

अध्याय का शीर्षक: मसीह: अंतिम ईसाई

16 अक्टूबर 1979 प्रातः बुद्ध हॉल में

पहला प्रश्न: प्रश्न -01

प्रिय गुरु,

मैं तुम्हारी आँखों में देखता हूँ और वहाँ कोई नहीं है। तुम कहाँ हो?

आनंद भव, ओस की बूंद सागर में विलीन हो गई... अब ओस की बूंद को भूल जाओ और सागर को देखो। अगर तुम ओस की बूंद को खोजते रहोगे, तो सागर से चूक जाओगे; तुम ओस की बूंद में ही उलझे रहोगे, उस विराटता को नहीं देख पाओगे जो घटित हुई है। ओस की बूंद का सागर में विलीन होना एक अर्थ में तो नहीं रह जाता, लेकिन दूसरे अर्थ में यह पहली बार है—अब वह सागर बन गई है।

मेरी आँखों में देखते हुए, किसी व्यक्ति को ढूँढ़ने की कोशिश मत करो; तुम्हें वहाँ कोई व्यक्ति नहीं मिलेगा। व्यक्ति विलीन हो गया है; अब एक उपस्थिति है। उपस्थिति अनंत है; व्यक्ति की एक परिभाषा है—एक सीमा, एक निश्चित नाम, रूप, एक लेबल। उपस्थिति बस उपस्थिति है। फूल अब नहीं रहा, वह सुगंध बन गया है। तुम फूल को अपने हाथ में पकड़ सकते हो, लेकिन सुगंध को अपने हाथ में नहीं पकड़ सकते। सुगंध का अनुभव करने के लिए हाथों की बिल्कुल भी ज़रूरत नहीं है। इसी तरह तुम्हें मेरे करीब आना चाहिए: तुम्हें उपस्थिति के प्रति अधिक संवेदनशील होना चाहिए, मेरी उपस्थिति के साथ तालमेल बिठाना चाहिए।

ओम बोधि कम्यून और हथियारी पिरामिड (देहरादून) -भाग-01

ओम बोधि कम्यून और हथियारी पिरामिड (देहरादून)
मार्ग की मधुर अनुभुतियां -
भाग-01

जीवन में जो घटता है वह हम पर नहीं घटना घटती है समय पर इस लिए उसका होना न होने का पता हमें घटते हुए नहीं चलता। परंतु जरूरी नहीं है वह आपके लिए अशुभ ही हो। लेकिन सच यह है कि जब कुछ भी घटता है हम उसे  दुर्घटना ही मान लेते है। परंतु सत्य में ऐसा होता नहीं है। समय के पार जब हम उसे देखते है तो  वह आप के लिए अति उत्तम होता है।

ये अभी घटा एक का एक अनुभव आप को लिख रहा हूं। पिछले आठ साल से मोहनी बीमार चल रही है, इस लिए दोनों का साथ बाहर निकलना बहुत कम हो गया है। परंतु अचानक दो महीने से मोहनी स्वास्थ महसूस कर रही है। तब सोचा कुछ दिनों के लिए साथ निकले। सो हमने देहरादून ‘’ओम बोधिसत्व कम्यून’’ जाने का निर्णय लिया। वह आश्रम स्वामी नरेंद्र बोधिसत्व की उर्जा से लवरेज है। और हमारे लिए वह घर के समान था। हां एक बात और भी थी कि 30 नवम्बर को स्वामी नरेंद्र जी ने शरीर छोड़ा था, तब सोचा इससे सुंदर क्या होगा। सो हमने 24 तारीख की टिकट करा ली। तो हम बहुत हंसते खेलते। डेढ़ बजे के करीब आश्रम पहुंच गये। वहां खाने की तैयारी हो रही थी। मां दिव्या (जो मां मुक्ति की छोटी बहन है) गेट पर ही मिल गई। वह इस तरह से देख रही थी की हम कोई अजनबी है। हालांकि वह और उसका मित्र स्वामी कृष्णा वेदांत हमारे ओशोबा हाऊस आ चूकी है। ध्यान भी किया और साथ में खाना भी खाया। और आश्रम में तो हम कितनी ही बात मिले है। हम वहां करीब 1998 से जा रहे है।

मंगलवार, 4 नवंबर 2025

26 - पोनी - एक कुत्‍ते की आत्‍म कथा -(मनसा-मोहनी)

 पोनी – एक  कुत्‍ते  की  आत्‍म  कथा-(अध्याय - 26)

(मेरा दुस्साहस पापा का साहस)

