मैं जीवन
सिखाता हूं—(प्रवचन—दूसरा)
दिनांक
1 अगस्त 1986;
प्रात:
सुमिला, जुहू
बंबई।
मैंने
आज के लिए
भेजे गए
प्रश्न देखे; और
उन्हें देखकर
मुझे बड़ी शर्म
आई। शर्म इस
बात की कि
भारत की
प्रतिभा इतने
नीचे गिर गई
है कि यह कोई
अर्थपूर्ण
प्रश्न भी
नहीं पूछ
सकती। फिर
अर्थपूर्ण
उत्तरों की
खोज करने का
तो सवाल ही
पैदा नहीं
होता। जो भी
प्रश्न मुझे
दिखाए गए वे
सब सड़े गले
हैं। पीली
पत्रकारिता, जो तीसरे
दर्जे की
मनुष्यता की
जरूरत पूरी करती
है। उसमें
मुझे कोई रस
नहीं है।
यह
अत्यंत
प्रतिभा का
देश है।
मनुष्यता के
इतिहास में यह
देश उत्तुंग
शिखर पर
पहुंचा है—चेतना
के हिमालय के
शिखर। और अब
लगता है कि हम
इतने नीचे गिर
गए हैं कि जब
तक कोई प्रश्न
किसी अमानवीय, कुरूप
तत्व से
संबंधित नहीं
होता, तब
तक किसी का
उत्तर में रस
नहीं होता।
मैं
कोई राजनैतिक
नहीं हूं।
इसलिए जब कोई
मुझसे प्रश्न
पूछने की
हिम्मत करे, तो
ख्याल रखे कि
मैं यहां कोई
तुम्हें सांत्वना
देने के लिए, या तुम्हारे
मनचाहे उत्तर
देने के लिए
नहीं हूं।
तुम्हारे सिर पर हथौड़ों की चोट पड़ सकती है, क्योंकि मुझे बदले में तुमसे कुछ नहीं पाना है। मेरी सारी कोशिश यही है कि थोड़ी प्रज्ञा की ज्योति जगाऊं, थोड़ी मनुष्यता की सुगंध पैदा कर दूं।
तुम्हारे सिर पर हथौड़ों की चोट पड़ सकती है, क्योंकि मुझे बदले में तुमसे कुछ नहीं पाना है। मेरी सारी कोशिश यही है कि थोड़ी प्रज्ञा की ज्योति जगाऊं, थोड़ी मनुष्यता की सुगंध पैदा कर दूं।
इसलिए
अपना प्रश्न
पूछने के पहले
सचेत रहो। मैं
सिर्फ तुम्हारे
प्रश्नों का
उत्तर नहीं दे
रहा हूं—मैं
इस सातत्य के
संपूर्ण
चित्त को
उत्तर दे रहा
हूं। यह
सातत्य गौतम
बुद्ध, कबीर,
नानक का है।
और
तुम्हारे
सारे सवाल
कचरा हैं।
तुम्हें ये प्रश्न
राजनीतिज्ञों
से पूछने
चाहिए। मेरा
समय बरबाद मत
करो। यह सिर्फ
तुम्हें इशारा
करने के लिए
है कि अगर
तुम्हें बुरी
तरह से न
पिटना हो तो
सचेत हो जाओ।
प्रश्नकर्ता
अपने परिचय
में कहता है
कि वह मेरा
पुराना
प्रेमी है। और
वह बरसों से
मेरे विरोध
में लिख रहा
है। मैं समझ
सकता हूं।
पुराने प्रेमी
खतरनाक होते
हैं। प्रेम
बड़ी आसानी से
घृणा में बदल
सकता है। और
तुम्हारा
प्रेम किस तरह
का था? तुमने
मेरे लिए पक्ष
में एक शब्द
भी नहीं लिखा।
तुम मेरा और
मेरे नाम का
शोषण करते रहे—और
वह भी इतने
कुरूप ढंग से।
मैं तुम्हारे
प्रश्नों का
उत्तर देना
अपने लिए
अपमानजनक मानता
हूं।
तो इसे
ख्याल रखो और
अपने प्रश्न
पूछो।
अत्यंत
विनम्रतापूर्ण
मेरा पहला
प्रश्न है: आपके
रजनीशपुरम के
प्रयोग के
संबंध में
हमें बड़ी
उत्सुकता है।
दुर्भाग्यवश
वह असफल रहा। हम
अमेरिकन
सरकार और ईसाई
विश्वास को एक
ओर रखें, तो
उसकी असफलता
के लिए कौन
जिम्मेदार है?
तुम!
और तुम्हारे
जैसे अन्य
लोग।
पहली
बात,
वह प्रयोग
कभी असफल नहीं
हुआ। वह
प्रयोग बेहद सफल
रहा है। और
उसकी सफलता ही
मुसीबत की जड़
थी। जो प्रयोग
असफल होते हैं,
उनकी फिक्र
कौन करता है? अमेरिकन
सरकार या
ईसाइयत या कोई
भी उस प्रयोग में
क्यों उत्सुक
हो, जो
असफल हो गया
है? वह
नितांत सफल
रहा है। यह
बात उनकी समझ
के बाहर थी।
उसकी सफलता ही
उनकी समस्या
थी।
तो
"असफलता' शब्द
को छोड़ ही दो।
मेरे शब्दकोश
में उसके लिए
कोई स्थान
नहीं है। हमें
जो करना था, हमने कर
लिया। पांच
हजार युवा
लोगों का एक
छोटा—सा
कम्यून आज तक
के इतिहास में,
जगत की सबसे
बड़ी ताकत से
संघर्ष करते
हुए, पांच
साल तक कम्यून
को निर्मित
करता रहा। और
वह कम्यून ऐसे
रेगिस्तान
में निर्मित
किया गया था, जिसका कभी
उपयोग नहीं
किया गया था
जिसे कभी उर्वरित
नहीं बनाया
गया या, जिसने
कभी फूल नहीं
देखे थे और न
कभी एक भी पक्षी
देखा था। पांच
साल के भीतर
वह एक मरूद्यान
बन गया। हमने
पांच हजार
लोगों के लिए
खुद मकान बनाए
जिसमें सब
आधुनिक
सुविधा थी।
हमने जो सड़कें
बनायीं, वे
किसी भी
सरकारी सड़कों
से बेहतर थीं—इसमें
अमेरिका भी
शामिल है।
वह
मरुस्थल फलने
फूलने लगा।
उसमें
हरियाली छा गई।
हमने उसे
उपजाऊ बनाया।
उसमें नहरें
खोदीं, बांध
बांधे। वहां
हजारों पक्षी
आने लगे। यह देखने
योग्य
चमत्कार था कि
१२६ वर्ग मील
के उस मरुस्थल
में ओरेगान से
हजारों हिरण
इकट्ठे हो गए
थे। बिना कुछ
कहे उन्होंने
बहुत कुछ कह दिया।
क्योंकि
रजनीशपुरम को
छोड़कर और सब जगह
उनका जीवन
खतरे में था।
वे गोलियों के
शिकार हो
जाते। और
विशेष रूप से
अमेरिका में
हर साल दस दिन
के लिए हिरणों
का शिकार करने
के लिए पूरी
छूट दी जाती
है।
रजनीशपुरम
में वे रास्ते
पर खड़े हो
जाते। तुम
कितना ही
हार्न बजाओ, वे रास्ते
से नहीं हटते
थे। वे जानते
थे कि तुमसे
उन्हें कोई
खतरा नहीं है।
तुम्हें कार
से नीचे उतरकर
उन्हें
रास्ते से दूर
हटाना पड़ता।
उस
मरुस्थल में
हंस भी प्रगट
हो गए। पूरे
अमरीका से तीन
सौ मोर वहां आ
गए थे। लगता
है,
पत्रकारों
की अपेक्षा
पशु पक्षी
ज्यादा समझदार
होते हैं। और
वहां के
पक्षियों पशुओं,
वृक्षों, और फूलों के
बीच एक अदभुत
समस्वरता थी।
हमने एक
इकोलाजी
पर्यावरण
सम्मत
विज्ञान
व्यवस्था
निर्मित की
थी। हम
आत्मनिर्भर
थे और हमने अमेरिका
से एक डालर भी
नहीं मांगा।
और न ही अमेरिका
से कोई मदद
मांगी। तुम एक
देश होकर भी
अमेरिका की
मदद के बिना
नहीं जी सकते।
तुम असफल हुए
हो। तुम
भिखमंगे हो।
और तुम्हारा
यह देश कभी
सोने की
चिड़िया था। और
तुमने उसकी यह
हालत बनाई है।
अमेरिकन
राजनीतिकों
को भारी चोट
पहुंची कि उनकी
मदद की हमें
