दिनांक
4 अगस्त, सन्
1986;
सुमिला, जुहू, बंबई।
मैं
अभी—अभी आपके
प्रश्नों को
देख रहा था।
यह जानकर दुखा
होता है कि
भारत की
प्रतिभा ऐसी
कीचड़ में गिरी
है कि प्रश्न
भी नहीं पूछ
सकती। और जो
प्रश्न पूछती
भी है, वे
सड़े—गले हैं, उनसे
दुर्गंध उठती
है। यदि तुम
चाहते हो तो
मैं जवाब
दूंगा, लेकिन
छाती पर हाथ
रख लो, चोट
पड़े तो परेशान
मत होना। और
जो मैं कहूं
उसमें से एक
भी शब्द काटा
न जाए और जो
मैं कहूं उसमें
एक भी शब्द
जोड़ा न जाए।
ताकि
तुम्हारी तस्वीर
न केवल भारत
के सामने
बल्कि दुनिया
के सामने
स्पष्ट हो
सके। प्रश्न
भी पूछना
मुश्किल है तो
उत्तर तो तुम
क्या समझ
पाओगे। लेकिन
मैं कोशिश
करूंगा। शुरू
करो।
दुनिया
का सबसे अच्छा
राष्ट्र कौन—सा
है? और सबसे
खराब राष्ट्र
आप किसे मानते
हैं?
भारत
दोनों है, क्योंकि
यहां मैं भी
हूं और तुम भी
हो। और भारत
ने इस संसार
में चेतना की
ऊंचाइयां छुई
हैं और अब मैं
तुम्हें नालियों
में पड़ा हुआ
भी देख रहा
हूं। और नालियों
के तुम इतने
आदी हो गए हो, तुमने
उन्हें मंदिर
बना लिया है।
तुम उनसे निकलना
भी नहीं
चाहते!
फ्रांस
में क्रांति
हुई। वहां एक
केंद्रीय जेल
था बेस्तिले, जहां केवल
आजीवन सजा पाए
हुए लोगों को
रखा जाता था।
उनकी हथकड़ियां,
उनकी
बेड़ियां उनके
मरने में पर
ही तोड़ी जाती
थीं। एक बार
उनके ताले बंद
हो जाने पर
चाबियां कुओं
में फेंक दी
जाती थीं।
अंधेरी
कोठरियों में
भारी जंजीरों
में बेस्तिले
के हजारों कैदी
रह रहे हैं।
जब क्रांति
हुई तो
स्वभावतः क्रांतिकारियों
के मन में उठा
कि इन कैदियों
को मुक्ति
देना सबसे
पहला काम है।
उन्होंने
सबसे ज्यादा
दुख सहा है।
उन्होंने
बेस्तिले के
द्वार तोड़ें।
लेकिन बेस्तिले
के कैदी
कारागृह से
बाहर जाने को
राजी नहीं थे।
क्योंकि कोई
साठ वर्ष से
वहां था, कोई
पचास वर्ष से
वहां था। न
कोई
जिम्मेदारी; समय पर भोजन—कूड़ा—कचरा
ही सही। और वे
बेड़ियां अब तक
उनके शरीर का
अंग बन चुकी
थीं।
लेकिन
क्रांतिकारी
जिद्दी होते
हैं। उन्होंने
जबरदस्ती
बेड़ियां और
जंजीरें तोड़
दीं और बेस्तिले
के लोगों को
मुक्त कर
दिया। रोते हुए
बेस्तिले के
कैदी बाहर
निकले, यह
कहते हुए कि
हम जाएंगे
कहां? अब
तो हम भूल गए
वे नाम और पते
भी। अब तो हम
भूल गए वे लोग
जो हमें जानते
थे। शायद वे
अब इस दुनिया
में भी न हों।
हमारी
पत्नियां, हमारे
बच्चे—उनको
क्या हुआ, कहां
गए कोई पता
नहीं। सोने के
छप्पर नहीं है,
खाने को
भोजन नहीं है,
बिछाने को
बिस्तर नहीं
है। जबरदस्ती क्रांति!
दुनिया
में एक चीज
मुश्किल है।
जबरदस्ती क्रांति
मुश्किल है।
क्रांति
तो फूल है, जो तुम्हारे
भीतर खिले तो
खिले, कोई
उसे जबरदस्ती
नहीं खिला
सकता।
सांझ
होते—होते
करीब—करीब आधे
से ज्यादा
कैदी वापस आ
गए। उन्होंने कहा, हम दिन भर
भूखे रहे, न
कोई नौकरी
देने को राजी
है, न अब
हमारी क्षमता
रही है कि हम
कोई काम कर
सकें। न हमें
कोई सम्मान
मनुष्य होने
का उपलब्ध हो
सकता है। और
सबसे बड़ी
मुसीबत यह है
कि वे जंजीरें
जो हमारे
हाथों पर सदा
के लिए डाल दी
गई थीं, बेड़ियां
जो हमारे
पैरों में सदा
के लिए डाल दी
गई थीं—तीस
साल, चालीस
साल, पचास
साल—हम उनके
बिना सो नहीं
सकते। उनका
वजन हमारी नींद
का हिस्सा बन
गया है। क्षमा
करो, हमें
हमारी अंधेरी
कोठरियों में
जाने दो। बाहर
की रोशनी हमें
भाती नहीं है।
तुम
पूछते हो कौन—सा
देश सबसे
अच्छा है। और
कौन—सा देश
सबसे बुरा है।
देश तो होते
ही नहीं। देश
तो झूठ हैं।
राष्ट्र तो
मनुष्य की ईजाद
हैं। असलियत
है व्यक्ति
की। इस देश ने
गौतम बुद्ध, उपनिषद के
ऋषि, महावीर,
आदिनाथ—आकाश
की ऊंची से
ऊंची ऊंचाई
छुई है। वह भी
एक भारत है।
वही पूरा भारत
होना चाहिए।
और एक
भारत और भी
है।
राजनीतिज्ञों
का, चोरों का,
कालाबाजारियों
का। भारत के
भीतर भारत है।
इसलिए
यह सवाल नहीं
है कि कौन देश
श्रेष्ठ है और
कौन देश
अश्रेष्ठ है? सवाल यह है
कि किस देश
में अधिकतम
श्रेष्ठ लोगों
का निवास है
और किस दिश
में अधिकतम
निकृष्ट
लोगों का
निवास है।
भारत में
दोनों मौजूद
हैं।
तो एक
हाथ से मैं
भारत के झंडे
को ऊंचा भी
करना चाहता
हूं और एक हाथ
से भारत में
झंडे को गिरा
भी देना चाहता
हूं। मैं भारत
को कोई एक
इकाई नहीं
मानता। इसलिए
मेरे लिए
प्रश्न
निरर्थक है।
यह तुम पर है।
मैं
सारी दुनिया
में चक्कर लगा
आया हूं। सभी
जगह अच्छे लोग
हैं और सभी
जगह बुरे लोग
हैं। लेकिन
बुरे लोग ताकत
में है हर
जगह। और अच्छे
लोग शक्तिहीन
हैं हर जगह।
अच्छाई की एक
मजबूरी है।
अच्छाई
आक्रामक नहीं
होती। हिंसात्मक
नहीं होती।
बुराई
आक्रामक होती
है। हिंसक
होती है।
स्वभावतः
बुराई छाती पर
चढ़ जाती है।
और अच्छाई को
कोई मौका भी
नहीं मिलता।
दूसरी
खूबी: अच्छाई
को कोई
आकांक्षा भी
नहीं होती कि
उसे स्वीकार
मिले। अच्छाई
अपने आप में ऐसा
सुखद अनुभव है
कि अब और कुछ
और नहीं चाहिए, न जोड़ा जा
सकता है।
बुराई
महत्वाकांक्षी
है। तो अगर
बुरे लोगों को
देखना हो तो
राजनीति। और
अगर अच्छे
लोगों को
देखना हो तो
शांत, मौन,
ध्यान में
संलग्न लोग।
दुनिया दो
हिस्सों में
बंटी है, दो
देशों में
नहीं। बुरे
लोग छाती पर
सवार हैं और
अच्छे लोग, इतने अच्छे
लोग हैं कि
उनसे यह भी
नहीं कहते कि
अब उतरो भी।
उनके छाती पर
सवार होने से
भी फर्क नहीं
पड़ता।
क्योंकि उनकी
आनंद की, उनके
प्रेम की, उनके
अमृत की वर्षा
उनके भीतर हो
रही है।
प्रश्न
तुम्हारा गलत
है। और गलत
प्रश्न का सही
उत्तर नहीं हो
सकता।
आपने
अभी कहा कि
दुनिया दो
हिस्सों में
बंटी है:
अच्छाई और
बुराई। आप
हिंदुस्तान
से अच्छाई की
तलाश में बाहर
गए थे। आपको
पिछली यात्रा
के दौरान कितनी
अच्छाई और
कितनी बुराई
मिली देखने को?