घर जाते—जाते दिन निकल आया था। चारों और चहल पहल थी। परंतु मेरी और किसी का ध्‍यान नहीं गया। बस एक गली में कुछ कुत्‍तों ने मुझे देख और स्‍वभाव अनुसार भौंकें। लेकिन ये केवल उनका संदेश मात्र ही माना जायेगा, कि हम सतर्क है अपने इलाके में। हमारी नजरों से कोई बच कर नहीं जा सकता। बस वह बैठे—बैठे ही भोंकते रहे, परंतु वह भी आगे आने कि हिम्‍मत नहीं कर सके। शायद पूरी रात जागने के कारण अब वह चैन से सोना चाहते थे। मैं छत से घर जाने का एक ही रास्‍ता जानता था। पीछे की तरफ से जहां से अकसर मैं उसे भागने के लिए उपयोग करता था। परंतु छत से घर जाने के लिए वापसी बहुत कठिन थी। क्‍योंकि ऊपर से तो 8—10 फीट भी कूद कर आ सकता था परंतु वापस तो इतना कूद कर चढ़ नहीं सकता था। हमारे मकान से एक दम सटा हुआ मामा—मामी का मकान था।

मैं वहीं पर अकसर पहुंच  जाता था। वहीं अपनी हीरो कुत्‍ते वाली कथाएं। परंतु आज ऐसा कुछ नहीं कर सका। केवल छत पर खड़ा हो कर रोता रहा। कि मुझे कोई उतरा लो। मामी हमारे घर पर गई और मम्‍मी जी को बुला कर कहने लगी तिहरा पौनी आया है। गली में आज भी भीड़ लग गई थी। परंतु मेरे ऊपर से न कूदने के कारण लोग तरह—तरह की बातें कर रहे थे।

45-धम्मपद–बुद्ध का मार्ग–(The Dhammapada: The Way of the Buddha, Vol-05)–(का हिंदी अनुवाद )

धम्मपद: बुद्ध का मार्ग, खंड-05–(The Dhammapada: The Way of the Buddha)–(का हिंदी अनुवाद )

अध्याय -05

अध्याय का शीर्षक: प्रेम कर्तव्य के बारे में कुछ नहीं जानता

15 अक्टूबर 1979 प्रातः बुद्ध हॉल में

सूत्र:    

अपने आप से प्यार करें और देखें --

आज, कल, हमेशा.

 

पहले अपने आप को मार्ग में स्थापित करो,

फिर सिखाओ,

और इस प्रकार दुःख को पराजित करो।

टेढ़े को सीधा करना

आपको पहले एक कठिन काम करना होगा --

अपने आप को सीधा करो.

 

आप अपने एकमात्र स्वामी हैं।

और कौन?

अपने आप को वश में करो,

और अपने गुरु को खोजो.

 

तुमने स्वेच्छा से खिलाया है

आपकी अपनी शरारत.

जल्द ही यह आपको कुचल देगा

जैसे हीरा पत्थर को कुचलता है।

गुरुवार, 23 अक्टूबर 2025

44-धम्मपद–बुद्ध का मार्ग–(The Dhammapada: The Way of the Buddha, Vol-05)–(का हिंदी अनुवाद )

धम्मपद: बुद्ध का मार्ग, खंड 5–(The Dhammapada: The Way of the Buddha)–(का हिंदी अनुवाद )

अध्याय -04

अध्याय का शीर्षक: सुबह हो गई है

14 अक्टूबर 1979 प्रातः बुद्ध हॉल में

पहला प्रश्न: (प्रश्न -01)

प्रिय गुरु,

जब मैं मर जाऊँगा, तो क्या मैं सचमुच मर जाऊँगा? मैं सचमुच इस बात का यकीन करना चाहता हूँ कि मृत्यु अनंत नींद है।

राम जेठमलानी, मृत्यु सबसे बड़ा भ्रम है। यह कभी घटित नहीं हुई, और न ही यह प्रकृति में घटित हो सकती है। हाँ, कुछ तो है जो भ्रम पैदा करता है: मृत्यु शरीर और आत्मा के बीच एक वियोग है, लेकिन केवल एक वियोग; न तो शरीर मरता है और न ही आत्मा। शरीर मर नहीं सकता क्योंकि वह पहले से ही मृत है; वह पदार्थ की दुनिया का हिस्सा है। एक मृत वस्तु कैसे मर सकती है? और आत्मा नहीं मर सकती क्योंकि वह शाश्वतता की दुनिया, ईश्वर की दुनिया से संबंधित है - वह स्वयं जीवन है। जीवन कैसे मर सकता है?