कोई जरूरत
नहीं थी।
क्योंकि दूसरों
को गुलाम
बनाने का उनका
यह तरीका है।
मदद तो सिर्फ
एक आवरण है।
अगर तुम
आर्थिक
सहायता लेते
हो तो अनजाने
तुम गुलाम हो
जाते हो। हमने
कभी उनसे किसी
चीज की मांग
नहीं की।
हमारे लोग
दुनिया भर से
अपनी चीजें
लाए थे। और
ऐसा कम्यून
बनाया जो
विश्व में
सर्वाधिक
संपन्न शहर
था।
पांच
हजार लोगों के
कम्यून में
पांच सौ कारें
थीं जिन पर
किसी की
मालकियत नहीं
थी लेकिन जो भी
उपयोग करना
चाहे उनके लिए
उपलब्ध थीं।
पांच हवाई
जहाज थे जो
कम्यून के थे, कसी
और के नहीं
थे। दुनिया भर
के
संन्यासियों ने
कई प्रकार से
अपना प्रेम
भेजा था।
उन्होंने
मुझे 93 रोल्स
रायस कारें
भेंट की थीं, जिन पर मेरी
मालकियत नहीं
थी। क्योंकि
मैं किसी चीज
का संग्रह
नहीं करता। वे
सब कारें
कम्यून की
थीं। दुनिया
में ऐसी कोई
जगह नहीं है
जिसमें पांच
हजार लोग रहते
हों। और उनके
पास 93 रोल्स
रायस कारें
हों।
हमारी
यह सफलता
अमेरिकन
राजनीतिकों
को बहुत चोट
पहुंचा रही
थी। और हर साल
एक विश्व
उत्सव होता
था। सारी
दुनिया से बीस
हजार
संन्यासी चले
आते थे। वह
समय ऐसा था
जैसे कोई
सुनहरा सपना
सकार हुआ हो।
बीस हजार लोग
ध्यान करते, गीत
गाते, अपने—अपने
वाद्यों पर
संगीत छेड़ते,
नाचते, आनंदित
होते। बीस
हजार लोगों के
लिए एक ही रसोईघर
था। जरा
कल्पना करो कि
बीस हजार लोग
एक साथ खाना
खा रहे हैं और बाकी
लोग नाच रहे
हैं, गीत
गा रहे हैं, आनंदमग्न
हैं—क्योंकि
यही मेरा मूल
संदेश है:
त्याग नहीं—आनंद।
संन्यास
का इसलिए पतन
हुआ क्योंकि
वह त्याग से
जुड़ गया। पहले
ऐसा नहीं था।
उपनिषदों के
जमाने में, वेदों
के जमाने में
संन्यास
त्याग नहीं
था। तुम्हारे
सब ऋषियों के
गुरुकुल जंगल
मग हुआ करते
थे। और वे सब
संपन्न
कम्यून थे।
वेदों में या
उपनिषदों में
गरीबी का कभी
भी सम्मान
नहीं किया गया
है।
और
त्याग ईश्वर
के विपरीत
जाता है। गाड, गाड
शब्द के लिए
संस्कृत शब्द
है, ईश्वर।
और ईश्वर का
अर्थ होता है,
ऐश्वर्य, धनाढयता, समृद्धि।
जरा सीता के
बगैर राम को
देखो, तो
तुम्हें
लगेगा कि किसी
चीज की कमी है,
कुछ अति
महत्वपूर्ण
बात का अभाव
है। शायद हृदय
का अभाव है।
जैसे राम का
सिर्फ
निष्प्राण शरीर
पड़ा है। जरा
कृष्ण के
चारों ओर
रासलीला गोपियों
के बगैर कृष्ण
की कल्पना करो,
उनकी
बांसुरी का
गीत खो जाएगा।
मैं
कम्यून में उस
मौलिक
संन्यास को
वापिस लाने की
कोशिश कर रहा
था—जो संसार
का त्याग करने
वाला नहीं, बल्कि
इस संसार को
ऐसे जीना जैसे,
वह
परमात्मा की
भेंट है। यह
एक भेंट है।
और यही
मुसीबत हो गई।
क्योंकि
प्रतिदिन
अमेरिकन
दर्शक, अमेरिकन
टेलीविजन
अमेरिकन
प्रसार
माध्यम आने
लगे। हवाई
जहाज भरकर लोग
कम्यून देखने
के लिए आने
लगे कि यहां
क्या हो रहा
है। और पूरे
अमेरिका में
चर्चा थी कि
इन लोगों ने
रेगिस्तान को
स्वर्ग में
बदल दिया है।
और हम
कोई राजनीतिक
नहीं थे। हमारी
कोई राजनीतिक
पार्टी नहीं
थी। न कोई राजनीतिक
विचारधारा
नहीं थी। हम न
समाजवादी थे, न
पूंजीवादी
थे। और फिर भी
हर श्रेष्ठतम
श्रेणी का
जीवन जी रहे
थे, जो
प्रेम और
मित्रता से
परिपूर्ण था।
अमेरिका के
लोग अपनी सरका
से पूछने लगे,
तुम क्या कर
रहे हो।
तुम्हारा
ख्याल होगा कि
अमेरिका में
हर कोई अमीर
है। तुम
भ्रांति में
हो। वहां तीन
करोड़ लोग
भिखारी हैं, जिनके
पास न खाना है,
न कपड़ा है न
मकान है। और
कैसी मूढ़ता
है। ठीक उतने
ही—तीन करोड़
लोग अधिक खाने
के कारण
अस्पताल में पड़े
हैं।
थोड़ी
सी
बुद्धिमानी
की जरूरत है।
ये लोग ज्यादा
खाने के कारण
मर रहे हैं और
वे लोग मर रहे
हैं क्योंकि
उनके पास खाने
को कुछ नहीं
है। छह करोड़
लोगों की
जिंदगी बचायी
जा सकती है। बस
थोड़ी सी
बुद्धिमत्ता
की जरूरत है।
हम
अमेरिकन
राजनीतिकों
के लिए एक घाव
बन गए थे। वे
कोई जवाब नहीं
दे सके। इसलिए
उनके सामने एक
ही रास्ता था।
कम्यून को
नष्ट कर दें
तो प्रश्न ही
गिर गया और
उत्तर देने की
कोई जरूरत न रही।
कम्यून
को अमेरिकन
सरकार ने और
धर्मांध ईसाइयों
ने नष्ट किया
है। क्योंकि
ऐसा पहली बार
हुआ है कि
ईसाई उनके
संप्रदाय से
बाहर निकले
बिना किसी
अन्य
संप्रदाय में
नहीं उलझे।
कोई
हिंदू ईसाई
बनता है: वह एक
कैद छोड़ता है
और दूसरी कैद
में प्रवेश
करता है। एक
ईसाई हिंदू बनता
है तो एक बंधन
को छोड़कर
दूसरे बंधन को
स्वीकार करता
है। पहली बार
उन्होंने
देखा कि तुम
एक कैद को छोड़
सकते हो और
दूसरी कैद में
प्रवेश करने
की कोई जरूरत
नहीं है। तुम
एक स्वतंत्र
मनुष्य हो
सकते हो।
संन्यासी
धार्मिक है, लेकिन
उसका कोई धर्म
नहीं है।
संन्यासी
आध्यात्मिक
है, लेकिन
वह हिंदू
मुसलमान या
ईसाई नहीं है।
और
संयोगवश
अमेरिका का
प्रेसीडेंट
रोनाल्ड रीगन
दोनों है: एक
तीसरे दर्जे
का राजनीतिक
भी और
रूढ़िवादी
ईसाई भी। उन्होंने
हमें नष्ट
करने के सभी
उपाय किए।
बेचारी
शीला का इसमें
कोई हाथ नहीं
है। वह निश्चित
ही शिकार हो
गई । मेरे मन
में उसके लिए
पूरी करुणा है
तुम उनके
शिकंजे में
किस तरह फंस सकते
हो इसे समझ
लेना जरूरी
है।
कम्यून
के सब
टेलीफोन्स को
ध्वनिमुद्रित
किया जाता था।
मैं एकांत और
मौन में था।
शीला मेरी
सचिव और कम्यून
की
प्रेसीडेंट
थी। यह देखकर
कि हमारे सारे
टेलीफोन
ध्वनिमुद्रित
किए जाते हैं, उसने
बाहर से ओन
वाले सब
टेलीफोन
ध्वनिमुद्रित
करने शुरू कर
दिए। यह जानने
के लिए कि
क्या सरकार—एफ
बी आई सी आई ए
और अन्य
सरकारी संस्थाएं—के
दूत कम्यून
में संन्यासी
बनकर छिपे हैं
और सूचनाएं
बाहर भेजते
रहते हैं?