यह
किस बेवकूफ ने
तुमसे कहा कि
मैं अच्छाई की
तलाश में बाहर
गया था या कि
यह तुम्हारी
खुद की ईजाद
है?
यदि
अच्छाई और
बुराई दोनों
हिंदुस्तान
में थीं...
पहले
मेरे प्रश्न
का उत्तर...। यह
कोई साधारण राजनीति
की पत्रकार परिषद
नहीं है। यहां
से तुम अच्छी
तरह पिट कर बाहर
निकलोगे।
तुमसे किसने
कहा कि मैं
अच्छाई की
तलाश में बाहर
गया था?
मैं
अच्छाई के
प्रचार के लिए
बाहर गया था।
और मैंने
अच्छे लोग
पाए। और मैंने
बुरे लोग भी
पाए। और मैंने
यह निष्कर्ष
निकाला कि
इससे कोई फर्क
नहीं पड़ता कि
तुम कहां रहते
हो, इससे
फर्क पड़ता कि
तुम कौन हो।
जमीन से कोई
अच्छा और बुरा
नहीं होता, जमीर से कोई
अच्छा और बुरा
होता है।
आपने
पिछले 32
वर्षों में जो
अनुभव किया है
हिंदुस्तान
में और बाहर
रहकर, उसके
बाद भारत, अमरीका,
धर्म, सेक्स,
भारत की
समस्याएं और
उनके समाधान
के बारे में
आपके जो अब तक
विचार रहे हैं,
इनमें कोई
खास बदलाव आया
है क्या?
बहुत
बदलाव आया है।
क्योंकि मैं
कोई सड़ता हुआ
बंद तालाब
नहीं हूं। मैं
एक बहती हुई
गंगा हूं। हर
क्षण मैं आगे
बढ़ रहा हूं।
यूनान के
प्रसिद्ध
विचारक
हैराक्लाइटस
ने कहा है: एक
ही नदी में
तुम दुबारा
नहीं उतर
सकते। कभी न
कभी, किसी न
किसी नक्षत्र
पर अनंत काल
में हैराक्लाइटस
से मेरी
मुलाकात होगी
ही। तो मैं भी
उसको कहना
चाहता हूं कि
तुम एक ही नदी
में एक बार भी नहीं
उतर सकते।
क्योंकि नदी
बही जा रही
है। जब तुम
नदी का ऊपर का
तल छू रहे हो, तब नीचे का
तल बह रहा है।
और जब तक तुम
नीचे के तल पर
पहुंचते हो, ऊपर का तल जा
चुका है।
बीज तो
वही है—वृक्ष
बना है, पत्तों
से भरा है, फूल
खिले हैं।
मैंने अपने
जीवन में किसी
चीज के विरोध
में विकास
नहीं किया है।
जो मैंने कहा
है, उसे और
परिष्कृत
किया है।
इसलिए निश्चित
ही मैं वही
नहीं कहूंगा
जो मैंने तीस
साल पहले कहा
था। तीस साल
पहले मैं
बीजों की बात
कर रहा था, अब
मैं फूलों की
वर्षा कर रहा
हूं।
जिस
अभियान को
लेकर मनुष्य
की आत्मा
मुक्त नहीं
हुई और वह
धर्म और
परंपरा से
उपजी
वर्जनाओं के
कारण
भयाक्रांत—सी
हो गई है। इस
संदर्भ में
मानव मुक्ति
के आपके
कार्यक्रम में
क्या योजना
बनाई है?
मानव
मुक्ति
मनुष्य के
स्वास्थ्य
जैसी है। बीमारियां
अलग—अलग हो
सकती है। कोई
क्षयरोग से
बीमार है, कोई सर्दी—जुकाम
से, कोई
बुखार से, कोई
कैंसर से।
बीमारियां
हजारों हो
सकती हैं, लेकिन
स्वास्थ्य एक
ही होता है।
स्वास्थ्य
बहुत प्रकार
के नहीं होते।
मानव मुक्ति
मनुष्य का
अंतिम स्वास्थ्य
है। उसकी
अंतिम
खिलावट। उसके
जीवन से सुवास
का उठना।
हजारों
वर्षों की
निरंतर खोज से
आदमी ने वह विज्ञान
भी खोज लिया
है। उस
विज्ञान को
मैं ध्यान
कहता हूं।
ध्यान के
अतिरिक्त कोई
मनुष्य कभी
मुक्ति का
अनुभव नहीं
करता। न तो
प्रार्थना
तुम्हें
मुक्ति की तरफ
ले जा सकती है, क्योंकि
प्रार्थना
में तुमने
प्रारंभ से एक
झूठ स्वीकार
कर लिया, विश्वास
कर लिया—ईश्वर
है। जानते
नहीं हो, पहचानते
नहीं हो, मिल
जाए तो भी
पहचान न
सकोगे। और
प्रार्थना
बहिर्गामी है
इसलिए
सांसारिक है।
एक और यात्रा
है—ध्यान की, अंतर्गामी—कि
तुम अपनी खोज
में निकलते
हो। तुम स्वयं
की पहचान को
अपना अभियान
बनाते हो और
जिस दिन कोई
व्यक्ति
स्वयं को
पहचान लेता है,
उसकी दिन
उसके जीवन में
कल्याण की
वर्षा हो जाती
है। और वह वर्षा
एक जैसी है।
वह वर्षा न तो
देखती है कि
यह छत मुसलमान
की है, कि
हिंदू की है, कि जैन की
है। वर्षा के
बादल को क्या
लेना। तुम्हारी
तैयारी
चाहिए।
और
ध्यान का
सूत्र छोटा—सा
है। सभी सूत्र
छोटे होते
हैं। ध्यान को
छोटा—सा सूत्र
है: अपने भीतर
इतनी शांति, कि विचार की
कोई तरंग भी न
उठे। कोई लहर
न हो ऐसा
सन्नाटा; ऐसा
शून्य, जहां
बस तुम हो और
कुछ भी नहीं
है। जहां यह
भाव भी नहीं
है कि मैं
हूं। उसी क्षण
यह सारा विश्व
तुम्हारे ऊपर
ईश्वर बन कर
बरस पड़ता है।
ईश्वर
को खोजना नहीं
पड़ता। जो लोग
ईश्वर को खोजने
निकलते हैं, वे भ्रांति
में हैं। तुम
क्या ईश्वर को
खोजोगे? कोई
पहचान नहीं, कोई नाम
नहीं, कोई
रूप नहीं, कोई
रंग नहीं।
ईश्वर
तुम्हें
खोजता है।
पुरानी मिस्र
की कहावत है
कि जब भी
शिष्य राजी
होता है, गुरु
प्रकट होता
है। इसे थोड़ा
बदल कर यूं
कहें की जब भी
तुम शांत, शून्य
और मौन होते
हो, तुम्हारी
अंतरात्मा
ईश्वर के आनंद
और सौंदर्य से
भर जाती है।
तुम अमृत हो
जाते हो। इसके
सिवाय कोई
उपाय न कभी था,
न कभी होगा।
आपने
कहा है कि आप
जीवन भर झूठ
नहीं बोले, किंतु
शिष्यों की
खातिर आपको
झूठ भी बोलना
पड़ा और अपने
को रिहा
करवाना पड़ा।
भगवानों, संतों
को अग्नि
परीक्षाओं के
दौर से गुजरना
पड़ता है। क्या
वैसा ही आपको
नहीं करना था?
मैंने
जीवन में तीन
बार झूठ बोला
है। किसने
तुमसे कहा कि
मैंने कभी झूठ
नहीं बोला?
आपने
जो धर्मयुग को
एक इंटरव्यू
दिया है, उसमें कहा
है।
धर्मयुग
की कोई भूल
होगी। मैंने
तीन बार झूठ
बोला है।
कब?
