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शनिवार, 30 नवंबर 2019

मेरी प्रिय पुस्तकें-(सत्र-07)

मेरी प्रिय पुस्तकें-ओशो

सत्र--सातवां

ओ. के.। मैं तुम्हारी नोटबुक के खुलने की आवाज सुन रहा हूं। अब यह एक घंटे का समय मेरा है, और मेरे एक घंटे में साठ मिनट नहीं होते। वे कुछ भी हो सकते हैं--साठ, सत्तर, अस्सी, नब्बे, सौ... या संख्याओं के पार भी। यदि यह एक घंटा मेरा है तो इसे मेरे साथ संगति बिठानी होगी, इससे विपरीत नहीं हो पाएगा।
पोस्टस्क्रिप्ट, पश्चलेख जारी है।
आज का जो पहला नाम है: मलूक, इस नाम को पश्चिम में किसी ने सुना भी नहीं होगा। वे भारत के अत्यंय महत्वपूर्ण रहस्यदर्शियों में से एक हैं। उनका पूरा नाम है, मलूकदास, लेकिन वे अपने को केवल मलूक कहते हैं, जैसे कि वे कोई बच्चे हों--और वे सच में ही बच्चे थे, ‘बच्चे जैसे’ नहीं।

उन पर मैं हिंदी में बोला हूं, लेकिन उसे अन्य भाषाओं में अनुवादित होने में काफी समय लगेगा, उसका कुल कारण यह है कि मलूक बहुत ही अनूठे हैं, बहुत ही रहस्यमय हैं। तुम्हें यह जान कर आश्चर्य होगा कि भारत जैसे देश में जहां इतने सारे व्याख्याकार, विद्वान, पंडित भरे पड़े हैं, उनमें से किसी ने भी मलूकदास पर व्याख्या करने की फिकर नहीं की, क्योंकि यह बहुत मुश्किल मामला है। उनको मेरा इंतजार करना पड़ा। उनकी व्याख्या करने वाला मैं पहला व्यक्ति हूं, और कौन जाने शायद अंतिम भी।
उदाहरण के लिए:
अजगर करै न चाकरी, पंछी करै न काम।
दास मलूका कहि गए, सबके दाता राम।।
अब मैं इसका अनुवाद करने की कोशिश करता हूं। यह बिलकुल उसी जैसा नहीं होगा, लेकिन इसके लिए मैं जिम्मेवार नहीं हूं। बेचारी अंग्रेजी भाषा इतनी समृद्ध नहीं है। मलूक कहते हैं: अजगर कभी नौकरी पर बाहर काम करने नहीं जाता है, न ही पक्षी कोई काम किया करते हैं। और, मलूक कहते हैं, कोई ऐसी जरूरत भी नहीं है, क्योंकि अस्तित्व सभी को पाल रहा है। वे एक ऐसे व्यक्ति थे जिन्हें जोरबा दि ग्रीक पसंद करता। वे थोड़े से अलमस्त व्यक्ति थे और बहुत ध्यानी।
वे ध्यान में इतने गहरे डूबे हुए थे कि वे कहते हैं:
माला जपों न कर जपों, जिभ्या कहों न राम।
सुमिरन मेरा हरि करैं, मैं पाया बिसराम।।
वे कहते हैं: भगवान का नाम मैं नहीं जपता, न ही पूजा के लिए माला जपता हूं। मैं पूजा ही नहीं करता--इन सब मूर्खताओं की परवाह कौन करता है! फिर आगे कहते हैं: सच तो यह है कि भगवान ही मेरा स्मरण करते हैं, मुझे उनका स्मरण करने की आवश्यकता नहीं है... देखते हो?--यह थोड़ी सी मस्ती और ध्यान की ऊंचाई। मलूकदास ऐसे व्यक्ति हैं जिनके बारे में मैं निस्संकोच कह सकता हूं कि वे संबोधि के पार चले गए हैं। झेन के दस बैलों वाले चित्रों में वे दसवां चित्र हैं।