दोनों हमारे भीतर एक साथ हैं। यह संबंध टूट जाता है; आत्मा शरीर से अलग हो जाती है -- बस यही मृत्यु है, जिसे हम मृत्यु कहते हैं। शरीर वापस पदार्थ में, पृथ्वी में चला जाता है; और आत्मा, अगर उसमें अभी भी इच्छाएँ, लालसाएँ हैं, तो वह उन्हें पूरा करने के लिए एक और गर्भ, एक और अवसर ढूँढ़ने लगती है। या अगर आत्मा की सभी इच्छाएँ, सभी लालसाएँ समाप्त हो जाती हैं, तो उसके वापस किसी शारीरिक रूप में आने की कोई संभावना नहीं रहती -- तब वह शाश्वत चेतना में चली जाती है।

28-असंभव के लिए जुनून- (THE PASSION FOR THE IMPOSSIBLE) का हिंदी अनुवाद

असंभव के लिए जुनून-(THE PASSION FOR THE IMPOSSIBLE) का हिंदी अनुवाद

अध्याय -28

18 सितम्बर 1976 सायं 5:00 बजे चुआंग त्ज़ु ऑडिटोरियम में

[एक संन्यासी से जो जा रहा है]

 ........वहां ध्यान करते रहो और जितनी जल्दी हो सके वापस आ जाओ, क्योंकि अभी बहुत काम करना है। कुछ शुरू हुआ है लेकिन यह सिर्फ एक शुरुआत है - इसे कभी मत भूलना। और कभी भी बहुत जल्दी संतुष्ट मत हो जाना। कभी-कभी ऐसा होता है कि हम बहुत जल्दी संतुष्ट हो जाते हैं। जहाँ तक सांसारिक चीजों का सवाल है, कभी असंतुष्ट मत हो जाना, और जहाँ तक आंतरिक दुनिया का सवाल है, कभी संतुष्ट मत हो जाना। तभी परम खिलने की संभावना है।

और साधारण मन के साथ ठीक इसके विपरीत होता है। वे सांसारिक चीज़ों से कभी संतुष्ट नहीं होते। हमेशा कुछ और होता है -- हमेशा एक बड़ा घर, एक बड़ी कार, ज़्यादा पैसा, ज़्यादा शक्ति, प्रतिष्ठा, सम्मान। जहाँ तक चीज़ों का सवाल है लोग कभी संतुष्ट नहीं होते, लेकिन जहाँ तक उनके आंतरिक विकास का सवाल है लोग पूरी तरह से संतुष्ट होते हैं। यह बहुत आत्मघाती है। इसलिए पूरी प्रक्रिया को उलट दें।

सोमवार, 20 अक्टूबर 2025

25 - पोनी - एक कुत्‍ते की आत्‍म कथा -(मनसा-मोहनी)

पोनी – एक  कुत्‍ते  की  आत्‍म  कथा-(अध्याय - 25)

(मां के साथ गुज़ारे अंतिम क्षण)

ये कैसी होनी—अनहोनी घटना थी। जिसने मुझे इस मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया था। एक तरफ मेरी घायल मां जो मृत्‍यु शय्या पर पड़ी थी। वही शायद मुझे जीवित देखना चाहता होगी, शायद उसके इस अति प्रेम ने ही मुझे अपनी और खिंचा होगा। परंतु सच वह मुझे देख कर अति प्रसन्‍न थी। लेकिन मेरे मन में तो एक उदासी भर गयी थी। देखिए एक तरफ मां से मिलने का आनंद भी पूर्णता से मुझे महसूस हुआ था, और दूसरी और उसके घावों को देख कर मन तड़प रहा था। अब समझ में नहीं आ रहा था किसे पहले मनाऊं खुशी को या कि दुःख को। इस जंगल में भी मेरी मां मुझसे कहीं अधिक हष्ट—पुष्ट थी। उसे मेरे जैसा अच्छा भोजन कहां मिलता होगा। फिर भी वह बहुत ताकतवर और दमदार थी। मैं उसके पास जाकर बैठ गया। और उसके घावों को सहलाने लगा। उन घावों से बहता खून अब जम कर सूख गया था। जख्‍म बहुत गहरे थे। गर्दन—सर और पीठ पर बुरी तरह से फाड़ रखा था। वैसे तो पूरा का पूरा शरीर ही घायल कर रखा था। इन घावों को देख कर मुझे लगा उसके उपर कम से कम दस जानवरों ने एक साथ हमला किया होगा। मेरे इस तरह पास होने से और चाटने से उसे कितना सुकून आराम मिला ये उसकी आंखों की तृप्ति मुझे पता चल रहा था। वह आंखें बद कर गहरी श्‍वास ले रही थी। मानो मेरे प्रेम की छूआन को आत्‍म सात कर जाना चाहती हो।

मैं रह—रह कर उसके सारे शरीर को चाट रहा था। जब मेरा चाटना उसके मुख के पास आया तो उसने आंखें खोल ली। मुझे एक अनोखे पन और उस डूबते प्रेम से निहारने लगी। जैसे कोई डूबता हुआ सूर्य अंतिम समय पूरी पृथ्‍वी का दृश्य अपने में समेट लेना चाहता हो। मेरा शरीर और रख—रखाव देख कर वह समझ गई की मैं बहुत ही दयावान लोगों के साथ रहता हूं।

43-धम्मपद–बुद्ध का मार्ग–(The Dhammapada: The Way of the Buddha, Vol-05)–(का हिंदी अनुवाद )

धम्मपद: बुद्ध का मार्ग, खंड 5–(The Dhammapada: The Way of the Buddha)–(का हिंदी अनुवाद )

अध्याय -03

अध्याय का शीर्षक: आप जो चाहते हैं, वही बन जाएंगे

13 अक्टूबर 1979 प्रातः बुद्ध हॉल में

सूत्र:    

मैंने व्यर्थ ही अपने घर के

निर्माता की तलाश की

अनगिनत जीवन के माध्यम से.