क्योंकि
मेरे लिए
प्रेम और
करुणा ज्यादा
मूल्यवान है।
एक बार मैं
झूठ बोला मा
आनंद शीला को
बचाने के लिए।
उसे मैंने लाख
समझाया कि
मेरा कभी कोई
अडाप्शन नहीं
हुआ है। मैं
किसी की गोद
नहीं लिया गया
हूं। उसने
झूठे कागजात
तैयार किए, ताकि अमरीका
में मुझे रहने
के लिए आधार
बनाया जा सके।
उसके पिता ने
झूठे
दस्तावेज
तैयार किए।
मेरे सामने सवाल
था एक बुजुर्ग,
शीला और
हजारों
संन्यासियों
के कम्यून का।
झूठ सिर्फ
इतना मैं बोला
कि मुझे कोई
पता नहीं है
बचपन में अगर
मुझे गोद ले
लिया गया हो, लेकिन मुझे
कभी कहा नहीं
गया।
दूसरी
बार मैं झूठ
बोला अमरीका
की जेल में, 12 दिनों तक हर
तरह से परेशान
किए जाने के
बाद। अमरीकी
सरकार ने मेरे
वकीलों को कहा
कि दो ही उपाय
हैं। एक तो
उपाय है कि ये
मुकदमा
वर्षों तक
चले। हम जानते
हैं कि हम
मुकदमा हार
जाएंगे।
क्योंकि
मैंने कोई पाप
नहीं किया है।
लेकिन मुकदमा 10
साल चले, 15
साल चले, 20
साल चले। इस
बीच हम कम्यून
को नष्ट कर
देंगे। मेरे
बिना कम्यून
के प्राण निकल
जाएंगे। और सारी
दुनिया में
संन्यासियों
का ध्यान का
आंदोलन नष्ट
हो जाएगा। अगर
मैंने दो—और
उन्होंने
लिस्ट बनाई
हुई थी 136 जुर्म
मेरे खिलाफ—सब
झूठ—अब अगर
मैं दो जुर्म
स्वीकार कर
लूं तो आंदोलन
बच सकता है, कम्यून बच
सकता है, सारे
विश्व में
फैले हुए
संन्यासी बच
सकते है।
यह
ब्लैकमेल था।
मेरे
अटर्नियों की
आंखों में
आंसू थे।
उन्होंने कहा
कि हम जानते
हैं कि यह सब
झूठ है। लेकिन
दो छोटे से
अपराध
स्वीकार कर
लेने से यह
सारा का सारा
उपद्रव शांत
हो सकता है।
तो मैंने दो
अपराध...सिर्फ
दो शब्द मैं
अमरीका की
अदालत में
बोला हूं, दोनों झूठ।
और जज से कहकर
यह बोला हूं
कि यह मैं
सत्य की शपथ
खाकर बोल रहा
हूं कि मैंने
अमरीका में
प्रवेश पाने
लिए झूठे
दस्तावेज पेश
किए और मेरे
संन्यासी
अमरीका में रह
सकें, इसलिए
उनकी झूठी
शादियां कीं।
न तो
मैंने किसी की
शादी की, न
मैंने कोई
झूठे
दस्तावेज पेश
किए।
इन
तीनों मौकों
को छोड़कर
मैंने कोई झूठ
नहीं बोला। और
इन तीनों
झूठों के लिए
मैं शर्मिंदा
नहीं हूं, गौरवान्वित
हूं। क्योंकि
ये झूठ किसी
बड़े आदर्श के
लिए बोले गए
थे। और ये झूठ
मेरे किसी
स्वार्थ के
लिए नहीं थे।
लेकिन इन तीन
झूठों के
सिवाय मेरा
जीवन सिवाय
सत्य के, चाहे
वह कितना ही
महंगा पड़ा हो,
चाहे मैंने
अपनी जान खतरे
में डाली हो, मैं तैयार
रहा हूं।
मेरे
जीवन पर बहुत
हमले किए गए हैं—हिंदुस्तान
में, अमरीका
में। और अब
अमरीका चाहता
है—आधा करोड़
रुपया देने को
तैयार है, कोई
आदमी, अगर
मुझे मार
डाले। मैंने
खबर भेजी है
रोनाल्ड रीगन
को, क्यों
बेचारे दूसरे
आदमी को
फंसाते हो, क्योंकि वह
मुझे मारेगा
तो अदालत में
फंसेगा। आधा
करोड़ रुपया
मेरे काम के
लिए दे दो, ध्यान
के लिए दे दो, मैं मरने के
लिए तैयार
हूं। सीधा
सौदा है।
मेरी
दृष्टि में
झूठ और सत्य
में निर्णायक
बात झूठ और
सत्य नहीं
होते।
निर्णायक बात
होती है—कारण।
मैंने तीनों
बार झूठ
दूसरों के लिए
बोला है। अपने
लिए नहीं।
अपने लिए तो
मैं मरने को भी
तैयार हूं।
झूठ बोलने का
कोई सवाल नहीं
है।
आपने
कहा कि तीनों
बार झूठ आपने
दूसरों के लिए
बोला है। और
जिस आंदोलन को
लेकर आप पिछले
32 सालों से चल
रहे हैं, जिस पूरे
समुदाय को
लेकर आप चले
रहे हैं, जो
विचार और
दर्शन आप लेकर
चल रहे हैं, उस पूरे
समुदाय में
क्या कोई ऐसी
शख्सियत अब तक
नहीं बन पाई
है कि आपको यह
सोचना पड़ रहा
है कि आपके
बाद मेरे
कम्यून का
क्या होगा, पूरे विचार
दर्शन का क्या
होगा। क्या आप
अब भी इस दिशा
में कुछ
सोचेंगे कि
आपके बाद पूरे
विचार और
दर्शन को देश
और विदेश में
फैलाने के लिए
कोई ऐसी
शख्सियत तैयार
की जाए या
बनाई जाए?
मैं
आदमी नहीं
बनाता, क्योंकि
बनाए हुए आदमी
काम के नहीं
होते। सिखाए
हुए आदमी जीवन
के मंदिर में
प्रवेश नहीं
पा सकते। अनेक
मित्र हैं, जो तैयार हो
रहे हैं, मगर
मैं उन्हें
बना नहीं रहा
हूं। मैं
सिर्फ वातावरण
बना रहा हूं।
माली गुलाब के
फूल बनाता
नहीं है।
सिर्फ जमीन
तैयार करता है,
बीज बोता है,
खाद देता है—फूल
तो अपने से
आते हैं। मुझे
कोई व्यक्ति
के ऊपर अपने
को थोपने का
आग्रह नहीं
है। उसे मैं आध्यात्मिक
गुलामी कहता
हूं। मैं जो
कर सकता हूं
जमीन तैयार
करने का काम, वह मैं कर
रहा हूं।
उसमें जिनके
भीतर भी थोड़ी
आत्मा है, उनके
फूल खिलेंगे—इस
जन्म में, अगले
जन्म में, किसी
और जन्म में।
लेकिन
इस जमीन को
बनाने के लिए
अगर मुझे तीन
बार झूठ बोलना
पड़ा है तो मैं शर्मिंदा
नहीं हूं। शर्मिंदा
होना चाहिए
अमरीका की
सरकार को। यह
न्याय नहीं
है। मैं अदालत
में मुकदमा
लड़ने को राजी
था। यह पहला
मौका है कि एक
अकेला आदमी
विश्व की सबसे
बड़ी ताकत के
खिलाफ खड़ा था।
मेरे मुकदमे
को उन्होंने
नाम दिया था, मैंने नहीं—यूनाइटेड
स्टेटस आफ
अमरीका वर्सस
भगवान श्री
रजनीश। मैं तो
वैसे ही जीत
गया। और फिर
भी उन्हें झूठ
बोलना पड़ा और
इस तरकीब से झूठ
को पेश करना
पड़ा कि मेरे
वकीलों को
कहना पड़ा—पैर
छूकर, टपकते
हुए आंसुओं से
कि हमने अपने
जीवन में इस
तरह नहीं
देखा। वे जो
दो विकल्प दे
रहे हैं, वे
दोनों शरारत
से भरे हुए
हैं। मुकदमे
को लंबाया जा
सकता है, तुम्हारे
काम को रोका
जा सकता है।
मैं
अगर झूठ बोलकर
नरक में भी पड़
जाऊं तो मुझे
कोई एतराज
नहीं है।
लेकिन मैं