दूसरी: सिक्खों की पुस्तक: ‘गुरुग्रंथ साहिब।’ यह किसी एक व्यक्ति द्वारा नहीं लिखी गई थी इसलिए मैं यह नहीं बता सकता कि इसका लेखक कौन है। इसे पीढ़ी दर पीढ़ी संकलित किया गया है। इसे सभी स्रोतों से एकत्रित किया गया है, ऐसा दुनिया में किसी और पुस्तक के साथ नहीं किया गया है। ‘दि ओल्ड टेस्टामेंट’ केवल यहूदियों की पुस्तक है, ‘न्यू टेस्टामेंट’ केवल ईसाइयों की है, ‘भगवद्गीता’ केवल हिंदुओं की है, ‘धम्मपद’ केवल बौद्धों का है, ‘जिन-सूत्र’ केवल जैनों का है; लेकिन ‘गुरुग्रंथ साहिब’ दुनिया में एकमात्र ऐसी पुस्तक है जिसे सभी संभव स्रोतों से संकलित किया गया है। इसके स्रोत हिंदू, मुसलमान, जैन, बौद्ध, ईसाई से आते हैं। इसमें बहत खुलापन है, कोई कट्टरता नहीं।
शीर्षक ‘गुरुग्रंथ’ का अर्थ है: ‘सदगुरुओं की पुस्तक’ या ‘सर्वश्रेष्ठ ग्रंथ।’ इसमें तुम्हें मिल जाएंगे कबीर, नानक, फरीद; और विभिन्न परंपराओं, विभिन्न विचारधाराओं के रहस्यदर्शियों की लंबी कतार मिल जाएगी, मानो हजारों नदियां सागर में गिर रही हों। ‘गुरुग्रंथ’ एक सागर की तरह है।
मैं नानक के केवल एक ही वाक्य का अनुवाद करूंगा। वे संस्थापक हैं, इसलिए निश्चित ही उनके शब्द ‘गुरुग्रंथ’ में संकलित किए गए हैं। वे सिक्खों के प्रथम सदगुरु थे; उनके बाद नौ अन्य सदगुरु हुए हैं। सिक्ख धर्म दस सदगुरुओं द्वारा स्थापित किया गया। यह एक अनोखा धर्म है क्योंकि बाकी सभी धर्म केवल एक ही सदगुरु द्वारा निर्मित किए गए हैं।
नानक कहते हैं: सत्य, परम सत्य अकथनीय है, कहा नहीं जा सकता है, इसलिए कृपया मुझे क्षमा करना, मैं सत्य के बारे में कुछ न कह पाऊंगा, बस गाऊंगा। अगर तुम संगीत की भाषा समझ सको, तो हो सकता है शायद तुम्हारे हृदय का कोई तार झंकृत हो जाए। सत्य शब्दों के पार है।
‘गुरुग्रंथ साहिब’... सिक्ख लोग इसे ‘साहिब’ कहते हैं, क्योंकि वे इस पुस्तक का अत्यधिक सम्मान करते हैं, करीब-करीब ऐसे ही जैसे कि वह जीवित हो, जैसे कि वह सदगुरु की आत्मा हो। लेकिन पुस्तक तो पुस्तक है, और जैसे ही सदगुरु विदा होते हैं पुस्तक मृत हो जाती है, शब्द मृत हो जाते हैं। इसलिए वे एक सुंदर लाश को ढो रहे हैं, जैसा अन्य सभी धर्म कर रहे हैं। याद रखना, धर्म कभी-कभी जीवित होता है, केवल सदगुरु की मौजूदगी में जीवित होता है। जब सदगुरु जीवित नहीं होता तो वह संप्रदाय बन जाता है, और संप्रदाय एक कुरूप चीज है।
‘पंथों और संप्रदायों’ की जांच के लिए हालैंड की संसद ने एक आयोग नियुक्त किया है। निस्संदेह उनकी जांच की सूची में मैं प्रथम हूं। हालैंड में अपने लोगों को मैंने सूचित कर दिया है कि वे आयोग को बता दें, ‘‘हम लोग आपके साथ सहयोग नहीं कर सकते, क्योंकि हमारा न तो कोई पंथ है न ही कोई संप्रदाय; हम एक धर्म हैं। यदि आपको पंथों और संप्रदायों को देखना हो, तो वे बहुत से हैं: ईसाई, यहूदी, हिंदू, मुसलमान, और इसी तरह के अंतहीन संप्रदाय हैं।’’ वस्तुतः मैं इसे इतनी बार दोहराने वाला था कि चक्कर आ जाए...
जांच आयोग बहुत चिंतित हो गया। उन्होंने हालैंड में मेरे संन्यासियों को पत्र लिख कर कहा: ‘‘कृपया हमारे साथ सहयोग करें।’’ हमारे लोगों ने फिर पूछा है कि क्या किया जाए। मैंने उनसे कहा, ‘‘जो करना है वह मैं पहले ही बता चुका हूं। जब तक वे धर्म के मूलतत्व के बारे में जांच के लिए आयोग नहीं नियुक्त करते, तब तक सहयोग मत करो।’’
 अब जरा उनकी मूर्खता को देखो: हालैंड की संसद में क्रिश्चियन डेमोक्रेटिक पार्टी का वर्चस्व है और जो लोग आयोग की सेवा में नियुक्त हैं वे सभी क्रिश्चियन डेमोक्रेटिक हैं। अब, यही लोग हैं जो कि पंथ हैं, यही लोग संप्रदाय हैं। मेरे लोग कोई संप्रदाय नहीं हैं। मैं अभी जीवित और सक्रिय हूं! धर्म का अस्तित्व तभी है जब तक सदगुरु की श्वास चलती रहती है। यह सदगुरु की श्वास है जिससे धर्म बनता है।
 ‘गुरुग्रंथ’ में दस सदगुरुओं, दस बुद्धपुरुषों के वचन संकलित हैं। मैं कहता हूं कि किसी दूसरी पुस्तक से उसकी तुलना नहीं की जा सकती है। यह अतुलनीय है। नानक कहते हैं, ‘‘एक ओंकार सतनाम--केवल एक ही बात सत्य है, उस अनिर्वचनीय का नाम।’’ पूरब में हम उसे ‘ओंकार’ कहते हैं, ‘ओम’--बस वही सत्य है, निर्ध्वनि की ध्वनि...वह मौन जो ध्वनि के विदा हो जाने पर घेर लेता है...‘एक ओंकार सतनाम।’