वह
अपराधी नहीं
थी। जब मैंने
उसे कम्यून का
प्रेसीडेंट
बनाने के लिए
चुना था, तब वह
निर्दोष
महिला थी, और
बहुत
बुद्धिमान
थी। लेकिन
अमेरिकन
राजनीतिज्ञों
ने उसकी
निर्दोषता को
नष्ट कर दिया।
वे जो भी कर
रहे थे, उसके
जवाब में अब
और अपने बचाव
के लिए, वह
सब करना जरूरी
था। उसके सार
अपराध मौलिक
रूप से
अमेरिकन
राजनीतिकों
के अपराध थे, जो उसने
सिर्फ दोहराए—सिर्फ
कम्यून को
बचाने के लिए।
उसके प्रति मेरे
मन में केवल
एक करुणा और
दुख का भाव है,
और कुछ भी
नहीं। वह
अपराधी नहीं
है। और उसने
जो भी किया
उसमें
उद्देश्य
बुरा नहीं था।
उसने
मेरे अपने
कमरे में भी
गुप्त रूप से
बातचीत सुनने
के यंत्र
लगाए। उसने दो
सौ मकानों में
भी गुप्तरूप
से बातचीत
सुनने के
यंत्र लगाए।
स्वभावतः
तर्क यही कहता
है कि वह
जानने की कोशिश
कर रही थी कि
मैं एकांत में
क्या करता हूं, मैं
एकांत में
क्या करता
हूं। लेकिन यह
सच नहीं है।
सच तो यह है कि
वह सचेत रहना
चाहती थी, क्योंकि
उस निवास
स्थान में मैं
अकेला रहता था।
यदि रात में
कोई उसके
दरवाजे खोलता,
जो कि कांच
के थे, तो
उसके उपकरण
उसे तत्क्षण
खबर कर देते
और वह वहां
पहुंच सकती
थी। वह मेरी
सुरक्षा के
लिए था, मेरे
अहित में नहीं
था। उसने मेरे
या मेरे कम्यून
के अहित में
कभी कुछ नहीं
किया।
लेकिन
अब उसकी
व्याख्या की
जा सकती है।
और इन व्याख्याकारों
के कारण वह
इनको और
पत्रकारों को
उन्हीं की
भाषा में जवाब
देने लगी।
उसके पास इतनी
प्रतिभा नहीं
थी कि वह सच कह
दे कि हां, मैंने
भगवान की
सुरक्षा के
लिए उनके
निवास स्थान
में गुप्त रूप
से बातचीत
सुनने के
यंत्र लगाए
थे। लेकिन मैं
जानता हूं वह
मेरे लिए अपनी
जान भी दे
देती। वह
मुझसे प्रेम
करती थी—उस
तरह का नहीं, जैसा तुम
मुझसे करते
हो।
तुम्हारा
प्रेम तो एक
धोखा है। तुम
कहते जरूर हो
कि तुम मेरे
प्रेमी हो—पुराने
प्रेमी। और
इतने समय तक
तुम मेरे बारे
में इतने
घिनौने और
अश्लील लेख
लिखते आए हो
कि तुम्हें तो
सींखचों के
पीछे होना
चाहिए, यहां
मुझसे प्रश्न
पूछते हुए
नहीं।
तो
पहली बात, इस
असफलता के
ख्याल को छोड़
दो। हम सफल
हुए हैं।
मनुष्य के
पूरे इतिहास
में यह पहला
कम्यून था, जो सफल हुआ।
और मनुष्य की
ईष्या के
संबंध में एक
बात का ख्याल
रखो: यह असफलता
से ईष्या कभी
नहीं करती।
तुमने कभी
किसी को असफलता
से ईष्या करते
हुए देखा है? ईष्या सदा
सफलता से होती
है।
रास्ते
पर भिखारी
देखकर कभी
तुम्हें उससे
ईष्या हुई है? लेकिन
धनी आदमी की
गगनचुंबी
अट्टालिका
देखकर तुम
ईष्या से भर
जाते हो। यह
मन बड़ा
विचित्र है, विकृत है, अविकसित है।
हां उसी
अट्टालिका
में यदि आग लगती
है, तो
तुम्हें सहानुभूति
होती है। तुम
उस आदमी के
पास जाकर कहोगे,
मुझे तुमसे
पूरी हमदर्दी
है। बहुत बुरा
हुआ। ऐसा नहीं
होना चाहिए
था। और पूरे
समय जब तक वह भवन
वहां पर था, प्रतिदिन
तुम्हारे मन
में उस भवन के
खिलाफ और उसके
मालिक के
खिलाफ विचार
आते थे।
भारत
में कौन ईष्या
करता है? मैं
विश्व भर में
घूमा हूं।
मैंने किसी
भारत से ईष्या
करते हुए नहीं
पाया। लेकिन
मैंने ऐसे लोग
पाए जो गौतम
बुद्ध से
ईष्या करते
हैं, जो
कृष्ण से
ईष्या करते
हैं,जो
नानक से ईष्या
करते हैं,जो
कबीर से ईष्या
करते हैं। ये
हीरे, जो
हमने पैदा किए
हैं, उनके
देश नहीं पैदा
कर सके—नकली
भी नहीं।
दुनिया की
किसी भी भाषा
में ऐसे वचन
नहीं हैं, जिनकी
तुलना नानक या
कबीर के वचनों
से हो सके; ऐसे
शास्त्र नहीं
है, जिनकी
तुलना धम्मपद
या गीता से हो
सके। पश्चिम
जिस ग्रंथ को "पवित्र
बाइबिल' कहे
चला जाता है, वह पूरा
अश्लीलता से
भरा हुआ है—पांच
सौ पृष्ठ
अश्लीलता के,
नितांत
अश्लीलता के।
उस पवित्र
ग्रंथ पर हर देश
प्रतिबंध
लगाना चाहिए।
पूरी दुनिया
में आज उसे
जला देना
चाहिए। लेकिन
ईसाई भी उसकी
अश्लीलता को
पहचान नहीं
पाते।
जब मैं
कारागृह में
था,
तब वहां का
कार्डिनल
मुझसे मिलने
आया। हम इन
लोगों को
कम्यून में
आने का
निमंत्रण
देते रहे हैं।
लेकिन कम्यून
बहुत सफल हो
रहा था। वे
लोग ईष्या से
भरे थे। कोई
कभी नहीं आया।
जब मैं जेल
में था, तब
यह कार्डिनल
बिना किसी
निमंत्रण के
चला आया। अब
उसे मुझे
सहानुभूति
दिखाने का एक
अवसर मिला था।
अब मुझे
पवित्र
बाइबिल भेंट
करने का अवसर
था। अब मुझसे
यह कहने का
मौका था कि
चिंता मत करो,
जीसस
तुम्हारी
रक्षा
करेंगे।
मैंने
कहा,
वे खुद अपनी
रक्षा नहीं कर
सके, मेरी
रक्षा कैसे
करेंगे? और
मैं इस बाइबिल
को छू नहीं
सकता, क्योंकि
यह अस्तित्व
में सबसे
अपवित्र किताब
है। उसने कहा,
क्या?
मैंने
बाइबिल से
पांच सौ पन्ने
निकाल लिए थे
जो कि अश्लील
थे। उन्हें
तुम अपने बेटे
के सामने नहीं
पढ़ सकते, तुम्हारी
बेटी के सामने
नहीं पढ़ सकते,
तुम्हारे
परिवार के
सामने नहीं पढ़
सकते। कोरी
अश्लीलता है।
उसके सामने
प्ले बॉय या
पैंट हाउस
पत्रिका या
भारत की
"इलस्ट्रेटड
वीकली' कुछ
भी नहीं है।
उसमें एक ही
बात की कमी है
कि वह चित्रमय
नहीं । तो मैं
एक चित्रमय
बाइबिल बनाने
की सोच रहा
हूं। तो
तुम्हें पता
लगेगा कि उसमें
क्या लिखा हुआ
है। अत्यंत
कुरूप।
अगर
कम्यून असफल
होता तो अभी
तक बना रहता।
लेकिन वह सफल
हो गया। और
सफलता को कोई
बर्दाश्त
नहीं कर सकता।
अब वे लोग
प्रसन्न हैं।
अभी दो दिन
पहले अमेरिका
के अटर्नी
जनरल ने एक
पत्रकार
परिषद में
पत्रकारों के
उत्तर देते
हुए,
एक प्रश्न
के जवाब में
कहा, कि
शीला और उसके
साथियों को
साढ़े तीन साल
की कैद हुई
लेकिन भगवान
को क्यों रिहा
किया गया? और
अमेरिकन
न्यायालय के
सर्वोच्च
अधिकारी ने
उत्तर में तीन
बातें कहीं।
एक—हमारे पास
इस बात का कोई
सबूत नहीं है
कि भगवान ने
कोई जुर्म
किया है।
दूसरा—हमारी
योजना भगवान
के खिलाफ नहीं
थी, हमारी
योजना कम्यून
नष्ट करने की
थी। तीसरा—अगर
हम भगवान को
कैद करते या
उनको कुछ हो
जाता, तो
वे शहीद बन
जाते। और हम
वह कभी नहीं
चाहते थे।
उससे तो उनके
अनुयायी और भी
बढ़ जाते। उनके
प्रेमियों की
संख्या में
वृद्धि हो
जाती।
अब
कानून का
सर्वोच्च
अधिकारी इस
बात को स्वीकार
करता है कि
मैंने कोई
अपराध नहीं
किया है। फिर
बिना किसी
गिरफ्तारी के
वारंट के मुझे
क्यों
गिरफ्तार
किया गया? मुझे
व्यर्थ
कारागृह में
बारह दिन तक
बंद क्यों रखा
गया? मैं
बार—बार आग्रह
कर रहा था कि
मुझे अदालत
में ले चलो।
क्योंकि वहां
मैं जज से बात
कर सकता हूं, इन मूढ़ों से
नहीं कर सकता।
और उन्हें यह
साफ था कि जज
के खिलाफ उनके
पास कुछ भी
नहीं है सिद्ध
करने को। तुम
अदालत से यह
नहीं कह सकते
कि यह आदमी
सफल हुआ है
इसलिए हमने
इसे कैद किया
है। यह तो कोई
जुर्म न हुआ।
तुम अदालत से
यह भी नहीं कह
सकते थे कि हम
कम्यून को
नष्ट करना
चाहते थे? कम्यून
ने किसी को
कोई भी नुकसान
नहीं
पहुंचाया है।
उसका निकटतम
पड़ोसी कम्यून
से बीस मील
दूरी पर था।
वह कम्यून बिलकुल
ही अलग थलग था—एक
परिपूर्ण
जगत। हमारे
पास पांच सौ
कारें और हवाई
जहाज थे और
जाना कहीं भी
नहीं था।
दूसरी
बात,
शीला, महज
अमेरिकन
राजनीति की
शिकार बन गई।
उसने उनकी नकल
करनी शुरू कर
दी। ऐसा होता
है। यह
मनोवैज्ञानिक
है। मैं हमेशा
ऐसा कहता आया
हूं कि तुम
अपने मित्र को
बिना किसी
दिक्कत के चुन
सकते हो, लेकिन
तुम्हें अपना
शत्रु चुनना
हो तो तुम्हें
बड़ी सावधानी
बरतनी होगी।
क्योंकि
तुम्हारा
शत्रु नीचे
तुम्हें अपने
तल पर खींच
लाएगा। उससे
लड़ने के लिए
भी तुम्हें
उन्हीं
हथियारों का,
उसी भाषा का,
उसी
कुरूपता का
उपयोग करना
पड़ेगा।
मित्रों को
झेलना आसान
है। तुम्हारा
मित्र कोई भी
बन सकता है।
लेकिन
शत्रुओं के
संबंध में
बहुत सावधान
रहना और बड़ी
सजगता से
चुनना। शत्रु
ऐसा चुनना जो
तुमसे
श्रेष्ठतर
हो। तब
तुम्हें ऊंचा
होना सीखना
होगा—अपने
शत्रु से
ऊंचा।
शीला
इस घिनौनी
राजनीति का
शिकार बनी।
उन्होंने जो
भी किया उसने
उसकी नकल की।
और वे यही चाहते
थे। कानून
उनके हाथ में
हैं,
अदालतें
उनके हाथ में
हैं। यह
भ्रांति है कि
कानून
राजनीति से
स्वतंत्र है।
क्योंकि मुझे
ऐसा ज्ञात हुआ
है कि ऐसा
नहीं है।
जब
उन्होंने
मुझे पकड़ा तो
बारह भरी हुई
बंदूकें मेरी
ओर तानकर
उन्होंने
मुझे
गिरफ्तार किया।
मैंने उनसे
कहा कि यह तो
पागलपन है।
आधी रात में
बारह भरी हुई
बंदूकें और
बारह आदमियों को
क्या नाहक
कष्ट दे रहे
हो?