मैं उसे नहीं ढूंढ सका....

एक के बाद एक जीवन में

आगे बढ़ना कितना कठिन है!

 

परन्तु अब मैं तुम्हें देख रहा हूँ,

हे निर्माता!

और तुम फिर कभी मेरा

घर नहीं बनाओगे.

मैंने छत तोड़ दी है,

रिजपोल को विभाजित करें

और इच्छा को परास्त कर दिया।

और अब मेरा मन स्वतंत्र है।

 

झील में कोई मछली नहीं है.

लंबे पैरों वाले सारस पानी में खड़े हैं।

 

दुःखी है वह व्यक्ति जो अपनी युवावस्था में

लापरवाही से जीवन जिया और

अपना भाग्य बर्बाद किया --

 

दुख एक टूटा हुआ धनुष है,

और दुख की बात है कि

वह आहें भर रहा है

जो कुछ उत्पन्न हुआ और

बीत गया, उसके बाद।

गौतम बुद्ध मानवता की अब तक की सबसे बड़ी उपलब्धि हैं। समय को ईसा मसीह के नाम से नहीं, बल्कि गौतम बुद्ध के नाम से विभाजित किया जाना चाहिए। हमें इतिहास को बुद्ध से पहले और बुद्ध के बाद के इतिहास में विभाजित करना चाहिए, ईसा मसीह से पहले और ईसा मसीह के बाद के इतिहास में नहीं, क्योंकि ईसा मसीह कोई उपलब्धि नहीं हैं; वे एक सातत्य हैं। वे अतीत को उसके अद्भुत सौंदर्य और वैभव के साथ प्रस्तुत करते हैं।

27-असंभव के लिए जुनून- (THE PASSION FOR THE IMPOSSIBLE) का हिंदी अनुवाद

असंभव के लिए जुनून-(THE PASSION FOR THE IMPOSSIBLE) का हिंदी अनुवाद

अध्याय -27

17 सितम्बर 1976 सायं चुआंग त्ज़ु ऑडिटोरियम में

देव का अर्थ है दिव्य और पंकज का अर्थ है कमल - एक दिव्य कमल। कमल पूर्व में बहुत प्रतीकात्मक है क्योंकि यह गंदे कीचड़ से निकलता है, और फिर भी इतना सुंदर, इतना आकर्षक, इतना अलौकिक... धरती से पैदा होता है लेकिन धरती से संबंधित नहीं होता। यह अलौकिक है।

इसलिए व्यक्ति को कमल की तरह होना चाहिए -- धरती में निहित, लेकिन धरती द्वारा परिभाषित और सीमित नहीं। धरती में निहित, अच्छी तरह से निहित, लेकिन फिर भी आकाश की खोज करते हुए, ऊंचे और ऊंचे जाते हुए। धरती के विरुद्ध नहीं -- धरती के सहयोग से। इनकार में नहीं -- धरती को अस्वीकार नहीं करना है। इसे नकारना नहीं है। धार्मिक व्यक्ति में कोई 'नहीं' नहीं होना चाहिए। हां पूरी तरह से होनी चाहिए। धरती को एक उपहार के रूप में स्वीकार करना है, लेकिन व्यक्ति को इसके लिए सीमित नहीं रहना चाहिए। व्यक्ति को इसके परे बढ़ना चाहिए। इसलिए एक जड़ता होनी चाहिए और फिर भी एक पारलौकिकता होनी चाहिए। कमल का यही अर्थ है।

रविवार, 19 अक्टूबर 2025

24 - पोनी - एक कुत्‍ते की आत्‍म कथा -(मनसा-मोहनी)

पोनी – एक  कुत्‍ते  की  आत्‍म  कथा-(अध्याय - 24)

(मां से मिलन)

जैसे—जैसे मैं जवान और हष्‍ट-पुष्‍ट होता जा रहा था उसके कारण मेरा मन भी निडर और साहसी हो रहा था। मुझे अपनी ताकत और शरीर की चपलता पर बड़ा नाज हो गया था। या यूं कह सकते है। कि मुझे अपने जवानी पर बहुत घमंड हो गया था। मैं घर से निकल कर गलियों में साहस और बिना भय के निडर घूमता था। जब मैं इन गांव के कुत्‍तों को देखता तो मुझे बड़ा अचरज होता था। ये वैसे तो देखने में बहुत हष्ट-पुष्ट दिखाई देते है। परंतु इनकी गर्दन शरीर के बनावट के हिसाब से एक दम से पतली थी। इसलिए जब भी मैं लड़ता तो न तो ये मुझे पकड़ ही पाते थे। और मेरी पकड़ के सामने उनकी बोलती बंद हो जाती थी। मेरे जबड़े भी बहुत मजबूत थे। तब मैं यही सोचता था मेरी मां जंगली होने के कारण में इन सब से भिन्न हूं।

