फिर
अमृत की बूंद
पड़ी—(राष्ट्री सामाजिक)-ओशो
(ओशो
द्वारा मनाली
ओर मुम्बई में
दिये गये आठ अमृत
प्रवचनो का
संग्रह। जिसमें
उन्होंने
अमरीकी सरकार
द्वारा दिये गये
अत्याचारों
की चर्चा है)
दुनिया
में आज घोर
निराशा की
स्थिति है। एक
ओर खाड़ी में
बमों की बौछार
हो
रही है
जिसे कोई नहीं
रोक पा रहा
है। दूसरी ओर
पूरे विश्व
में आतंकवाद
इतना आम है
कि
रोजमर्रा की
घटना हो गया
है। ऐसे माहौल
में अमृत की
चर्चा अमृत की
बूंदों की
वर्षा
इस
दुनिया की बात
नहीं लगती है।
नहीं लगता कि यह
दुनिया
रूपांतरित हो
सकती है या
इसे
कोई बदल कर
अमृत-पथ की ओर
ले जा सकता
है।
एक
मित्र ने ओशो
से पूछा.
विवेकानंद ने
कहा था कि अगर
उनके पास अपने
दो
सौ
व्यक्ति हों
तो वे सारे
जगत को
रूपांतरित कर
देंगे। आपने
इस विषय में
कहा था कि
हैं आंखों
में और खींच
सकते हैं उन
सूक्ष्म
आत्माओं को जो
प्रकाश-किरण
बन सकती हैं।
आपको
इसमें कहा तक
सफलता मिली है?
इस
प्रश्न के
उत्तर में ओशो
कहते हैं.
मुझे सफलता
करीब-करीब मिल
ही चुकी है।
और
माला और गैरिक
वस्त्र हटाकर
उनके लिए मैंने
द्वार खोल दिए
हैं। वे अपना
काम-काज
या पत्नी या
माता-पिता खोए
बिना ही
संन्यासी हो
सकते हैं।
मैंने वे लोग
खोज
लिए हैं। और
मुझे एकदम
पक्का है कि
हम जगत का
रूपांतरण कर
पाएंगे। मैं
निराशा
में जाने वाला
नहीं हूं। मैं
जीया हूं बिना
निराशा के तो
मृत्यु कैसे आ
सकती है
निराशा
में?
ओशो
अमृत-सागर
हैं। ओशो के
संन्यासी ओशो
के प्रेमी
अथवा ओशो के
शब्दों
में ही
कहें 'ओशो के
लोग' इस
पृथ्वी पर
फैली अमृत की
बूंदें हैं।
जहां भी कोई
व्यक्ति
ध्यान
में संलग्न है
पृथ्वी पर
वहीं उपस्थित है
अमृत की एक
बूंद अमृत का
एक अणु।
ऐसा ही
एक और प्रश्न
पूछा था किसी
मित्र ने ओशो
से : गुरजिएफ
ने कहा है कि
यदि दो
सौ संबुद्ध
व्यक्ति सारे
जगत में फैल जाएं
तो तीसरे
विश्वयुद्ध
से बचाव हो
जाएगा।
आप क्या कहते
हैं?
ओशो
कहते हैं : ठीक
है वह। और मैं
इसी संख्या पर
कार्य कर रहा
हूं -दो सौ की
संख्या
एकदम ठीक है।
और जल्दी ही
हमें वह उदघोषणा
भी करनी होगी कि
दो सौ
व्यक्ति-बोधि
को उपलब्ध
हैं। यहां तक
कि उदघोषणा की
भी कोई
आवश्यकता
नहीं है। उनकी
मौजूदगी बदल
देगी संसार
को।
ओशो
कहते हैं : जो
गुरजिएफ न कर
सका,
हम कर सकते
हैं, क्योंकि
गुरजिएफ के
पास
बहुत कम लोग
थे। दूसरी बात, तीसरा
विश्वयुद्ध
बहुत दूर था।
लोग इतनी दूर
की
बातों
पर नहीं
सोचते। उनकी
दृष्टि सीमित
होती है।
लेकिन अब तो
विश्वयुद्ध
करीब,
और
करीब, और
ज्यादा करीब
आता जा रहा
है। और कोई
निर्णय तो
लेना ही होगा।
हमारे
लोग तैयार हो
रहे हैं। दो
सौ संबुद्ध व्यक्तियों
के लिए यह सही
क्षण है। पूरा
विश्व
निकट आ
रहा है, और
साथ ही दो सौ
व्यक्ति
संबोधि को
उपलब्ध हो रहे
हैं, वह
घड़ी
करीब आ
रही है।..