मेरे पास
कोई शस्त्र
नहीं हैं।
सिर्फ एक कागज
के पर्चे की
जरूरत है—मेरा
गिरफ्तारी
वारंट। मेरी
गिरफ्तारी का
वारंट कहां है?
उनके
पास कोई
गिरफ्तारी का
वारंट नहीं
था। क्योंकि
गिरफ्तारी के
वारंट को
प्राप्त करने
के लिए उन्हें
मजिस्ट्रेट
के पास जाना
पड़ता है और
बताना पड़ता है
कि मैंने क्या
अपराध किया
है। मैंने
उनसे कहा कि अमेरिका
के संविधान के
अनुसार मुझे
अपने अटर्नी
से बात करने
का पूरा
अधिकार है।
उन्होंने इनकार
कर दिया। तब
मैंने उनसे
कहा कि तुम
अपने संविधान
का ही अनादर
कर रहे हो। वे
बोले, हम कुछ
नहीं कर सकते।
हमें ऊपर से
आदेश आए हैं
कि उन्हें
किसी अटर्नी
से मिलने दिया
जाए। क्योंकि
अटर्नी इस
मुकदमें को
तत्क्षण अदालत
में खींच ले
जाता।
उन्होंने
मुझे
शुक्रवार की
रात गिरफ्तार
किया, ताकि कम
से कम शनिवार
और रविवार के
दिन तो अदालत
बंद होने के
कारण मुझे
जमानत मिलना
असंभव था। और
सोमवार को उन्होंने
मुझे एक अदालत
में
मजिस्ट्रेट
महिला के
सामने पेश
किया, जो
कि जज नहीं
थी। और वह
तरक्की पाकर
जज बनने की
प्रतीक्षा कर
रही थी। और
उसे धमकाया
गया। क्योंकि
वहां के जेलर
ने मुझसे कहा
कि यह सरासर धमकाना
है। उससे कहा
गया कि अगर
मुझे जमानत दी
जाती है तो
उसकी तरक्की
खत्म। वह अंत
तक
मजिस्ट्रेट
ही बनी रहेगी।
वह कभी भी जज
नहीं बन
सकेगी। इसलिए
मेरी जमानत
मंजूर नहीं की
जानी चाहिए।
मेरा कोई
अपराध नहीं, अटर्नी की
कोई सुविधा
नहीं, कोई
गिरफ्तारी का
वारंट नहीं, और फिर भी उस
महिला ने
जमानत से
इनकार कर दिया।
मैंने
उनसे पूछा किस
आधार पर? और
तुम्हें वे
आधार सुनकर
आश्चर्य होगा,
जिस पर
जमानत मंजूर
की गई। मेरी
जमानत इसलिए नामंजूर
की गई क्योंकि
मैं अत्यंत
प्रतिभाशाली
व्यक्ति हूं।
मैंने कहा, क्या यह कोई
गुनाह है कि
सारी दुनिया
में मेरे
लाखों
अनुयायी हैं?
मैंने कहा,
तुम्हारा
मतलब है कि
यदि जीसस यहां
होते तो उनका
कारागृह में रखा
जाता बौर
उन्हें जमानत
न मिलती? क्या
बुद्ध इसलिए
कैद किए जाते
कि उनके लाखों
अनुयायी हैं?
यह कोई
अपराध हुआ? मुझे तो यह
पहली बार पता
चल रहा है।
और
उसने कहा कि
अलिखित
धनराशि के
स्रोतों तक आपकी
पहुंच है।
मैंने कहा, तो
इसका मतलब हुआ
कि सिर्फ
भिखारियों को
जमानत मिल
सकती है। जिन
लोगों के पास
पैसा है, उनका
जमानत नहीं
मिल सकती। यह
तो बड़ी
विचित्र बात
है। क्योंकि
जमानत के लिए
पैसा चाहिए।
और मैं तैयार
हूं—पचास लाख
डालर, एक
करोड़ डालर, एक करोड़
पचास लाख डालर—अमेरिका
में आज तक
जितनी
जमानतें दी गई
हैं, उनमें
सर्वाधिक बड़ी
जमानत देने को
मैं तैयार हूं।
लेकिन
उनके कारण ये
थे कि आपके
पास बुद्धि है; आपके
पास अनुयायी
हैं जो आपके
लिए कुछ भी कर
सकते हैं; आपके
पास धन के
स्रोत हैं; आप जमानत से
बचकर अमेरिका
से निकल भाग
सकते हैं।
मैंने कहा, यह तो एक तरह
से स्वीकार
करना हुआ कि
दुनिया की
महानतम आणविक
ताकत से एक
आदमी अधिक
शक्तिशाली
है। लेकिन इस
तरह मुझे कब
तक कैद में रख
सकते हो? तुम्हें
आज या कल में
तय करना होगा।
और बारह दिन
तक निरंतर यह
झूठ बोलने के
बाद कि हम
आपको अदालत
में ले जा रहे
हैं, मैं बस
एक जेल से
दूसरी जेल में
घूमता रहा।
मैंने कहा, यह तो अजीब
है, अदालत
कहां है? उन्होंने
कहा, हम तो
सिर्फ आदेशों
का पालन कर
रहे हैं।
लेकिन
तुम किसके
आदेशों का
पालन कर रहे
हो?
बारह दिन
बाद मुझे
अदालत में
हाजिर किया
गया और उसी
वक्त जमानत दी
गई। क्योंकि
मुझे कैद में
रखने का कोई
कारण नहीं था।
लेकिन
वह एक बढ़िया
अनुभव था। उन
बारह दिनों में
मैंने
अमेरिका के
कारागृहों
में हजारों युवक
कैद देखे। वे
सब काले थे, उनमें
से एक भी गोरा
नहीं था। और
सब युवा थे, एक भी बूढ़ा
नहीं था। और
किसी अदालत ने
उन्हें कारावास
की सजा नहीं दी
थी, वे
अदालत में
हाजिर किए
जाने का
इंतजार कर रहे
थे। एक आदमी
तो नौ महीने
से प्रतीक्षा
कर रहा था।
उसने मुझे
बताया कि
मैंने कोई
गुनाह नहीं किया
है। और ये लोग
कहे चले जाते
हैं कि हम तुम्हें
अगले सप्ताह
अदालत के
सामने पेश
करेंगे। और नौ
महीने
अनावश्यक ही
सजा पायी है
जेल में। वे
अच्छी तरह
जानते हैं कि
एक बार मैं
अदालत में
उपस्थित हुआ
तो मैं मुक्त
हो जाऊंगा।
क्यों
ये काले लोग
हजारों की
संख्या में
अमेरिकन
जेलों में हैं? उन्होंने
कोई अपराध
नहीं किया है।
लेकिन यह भय
है—अमेरिका
में एक काले
आंदोलन का! एक
भय कि तुमने
जो काले लोगों
के साथ किया
है तीन सौ साल
तक तुमने उन
पर अत्याचार
किया, स्त्रियों
पर बलात्कार
किया, उनका
शोषण किया, उनका खून
चूसा। अब वह
आखिरी बिंदु
पर आ गया है।
युवक अब और
गुलाम रहने को
तैयार नहीं
है। उसे आजादी
चाहिए। उसे
बाकी
मनुष्यों के
साथ समानता
चाहिए। यह था
उनका अपराध।
विश्व में
किसी को इस
बात की
जानकारी नहीं
है क्योंकि वे
सीखचों में
बंद हैं। और
ये तो सिर्फ
पांच कारागृह
थे। न जाने ऐसे
और कितने
कारागृह काले
लोगों से भरे
पड़े हैं।
शीला
के प्रति मुझे
शिकायत नहीं
है। और यह पत्रकार
मेरे खिलाफ
लिखता रहा है—सरासर
झूठ,
जो कि
निराधार थे।
इस तरह के
लोगों को सजा
मिलनी चाहिए।
लेकिन लोगों
को झूठ में
मजा आता है।
किसी भी
प्रकार के
आरोपों में
लोगों को बड़ा
रस आता है। और
इसकी हिम्मत
तो देखो कि वह
खुद को मेरा
पुराना प्रेमी
कहता है।
बेहतर होता कि
तुम मुझसे
घृणा करते।
तुम्हारा
प्रेम
विषाक्त है।
और ध्यान रहे,
तुम्हारे
लेख में मेरा
एक भी शब्द
छोड़ना मत। यह
तुम्हारे
खिलाफ है, शीला
के खिलाफ
नहीं।
ऐसी
कितनी ही
मंहगी
किताबों में
आपके बचपन के संबंध
में कई झूठी बातें
लिखी गई हैं।
क्या वास्तव
में अंबालाल
आपके दत्तक
पिता थे? क्या
आप सचमुच
जिन्ना से से
मिले थे? क्या
आप अंबालाल के
साथ रहे थे
आपके दत्तक
विधान के
दस्तावेज का
किस्सा क्या
शीला ने गढ़ा
था? क्या
इन किताबों
में अलिखित
गलत तथ्यों को
आप सुधारकर उन
किताबों में
से हटा सकते
हैं?