क्योंकि हमें तो जीने के लिए शिकार को पकड़ना उसे मारना होता था। उसे पकड़ कर दूर तक खिंच कर ले जाना होता है। अगर आपकी गर्दन कमजोर होगी तो आप उसे जबड़े से उठा कर चल नहीं सकेंगे। शायद यही कारण होगा जो मुझे मिला था जन्म जाता ही मिला था। इसमें मेरा कोई गुण गौरव तो नहीं था। परंतु मेरे पास था तो मैं इस उपयोग कर सकता था। अगर आपका शरीर कमजोर है तो जंगल में आप कैसे अपना पेट भर सकते थे। और ये गांव के मुस्टंडे कुछ भी नहीं कर सकते....गलियों में पड़े केवल भोंकना या अपने से कमजोर प्राणी को सताना ही इनका कार्य भर रह गया है। और दुनियां के केवल लात, घूस्‍से और दुतकार के साथ भोजन पाते है।

26-असंभव के लिए जुनून- (THE PASSION FOR THE IMPOSSIBLE) का हिंदी अनुवाद

असंभव के लिए जुनून-(THE PASSION FOR THE IMPOSSIBLE) का हिंदी अनुवाद

अध्याय -26

16 सितम्बर 1976 सायं 5:00 बजे चुआंग त्ज़ु ऑडिटोरियम में

[एक संन्यासिनी ने पहले ओशो को अपनी कामुकता के बारे में लिखा था, जो हाल ही में और भी तीव्र हो गई थी -- मुख्य रूप से स्व-कामुक गतिविधि के कारण। बचपन से ही उसके मन में अपराध बोध की भावनाएँ उभरने लगीं, कि यह एक विकृति है। ओशो ने उसकी ऊर्जा पर लगाम लगाई।]

मैंने तुम्हें कुछ दिनों तक ब्रह्मचर्य रखने के लिए खास तौर पर इसी उद्देश्य से कहा था, क्योंकि एक बार जब तुम कुछ दिनों तक ब्रह्मचर्य का पालन करते हो, तो ऊर्जा इकट्ठी हो जाती है; यह एक भंडार बन जाती है। और जब यह एक भंडार बन जाती है, तो तुम आसानी से जान सकते हो कि यह कहाँ जाना चाहती है, यह कैसे रचनात्मक होना चाहती है, यह किस दिशा में जाना चाहती है। एक व्यक्ति जो अपनी यौन ऊर्जा का लगातार उपयोग कर रहा है, वह कभी नहीं जानता कि ऊर्जा स्वयं क्या करने का इरादा रखती है। और ये दो अलग-अलग चीजें हैं।

42-धम्मपद–बुद्ध का मार्ग–(The Dhammapada: The Way of the Buddha, Vol-05)–(का हिंदी अनुवाद )

धम्मपद: बुद्ध का मार्ग, खंड 5–(The Dhammapada: The Way of the Buddha)–(का हिंदी अनुवाद )

अध्याय -02

अध्याय का शीर्षक: हृदय में कोई प्रश्न नहीं होता

12 अक्टूबर 1979 प्रातः बुद्ध हॉल में

पहला प्रश्न: (प्रश्न -01)

प्रिय गुरु,

क्या तुम्हें सचमुच मेरा दिल तोड़ना है?

हाँ, सोमेंद्र। यह एक अकृतज्ञ कार्य है, लेकिन इसे करना ही होगा। मनुष्य तीन स्तरों पर विद्यमान है: मस्तिष्क - विचारों का संसार, विचार प्रक्रिया - सबसे सतही स्तर। इसके नीचे हृदय है - भावनाओं, संवेदनाओं, संवेदनाओं का संसार - विचारों से थोड़ा गहरा, लेकिन सबसे गहरा नहीं। और तीसरा है अस्तित्व का क्षेत्र - कोई विचार नहीं, कोई भावना नहीं - आप बस हैं।

मेरा काम सबसे पहले सोचने की प्रक्रिया को नष्ट करके शुरू होता है -- ज़ाहिर है, क्योंकि आप वहीं हैं। मुझे आपके दिमाग पर बेरहमी से प्रहार करना है। एक बार जब आपकी ऊर्जा दिमाग से दिल की ओर चली जाती है, तो मैं आपका दिल भी तोड़ना शुरू कर देता हूँ। पहले मैं आपके दिल को एक प्रलोभन की तरह इस्तेमाल करता हूँ: मैं आपको दिमाग से दिल की ओर जाने को कहता हूँ। यह बस आपको एक ऐसा लक्ष्य देने के लिए है जो बहुत दूर न हो, क्योंकि बहुत दूर का लक्ष्य आपको आकर्षित नहीं कर सकता। अगर वह बहुत दूर है तो वह असंभव लगता है; लक्ष्य आपकी पहुँच में होना चाहिए।

