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बुधवार, 17 दिसंबर 2025

04-सदमा - (उपन्यास) - मनसा - मोहनी दसघरा

अध्याय-04

(सदमा-उपन्यास)

टी का रेलवे स्टेशन एक दम से वीरान था। कहीं-कहीं दूर-दराज हल्की-हल्की लाईट जल रही थी। सर्दी की रात होने के कारण एक आधा कुत्ता भी कहीं पास छूप सुकड़ कर सोया हुआ था। कही दूर कुछ कुत्तों के भौंकने की भी आवाज जरूर आ रहा थी। परंतु अपने साथियों की आवाज का इस शरदी में कौन जवाब दे। हां झींगुर अपनी अविरल ताने निर्दोष भाव से गाये जा रहे थे। तभी सोम प्रकाश के शरीर ने थोड़ी सी हरकत की। उसी समय अचानक स्टेशन मास्टर अपने कमरे से बाहर निकला उसने देखा की दूर कोई परछाई सी हिली। पहाड़ी स्टेशन होने के कारण यहां पर हमेशा जंगली जानवरों का भय बना ही रहता है। इसलिए इस खतरे इस बचने के लिए सब के हाथ में लकड़ी और टार्च जरूर होती है। तभी उसने टार्च की लाईट उस परछाई पर मारी तो उसे लगा की नहीं रे ये तो कोई मनुष्य है। परंतु मनुष्य इतनी शरद रात में वहां कैसे हो सकता है। इतनी रात में तो सड़क पर सफर करना भी खतरनाक होता है। एक तो यहां की सर्दी जो गर्मी के मौसम में भी बहुत खतरनाक होती है। आप जरा बहार सोए नहीं की आपकी छाती को पकड़ लेगी। तभी स्टेशन मास्टर ने खड़े होकर बड़े ही ध्यान से देखा। और वह उस परछाई की और चल दिया जैसे-जैसे वह आगे बढ़ रहा उसे दूर खंबे के पास एक मनुष्य का पेर नजर आये। शायद फिर उस परछाई ने पैर हिलने की कोशिश की। जिसे स्टेशन मास्टर का भय एक दया में बदल गया। ये तो कोई मनुष्य दिखाई दे रहा है।

तभी अचानक उनके दिमाग में बिजली कौंधी अरे ये तो कोई भला मानस लग रहा है। परंतु इतनी रात को यहां कैसे। उसने पास ही सो रहे कुली को आवाज दे कर जगाया और अपने साथ ले कर सोम प्रकाश की और चल दिया। सच वहां एक आदमी बेहोश अवस्था में पड़ा था। उसके सर और मूंह से खून भी निकल कर जम गया था। जिससे कारण लगता था, वह काफी देर का यहां पर पड़ा है। राम-राम कर के दोनों ने उसके सर को उठा कर जगना चाहा। भाई कौन हो....उठो बहार कितनी ठंड है तुम यहां कैसे आ गये। इस सब के कारण सोम प्रकाश ने आंखें खोली और कहां.....रेशमी.....रेशमी.....। और वह अपने शरीर को ढीला छोड़ कर लेट गया और फिर उसने अपनी आंखें बंद कर ली। अब स्टेशन मास्टर ने कहां की पहले इसे आफिस में ले चलते है। दोनो उसे उठा कर आफिस की और चल दिये। दफ्तर के अंदर जो बेंच था उस पर उसे लिटा कर उसे एक कंबल से ढक दिया। और जो पास रखा बिजली का हीटर था उसे चालू कर दिया। धीरे-धीरे हीटर और कंबल के कारण सोम प्रकाश का शरीर गर्म होने लगा।

उसके बाद स्टेशन मास्टर ने पुलिस को फोन किया। कि स्टेशन पर कोई अचेतन अवस्था में जवान व्यक्ति मिला है, उसके सर से खून बह रहा है। और साथ-साथ अस्पताल में फोन कर के एम्बुलेंस को भी बुला लिया। पहले पुलिस आई। इंस्पेक्टर ने जब उसे देखा तो उसे विश्वास नहीं हो रहा था। जिस व्यक्ति को वह पूरा दिन न जाने कहां-कहां वह ढूंढता रहा था। उसे वह इस अवस्था में मिलेगा। इस की उसे कल्पना तक नहीं थी। तभी एम्बुलेंस भी आ गई। स्ट्रेचर पर लिटा कर वो लोग यह कह कर की इंस्पेक्टर साहब आप अस्पताल जरूर आ जाना इनका फार्म भरने के लिए। अब हम चलते है। अभी इसके शरीर में जान है। पूरी रात इतनी चोट के बाद भी यह व्यक्ति जीवित था। ये कोई चमत्कार से कम नहीं था। लगता है इसको कोई अंदरूनी गंभीर चोट भी आई है।