मैं अपनी
किताबों कभी
भी नहीं पढ़ता।
और इन सात सालों
में मैंने
किसी और की
कोई भी किताब
नहीं पढ़ी। तो
मैं नहीं
जानता तुम
क्या बात कर
रहे हो। मुझे
कभी किसी ने
दत्तक नहीं
लिया। जहां तक
मैं जानता
हूं। अगर इस
तरह के झूठों
से भरी हुई कोई
किताब हो, तो
किसी ने वे
बातें किताब
में लिख दी
होंगी।
क्योंकि न तो
मैं किताबें
लिखता हूं, न मैं
किताबों के
प्रूफ पढ़ता
हूं—और न ही
मैं प्रकाशित
होने पर
किताबें पढ़ता
हूं। प्रूफ
पढ़ने वाले लोग
हैं, संपादक
हैं—तुम जैसे
ही लोग, जो
मुझे प्रेम
करते हैं। यह
तुम्हारी ही
जाति की किसी
व्यक्ति की
करतूत रही
होगी। यदि ऐसी
बातें
किताबों में
होंगी, तो
वे हटा दी
जाएंगी।
लेकिन मैं कुछ
कह नहीं सकता।
लेकिन
यह सरासर झूठ
है। मैं किसी
जिन्ना से कभी
नहीं मिला। और
न ही मैं इस
अंबालाल पटेल
को जानता हूं।
मैं केवल
स्वयं को
जानता हूं।
लेकिन चूंकि
तुमने अंगुलि
निर्देश किया
है,
तो मैं ऐसे
किसी व्यक्ति
को उस किताब
में यह बात
ढूंढने को
कहूंगा, जो
मुझे जानता है,
और मेरे
जीवन को जानता
है कि कहीं
उसमें किसी ने
कोई बात डाल
तो नहीं दी! और
एक बात ख्याल
रखो, मैं
गड़े मुर्दे
उखाड़ने में
विश्वास नहीं
करता। मुझे
अतीत में कोई
विशेष रख नहीं
है—जिन्ना या
महात्मा
गांधी, या
जवाहरलाल
नेहरू, या
मौलाना आजाद—मुझे
मृत लोगों में
कोई रस नहीं
है। और मैं जिन्ना
से क्यों
मलूंगा? अब
तक यह भूत बन
चुका होगा।
आपने
कल अपनी परिषद
में कहा कि
आपका भ्रम टूट
गया है और आप
तीसरा
विश्वयुद्ध
चाहते हैं। लेकिन
आप और हमारे
जैसे व्यक्ति, या
और भी हजारों—लाखों
लोग हैं, जो
दुराचारी
नहीं हैं। हम
जीना चाहते
हैं। तो फिर
रास्ता क्या
है? मान
लीजिए सब
विनिष्ट हो
गया—जैसा कि
आप चाहते हैं—उसके
बाद क्या? अस्तित्व
में उसके बाद
की रचना किस
तरह की होगी? क्या आप ऐसा
नहीं सोचते कि
यह सब फिर
पुनरावृत
होगा?
पहली
बात,
तुम वही
सुनते हो, जो
तुम सुनना
चाहते हो; तुम
मुझे नहीं
सुनते। मैंने
दुराचारी
शब्द का
प्रयोग ही
नहीं किया।
मैंने "बुराई'
शब्द का
उपयोग किया ही
नहीं, तुमने
कैसे सुन लिया?
मैंने यह भी
नहीं कहा कि
मैं दुराचारी
नहीं हूं। और
मैंने
निश्चित ही, यह नहीं कहा
कि तुम
दुराचारी
नहीं हो। तुम
जरूर होओगे।
यह ख्याल
तुम्हारे
हृदय से उठ
रहा है।
मैंने
ऐसा कहा कि
ध्यानी, संन्यासी—वे
लोग जो अपनी
चेतना का
विकास करना
चाहते हैं—कड़ी
मेहनत करें, इससे पहले
कि यह जगत
आणविक संहार
में विलीन हो जाए।
तुम केवल शरीर
नहीं हो।
तुम्हारा
शरीर नष्ट हो
जाएगा, लेकिन
तुम्हारी
चेतना किसी
अन्य ग्रह में
बीजारोपित हो
जाएगी। विश्व
के
ब्रह्माण्ड
के विस्तार
में पचास हजार
ग्रह हैं, जहां
जीवन पाया
जाता है। यह
छोटी—सी
पृथ्वी कुछ भी
नहीं है।
लेकिन तुमने
यह सब तो सुना ही
नहीं। यह
प्रश्न
तुम्हारे
अपने दिमाग की
उपज है।
जहां
तक तुम्हारे
प्रश्न के
दूसरे हिस्से
का सवाल है, जब
तुम पैदा नहीं
हुए थे तब
क्या तुम्हें
इस जगत की
चिंता थी? दुनिया
में क्या हो
रहा है, लोग
शांति से,प्रेम
से जी रहे हैं
या नहीं! यदि
पैदा होने के पहले
तुम्हें इस
जगत की कोई
चिंता नहीं थी,तो मरने के
बाद भी
तुम्हें कोई
चिंता नहीं
होगी।
तुम
पैदा होने के
पहले कहां थे? कहीं
तो रहे होओगे।
क्योंकि यहां
कुछ भी नष्ट नहीं
होता। तो सारी
पृथ्वी भी
नष्ट हो जाए
तो भी तुम
कहीं तो
रहोगे। मुझे
उससे कोई लेना—देना
नहीं है। मेरी
फिक्र है कि
जब तक तुम
यहां हो, इस
समय का
सदुपयोग करो,
जो कि बहुत
अल्प समय है—शायद
पांच साल, दस
साल, या
ज्यादा से
ज्यादा
पंद्रह साल।
इस जगत को बचाया
नहीं जा सकता।
लेकिन
तुम्हें तो
बचाया जा सकता
है। और वह
बिलकुल ही
भिन्न बात है।
अगर तुम अपने
चैतन्य स्वरूप
को जान लो तो
तुम बच गए।
फिर तुम जहां
कहीं भी हो, जिस किसी
ग्रह पर—तुम
आनंदित
रहोगे।
वस्तुतः
सदियों—सदियों
से सबका यही
अनुभव रहा है
कि बुद्ध, महावीर,
बोधिधर्म
जो भी
बुद्धत्व को
उपलब्ध हुए
हैं वे फिर
वहीं पैदा
नहीं हुए।
उनकी आत्मा
विश्व आत्म से
तदाकार हो जाती
है। तुम उसे
ईश्वर कहो, तुम उसे
ब्रह्म कहो, परात्पर कहो,
आत्यांतिक
कहो।
इस देश
की यही खोज
रही है। नब्बे
हजार साल से एक
तीव्र खोज रही
है कि कैसे
शरीर के
कारागृह में
फर से बंदी न
हुआ जाए।
क्योंकि शरीर
कारागृह है।
बड़ा अजीब
कारागृह। यह
तुम्हारे साथ
चलता—फिरता
है। तुम जहां
भी जाते हो, अपना
कारागृह अपने
साथ लिए रहते
हो। हमारा सारा
आध्यात्मिक
विकास यही रहा
है कि इस
कारागृह से
कैसे मुक्त
हुआ जाए। और
उस आलोकमय, सर्वव्यापकता
की स्थिति में
कैसे रहा जाए।
इस अस्तित्व
के साथ एक
कैसे हों—यही
जीवन का
वास्तविक
उद्देश्य है।
तो
मैंने इतनी ही
बात कही कि
जिन लोगों को
सचमुच अपनी
चेतना की
चिंता है, उन
पर ही मैं काम
करूंगा। मैं
अपनी ऊर्जा
मनुष्यता के
उस मुर्दा, अंधे, अचेतन
अंश के साथ
व्यर्थ नहीं
गवाऊंगा। वे
सिर्फ अपने
आत्माघात का
रास्ता तय कर
रहे हैं। ठीक
है, करने
दो। वे फिर किसी
अन्य ग्रह पर,
किसी दूसरे
रूप में जन्म
लेंगे। आज
जैसे वे हैं
उससे तो बदतर
नहीं हो सकते।
क्या
तुम अपने से
बदतर किसी चीज
की कल्पना कर सकते
हो?