शनिवार, 18 अक्टूबर 2025

25-असंभव के लिए जुनून- (THE PASSION FOR THE IMPOSSIBLE) का हिंदी अनुवाद

  

असंभव के लिए जुनून-(THE PASSION FOR THE IMPOSSIBLE) का हिंदी अनुवाद

अध्याय -25

14 सितम्बर 1976 सायं 5:00 बजे चुआंग त्ज़ु ऑडिटोरियम में

[एक आगंतुक ने कहा कि तीन साल के फ्रायडियन मनोविश्लेषण ने उनकी मदद की, लेकिन इससे चीजें मुश्किल भी हो गईं।]

यह भी सच है, क्योंकि सभी विश्लेषणात्मक विधियाँ एक तरह से अधूरी हैं। वे आपको केवल एक निश्चित सीमा तक ही मदद करती हैं और फिर आपको एक अधर में छोड़ देती हैं। आपको लगता है कि कुछ हुआ है, लेकिन बहुत कुछ छूट गया है। कुछ अधूरा, लटका हुआ, लटका हुआ लगता है। लेकिन यह स्वाभाविक है क्योंकि विश्लेषण एक बहुत ही नई प्रक्रिया है। इसकी शुरुआत फ्रायड से हुई है; यह सौ साल भी पुरानी नहीं है। और पूरी विधि एक आदमी द्वारा विकसित की गई थी। यह रास्ते पर है, यह बढ़ रही है।

किसी निश्चित विधि को पूर्ण होने में सदियाँ लग जाती हैं, क्योंकि बहुत से लोगों पर प्रयोग करना पड़ता है, और लाखों लोगों को विधि से गुजरना पड़ता है। वे विधि को विकसित होने में सहायता करते हैं। विधि लोगों को विकसित होने में सहायता करती है; लोग विधि को विकसित होने में सहायता करते हैं। फ्रायड ने बस एक रूपरेखा दी है और वह भी बहुत आदिम। ऐसा होना ही था। सभी अग्रदूत आदिम, अल्पविकसित, अपरिष्कृत होते हैं; चमक बाद में आती है।

24-असंभव के लिए जुनून- (THE PASSION FOR THE IMPOSSIBLE) का हिंदी अनुवाद

असंभव के लिए जुनून-(THE PASSION FOR THE IMPOSSIBLE) का हिंदी अनुवाद

अध्याय -24

13 सितम्बर 1976 सायं चुआंग त्ज़ु ऑडिटोरियम में

देव का अर्थ है दिव्य और विश्व का अर्थ है ब्रह्माण्ड, दिव्य ब्रह्माण्ड। और यह बिलकुल ऐसा ही है। ईश्वर अलग नहीं है। यह कोई अलग वास्तविकता नहीं है। पूरा संसार दिव्य है। सृष्टि और रचयिता दो चीजें नहीं हैं। वे एक हैं, एक ही एकता है।

इसलिए इसे याद रखें और हर जगह ईश्वर को खोजना शुरू करें। एक बार जब आप ऐसा करेंगे, तो आपको वहाँ शांति महसूस होने लगेगी। पेड़ों में, पक्षियों में, जानवरों में, आदमी में, दोस्त में, दुश्मन में, सफलता में, असफलता में, बस उसे खोजते रहें। और आप उसे हर जगह पाएँगे।

सुख में भी वही है, और दुख में भी वही है। जीवन में भी वही है, मृत्यु में भी वही है। पूरा ब्रह्मांड, पूरा अस्तित्व ही ईश्वरीय है। उस आत्मा को जितना संभव हो सके उतना गहराई से आत्मसात करें।

शुक्रवार, 17 अक्टूबर 2025

23 - पोनी - एक कुत्‍ते की आत्‍म कथा -(मनसा-मोहनी)

 पोनी – एक  कुत्‍ते  की  आत्‍म  कथा-(अध्याय - 23)

(सन्‍यास एक कला है)