गुरजिएफ के
समय तो ऐसा
संभव न था।
अगर उन्होंने
दो सौ
व्यक्तियों
के संबुद्ध
होने पर कार्य
कर भी लिया
होता तो भी
तीसरा
विश्वयुद्ध
काफी दूर
था। 1950
में उनकी
मृत्यु हो
गयी।... तीसरा विश्वयुद्ध
कहीं 1999 के
आसपास घटेगा।
उसमें
अभी समय है और
हम रोक लगा
सकते हैं उस
पर।
निश्चित
ही,
अब बहुत समय
तो नहीं बचा
है। तीसरा
विश्वयुद्ध
सिर पर खड़ा
हैं-नेगी
तलवार की तरह
लटका है। इस
पर अभी ही रोक
लगाने का क्षण
है। बाद में
तो
बहुत
देर हो जाएगी।
मृत्यु के
व्यापारी
बहुत तीव्रता
और त्वरा से
बड़े जा रहे
हैं अपने
गंतव्य
की ओर। वह
शुद्ध
बहिर्मुखी
यात्रा है, वह
हिंसा की
यात्रा है।
हमें उनके
विपरीत
कुछ
करना है। हमें
अपने भीतर
जाना है। वह
अंतर्यात्रा
है-अमृत की
यात्रा है। इस
यात्रा
में
अमृत की बूंद
भीतर की भूमि
पर पड़ेगी। उसी
भूमि पर ही
अमृत का स्वाद
मिलेगा।
उसी
भूमि पर ही
प्रेम के फूल
खिलेंगे। अमी
झरत बिगसत
कंवल!
विश्वयुद्ध
में विश्व
बचेगा
कि नहीं, कुछ
नहीं कहा जा
सकता। और वैसे
भी तो सभी को
एक दिन मरना
ही
है।
लेकिन अगर हम
अमृत को बिना
चखे मरे तो यह
जीवन का अवसर
यूं ही गया,
असफल
गया। और अगर
हम ओशो के
आह्वान को
सुनकर अंतर्यात्रा
की ओर उत्सुख
और
उसमें संलग्न
हो गए तो हम भी
दो सौ संबुद्धों
के साथ-साथ
अमृत-पथ के
यात्री
बन
जाएंगे।
अमृत-यात्रियों
का यह मेला
मृत्युधारा
में बहे जा
रहे विश्व को
निश्चित ही
अमृत-पथ
की ओर उमुख कर
सकता है।
ओशो
कम्यून, पूना
में तथा
विश्वभर में
फैले ओशो
ध्यान-केंद्रों
में यह अवसर
उपलब्ध
है। ध्यान के
इस महामेले
में सम्मिलित
होने के लिए
ओशो ने सभी को
निमंत्रण
दिया
है कि जिन्हें
भी शामिल होना
है इस अमृत की
यात्रा में वे
आ जाएं, यहां
तो अमृत
की
वर्षा निरंतर
हो रही है।
हटाओ अपना
ध्यान मृत्यु
की खबरों
से-अमृत का
शुभ
समाचार
सुनो। अमृत की
बूंदों में
भीगो।
उपनिषदों
ने कहा है.
अमृतस्य
पुत्र:! हम
अमृत के पुत्र
हैं।
ओशो
पुकारते हैं
अमृत
के पुत्रो!
उठो! तुम अमृत
हो!
अमृत
की पुकार
सुनो! अमृत का
आह्वान सुनो!
अमृत का वरण
करो!
स्वामी
चैतन्य
कीर्ति
संपादक:
ओशो
टाइम-इंटरनेशनल
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