एक गुलाब का
पौधा तुमसे
कहीं ज्यादा
बेहतर है। कम
से कम उसके
पास अपनी
सुगंध तो है।
आकाश में उड़ता
हुआ पक्षी भी
तुमसे कई गुना
अच्छा है।
उसके पास पूरे
आकाश की स्वतंत्रता
तो है। न किसी
पासपोर्ट की
जरूरत है, न
प्रवेश के लिए
वीसा की जरूरत
है। वह किसी
चर्च का सदस्य
नहीं है—ईसाई
नहीं है, हिंदू
नहीं है। तुम
कहीं भी रहो, अभी तुम
जितने गिरे
हुए हो उससे
नीचे तो गिर नहीं
सकते।
मैंने
जो बात कही थी, वह
बिलकुल ही
भिन्न थी।
मैंने कहा था,
दुनिया में
चारों तरफ
देखने के बाद,
लोगों के
नकाबों के
पीछे छिपे
असली चेहरे के
बाद, अब
मुझे
मनुष्यता में
कोई रस नहीं
है। और पृथ्वी
नाम के इस
ग्रह में भी
मेरा कोई रस
नहीं है। मेरा
रस सिर्फ उन
गिने—चुने
लोगों में है
जो अपनी
विश्वव्यापी
आत्मा को जानना
चाहते हैं।
जहां शरीर खो
जाता है, तुम
सिर्फ चैतन्य
रह जाते हो—विशुद्ध
चैतन्य—सच्चिदानंद—तुम
सत्य हो तुम
चैतन्य हो, तुम आनंद
हो।
मैंने
तुमसे कहा कि
नब्बे हजार
सालों से यह
देश निरंतर एक
ही लक्ष्य
खोजता रहा है।
वह तो ईसाइयत
ने इस देश के
शिक्षित
लोगों के
दिमाग में गलत
ख्याल डाल
दिया है।
अशिक्षित लोग
इस ख्याल से
मुक्त रहे
हैं। लेकिन
शिक्षित
लोगों से कहा
गया है कि
तुम्हारे वेद
सिर्फ पांच
हजार साल
पुराने हैं।
यह सरासर झूठ
है। क्योंकि
ईसाइयत की यह
मान्यता है कि
ईश्वर ने यह
संसार सिर्फ
छह हजार साल
पहले बनाया।
तो पूरे विकास
को उन्हें छह
हजार वर्ष के
चौखटे में
किसी तरह
बिठाना है।
उन्हें सब कुछ
छह हजार वर्ष
के चौखटे में
किसी तरह
बिठाना है। उन्हें
सब कुछ छह
हजार वर्षों
के भीतर
बिठाना है।
यह तो
निपट मूढ़ता
है। क्योंकि
ऋग्वेद में
हमें प्रमाण
मिलता है—और
एक ऐसा प्रमाण
जिसे असिद्ध
नहीं किया जा
सकता कि नब्बे
हजार साल पहले
आकाश में ऐसे
नक्षत्र
प्रकट हुए थे, वे
विस्तारपूर्वक
वेदों के
वर्णित किए गए
हैं।
उस समय के
बाद वे वैसे
फिर प्रकट नहीं
हुए। अब
विज्ञान भी
स्वीकार करता
है कि हां, नब्बे
हजार साल पहले
ऐसे सितारे
रहे थे। अब पांच
हजार सा पहले
पैदा हुआ कोई
आदमी किन्हीं
वैज्ञानिक
उपकरणों की
मदद के बिना
इतनी सूक्ष्मता
से, इन
नक्षत्रों के
संबंध में
कैसे लिख सकता
है जब तक कि वे
देखे न गए हों?
ऋग्वेद कम
से कम नब्बे
हजार साल
पुराना है; ज्यादा भी
हो सकता है।
और इन नब्बे
हजार सालों में
हमारी एक ही
खोज रही है: कैसे
इस कैद से
छुटकारा पाएं?
तुम अपने
शरीर में क्या
हो? तुम्हें
अपनी चमड़ी के
पीछे छिपी हुई
हड्डियों को
देखना हो तो
किसी भी
मेडिकल कालेज
में जाओ। चमड़ी
तो सिर्फ एक
आवरण है। चमड़ी
के पीछे सिर्फ
हड्डियां ही
हड्डियां
हैं।
यहां
तक कि एक
डाक्टर, मेरे
एक मित्र, पूरे
आंतरिक हड्डी
के ढांचे को
अपने दवाखाने में
रखने से डरते
हैं। वे बोले,
उसकी वजह से
लाग आने से
डरते हैं। तो
वे उसे घर के
अंदर छिपाकर
रखते थे। उससे
और एक समस्या
खड़ी हो गई।
उसकी पत्नी
उसके खिलाफ थी
तो मैंने उनसे
कहा कि तुम
इसे घर में रखो
या न रखो, तुम
इसे अपने शरीर
के भीतर तो
रखे ही हुए
हो। तुम्हारी
पत्नी इसे रखे
हुए है, तुम
इसे रखे हुए
हो, सब कोई
रखे हुए है।
हमें
उसमें कोई रस
नहीं रहा है।
हमारा रस बिलकुल
ही भिन्न है।
हमारा रस यह
है कि कौन छिपा
है इन
हड्डियों के
पीछे—बुद्धि
चेतना। तो अगर
यह जगत आणविक
युद्ध के धुएं
में विलीन हो
जाता है, फिर
भी कुछ खोएगा
नहीं—हड्डी
चमड़ी; ये
सब तो वैसे भी
खोने ही वाले
हैं। अभी तुम
उन्हें
व्यक्तिगत
रूप से खोते
हो। लेकिन अब
राजनीतिक
करुणावश एक
सामूहिक
मृत्यु की तैयारी
कर रहे हैं।
जब हम इकट्ठे
मर सकते हैं, तो अलग—अलग
मरने की क्यों
परेशानी लेनी!
अभी इस
समय इतने
आणविक अस्त्र
हैं कि
प्रत्येक
आदमी सात बार
मारा जा सकता
है। और फिर भी
उसके अंबार
रचे जा रहे
हैं। देर—अबेर
इसका विस्फोट
होने वाला है।
इससे बचा जा सकता।
मैं जीवन भर
इसी कोशिश में
लगा रहा कि
इससे बचा जाए, लेकिन
अब विश्व के
सब
राजनीतिज्ञों
को देखने के
बाद मैंने
अपनी भूमिका
बदल ली है।
मैं कहता हूं,
इससे बचना
नहीं चाहिए।
इससे गुजर
जाना ही अच्छा
होगा। एक बार
में ही सदा के
लिए इससे
छुटकारा हो
जाए। जो लोग
अपनी
अंतरात्मा को
जान सकते हैं
वे
विश्वात्मा
में विलीन हो जाएंगे।
जो ऐसा नहीं
कर सकते वे
पचास हजार ग्रहों
में ही न कहीं
कोई और पिंजरा,
कोई और
कारागृह खोज
लेंगे। इससे
मुझे कोई अड़चन
नहीं दिखाई
देती।
कैद
एक भयानक
अनुभव है।
अपने कारागृह
के मनोविज्ञान
के संबंध में
कभी कुछ नहीं
कहा है। वहां
आपको कैसा लगा—मानसिक
रूप से
प्रीतिकर या
दुःखद? कृपा
कर अपने
अनुभवों पर
कुछ प्रकाश
डालें।
हर
व्यक्ति
कारागृह में
है। एक ही
नहीं, कई
कारागृहों
में। पहले, तुम्हारा
शरीर एक
कारागृह है।
वहां आपको कैसा
लगा—मानसिक
रूप से
प्रीतिकर या
दुःखद? कृपा
कर अपने
अनुभवों पर
कुछ प्रकाश
डालें।
अमेरिका
के कारावास के
बारह दिन, और
इंग्लैण्ड के
कारावास का एक
दिन, ग्रीक
के कारावास का
एक दिन—मुझे
बहुत
प्रीतिकर
लगा।
प्रीतिकर
इसलिए लगा
क्योंकि उसका
मेरे ऊपर कोई
असर ही नहीं
हो रहा था।
मैं सदा की
तरह आनंदित
था। उससे मुझे
बहुत प्रगाढ़
परिपुष्टि
मिली कि मेरा
आनंद मुझसे
छीना नहीं जा
सकता। अगर
अमरीकी जेल मुझसे
नहीं छीन सकती
तो कोई भी
नर्क उसे
मुझसे नहीं
छीन सकता।
यही
बात मैंने
अमेरिकन जेलर
ने कही, जिसकी
जेल में मैं
पहले तीन दिन
था। क्योंकि उसे
आश्चर्य हुआ
यह देखकर कि
मैं बिलकुल
निश्चिंत
हूं। बल्कि सच
बात तो यह थी
कि मेरा ऐसा
समय कभी नहीं
बीता था—चौबीस
घंटे ध्यान!
कोई बाधा
नहीं। उस जेलर
ने कहा कि मैं
बस अवकाश
ग्रहण करने ही
वाला हूं—दो
महीने के अंदर
मैं अवकाश
प्राप्त कर
लूंगा। मुझे
खुशी है कि
मैंने कभी
अवकाश नहीं
लिया है। आप
मेरे पहले
कैदी हैं जो
कि बिलकुल अलग
हैं—उन हजारों
कैदियों से जो
आए और गए। आप
जरा भी विचलित
नहीं हुए।
मैंने कहा, मैं क्यों
विचलित होऊं?