शायद वह सितम्बर माह का ही समय रहा होगा, बरसात खत्‍म हो गई थी। शरद ऋतु आने में अभी कुछ देरी थी। दिन भर में इन दिनों धूप तेज रहती थी। परंतु सूर्य के अस्‍त होते ही पूरी प्रकृति में एक मधुर सीतलता छा जाती थी। भारतीय तिथि में इसे भादों माह कहा जाता है। यह एक प्रकार का सुहाना बसंत ही तो था। जो गर्मी के बाद शरद ऋतु की और अग्रसर हो रहा होता है। इन्‍हीं दिनों हिंदुओं की राम लीला शुरू होती है। और बच्‍चों के स्‍कूल की लम्बी छुट्टी हो जाती है। इसी सब से यह तिथि मुझे आज भी याद थी। क्‍योंकि पार्क में बहुत बड़ी सी एक स्‍टेज बना कर रात—रात भर राम लीला खेली जाती थी। जब में पार्क में सुबह जाता तो वहां पर हजारों लोगों के पद चाप की खुशबु महसूस होती थी। तभी मैं समझ जाता था, रात को यहां पर हजूम—हजूम लोग इकट्ठे हुए होंगे। परंतु मैं वहां रात को कभी आया नहीं था। इस की कोई जरूरत भी नहीं थी। अगर घर से निकलना ही होता तो मैं जंगल के एकांत में जाना पसंद करता था।

41-धम्मपद–बुद्ध का मार्ग–(The Dhammapada: The Way of the Buddha, Vol-05)–(का हिंदी अनुवाद )

धम्मपद: बुद्ध का मार्ग, खंड-05–(The Dhammapada: The Way of the Buddha)–(का हिंदी अनुवाद )

11/10/79 प्रातः से 20/10/79 प्रातः तक दिए गए व्याख्यान

अंग्रेजी प्रवचन श्रृंखला

10 अध्याय

प्रकाशन वर्ष: 1990

मूल टेप और पुस्तक का शीर्षक था "द बुक ऑफ द बुक्स, खंड 1 - 6"। बाद में इसे वर्तमान शीर्षक के अंतर्गत बारह खंडों में पुनः प्रकाशित किया गया।

धम्मपद: बुद्ध का मार्ग, खंड -05–(The Dhammapada: The Way of the Buddha)–(का हिंदी अनुवाद )

अध्याय -01

अध्याय का शीर्षक: दुनिया आग में है

11 अक्टूबर 1979 प्रातः बुद्ध हॉल में

सूत्र:

दुनिया आग की लपटों में है:

और क्या आप हंस रहे हैं?

आप गहरे अंधेरे में हैं.

क्या आप प्रकाश नहीं मांगेंगे?

 

क्योंकि अपने शरीर को देखो --

एक चित्रित कठपुतली, एक खिलौना,

संयुक्त और बीमार और झूठी कल्पनाओं से भरा हुआ,

एक छाया जो बदलती है और लुप्त हो जाती है।

 

यह कितना कमज़ोर है!

कमज़ोर और महामारी,

यह बीमार हो जाता है,

सड़ जाता है और मर जाता है।

हर जीवित चीज़ की तरह

अंत में वह बीमार हो जाता है

और मर जाता है।

 

इन सफ़ेद हड्डियों को देखो,

मरती हुई गर्मी के खोखले खोल और भूसी।

और क्या आप हंस रहे हैं?

गुरुवार, 16 अक्टूबर 2025

22 - पोनी - एक कुत्‍ते की आत्‍म कथा -(मनसा-मोहनी)

 पोनी – एक  कुत्‍ते  की  आत्‍म  कथा-(अध्याय - 22)

(मेरी शरारतें|

जैसे—जैसे मैं बड़ा हो रहा था, मेरी शरारतें भी बढ़ती जा रही थी। हालांकि में उन पर काबू पाने की भरपूर कोशिश कर रहा था। परंतु मेरा पशु स्वभाव जो मुझे पीढ़ी दर पीढ़ी मिला था, वह मेरे बस के बहार था। कितना ही कोशिश करूं परंतु अंदर धक्के मारती उर्जा मुझे कुछ न कुछ गलती करने को मजबूर कर ही देती थी। शरीर का विकास भी इन घटनाओं की जड़ था। जैसे नए दांतों का उगना। अब वह दाँत किसी चीज को फाड़ना चाहते है। वही अभ्यास उनकी मजबूती की जड़ है। अब इस बात का पता नहीं चलता कि किसे काटे या किसे फाड़े या किसे छोड़े।

जब सब लोग ध्‍यान में चले जाते उस समय मुझे बहुत अकेला पन खलता था। उस समय मुझे मेरे कुत्ता होने का आभास सबसे अधिक होता था। इसी बात की हीनता मुझे क्रोध करने को उकसाती थी। कि सब लोग अंदर चले गये और मुझे बहार छोड़ दिया। जब की मुझे अंदर जाना बहुत अच्‍छा लगता था। मैं किसी को कुछ कहता भी नहीं था किसी एक कोने में आराम से बैठ कर आंखें बद कर लेट जाता था।

40-धम्मपद–बुद्ध का मार्ग–(The Dhammapada: The Way of the Buddha, Vol-04)–(का हिंदी अनुवाद )

धम्मपद : बुद्ध का मार्ग, खंड-03–(The Dhammapada: The Way of the Buddha)–(का हिंदी अनुवाद )

धम्मपद: बुद्ध का मार्ग, खंड -03

अध्याय -10

अध्याय का शीर्षक: आकाश जितना विशाल

21 अगस्त 1979 प्रातः बुद्ध हॉल में

पहला प्रश्न: (प्रश्न -01)

प्रिय गुरु,

पश्चिमी मन विश्लेषण की ओर इतना उन्मुख है, मस्तिष्क का बायाँ गोलार्द्ध - पूर्वी मन ठीक इसके विपरीत, सहज ज्ञान युक्त दायाँ गोलार्द्ध। पश्चिम पूर्व से मोहित है और पूर्व पश्चिम से। दोनों की समान मात्रा - क्या यही ज्ञान का सामंजस्य और विपरीतताओं का अतिक्रमण है?