चाहूंगा कि जो
जमीन मैं
तैयार कर रहा
हूं, वह तैयार
हो जाए, कुछ
फूल खिल उठें,
कुछ झरने
जाग जाएं, कुछ
तारे उग आएं।
यह
पहला मौका था
कि अमरीकी
सरकार ने
नेगोसिएशन के
लिए मेरे
वकीलों को
निमंत्रित
किया। अन्यथा
वकील सरकार से
प्रार्थना
करते हैं कि
कोई समझौता कर
लिए जाए।
अमरीकी सरकार
समझौता करने को
राजी थी और
समझौता करने
को क्यों राजी
थी—कल मैंने
कहा।
दो दिन
पहले अमरीका
के अटार्नी
जनरल के मुंह
से सच निकल
गया।
पत्रकारों की
एक काफ्रेंस
में उनसे पूछा
गया कि भगवान को
सजा क्यों
नहीं दी गई।
तो उसने तीन
कारण बताए। एक, कि हम भगवान
के आंदोलन को
नष्ट करना
चाहते हैं।
उनके कम्यून
को नष्ट करना
चाहते हैं। वह
हमारी
प्राथमिक
दृष्टि है।
दूसरा, हमारे
पास भगवान के
खिलाफ कोई भी
सबूत नहीं है
कि उन्होंने
कोई जुर्म
किया हो।
यह बड़ी
मजेदार
दुनिया है।
मैंने कोई
जुर्म नहीं
किया, लेकिन
साठ लाख रुपया
जुर्माना
मेरे ऊपर किया
गया है, सारी
दुनिया को यह
दिखाने के लिए
कि जुर्म जरूर
किया गया होगा,
नहीं तो साठ
लाख रुपया
क्यों
जुर्माना
किया जाए। और
तीसरी बात और
भी
महत्वपूर्ण
है। अमरीका के
अटार्नी जनरल
ने, जो कि
वहां की सबसे
बड़ी सरकारी
कानूनी
व्यवस्था का
प्रमुख है, उसने कहा कि
हम भगवान को
एक मसीहा, एक
शहीद नहीं
बनाना चाहते
थे। क्योंकि
यह भूल पहले
हो चुकी है।
सुकरात
को जहर देकर
मारा नहीं जा
सका। ढाई हजार
साल बीत गए, सुकरात
ज्यादा जिंदा
है, मारने
वालों का कोई
पता भी नहीं, नाम का भी
पता नहीं।
जीसस को सूली
दी, तब तक
जीसस के पास
केवल 10—12 शिष्य
थे। सूली के
बाद संख्या
बढ़ती गई।
अलहिल्लाज
मंसूर को बोटी—बोटी
काट डाला गया,
लेकिन इससे
कोई आत्माएं
नहीं कटतीं।
और भी सूफी
हुए हैं उसी
कोटि के, लेकिन
अलहिल्लाज
मंसूर ध्रुव
तारे की तरह
चमकता है।
हम
नहीं चाहते थे
कि भगवान को
एक शहीद, एक
ध्रुव तारा
बना दें। और
हमारा काम
पूरा हो गया
है। लेकिन फिर
भी उन्होंने
आखिरी कोशिश की,
क्योंकि
जैसे ही मैं
जेल से बाहर
निकला, अदालत
ने मुझे छोड़
दिया, क्योंकि
कोई मेरे
खिलाफ कानून
नहीं था और
मेरे ऊपर कोई
जुर्म न था, लेकिन मुझे
जेल तक जाना
जरूरी था।
अपना सामान, अपने कपड़े—मैं
चकित हुआ वहां
देखकर कि जेल
में सन्नाटा है।
जो आधारभूत
आफिस की जगह
है, वहां
कोई भी नहीं
है। मैंने
पूछा भी कि
मैं कई बार
यहां से आया
गया; यहां
तो बड़ी धूम, बड़े आफिसर्स,
जेलर, आज
सब क्या हुआ, क्या मेरी
खुशी में
छुट्टी मनाई
जा रही है? जो
आदमी मुझे ले
जा रहा था, एयरकंडीशंड
जेल में, उसके
माथे से पीसना
बह रहा था।
मैंने पूछा कि
पसीना पोंछ
डालो, क्योंकि
पसीना भी बहुत
कुछ कहता है।
उसने मुझे उस
जगह पहुंचाया
आफिस में, जहां
मुझे मेरा सामान
वापस देना है।
वहां भी एक ही
आदमी था, इसके
पहले वहां 12
आदमी से कम
कभी भी नहीं
थे। और उस
आदमी ने कहा कि
मुझे अपने ऊपर
के अधिकारी से
दस्तखत लेने
होंगे, इसलिए
मैं जरा बाहर
जाता हूं, आप
आराम से
बैठें।
पांच
मिनट, दस
मिनट, पंद्रह
मिनट बीते, उस आदमी का
कोई पता नहीं
और वह बाहर से
ताला लगा गया!
मैं कोठरी में
अकेला हूं।
जेल से बाहर
आने पर पता
चला कि जिस
कुर्सी पर
मुझे बिठाया
गया था, उस
के नीचे टाइम
बम था। लेकिन
वह टाइम बम
ठीक से
व्यवस्थित न
कर सके, क्योंकि
पता नहीं
अदालत में
कितनी देर हो।
और जज के
सामने साफ था
कि मामले में
कुछ भी नहीं
है, इसलिए
पांच मिनट में
मुकदमा
समाप्त हो
गया। उन्होंने
सोचा होगा
पांच बजे मैं
आऊंगा। मैं बहुत
जल्दी पहुंच
गया। उस जेल
के अंदरूनी
कमरे में
सिवाय सरकार
के और कोई
आदमी टाइम बम
नहीं रख सकता
था, पहुंच
नहीं सकता था।
क्या
घबराहट थी? मुझे मार
डालने की क्या
घबराहट थी?
और यही
मेरे अटर्नीज
का कहना था कि
अगर मैं ये दो
छोटे से जुर्म
स्वीकार नहीं
कर लेता हूं
तो हम आशा
नहीं करते कि
जेल से तुम
वापस आ सकोगे।
मुकदमा
लंबाया
जाएगा। जेल
में बहाने
खोजे जाएंगे।
और जेल में
बहाने खोजे
गए।
मुझे
एक जेल में रखा
गया एक आदमी
के साथ, जो
मर रहा था और
जिसको ऐसी छूत
की बीमारी है
कि उसका कोई
इलाज नहीं। और
उसकी कोठरी
में छह महीने
से किसी को भी
नहीं रखा गया
था। उस आदमी
ने एक कागज पर
लिख कर मुझे
दिया कि इससे
पहले कि आप कोई
चीज छुएं, डाक्टर
और जेलर को
बुलाएं और
पूछें कि मुझे
क्यों यहां
रखा गया है।
मैं मर रहा
हूं और यह एक
अपरोक्ष
तरकीब है आपको
मार डालने की—शहीद
भी न बनो, मसीहा
भी न बनो और
बीमारी से मर
जाओ। जरा सोचो
जीसस अगर खाट
पर मरते, जैसा
कि निन्यानबे
आदमी चुनते
हैं मरने के
लिए, दुनिया
में कोई
क्रिश्चिएनिटी
न होती।
एक घंटा
लगा मुझे
दरवाजे को
पीटने में, तब डाक्टर
आया और मैंने
डाक्टर से
पूछा कि छह महीने
से जब कोई
आदमी इस सेल
में नहीं रखा
गया और तुम
विरोध करते
रहे हो, तो
आज तुम मौजूद
थे, तुम्हारे
सामने मुझे इस
जेल में रखा
गया है, इस
सेल में रखा
गया है और
तुमने कोई
विरोध नहीं
किया? तुम
डाक्टर हो या
हत्यारे हो?
दूसरी
जेल में मुझसे
कहा गया कि
मैं अपना नाम न
लिखूं, जब
फार्म भरता
हूं प्रवेश का
तो अपने नाम
की जगह लिखूं
डेविड
वाशिंगटन।
मैंने कहा, सेविड
वाशिंगटन
मेरा नाम नहीं
है। मैं रात
भर यहां आफिस
में बैठा रह
सकता हूं, लेकिन
डेविड
वाशिंगटन
मेरा नाम नहीं
है और मैं
नहीं लिखूंगा
और मेरे साथ
तुम्हें भी
बैठना पड़ेगा।
बारह बजे रात,
यू. एस.