इसलिए
क्योंकि मेरे
हाथों पर
हथकड़ियां हैं,
मेरे पैरों
पर बेड़ियां
हैं, मेरी
कमर पर
जंजीरें हैं—मैं
किसलिए बेचैन
होऊं?मेरी
देह खुद पर
कैद है। उस
कैद को तुमने
कुछ और आभूषणों
से सजाया है।
मैं बहुत आनंद
में हूं। और
मुझे इससे बल
मिला है।
क्योंकि
अमेरिकन कारागृह
लोगों को
पीड़ित करने की
एक बहुत ही
परिशुद्ध जगह
है।
मैंने
उनसे कहा कि
तुमने मुझे इस
कल्पना से मुक्ति
दिला दी कि
यदि मैं नर्क
में गिरा...कोई
अड़चन नहीं, मैं
निपट सकता
हूं। अगर मैं
अमेरिकन
कारागृह बर्दाश्त
कर सकता हूं
तो कोई कारण
नहीं है कि मैं
क्यों नहीं
निपट सकता एक
पुरातन, तिथिबाहृ
बैलगाड़ी के
जमाने का नरक
जहां कभी कोई
सुधार नहीं
हुआ है; अनादि
काल से वह
वैसा का वैसा
ही है। मैं
वहां जाना
पसंद करूंगा।
और जब तक
तुम्हारा स्वर्ग
तुम्हारे
नर्क से अछूता
नहीं रह सकता तब
तक वह
तुम्हारे पास
है ही नहीं।
जहां
तक मेरा सवाल
है,
मैं बिलकुल
आनंदित हूं।
लेकिन उन
लाखों लोगों
के लिए मैं
कतई खुश नहीं
हूं जो अकारण
कैद में पड़े
यातना भुगत
रहे हैं—सिर्फ
इस वजह से कि
वे काले हैं।
अब काले आदमी में
और गोरे आदमी
में जो फर्क
है वह इतना कम
है कि जानकर
तुम्हें
हैरानी होगी।
वह फर्क, पुराने
हिसाब से, सिर्फ
चार आने का
है। अब चीजें
मंहगी हो गई
हैं तो वह
फर्क एक रुपए
का होगा। और
ख्याल रखना, वह फर्क अब
काले आदमी के
पक्ष में है।
काले आदमी में
जो रंगों का
पिगमेंट है वह
गोरे आदमी से
एक रुपया अधिक
है। वह काले
रंग का
पिगमेंट सूरज
से उसकी रक्षा
करता है। गोरा
आदमी
असुरक्षित
है। शायद
परमात्मा भी
गोरे आदमी से
काले की रक्षा
करने में अधिक
उत्सुक है।
गोरे
आदमी का शरीर
ज्यादा कमजोर
है। काले आदमी
का शरीर
ज्यादा
ताकतवर है।
यह
मेरे लिए
आश्चर्य था कि
जब मैंने
अमेरिका में
किसी जेल में
प्रवेश किया, सींखचों
के पीछे काले
लोग
जिन्होंने
मुझे टेलीविजन
पर देखा था—क्योंकि
वहां हर जेल
में टेलीविजन
हैं—वे मुझे
विजय की दो
उंगलियां
दिखाते थे। वे
अपनी भाषा में
कुछ कहते थे
जो मैं नहीं
समझता, पर
यह भाषण मैं
समझ सकता था, वे कह रहे थे
आपकी विजय
हमारी विजय है,
और हम विजयी
होने वाले
हैं।
क्योंकि
सारे पाप गोरे
आदमी के सिर
पर हैं। उसने
पृथ्वी पर
सारी
मनुष्यता को
तीन सौ साल
सताया है, उसका
खून चूसा है, वह परजीवी
रहा है। उसे
यह ठीक से समझ
लेना चाहिए, अपना अपराध
कबूल कर लेना
चाहिए और
विनम्र होकर
इन लोगों की
मदद करनी
चाहिए
जिन्हें उसने
गरीब बनाया
है। लेकिन ऐसा,
ऐसा नहीं हो
रहा है।
अमेरिका
प्रतिवर्ष
अरबों—खरबों
रुपए का अनाज
सागर में डुबो
रहा है। यूरोप
हर छह महीने
बाद इतना अनाज
सागर में डुबो
रहा है कि गत
वर्ष सिर्फ
डुबोने के लिए
उन्हें चार
करोड़ डालर
खर्च करने
पड़े। यह अनाज
की कीमत नहीं
है,
इसे डुबोने
की कीमत है।
और हजारों लोग
नाइजीरिया
में मर रहे थे,
इथोपिया
में मर रहे थे,
और भारत में
मर रहे हैं—और
वे समुद्र में
अनाज डुबो रहे
हैं! क्यों? क्योंकि वे
चाहते हैं कि
उनकी कीमतें
स्थिर रहें, उनकी
अर्थव्यवस्था
स्थिर रहे।
उन्हें मनुष्य
में कोई रुचि
नहीं है।
उन्हें फिक्र
है सिर्फ उतनी
अर्थव्यवस्था
की। अन्यथा
हमारे पास पृथ्वी
के लिए काफी
भोजन है। किसी
को भूखे रहने
की कोई जरूरत
नहीं है, या
भीख मांगने
की।
लेकिन
पश्चिम अपना
अपराधी कृत्य
करना जारी रखता
है। और
पूर्वीय
राजनीतिक भी
इस पर कोई आपत्ति
नहीं उठाते।
लगता है कि
पूरब ने अपनी
हिम्मत खो दी
है। वह सीधी—साफ
दिखाई देने
वाली बात भी
नहीं कर सकता, कि
तुम अनाज पानी
में क्यों
डुबो रहे हो? उसे इथोपिया
क्यों नहीं
भेज देते, जहां
एक हजार लोग
रोज मर रहे
हैं। नहीं
इथोपिया की
किसी को फिक्र
नहीं है। न
मरणासन्न
बच्चों की
किसी को फिक्र
नहीं है। भूखे
लोगों की किसी
को फिक्र नहीं
है। उन्हें
सिर्फ फिक्र
है अपने उच्च
जीवनमान की कि
वह कहीं कम न
हो जाए।
अमेरिका
के कारागृहों
बंद इन काले
लोगों को देखकर
मेरी आंखों
में आंसू आ
गए। ये आंसू
उनकी स्वतंत्रता
के थे। हमने
उन पर काफी
अत्याचार कर
लिया, अब हमें
उसकी
क्षतिपूर्ति
करनी चाहिए।
किंतु
जहां तक मेरा
सवाल है, मैं
अत्यंत
आनंदित था।
जैसे मैं यहां
आनंदित हूं, वैसे ही मैं
वहां भी
आनंदित था।
तुम्हारी चेतना
की दशा में
स्थान कोई
फर्क नहीं
नहीं लाता। न
समय उसमें कोई
परिवर्तन
लाता है। न
जन्म और न
मृत्यु।
यह
मेरा आखिर
प्रश्न है।
मेरे अन्य
सवाल मैं छोड़
देता हूं। मान
लीजिए लोग
आपसे भारत में
फिर से आश्रम
शुरू करने का
अनुरोध करते
हैं,तो आप
क्या मान योग
लक्ष्मी को
अपना सचिव
नियुक्त
करेंगे।
नहीं।
चारों
ओर एक संत्रास
की स्थिति है।
कृष्णमूर्ति
और उनके वही—वही
पुनरावृत
होने वाले
प्रवचनों से, महर्षि
महेश योगी के
मंत्रों से
लोग ऊब गए हैं।
मुक्तानंद चल
बसे। सत्य
साईंबाबा तो
मदारीगिरी
करते रहते
हैं। लेकिन अब
भी आपकी ओर
आशा से देखते
हैं। इस
सद्यास्थिति
को सुलझाने के
लिए आपके क्या
सुझाव हैं?
मेरा
सुझाव बिलकुल
सीधा—सा है।
एक: लोगों को
उन मुर्दा
विचारों से
मुक्त होना
होगा जो वे
सदियों
सदियों से ढोए
चले आ रहे हैं—मूढ़
कल्पनाएं, अंधविश्वास।
उदाहरण
के लिए भारत
गरीब से गरीब
होता चला जा रहा
है क्योंकि
तुम अधिक से
अधिक बच्चे
पैदा कर रहे
हो। तुम
उत्पादन की एक
ही कला जानते
हो: बच्चे
पैदा करना।
लेकिन
तुम्हारे सब
धर्मगुरू
सिखाते रहे
हैं कि बच्चे
परमात्मा की
भेंट हैं। वह
बकवास है। बच्चा
केवल एक जैविक
प्रक्रिया
है। यह चुनाव
तुम्हारे हाथ
में है कि
तुम्हारे देश
की जनसंख्या
कितनी हो। तुम्हारी
देश कितनी
आबादी को
सुविधा से, शिक्षा
देकर और गरिमा
से रख सकता है?