एम्बुलेंस तेजी से अस्पताल की और चली गई। इंस्पेक्टर ने स्टेशन मास्टर से कहां की इनके साथ कोई और आदमी तो आपने नहीं देखा। तब स्टेशन मास्टर ने कहा की गाड़ी तो श्याम चार बजे ही चली गई थी। वह आखिरी गाड़ी होती है। उसके बाद तो यहां न आदमी होता है न आदमी की जात। और फिर यह उस कोने में दूर बिलकुल झाडियों के पास जो बिजली का खंबा दिखाई दे रहा है वहां पर पड़ा था। बाते करते हुए वो लोग उस खंबे के पास पहुंचे। वहां जमीन पर काफी खून गिर कर जम गया था। श्याम के बाद बारिश तो नहीं हुई थी। परंतु हवा में ठंडक जरूर थोड़ी बढ़ गई थी। खंबे को भी ध्यान से देखा उस पर भी खून लगा था। लगता है ये अंधेरे के कारण इस खंबे से टकरा कर बेहोश हो गया था।

तब इंस्पेक्टर ने कहां की हो न हो यह वही लड़का है जिसे हम दिन में ढूंढ रहे थे। एक भला आदमी है, बेचारा स्कूल मास्टर। क्या बतलाऊं स्टेशन मास्टर जी। आदमी के भाग्य में क्या लिखा है कोई नहीं जान सकता। इस व्यक्ति ने बहुत ही नेक काम किया था। कोई पागल लड़की न जाने कैसे मुम्बई से यहां इतनी दूर आ गई थी। ये कुछ समझ से परे की बात है। कहां पर मुम्बई और कहां इस कोने में ये ऊटी। इस आदमी ने उसे अपने घर में रखा लिया। उसकी देख भाल की और देखों होनी का खेल। उसे एक वैद्य जी के यहां ये छोड़ कर आया था। तीन दिन वह लड़की वैद्य के पास रही और अचानक वह ठीक हो गई। और उसी दिन उसके माता-पिता दोनों यहां पर आ गए। पहले तो उन्होंने केस फाइल किया था, कि हमारी लड़की ऊटी में ही कहीं देखी गई है। लेकिन तब उनकी लड़की ठीक हुई उन्हें मिली तो उन्होंने अपना कैसे भी वापस ले कर चले गए। देखो वो तो इस भले आदमी से मिल कर धन्यवाद भी देना चाहते थे। और ये अभागा शायद पुलिस को देख कर डर गया।

और कल श्याम की गाड़ी से वो लोग मुम्बई जाने वाले थे। तो अरे यह श्याम से यहां गिरा पड़ा है। तब तो इसका बचना अति कठिन है। अच्छा अगर जरूरत पड़ी तो आपसे कुछ कागजों पर साईन करवाने आना होगा। परंतु आपने ये भला काम किया। और इंस्पेक्टर अपनी जीप में बैठ कर अस्पताल की और चला गया।

वहां अस्पताल में सोम प्रकाश को लिटा कर आक्सीजन लगा दी और साथ में कुछ एंटीबायोटिक दवाओं को ग्‍लूकोज के साथ चढ़ाना शुरू कर दिया। सोम प्रकाश की टाँग भी टकने के पास से टूट गई थी। एक आस थी की अभी उसकी सांसे चल रही थी। जब दिन के समय इंस्पेक्टर साहब उसे ढूंढते हुए सोम प्रकाश के घर पहुंचे तो उन्हें पता चला की वह तो वहां से दो दिन से आया ही नहीं था। इसलिए जिस स्कूल में वह नौकरी कर रहा था। वहां पर भी जाकर देखा की वहां भी नहीं है। परंतु अब हालत एक दम से भिन्न है। वह कल तक एक दोषी था आज वह एक रोगी है। पहली बात तो अब उनकी जान को बचाना है। कई घंटो ठंड में खुले आसमान में बेहोश पड़े रहने के कारण उसका शरीर अकड़ गया था। इस सब के सुधार में तो समय लगेगा ही। परंतु अब एक आस उम्मीद तो है की उसे बचाया जा सकता। इस के लिए वहां का पूरा स्टॉप बहुत मेहनत कर रहा था।

सुबह होते-होते दवाई ने अपना काम करना शुरू कर दिया था। अब सोम प्रकाश की हालत खतरे से बाहर थी। डा. इंतजार कर रहे थे कि उसके घर से कोई नाते या रिश्तेदार आ जा जाये तो उसके हस्ताक्षर करा लिये जाये। परंतु वहां से तो कोई आया नहीं था। हां इंस्पेक्टर ने स्कूल में जरूर खबर भेज दी थी। की आपका टीचर आज स्कूल नहीं आ सकेगा। वह एक दुर्घटना के कारण अस्पताल में भर्ती है। पूरा दिन उसकी नाना सोम प्रकाश को कहां-कहां नहीं ढूंढती रही। रात एक पल के लिए भी नहीं सो पाई थी। जारा सी आहट होती तो लगता सोम प्रकाश आ गया। परंतु ये मात्र उसके मन का भ्रम था।