मार्शल खुद, कोट पर लिखा
है:
डिपार्टमेंट
आफ जस्टिस।
मैंने कहा कि
कम से कम इस
कोट को तो
निकाल दो। और
तुम फार्म भर
सकते हो, दस्तखत
मैं कर दूंगा।
उसने समझा कि
चलो यह भी
समझौता ठीक
है। उसने
फार्म भर दिया
अपने
हैंडराइटिंग
में और मैंने
दस्तखत किए
हिंदी में।
उसने कागज को
सब तरफ से
घुमा कर देखा
और कहा कि यह
क्या है? मैंने
कहा, डेविड
कूपर फील्ड, डेविड
वाशिंगटन, जो
बनाना चाहो, इससे बना
सकते हो। ये
मेरे दस्तखत
हैं। और तुम
डिपार्टमेंट
आफ जस्टिस को
संभालते हो कि
क्या तुम
फार्म पर नहीं
भरना चाहते
क्योंकि अगर तुम
मुझे मार डालो
जल में तो
मेरा नाम तुम
फार्म पर नहीं
भरना चाहते
क्योंकि अगर
तुम मुझे मार
डालो जेल में
तो मेरा कोई
पता भी नहीं
चल सकेगा कि
मैं कहां खो
गया। इसलिए
हैंडराइटिंग
तुम्हारे हैं
और दस्तखत
मेरे हैं।
तुमने अपनी
फांसी का
इंतजाम खुद कर
लिया है। ठीक
पांच बजे सुबह
मुझे बदलकर
दूसरी जेल में
भेज दिया गया,
क्योंकि वह
फार्म नष्ट
करना था।
मुझे
इस बात की
चिंता नहीं है, क्योंकि
जीवन से जो
मुझे मिल सकता
था, वह
मुझे मिल चुका
है। अब और
जीवन से कुछ
पाने का कोई
सवाल नहीं है।
लेकिन लाखों
लोग हैं दुनिया
में जो तैयार
हो रहे हैं।
मैं उनकी
तैयारी के लिए
जीना चाहता
हूं। मैंने
झूठ बोला सत्य
की सेवा के
लिए।
दिसंबर
में इंडिया
टुडे के
इंटरव्यू में
आने कहा था, दिसंबर
महीने में
अमरीकी घटना
के बाद कि
राजीव गांधी
चूंकि एक गैर
राजनीतिक
व्यक्तित्व हैं,
इसलिए उनसे
उम्मीद की जा
सकती है कि वे
कुछ अच्छा
करेंगे।
परसों के
इंटरव्यू में
आने कुछ नाउम्मीदी
जाहिर की है
राजीव गांधी
के काम करने
के तरीके के
बारे में। इस
पर अगर आप
इलैबरेट करें
तो कृपा होगी।
मैं
कोई
राजनीतिज्ञ
नहीं हूं
लेकिन इतना
मैं जानता हूं, कौन चमार है
और अच्छे जूते
बना सकता है।
राजीव एक
अच्छे पायलट
हैं। लेकिन
अच्छा पायलट
होना प्रधानमंत्री
होने के लिए
कोई
सर्टिफिकेट नहीं
है। और आने
वाला चुनाव
निर्णय करेगा
इस बात का।
सच में
इंदिरा गांधी
की हत्या का
राजीव ने पूरी
तरह शोषण किया
है। मां के
खून पर राजीव
गांधी
हिंदुस्तान
का
प्रधानमंत्री
है। हम यहां खून
देने वाले
चाहते हैं, मां के खून
को भी बेच
देने वाले
नहीं। राजीव की
अपनी
क्षमताएं हैं,
अपनी
प्रतिभा है, वह उसका
उपयोग करे।
और
इंदिरा गांधी
के जिंदा रहते
समय, मैंने
राजीव को
संदेश दिया था
कि अगर
तुम्हें कभी
राजनीति में
आना है तो अभी
से अपनी मां
के चरणों में
बैठकर शिक्षण
शुरू करो। जो
उत्तर मुझे
मिला था, वह
यह था कि मैं
ही अकेला घर
में कमाने
वाला हूं।
संजय मर चुका
था और अगर
इंदिरा अपनी
सत्ता खो देती
है तो मेरे
सिवाय परिवार
को भोजन भी
देने वाला कोई
भी नहीं है।
फिर मेरी
राजनीति में
कोई उत्सुकता भी
नहीं है। क्या
तुमने कभी
सुना है कि
इंदिरा गांधी
और उसके जिंदा
रहते समय
राजीव ने कोई
उत्सुकता
राजनीति में
ली हो? कोई
अ ब स भी
राजनीति का
सीखा हो।
छोकरों की एक
जमात मुल्क की
छाती पर सवार
हो गई है। आने
वाले इलेक्शन
तक उनकी
धज्जियां उड़
जाएंगी। और
झूठ—फरेब लंबा
अभ्यास चाहते
हैं।
विरोधी
पार्टी के
नेता ने
पार्लियामेंट
में पूछा कि
भगवान को भारत
से बाहर क्यों
जाना पड़ा, जब मैं
वापिस आया था।
क्या उन पर ये
शर्तें लादी
गई थीं कि आप भारत
के बाहर नहीं
जा सकते और
भारत से बाहर
के संन्यासी
आपसे मिलने
नहीं आ सकते; और खासकर
भारत के बाहर
से पत्रकार, न्यूज
मीडिया को आप
तक नहीं
पहुंचने दिया
जाएगा? मैंने
कहा, तो
अमरीका की जेल
में और भारत
की जेल में क्या
फर्क होगा?
कम से
कम अमरीका की
पहली जेल में
जेलर मुझे पढ़ता
था, सुनता
रहा था, वह
इतना उत्सुक
था कि उसे
सारे कानून को
एकतरफा रखकर
जेल के भीतर
वर्ल्ड प्रैस
कांफ्रेंस बुलाई।
अमरीका में
मैं जेल के
भीतर, वर्ल्ड
कांफ्रेंस के
भीतर
पत्रकारों से
बात कर सकता
हूं अमरीका की
गवर्नमेंट के
खिलाफ।
और
भारत में मैं
स्वतंत्र
रहकर भी
पत्रकारों से
नहीं मिल
सकूंगा और जो
मुझे प्रेम
करते हैं, वे मेरे पास
न आ सकेंगे, तो मेरे
रहने, न
रहने का कोई
उपयोग नहीं
है।
मेरे
छोड़ दिए जाने
पर भारत से
विरोधी
पार्टी के
नेता ने यह
प्रश्न पूछा कि
क्या ये
शर्तें लगाई
गई थीं कि
उनके शिष्य उनके
मिलने नहीं आ
सकते? और
राजीव गांधी
की सरकार ने
उत्तर दिया कि
यह बात झूठ है,
उनके शिष्य
मिलने आ सकते
हैं। तो मैंने
अपने बहुत से
संन्यासियों
को अलग—अलग
देशों में, अलग अलग
एंबेसीज में
वीसा लेने के
लिए भेजा। हर
जगह से इंकार
मिला। यह
आश्चर्यजनक
है। यहां सरकार
कह सकती है कि
वे आ सकते हैं
और एंबेसीज को
खबर करते हैं
कि उनका कोई
भी व्यक्ति
भारत न आने
पाए। ये झूठ
और फरेब इस
देश को ऊंचा
नहीं उठा सकते।
और ये
व्यक्ति जो आज
सत्ता में हैं, इतना नपुंसक
हैं कि देश से
वह भी नहीं कह
सकते, जिससे
देश का भला हो
सकता है कि
अपनी संख्या कम
करो, कि
संतति नियमन
करो। ये देश
को मौत की तरफ
ढकेल रहे हैं।
यह जानकर
तुम्हें
आश्चर्य होगा
कि भारत में
भूख और भारत
का गेहूं भारत
के बाहर बेचा
जा रहा है।
क्योंकि उसी
धन के बल पर
न्यूक्लियर
एनर्जी और उनके
प्रसाधन
खरीदे जा सकते
हैं।
तुम्हारे पेट
से किसी को
मतलब नहीं है।
मैं
सोचता था कि
राजीव चूंकि
राजनीतिज्ञ
नहीं हैं, बल्कि
अनायास एक गैर—राजनीतिज्ञ
राजनीति में
पहुंच गया है।
इसलिए मैंने
तारीफ की थी
कि शायद उससे
हम आशा बांध सकते
हैं। लेकिन अब
कोई आशा
बांधने की
जरूरत नहीं
है।
यह देश
मरेगा गरीबी
से और
जिम्मेवार
राजीव गांधी
होंगे। आज
पंजाब में तुम
लोगों को
मारोगे, लेकिन
कहां—कहां तुम
लोगों को
मारोगे?