और अगर
परमात्मा
बच्चे को पैदा
कर रहा है तो हम
जानते हैं कि
सब शास्त्र
कहते हैं कि
ईश्वर सर्वशक्तिमान
है, सर्वज्ञ
है,सर्वव्यापी
है। चिंता की
कोई बात नहीं
अगर ईश्वर
बच्चा चाहता
है तो वह गोली
बाहर निकाल
लेगा। जो
सर्वशक्तिमान
ईश्वर पूरे
जगत को बना सकता
है, वह
कंडोम में छेद
कर सकता है।
एक बच्चा भी
यह बात कर
सकता है।
इसमें कोई
सर्वशक्तिमान
होने की जरूरत
नहीं है।
तो
हमें अपने
अंधविश्वासों
का त्याग करना
है और हमें
तथ्यपूर्ण
जीना सीखना है—पहली
बात।
दूसरी
बात,
गौतम बुद्ध
और महावीर के
बाद भारत, अधोगति
की ओर अग्रसर
हुआ है। गौतम
बुद्ध और महावीर
से पहले भारत
दुनिया का
सबसे समृद्ध
देश था।
अन्यथा इतने
आक्रमणकारी सदियों
तक इस देश में
आते रहे, तुम
सोचते हो कि
वे यहां
भिखारियों के
लिए आ रहे थे? वे संपत्ति
के लिए यहां आ
रहे थे, इस
देश को गरीब
बनाने के लिए
उन्हें
सदियां लग
गईं। महावीर
और बुद्ध
दोनों
तुम्हें
सिखाने के लिए
जिम्मेदार
हैं कि गरीबी
कोई धार्मिक गुण
है। ऐसा बिलकुल
नहीं है।
गरीबी एक रोग
है। मनुष्य को
सुविधा से
जीने का पूरा
हक है। गरीबी
के इस ख्याल को
हमें छोड़ देना
चाहिए।
महात्मा
गांधी ने फिर
से इसका
प्रचार किया।
इसीलिए आजादी
के चालीस वर्ष
बिलकुल
व्यर्थ गए।
महात्मा
गांधी फिर इस
बात की चर्चा
करने लगे कि
चरखे पर विकास
खत्म होना
चाहिए। कोई
नहीं जानता कब
चरखे का
अविष्कार हुआ
था। शायद तीस
हजार साल पहले, या
पचास हजार साल
पहले। चरखे के
साथ तुम समृद्ध
और सब
सुविधाओं से
युक्त नहीं हो
सकते। चरखा
तुम्हारा
दुश्मन है।
जिस तरह एक
दिन महात्मा गांधी
ने सारे देश
को विदेशी
वस्त्र जलाने
के लिए कहा था,
उसी तरह मैं
तुमसे कहता
हूं—सब चरखे
जला दो। हमें
नई
टेक्नालाजी
की जरूरत है।
इस देश
को एक
टेक्नालाजिकल, तंत्रज्ञान
की विकास की
सख्त जरूर)रत
है। जो कि
बहुत सरल है।
यह सिर्फ उचित
शिक्षा का
सवाल है।
लेकिन
ब्रिटिश राज
ने ऐसी शिक्षा
प्रणाली के
बीज बोए हैं
जो सिर्फ
क्लर्क पैदा
करना जानती
है। वह
वैज्ञानिक, तकनिशियन या
प्रतिभाशाली
लोग पैदा नहीं
करती। हमें
सारी शिक्षा
प्राणाली
बदलनी है। अब
बच्चों को
नादिर शाह, तैमूल लंग, चंगेज खान
के बारे में
पढ़ाना निहायत
बेवकूफी है।
उन्हें
आइंसटीन के
बारे में पढ़ाओ।
सापेक्षता के
सिद्धांत के
बारे में
पढ़ाओ। उन्हें
नवीनतम यंत्र
ज्ञान और
हस्तकलाओं की शिक्षा
दो। और यह देश
फिर से अपना
खोया हुआ सम्मान
और आत्मगौरव
पा लेगा। कोई
कारण नहीं है।
हमारे पास
क्षमता है। हम
उसका उपयोग
नहीं कर रहे
हैं।
हमें
हिंदू, मुसलमान,
ईसाई, जैन
होकर जीना बंद
करना चाहिए।
क्योंकि ये ही
वे दीवालें
हैं जो समग्र
अस्तित्व को
विभक्त कर रही
हैं। फिर भी
हम सब जगह लड़े
जा रहे हैं।
हमारी पूरी
ऊर्जा दंगों
में और फसादों
में व्यय हो
रही है। और
व्यर्थ की
बातों के लिए—कि
पंजाब
स्वतंत्र
होना चाहिए; कि तमिलनाडु
स्वतंत्र
होना चाहिए:
कि आसाम
स्वतंत्र
होना चाहिए।
तुमने चालीस
साल की
स्वतंत्रता
में क्या पाया?
तुम तो अपनी
गुलामी के
दिनों से भी
बुरी हालत में
हो। लेकिन हम
एक दूसरे की
जान लेने को
तैयार बैठे
हैं। हमारा
पूरा प्रयास
ही असृजनात्मक
है।
सारी
दीवालें गिरा
दो। कोई गुरुद्वारे
में
प्रार्थना
करना चाहे तो
बिलकुल ठीक
है। कोई हर्ज
नहीं है। उससे
किसी का कोई
नुकसान नहीं।
कोई मसजिद में
प्रार्थना करना
चाहेगा, एकदम
ठीक है। उसका
सम्मान करो।
कोई किसी खास
मंदिर में
जाना चाहता है
तो वह उसकी
मौज है। लेकिन
इसके लिए एक—दूसरे
की गर्दन
काटने की कोई
जरूरत नहीं है—और
वह भी धर्म के
नाम पर, भाषा
के नाम पर।
हमें
एक बात को
आग्रहपूर्वक
कहना चाहिए कि
यह देश एक
मनुष्यता है।
और हम हमारी
सब दीवालें गिरा
देते हैं। और
हम हमारी सारी
ऊर्जाएं एक साथ
लगाते हैं इसे
अधिक से अधिक
संपन्न बनाने
में। लेकिन तुम
अब भी
शंकराचार्यों, जैन
मुनियों को
सुन रहे हो जो
कहते हैं—त्याग
करो, अपनी
पत्नी छोड़ो, बच्चे छोड़ो,
घर—द्वार
छोड़ो।
तुमने
कभी इस तरह से
सोचा है कि
जिन लोगों ने
संसार का
त्याग किया है
उन्होंने इस
संसार को बदतर
बनाया है? क्योंकि
तुम्हारी
पत्नी वेश्या
हो जाएगी।
तुमने उसे
शिक्षित नहीं
किया, तुमने
उसे आर्थिक
रूप से
स्वतंत्र
नहीं बनाया
है। या तो वह
भीख मांगेगी
या वेश्या
बनेगी। और तुम
एक बोझ बन
जाओगे। यह देश
गरीब है और उस
पर लाखों लोग
बोझ बने बैठे
हैं। हमें
अपने तथाकथित
पुराने ढब के
संन्यासियों
से कहना
चाहिए:संसार
में लौट आओ।
धन निर्मित
करने में, नए
अवसर निर्मित
करने में
योगदान दो। हम
असृजनात्मक
लोगों को
पूजते आए हैं।
जरा सोचो, इस
देश में हमने
लाखों की पूजा
की है, उनके
पैर छुए हैं—अकारण
ही, उन्होंने
कुछ किया ही
नहीं है।
मैं एक
गांव से गुजर
रहा था। एक
जगह मैंने भीड़
देखी तो मैंने
गाड़ी रुकवायी
और पूछा कि
मामला क्या है? एक
आदमी दस साल
से खड़ा था।
उसके पैर हाथी
के पैर जैसे
हो गए थे।
उसके ऊपरी
हिस्से में
कोई खून नहीं
बचा था। वही
खून पैरों में
पहुंच गया था।
वह दस साल तक
एक लकड़ी के
सहारे खड़ा था।
उस आदमी के
चेहरे पर
प्रतिभा का
कोई चिन्ह
नहीं था। और
उसके हजारों
अनुयायी थे।
मैंने उनसे
पूछा, तुम
इसके शिष्य
किसलिए बने हो?
वह अपने
पैरों पर खड़ा
है, सिर्फ
इसलिए? कुछ
सृजनात्मक
हैं? क्या
इससे देश का
कोई लाभ होगा?
कोई
कांटों की
शैया पर लेटा
है और लोग
उसकी पूजा कर
रहे हैं।
सृजनात्मक
की पूजा करो।
उनकी पूजा करो
जो इस दुनिया
को और अधिक
सुंदर कर रहे
हैं। उनकी
पूजा करो जो
इसे और अधिक
संगीत से भर
रहे हैं—अधिक
गीत से, अधिक
नृत्य से।
मैं
संन्यास की
परिभाषा
त्याग से आनंद
में बदल देना
चाहता हूं। हम
तो हंसना भी
भूल गए हैं। क्योंकि
कोई संत हंसता
नहीं। तुमने
कभी बुद्ध या
महावीर की
किसी प्रतिमा
को की हंसते
हुए देखा है? नहीं,
संतों को
हंसना मना है।
सारा देश उदास
हो गया है।
मैं
जीवन सिखाता
हूं। मैं
प्रेम सिखाता
हूं। मैं
हंसना सिखाता
हूं। और मैं
सृजनात्मकता
सिखाता हूं।
मैं किसी भी
प्रकार के
त्याग के खिलाफ
हूं—मूढ़ताएं
और
अंधविश्वास
के त्याग
छोड़कर। मैं एक
मनुष्यता की
शिक्षा देता
हूं। हम सब
मिलकर इस देश
को फिर से
उसकी आत्मा
वापिस दे सकते
हैं। हमें यह
करना ही होगा।
नहीं तो इस
सदी के अंत तक
तुम लोगों में
से पचास
प्रतिशत लोग
तुम्हारे
चारों तरफ
भूखे मर रहे
होंगे। और तुम
एक
कब्रिस्तान
में होओगे, किसी
देश में नहीं।
और जरा सोचो, तुम्हारे
आसपास पचास
प्रतिशत लोग
मर रहे हों तो
तुम्हारा
जीवन कैसा
होगा?
समाधान
तो बिलकुल सरल
है। सिर्फ
तुम्हारे मस्तिष्क
पुराने हैं, वे
समसामयिक
नहीं हैं। तो
मैं अपने
उत्तर के अंत
में कहता हूं: मैं
चाहता हूं कि
तुम समसामयिक
बनो।
आज इतना
ही।
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