जब सुबह तक भी सोम प्रकाश घर नहीं लोटा तब नानी ने साहस कर पुलिस स्टेशन जाने का निर्णय लिया। वह जानती थी। पुलिस उसे ढूंढते हुए घर तक आई थी। जरूर उसे पुलिस ने पकड़ लिया होगा। और उसका अंतस मन यही चाहता था। कि अधिक बुराई से तो कम बुराई भली। जान तो बची रहेगी। वरना इस वीराने में रात भर कोई कैसे जिंदा रह सकता है। वह डरती कांपती पुलिस स्टेशन पहुंची। गेट पर खड़े होकर उसने गहरी स्वांस ली और अंदर की और चल दी। वहां पर एक सिपाही खड़ा हुआ ड्यूटी दे रहा था, जिसे देख कर पल भर के लिए वह ठिठकी, उसे कुछ संकोच और भय जरूर हुआ। परंतु दूसरे ही पल उसने साहस कर के कहां की मुझे साहब से मिलना है। सिपाही ने एक बार उसे नीचे से उपर देखा और कहां बैठो अम्मा अभी पूछ कर आता हूं। और वह अंदर चला गया। अंदर से उसके साथ एक इंस्पेक्टर साहब साथ आये और अम्मा को कहां की बोलो अम्मा क्या काम है।

बेटा काम तो क्या है, आप का एक हवलदार कल घर आया था। मेरे सोम प्रकाश को ढूंढता हुआ। वह बेचारा बहुत भोला है। वह एक दम सरल है। वह तो किसी का सामान भी नहीं उठा सकता तो एक लड़की को कैसे अपहरण कर सकता है। इंस्पेक्टर समझ गया की यह जरूर सोम प्रकाश की बात कर रही है। उसने कहां की अम्मा के लिए पानी लेकर आओ। अम्मा ने पानी पिया और पल्लू से अपना मुख पोंछती हुई इंस्पेक्टर को देखने लगी। तब इंस्पेक्टर ने कहां की आपका सोम प्रकाश ठीक है। आप घबराओ मत हमने उसे पकड़ा नहीं है क्योंकि लड़की के माता-पिता ने अपनी शिकायत वापस ले ली थी। इसलिए सोम प्रकाश पर कोई केस नहीं बनता परंतु....।

परंतु क्या अचानक नानी का मुंह खूला का खूला रह गया। घबराओ मत अम्मा आपका सोम प्रकाश ठीक है। वह एक अस्पताल में है। आप हमारे साथ चलो। और इंस्पेक्टर उसे अपनी जीप में बिठा कर अस्पताल की और चल दिया। अभी भी सोम प्रकाश अचेत था। जब नानी उसे देखने के लिए कमरे में गई जहां पर सोम प्रकाश लेटा हुआ था। उसकी यह हालत देख कर वह डर गई। की उसका सोमू अब नहीं बचेगा। वह रोने लगी। उसने उसका हाथ पकड़ा और फफक पड़ी। अचानक सोम प्रकाश के शरीर ने हरकत की वहां खड़ी नर्स ने ये सब घटते देखा। वह भागी हुई डा. को बुलाने के लिए दौड़ी। तभी नानी क्या देखती है कि उसके सोमू ने आंखें खोली। उसकी आंखों से बहते आंसू पल भर के लिए थम गए। हालांकि वह धुंधला देख पा रही थी। परंतु जितना देख पा रही थी। उतना ही उसके लिए पर्याप्त था।

डाक्टर ने आकर सोम प्रकाश को चेक आप किया। और कुछ दवाइयां लिख दी। अब उसे कुछ उम्मीद नजर आ रही थी। डा. ने कहां अम्मा आपका बेटा ठीक हो जायेगा। आप घबराओ मत। बहुत मध्यम आवाज में सोम प्रकाश नानी का हाथ पकड़ कर कह रहा था....नानी.....रे.....श.....मी। और उसकी जमी आंखों से आंसू लुढ़क गए। जो उसके अंदर के इस कठोर वातावरण में न जाने कब के भरे हुए थे। जो आंसुओं और दुआओं से भी नहीं पिघल रही थी। आज वो सब उन आंसू भी उस के लिए पर्याप्त नहीं था। वह जमे आंसू प्रेम की एक आंच में पल में तरल हो का बह गए। और सोम प्रकाश रो पड़ा नानी....नानी...रेशमी। तब नानी ने कहां की बेटा रेशमी अब एक दम से ठीक है वह अपने माता पिता के पास है।

अब तुम्हें पुलिस से भी डरने की कोई जरूरत नहीं है क्योंकि उन्होंने पुलिस केस वापस ले लिया है। और पल भर के लिए उस वातावरण में गहरी शांति छा गई।


 

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