तीसरी: मेबिल कॉलिन्स की पुस्तक: ‘दि लाइट ऑन दि पाथ।’ जिसे भी ऊंचाइयों की यात्रा करनी है, उसे ‘दि लाइट ऑन दि पाथ’ को समझना होगा। जहां तक विषयवस्तु का संबंध है यह एक छोटी सी पुस्तिका है, मात्र कुछ पृष्ठ, लेकिन जहां तक गुणवत्ता का संबंध है यह श्रेष्ठतम, महानतम पुस्तकों में से एक है। और आश्चर्यों का आश्चर्य कि इसे आधुनिक काल में लिखा गया है। कोई नहीं जानता कि जिसने इसे लिखा है वह मेबिल कॉलिन्स कौन है। जिसने लिखा उसने अपना पूरा नाम मेबिल कॉलिन्स भी नहीं लिखा, बस केवल एम. सी.। यह तो बस संयोग है कि एम. सी. के कुछ मित्रों के माध्यम से मुझे उसके पूरे नाम का पता चला।
एम. सी. क्यों? इसका कारण मैं समझ सकता हूं। लेखक बस एक माध्यम है, और विशेषकर ‘दि लाइट ऑन दि पाथ’ के मामले में तो ऐसा ही है। शायद सूफी खिज्र: वह आत्मा जो लोगों का मार्गदर्शन करती है, नेतृत्व करती है, उनकी सहायता करती है, जिसके बारे में मैं तुम्हें पहले ही बता चुका हूं--एम. सी. के कार्य के पीछे भी थी।
एम. सी. एक थियोसॉफिस्ट, ब्रह्मविद्यावादी थी। वह स्त्री हो या पुरुष--मुझे पता नहीं लेखक स्त्री है या पुरुष, वैसे भी इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है--या शायद उसको सूफियों के परम मार्गदर्शक खिज्र का मार्गदर्शन पसंद नहीं आया हो। लेकिन एम. सी. को अत्यधिक प्रसन्नता होगी यदि मैं उसी नाम का प्रयोग करूं जो थियोसॉफिस्टों ने किया है: वे इसे के. एच. कहते हैं। कोई भी नाम चलेगा। तुम क्या नाम देते हो इससे कोई अंतर नहीं पड़ता है...सदगुरु के. एच. या रहस्यदर्शी खिद्र, यह सब एक ही है। लेकिन पुस्तक बहुत उपयोगी है। जिस किसी ने भी इसे लिखा हो, जिसे किसी ने भी इसे लिखने में मार्गदर्शन दिया हो, यह अलग बात है; पुस्तक अपने में एक स्वर्ण स्तंभ है।