प्रेम धनेश, विपरीतताओं का अतिक्रमण कोई मात्रात्मक घटना नहीं है, यह एक गुणात्मक क्रांति है। यह दोनों की समान मात्रा का प्रश्न नहीं है; वह एक बहुत ही भौतिकवादी समाधान होगा। मात्रा का अर्थ है पदार्थ। दोनों की समान मात्रा आपको केवल संश्लेषण का आभास देगी, वास्तविक संश्लेषण नहीं - एक मृत संश्लेषण, जो जीवित नहीं, श्वास नहीं ले रहा, हृदय की धड़कन नहीं।

असली संश्लेषण एक संवाद है: दोनों की बराबर मात्रा नहीं, बल्कि एक प्रेमपूर्ण संबंध, एक मैं/तू संबंध। यह विपरीतताओं को जोड़ने का सवाल है, उन्हें एक जगह इकट्ठा करने का नहीं।

23-असंभव के लिए जुनून- (THE PASSION FOR THE IMPOSSIBLE) का हिंदी अनुवाद

असंभव के लिए जुनून-(THE PASSION FOR THE IMPOSSIBLE) का हिंदी अनुवाद

अध्याय -23

12 सितम्बर 1976 सायं चुआंग त्ज़ु ऑडिटोरियम में

आनंद का मतलब है परमानंद, और भावना का मतलब है अनुभूति - आनंद की अनुभूति, आनंद की अनुभूति। और याद रखें कि परमानंद का सोच से कोई लेना-देना नहीं है। यह एक अनुभूति है। जो लोग अपने सिर में उलझे रहते हैं, वे केवल दुखी और दुखी ही रह सकते हैं। उनके लिए कोई दूसरा रास्ता नहीं है। सिर ही नरक है, नरक का केंद्र। नरक कहीं भूमिगत नहीं है। यह सिर में है। यहीं शैतान का कारखाना है।

इसलिए हृदय की ओर अधिकाधिक पंखा झलें--और आप बहुत आसानी से गिर सकते हैं; कोई समस्या नहीं है। बस इसे होने दें। समाज इसमें मदद नहीं करता। समाज हृदय के विरुद्ध है। समाज बहुत जिद्दी और मूर्ख है। समाज केवल सिर के लिए है क्योंकि वह चाहता है कि लोग अधिकाधिक कुशल तंत्र बनें, इसके अलावा कुछ नहीं। समाज से एकमात्र अपेक्षा यह है कि आप कुशल हों। समस्या यह है कि सिर कुशल है और हृदय नहीं। हृदय कभी कुशल नहीं हो सकता, और सिर बहुत-बहुत कुशल हो सकता है। इसलिए धीरे-धीरे समाज सिर को प्रशिक्षित करने और हृदय को दरकिनार करने लगा है।

बुधवार, 15 अक्टूबर 2025

39-धम्मपद–बुद्ध का मार्ग–(The Dhammapada: The Way of the Buddha, Vol-04)–(का हिंदी अनुवाद )

धम्मपद: बुद्ध का मार्ग, खंड -04–(The Dhammapada: The Way of the Buddha)–(का हिंदी अनुवाद )

अध्याय -09

अध्याय का शीर्षक: कानून के प्रति जागरूक रहें

30 अगस्त 1979 प्रातः बुद्ध हॉल में

सूत्र:

जो नंगा रहता है,

उलझे हुए बालों के साथ,

कीचड़ से सने हुए,

जो उपवास करता है

और ज़मीन पर सोता है

और अपने शरीर पर राख मलता है

और अनंत ध्यान में बैठता है --

जब तक वह संदेह से मुक्त नहीं हो जाता,

उसे आज़ादी नहीं मिलेगी.

 

लेकिन जो पवित्रता और

आत्मविश्वास से जीता है

शांति और सदाचार में,

जो बिना किसी हानि,

चोट या दोष के है,

भले ही वह अच्छे कपड़े पहनता हो,

जब तक उसमें भी विश्वास है

वह एक सच्चा साधक है।

 

एक महान घोड़ा शायद ही कभी

कोड़े का स्पर्श महसूस होता है।

इस संसार में कौन निर्दोष है?