राजीव
के पास कोई
व्यक्तित्व
नहीं है, न
ही कोई
वक्तव्य है, न ही कोई
करिश्मा है, कि इस सारे
देश को इकट्ठा
रख सकें। आसाम
अलग होना
चाहता है।
तमिलनाडु कल
अगल होना
चाहेगा। इस
देश में तीस
भाषाएं हैं, वे तीस
देशों में बंट
जाना चाहती
हैं।
यह मैं
आपको स्मरण
दिला दूं कि
हजारों सालों
से भारत एक
राष्ट्र नहीं
रहा है। बुद्ध
के जमाने में, ढाई हजार
साल पहले इस
देश में पांच
हजार राज्य
थे। यह तो
मुसलमानों, मुगलों, तुर्कों,
हूंणों और
अंग्रेजों की
जबरदस्ती के
कारण तुम्हें
बांध कर रखा
गया है। लेकिन
अब तुम्हें बांध
कर नहीं रखा
जा सकता। अब
तो तुम्हें
प्रेम से ही
एक रखा जा
सकता है। अब
तो सिर्फ एक
ही बंधन इस
देश को
राष्ट्र बनाए
रख सकता है—और वह
प्रेम का है।
न तो भाषा का, न धर्म का, न प्रांत का,
वरन सिर्फ
प्रेम का।
राजीव
के पास प्रेम
का क्या संदेश
है? ध्यान का
क्या संदेश है?
हिंदुस्तान
की
पार्लियामेंट
रिटार्डिस है।
इनमें से किसी
के भी
मस्तिष्क की
जांच की जा सकती
है, 14 साल से
ज्यादा निकल
आए, बहुत
मुश्किल है।
इस देश को
नासमझ छोकरों
के हाथ में
छोड़ दिया गया
है। यह सारी
स्थिति बदलनी
होगी।
इस देश
में विचारशील
लोग भी हैं।
बुद्धिमान लोग
भी हैं। ऐसे
लोग भी हैं
जिन्हें
राजनीतिक महत्वाकांक्षा
नहीं है, लेकिन
फिर भी जिनके
दिल में देश
के लिए करुणा है।
लेकिन एक
मुसीबत है जो
महत्वाकांक्षी
हैं, अनिवार्य
रूप से हीनता—ग्रंथि
से पीड़ित होते
हैं। अपनी
हीनता को दबाने
के लिए बड़े
पदों पर
पहुंचने की
कोशिश करते हैं।
और जो हीनता—ग्रंथि
से पीड़ित नहीं
हैं—संतुष्ट
हैं, मग्न
हैं अपने में—वे
कोई भीख नहीं
मांगते फिरते
वोटों की। तुम
भिखारियों के
द्वारा आशा
छोड़ दो कि यह देश
ऊपर उठ सकेगा।
हमें रास्ता
बदलना पड़ेगा।
हमें जाना
पड़ेगा उन
लोगों से
प्रार्थना
करने जो इस
देश को संभाल
सकते हैं। वे
तुम्हारे पास वोट
मांगने नहीं
आएंगे। और
उनकी कोई कमी
नहीं है।
इसलिए
मैंने अपने
दृष्टिकोण
में पूरा
परिवर्तन
किया है। मैं 12
दिन तक अमरीका
की जेल में
था। राजीव ने
कोई भी उपाय
नहीं किया
भारतीय
राजदूत के
द्वारा कि कम
से कम इतना तो
पूछे कि मेरा
जुर्म क्या है? और बिना
कारण अरैस्ट
वारंट के मुझे
क्यों पकड़ा
गया है। और
बिना अदालत
में लिए जाए, मुझे क्यों
जबरदस्ती एक
जेल से दूसरी
जेल में घसीटा
जा रहा है।
न, अमरीका को
कोई नाराज
नहीं करना
चाहता। सब भिखारी
हैं। अमरीका
से वे चाहिए
जो नाइट्रोजन
बम पैदा कर
सकें, जो
मृत्यु की
किरणें पैदा
कर सकें। जीवन
में किसी का
रस नहीं है।
यह
कर्तव्य था
राजीव गांधी
का कि एक
भारतीय के ऊपर
बिना किसी
जुर्म के, बिना किसी
कारण के
जबरदस्ती
अत्याचार
ढाया जा रहा
हो, तो वह
आवाज उठाए।
दुनिया के
दूसरे देशों
से आवाजें
उठीं, सिर्फ
भारत चुप रहा।
और जिस दिन
मैं जेल से छूट
कर आया, उस
दिन भारतीय
राजदूतावास
का एक आदमी
पूछने आया कि
हम आपकी क्या
सेवा कर सकते
हैं? मैंने
कहा, 12 दिन
तुम कहां थे? अफीम लेते
हो? चरस
पीते हो? 12
दिन तुम कहां
थे? तुम्हारी
सरकार कहां थी?
तुम्हारा
राजदूत कहां
था? उस
आदमी ने जो
उत्तर दिया वह
यह था कि हम
निरीक्षण कर
रहे थे कि
क्या हो रहा
है। मैंने कहा,
तुम
निरीक्षण
करते जब तक कि
मैं मर जाता।
तुम मेरी लाश
से पूछने आते
कि हम क्या
सेवा कर सकते
हैं। जाओ और
कह दो अपने
राजदूत से और
कह दो अपने
प्रधानमंत्री
से कि तुम्हारी
सेवा की मुझे
कोई जरूरत
नहीं है। हां,
तुम्हें
कभी कोई जरूरत
पड़े मेरी सेवा
की तो मैं
हमेशा तैयार
हूं।
मैं इस
सरकार को एक
बचकानी, अप्रौढ़,
अपरिपक्व
सरकार कहने को
मजबूर हूं।
इतने बड़े राष्ट्र
को, जहां
नब्बे करोड़ की
आबादी हो, इन
बच्चों के हाथ
में छोड़ देना
खतरे से खाली
नहीं है। ये
कोई दीवाली के
पटाखे नहीं
हैं। यहां
पूरे देश की
जिंदगी और मौत
का सवाल है।
मैं चाहता हूं,
देश समझदार
लोगों के हाथ
में जाए। मैं
चाहता हूं, देश में कोई
राजनैतिक
पार्टी न हों,
कोई जरूरत
नहीं है
राजनैतिक
पार्टी की।
जरूरत है
समझदार लोगों
की जिनको हम
चुन कर भेजें
और जो सामूहिक
रूप से निर्णय
ले सकें इस
देश के भविष्य
के लिए।
मैं
अराजकवादी
हूं।
राजनैतिक
पार्टियां
सिर्फ शोषण
करती हैं।
पांच साल एक
पार्टी शोषण
करती है, तब
तक लोग दूसरी
पार्टी के
संबंध में भूल
जाते हैं। फिर
दूसरी पार्टी
सत्ता में आ
जाती है, पांच
साल तक वह
शोषण करती है,
तब तक लोग
पहली पार्टी
के संबंध में
भूल जाते हैं।
यह एक बहुत
मजेदार खेल
है। कबड्डी
खेल रहे हैं
बेटे और रैफरी
भी कोई नहीं
है।
आपकी
योग—साधना का
जो तरीका रहा
है, उसमें
शारीरिक
संपर्क का एक
खास महत्व रहा
है। जैसा कि
पहले भारत में
आप चलाते थे, रजनीशपुरम
के बारे में
मुझे पता
नहीं। अगर वह तरीका
फिर रहेगा तो
जो नया खतरा
पैदा हो गया है
एड्स का, उसको
देखते हुए योग—साधना
के तरीके में
कोई बदलाव आप
लाने की सोच रहे
हैं?