चौथी: मैं एकदम ठीक हूं, अगर मैंने संख्या सही बताई है तो चिंता मत करना। कभी-कभार संयोगवश बस ऐसा हो जाता है। चौथी है कश्मीरी महिला, लल्ला। कश्मीरी लोग लल्ला से इतना प्रेम करते हैं कि वे आदरवश कहते हैं कि हम दो ही शब्दों को जानते हैं: एक अल्लाह और दूसरा लल्ला। कश्मीर में निन्यानबे प्रतिशत मुसलमान रहते हैं, तो जब वे कहते हैं कि वे दो ही शब्द जानते हैं, अल्लाह और लल्ला, तो यह महत्वपूर्ण बात है।
लल्ला ने कोई पुस्तक नहीं लिखी है। वह अनपढ़ थी, लेकिन बहुत साहसी थी... वह पूरे जीवन भर नग्न रही--और याद रहे, यह घटना पूरब में सैकड़ों वर्ष पहले घटित हुई थी--और वह एक सुंदर महिला थी। कश्मीरी लोग सुंदर होते हैं; भारत में केवल वे ही वास्तविक रूप से सुंदर लोग हैं। यह वह भटका हुआ कबीला है जिसे मूसा खोज रहे थे। वे मूल रूप से, वास्तव में यहूदी हैं।
जब मूसा अपने लोगों को इजरायल की ओर ले जा रहे थे... आश्चर्य होता है कि यह दीवाना आदमी क्या कर रहा था: इजरायल की ओर क्यों? लेकिन दीवाना तो आखिर दीवाना होता है, इस बात की कोई व्याख्या नहीं कर सकता है। मूसा अपने लोगों के लिए एक जगह की खोज में थे। चालीस वर्ष तक वे रेगिस्तान में भटकते रहे, और तब इजरायल उन्हें मिला! इसी बीच उनके कबीलों में से एक कबीला खो गया। वह कबीला कश्मीर पहुंच गया।
कभी-कभी भटक जाना सौभाग्य होता है। मूसा को वह कबीला नहीं मिल पाया। क्या तुम्हें पता है कि बाद में अपने भटके हुए कबीले को खोजते हुए मूसा अंततः कश्मीर पहुंच गए... और वहीं उनका निधन हुआ। उनकी कब्र इजरायल में नहीं है, वह कश्मीर में है।
आश्चर्य है, मूसा ने कश्मीर में शरीर छोड़ा, जीसस ने कश्मीर में शरीर छोड़ा। मैं अनेक बार कश्मीर गया हूं, और मैं जानता हूं कि यह ऐसा स्थान है कि मन होता है, ‘‘आह, मैं इसी क्षण मर सकता, अभी और यहीं... !’’ यह इतना खूबसूरत है कि इसके बाद जीने का कोई अर्थ नहीं रह जाता।
कश्मीरी लोग सुंदर होते हैं--गरीब, लेकिन बहुत ही सुंदर। लल्ला कश्मीरी महिला थी, अनपढ़, लेकिन फिर भी वह गा सकती थी, नाच सकती थी। तो उसके कुछ गीत बचा लिए गए हैं। उसको तो, निश्चित ही, नहीं बचाया जा सकता था, लेकिन उसके गीतों को बचा लिया गया है, अपनी पोस्टस्क्रिप्ट में मैं उन गीतों को शामिल करता हूं।