एड्स
की बीमारी
धार्मिक
बीमारी है।
इसका जन्म मोनेस्टरीज
में और उन
स्थानों पर
हुआ, जहां
धार्मिक गुरु
लोगों को समझा
रहे थे ब्रह्मचर्य।
ब्रह्मचर्य
बिलकुल ही
अस्वाभाविक है।
सिर्फ
ब्रह्मचर्य
होने का एक ही
उपाय है और वह
है प्लास्टिक
सर्जरी। सिर्फ
नपुंसक
ब्रह्मचारी
हो सकता है और
कोई भी नहीं।
और अब भी
ब्रह्मचर्य
का शिक्षण
जारी है।
महात्मा
गांधी जैसे
लोग लिखते हैं,
ब्रह्मचर्य
ही जीवन है और
जीवन के अंत
में, सत्तर
साल की उम्र
में समझ में
आता है कि
नहीं, ब्रह्मचर्य
ही जीवन नहीं
है और एक नग्न
स्त्री के साथ
सोना शुरू कर
देते हैं।
शारीरिक
संबंध
स्वाभाविक है
अगर उन्हें
स्वाभाविक
रखा जाए तो
एड्स का कोई
खतरा नहीं है।
जंगलों में अब
तक किसी जानवर
में एड्स नहीं
पाई गई। लेकिन
अजायबघरों
में जानवरों
में भी एड्स
की बीमारी
पैदा हो जाती
है। क्योंकि
अगर नर ही नर
हैं, मादा
नहीं है तो
बंदरों में
इतनी अक्ल है,
जितनी
तुम्हारे
भिक्षुओं में
है, तुम्हारे
संन्यासियों
में है। कोई
रास्ता खोजना
ही पड़ेगा।
भोजन तुम
करोगे...और
तुमसे कोई अगर
कहे कि पेशाब
करना मना है
तो तुम
मुश्किल में
पड़ोगे। पानी
तुम पीओगे, पेशाब का
क्या करोगे? चोरी छिपे
कोई रास्ता
खोजोगे अपने
को धोखा दोगे
और समाज की
धोखा दोगे।
भारत
में एड्स की
बीमारी अगर
फैलेगी तो
तुम्हारे
धर्मगुरुओं
के द्वारा।
पश्चिम में भी
उन्हीं के
द्वारा फैल
रही है, जोर
से फैल रही
है।
स्त्रियों
और पुरुषों को
अलग कर दो, लेकिन
तुम्हारे
भीतर जो वीर्य
ऊर्जा पैदा होती
है, उसका
क्या करोगे? तुम्हारे
वीर्य की थैली
एक सीमा रखती
है, उसके
बाद...उसके बाद
कोई भी
अप्राकृतिक, काई भी
विकृत रूप
लेगी या तो
स्वप्नदोष
होगा तुम्हें।
महात्मा
गांधी को
सत्तर साल की
उम्र में भी
स्वप्न दोष
होते थे, लेकिन
हम ऐसे अंधे
हैं कि सोच भी
नहीं सकते। महात्मा
गांधी
ईमानदार आदमी
थे। मुझे उनकी
ईमानदारी पर
कोई भी शक
नहीं है।
लेकिन सत्तर
साल में भी
अगर
स्वप्नदोष
होता है तो
इसका अर्थ है
कि तुम्हारे
हाथ में नहीं
है बात। भूख
लगती है, तुम्हारे
हाथ में नहीं
है। प्रकृति
में जो भी
जरूरी है, उसे
तुम्हारे हाथ
में नहीं छोड़ा
है। नहीं तो तुम
कभी के खत्म
हो गए होते।
सांस लेते हो—तुम्हारे
हाथ में नहीं
है। नहीं तो
रात में भूल
जाते कि सांस
लेना कि नहीं।
सड़क की भीड़—भाड़
में भूल जाते
कि सांस लेना
कि नहीं।
तुम्हारे
भीतर जो वीर्य
की ऊर्जा
स्त्री या
पुरुषों के
भीतर पैदा
होती है, वह
तुम्हारे खून
से पैदा होती
है। अगर तुम
चाहते हो कि
वह पैदा न हो
तो खून पैदा
नहीं होना चाहिए।
जड़ों तक जाना
पड़ेगा। और खून
पैदा न हो तो भोजन
बंद करना
होगा। तो
ब्रह्मचारी
ही होना है तो
जाओ और लटक
जाओ किसी झाड़
से बांध कर
रस्सी अपनी
गर्दन में और
लिख लेना एक
तख्ती कि मैं
ब्रह्मचारी हूं।
एड्स
को रोकने का
एकमात्र उपाय
है कि स्त्री
और पुरुष के
बीच हमने जो
वैमनस्य, जो
दुश्मनी
हजारों साल
में पैदा की
है, उसे
अलग करना। अगर
हम इसे अलग कर
सकते हैं तो एड्स
का कोई सवाल
नहीं है।
पुरुष और
स्त्री के
संभोग से एड्स
पैदा नहीं
होता। पुरुष
और पुरुष के संभोग
से एड्स पैदा
होता है। और
वैसा पुरुष अगर
स्त्री से
संभोग करे तो
स्त्री को भी
एड्स की
बीमारी दे
देता है।
और
एड्स की
बीमारी आखिरी
बीमारी है। अब
तक ऐसी कोई
बीमारी जानी
नहीं गई, क्योंकि
इसका कोई इलाज
नहीं है।
वैज्ञानिक कहते
हैं कि दस
वर्षों तक तो
हम नहीं सोच
सकते कि कोई
इलाज खोजा जा
सकता है। और
इतने जोर से
फैल रही है
बीमारी, कि
न तो तुम किसी
से कह सकते हो
कि तुम एड्स
के बीमार हो, न तुम
डाक्टर के पास
जा सकते हो, न डाक्टर
चाहता है कि
तुम उसके पास
जाओ। कृपा करो,
फीस ले लो
और घर जाओ। न
कोई अस्पताल
भर्ती करने को
राजी है, क्योंकि
केवल शारीरिक
संबंध से ही
एड्स एक दूसरे
में नहीं
फैलती। पसीने
से भी फैलती
है। थूक से भी
फैलती है।
आंसुओं से भी
फैलती है।
सिर्फ
दुनिया में एक
कौम है एस्किमोज
की, जिन्होंने
कभी प्रारंभ
से ही चुंबन
नहीं लिया। और
जब पहली दफा
ईसाई मिशनरी
एस्किमोज को
बदलने पहुंचे
तो उनकी हंसीं
का ठिकाना न
रहा। वे सोच
भी न सके कि ये
कैसी गंदी
हरकत कर रहे
हैं। यह गंदी
हरकत है। एक
दूसरे के मुंह
में जीभ डालना,
एक दूसरे के
थूक में थूक
मिलाना, जरा
सोचो तो। शरीर
से जो भी चीज
बाहर निकलती है,
उसमें एड्स
की वायरस होते
हैं।
एक ही
उपाय है—सेलीबेसी, ब्रह्मचर्य
गैर—कानूनी
करार दिया जाए
और पकड़—पकड़ कर
एक—एक
संन्यासी की
शादी की जाए
कि चलो...।
अन्यथा यह भी
हो सकता है कि
न्युक्लियर
युद्ध के पहले
एड्स आदमी को
मार डाले। और
एड्स के बीमार
को अगर पूर्ण
सुरक्षित रखा
जाए तो वह दो
साल से ज्यादा
नहीं जी सकता।
यह लंबी से
लंबी अवधि है।
और पूर्ण
सुरक्षित
कैसे रखोगे? आखिर उसे
काम करना
पड़ेगा, लोगों
से मिलना
पड़ेगा।
और
एड्स के बीमार
की क्षमता
किसी भी
बीमारी से
लड़ने की शून्य
हो जाती है।
अगर उसको
सर्दी पकड़ जाए
तो सर्दी भी
फिर ठीक नहीं
होती। बुखार आ
जाए तो बुखार
ठीक नहीं
होता। उस पर
कोई दवा काम
नहीं करती।
क्योंकि दवा
के काम करने
का ढंग है। जब
हम दवा देते
हैं किसी आदमी
को तो उसका शरीर
उस दवा का साथ
देता है। उन
दोनों की
संयुक्त
शक्ति से
बीमारी अलग की
जाती है। एड्स
के मरीज का
शरीर साथ नहीं
देता। वह खोखला
है। तुम दबा
डालते जाओ, वह बेमानी
है। तुमने
नाली में डाल
दी होती तो भी
उतना ही असर
होता, जितना
तुमने
इंजेक्शन लगा
कर किया है।
मगर
दुनिया के
धार्मिक अभी
भी समझाए जा
रहे हैं कि
ब्रह्मचर्य
के बिना कोई
ब्रह्म तक नहीं
पहुंच सकता—ब्रह्मचर्य
बिलकुल
अनिवार्य है।
ये देश के दुश्मन
हैं और समाज
के दुश्मन
हैं। इन्हें
रोकना जरूरी
है, और
स्त्री और
पुरुष को करीब
लाना जरूरी
है। ताकि
पुरुष और
पुरुष संभोग न
करने लगें, ताकि
स्त्रियां और
स्त्रियां
संभोग न करने
लगें।
मैं
अमरीका में था
तो टैक्सस की
गवर्नमेंट ने पार्लियामेंट
में यह कानून
पास किया कि
समलिंगी
संभोग गैर—कानूनी
है। और दस साल
की सजा कम सक
कम सजा है। तुम
विश्वास न कर
सकोगे। दस लाख
लोगों के
जुलूस ने
विरोध किया कि
यह हमारी
स्वतंत्रता पर
हमला है।
ब्रह्मचर्य
को गैर—कानूनी
करार देने की
बजाय, उन्होंने
होमो—सेक्सुअलिटी
को गैर—कानूनी
करार दिया।
इसके परिणाम
बहुत खतरनाक हैं।
इसका मतलब हुआ
कि होमो—सेक्सुअलिटी,
समलिंगी
व्यवहार
अंतर्गत, भूमि
के भीतर छिप
जाएगा और
तुम्हें पता
भी नहीं
चलेगा।
तुम्हें यह भी
पता नहीं
चलेगा कि एक
छोटा बच्चा रो
रहा था और
तुमने उसके
आंसू पोंछ दिए
तो तुमने करुणा
का काम किया
या हत्या का, क्योंकि हो
सकता है कि
तुम्हारे हाथ
और उसके आंसू
एड्स की
बीमारी को
पैदा कर दें।
और
नवीनतम खबरें
है कि अब
बच्चे भी
पैदाइश के साथ
एड्स लेकर आ रहे
हैं। तीन
बच्चे पैदा
होते ही एड्स
के बीमार थे।
यह सबसे भयंकर
बीमारी है, जो आदमी ने
मनुष्य के
इतिहास में
देखी है।
मेरे
विचार और भी
परिपक्व हो गए
हैं कि मनुष्य
को सहज, सरल
स्वाभाविक
जीवन जीना
चाहिए।
अन्यथा विकृति
बिलकुल
स्वाभाविक
है।
मैंने
सुना है एक
शानदार हथिनी
जंगल से गुजर
रही थी और एक
मुंडा संन्यासी
उसके पीछे भाग
रहा था। हथिनी
ने पूछा कि हे
मुंडे, तू
क्यों मेरा
पीछा कर रहा
है? उस
संन्यासी ने
कहा, माई, अब तुम इतनी
बड़ी हो कि माई
ही कहना
पड़ेगा। एक ही
वासना रह गई
है जीवन में, उसी की वजह
से संसार में
भटक रहा हूं।
अगर तुम जरा
सहायता कर दो
तो मोक्ष में आनंद
लूं। हथिनी ने
कहा, मैं
बिलकुल तैयार
हूं, क्या
सहायता
चाहिए। उसने
कहा, कहने
में शर्म आती
है। मगर यहां
कोई भी नहीं है
और किसी को
पता भी नहीं
चलेगा। न
मालूम क्यों
मेरे दिमाग
में बार—बार
यह खयाल उठता
है कि हथिनी
को प्रेम करने
से कैसा होगा?
हथिनी ने
कहा प्रेम? तुम प्रेम
करोगे मुझसे?
ठीक है।
नसैनी वगैरह
लाए हो? उसने
कहा, मैं
ले आया हूं, म्युनिसिपल
की नसैनी, उसी
को लेकर तो
दौड़ रहा हूं
और हांफ रहा
हूं। तुम मेरी
यह छोटी—सी
इच्छा पूरी कर
दो तो जन्म—जन्मांतर
का चक्र छूट
जाए। यह मेरे
भाव से नहीं
छूटता, सब
देख लिया, मगर
हथिनी से
प्रेम नहीं
किया।
और अब
मैं समझता हूं
कि क्यों
आश्रमों में
हाथ और
हथिनियां रखे
जाते हैं।
उसने
कहा, तू जल्दी
कर भैया, क्योंकि
मेरी भी डेट
है, मेरा
बॉय फ्रेंड
रास्ता देखता
होगा। हे मुंडे,
चढ़ अपनी नसैनी
पर। मुंडा
प्रेम करने
में संलग्न हो
गया। प्रेम
क्या था, एक
तरह की कसरत
समझो। दंड लगा
रहा था, पसीना—पसीना
हुआ जा रहा
था। और तभी
झाड़ के ऊपर से
एक नारियल
गिरा, जो
हथिनी के सिर
पर पड़ा। हथिनी
ने कहा, आह!
मुंडे ने कहा,
माफ करना
प्रियतमे, क्या
मैं तकलीफ तो
नहीं दे रहा
हूं? हथिनी
ने कहा, आह!
मुंडे ने कहा,
माफ करना
प्रियतमे, क्या
मैं तकलीफ तो
नहीं दे रहा
हूं? हथिनी
ने कहा, तुम्हारा
तो मुझे पता
ही नहीं चल
रहा है, तुमने
शुरू भी किया
या नहीं।
मुंडा बोला, मैं तो बहुत
पहले खत्म हो
चुका। यह तो
मेरे गुरु हैं,
जिनका नाम गुंडा
है, वे ऊपर
बैठे हैं, झाड़
पर। हमारे
संप्रदाय में
शिष्य को
मुंडा कहते
हैं। और गुरु
को गुंडा कहते
हैं। हालांकि वे
ब्रह्मचर्य
के बिलकुल
पक्ष में हैं,
लेकिन यह
अदभुत दृश्य
देखकर जो कि
हिंदी फिल्मों
में भी नहीं
दिखाई पड़ सता,
वे भी जोश
में आ गए। भूल
गए सब ब्रह्मचर्य,
और कुछ न
सूझा तो जोर
से वृक्ष को
ही हिलाने लगे।
नारियल उनकी
कृपा से
तुम्हारे सिर
पर गिरा।
यह
गुंडों और
मुंडों का
समाज, इसने
तुम्हें हजार
तरह की
बीमारियां दी
हैं और मैं
चाहता हूं सहज,
स्वाभाविक,
नैसर्गिक
जीवन। जितने
तुम
स्वाभाविक
होओगे, उतने
ही ज्यादा
तुम्हारे
जीवन में
शांति होगी।
उतनी ही संभावना
है तुम्हारे
लिए उस अमृत
को पा लेने की,
जिसकी हम
सदियों से
प्रतीक्षा
करते रहे हैं
जन्मों—जन्मों
से।
तो
सिवाय मेरे—और
मैं दोहराता
हूं सिवाय
मेरे—न तो
तुम्हारा पोप, न अयातुल्ला
खोमेनी, न
तुम्हारे
शंकराचार्य, न तुम्हारे
आचार्य तुलसी,
कोई भी
तुम्हें एड्स
से नहीं बचा
सकते। एड्स से
बचाने का एक
ही उपाय है:
सरल बनो, सीधे
बनो, नाहक
सिर के बल खड़े
होने की कोशिश
न करो। पैर दिए
हैं प्रकृति
ने, उनसे
ही चलो।
भारत
में अभी भी
एड्स का कोई
बहुत प्रचार
नहीं है, सिवाय
सैनिकों के
कालेजों में
जहां लड़के और
लड़कियों को
अलग—अलग
होस्टलों में
रहने के लिए
मजबूर किया जा
रहा है, आश्रमों
में जहां
स्त्री और
पुरुषों के
बीच दीवाल खड़ी
की जा रही है।
बड़े आश्चर्य
की बात है कि
प्रकृति
तुम्हें जो
देती है, तुम
उसका विरोध
करते हो? फिर
परिणाम भी
भोगने के लिए
मर रहे हैं।
और रोज लाखों
लोग एड्स के चक्कर
में आ रहे
हैं। वह
ईसाइयत की देन
है। अभी भारत
को बचाया जा
सकता है। अभी
बात आगे नहीं
बढ़ी और पैर
पीछे खींचा जा
सकता है।
लेकिन
यह मेरी तकलीफ
है कि मैं सच
को सच कह देता
हूं तो पत्थर
खाने की
तैयारी अपने
हाथ से कर
लेता हूं। तुम
सच नहीं सुनना
चाहते। तुम
चाहते हो कि
राम—राम जपता
रहूं और
ब्रह्मचर्य
सध जाए। खुद
रामचंद्र जी
से नहीं सधा, तुमसे क्या
सधेगा? थोड़ा
सोचो तो जिनकी
तुमने पूजा की
है कृष्ण की, वे 16000
स्त्रियों को
अपने घर में
बंद किए थे।
अनाचार है, मगर कम से कम एड्स
तो नहीं फैला।
मेरा
अंतिम प्रश्न
है, इसे
स्पैस्फिक
जवाब की
अपेक्षा है कि
भारत आने के
बाद अब आपका
क्या
कार्यक्रम है?
आप कहां
रहेंगे और
कार्यशैली
क्या होगी?
यह
प्रश्न
तुम्हें सूरज
प्रकाश से
पूछना चाहिए, जिनके घर
में मैं हूं।
मैं जरा
जिद्दी किस्म
का आदमी हूं।
तय कर लूं तो
इस घर को
छोडूंगा ही
नहीं। सूरज
प्रकाश ढूंढ
लें कोई घर
नया।
आज इतना
ही।
2
अगस्त 1986,
प्रातः
सुमिला, जुहू,
बंबई
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