पांचवीं: एक और रहस्यदर्शी, गोरख, एक तंत्रविद, तंत्र की सभी विधाओं में वे इतने निपुण, इतने कुशल थे कि भारत में जो कोई भी बहुत से कार्यों को एक साथ करना जानता है, उसके बारे में कहा जाता है कि वह ‘गोरखधंधा’ कर रहा है। ‘गोरखधंधा’ यानी ‘गोरख का कार्य।’ लोग सोचते हैं कि साधक को अपने मार्ग पर स्थिर रहना चाहिए। गोरख सभी दिशाओं में, सभी आयामों में एक साथ सक्रिय रहे थे।
गोरख का पूरा नाम था, गोरखनाथ। यह नाम उनके शिष्यों ने ही दिया होगा, क्योंकि ‘नाथ’ का अर्थ है मालिक। गोरख ने आंतरिक रहस्य में प्रवेश की सभी संभव चाबियां दी हैं। जो कुछ भी कहा जा सकता है उन्होंने कह दिया है। वे एक तरह से पूर्णविराम हैं।
लेकिन संसार वैसे ही चलता रहता है। संसार को पूर्णविराम का पता नहीं और मुझे भी पता नहीं। मैं वाक्य के मध्य में मर जाऊंगा तब लोग सोचेंगे कि मैं क्या कहने जा रहा था, इस वाक्य को मैं किस प्रकार पूरा करने जा रहा था। गोरखनाथ का मैं सम्मान करता हूं। उनके बारे में मैं बहुत बोला हूं। किसी दिन उसका अनुवाद होगा, इसलिए इस आदमी पर मुझे और समय बर्बाद करने की जरूरत नहीं है।

छठवीं: ऐसा बहुत कम ही होता है कि एक अकेला व्यक्ति दो श्रेष्ठतम पुस्तकों की रचना कर सके, लेकिन ह्यूबर्ट बेनोइट के साथ ऐसा ही हुआ है। मुझे नहीं मालूम कि फ्रांसीसी लोग इस नाम का उच्चारण कैसे करते हैं... और वे उच्चारण के मामले में बहुत ही सनकी होते हैं, और मैं इतना लापरवाह! लेकिन मुझे परवाह नहीं है--इससे क्या फर्क पड़ता है कि अगर किसी शब्द का यहां-वहां अशुद्ध उच्चारण हो जाए? पूरे जीवन मैं अशुद्ध उच्चारण करता रहा हूं।
यह व्यक्ति ह्यूबर्ट बेनोइट--उसकी पहली पुस्तक ‘लेट-गो’ का मैं उल्लेख कर चुका हूं। सच में तो वह उसकी दूसरी पुस्तक थी। ‘लेट-गो’ लिखने के पहले वह ‘दि सुप्रीम डॉक्ट्रीन’--‘सर्वोच्च सिंद्धांत’ नाम की एक पुस्तक लिख चुका था। उसे भी मैं शामिल कर रहा हूं; वरना वास्तव में मुझे दुख होगा कि मैंने उसका उल्लेख नहीं किया। यह एक बहुत ही सुंदर पुस्तक है, लेकिन बहुत कठिन है पढ़ने में, और उसे समझना तो और भी कठिन है। लेकिन बेनोइट ने इसे जितना संभव हो सरल बनाने के लिए अपनी पूरी कोशिश की है।

सातवीं: एक विशेष रहस्यपूर्ण नंबर, सात। मैं चाहता हूं कि किसी रहस्यवादी व्यक्ति को यह नंबर दिया जाए, शिव, जिन्हें हिंदू-विचार में परम कल्याणकारी देवता माना गया है। शिव को कई पुस्तकों का लेखक बताया जाता है; लेकिन उनमें से अनेक के साथ यह सत्य नहीं है, लोग बस उनके नाम का उपयोग सम्मान पाने के लिए कर रहे हैं। लेकिन यह पुस्तक अत्यंत प्रामाणिक है--‘शिव-सूत्र।’ इस पर मैं हिंदी में बोल चुका हूं। अंग्रेजी में भी बोलने की सोच रहा हूं। मैंने तारीख भी तय कर रखी है, लेकिन तुम तो मुझे जानते ही हो...
‘शिव-सूत्र’ में ध्यान की सभी विधियां हैं। कोई भी ऐसी विधि नहीं है जो इस पुस्तक में शामिल न हो। ‘शिव-सूत्र’ ध्यान करने वालों की बाइबिल है।
आशु, मुझे पता है कि वे क्यों हंस रहे हैं। उन्हें हंसने दो। मैं जानता हूं कि मैं बहुत धीमे बोल रहा हूं, इसीलिए वे हंस रहे हैं। लेकिन मुझे इसमें मजा आ रहा है, और उन्हें भी अपनी हंसी में मजा आ रहा है। तो ठीक है... आशु, बस कभी-कभी इतनी भली महिला मिलती है। संसार में सुंदर महिलाएं बहुत हैं, लेकिन ओह मेरे ईश्वर, भली महिला पाना बहुत कठिन है। उन लोगों को हंस लेने दो। मैं जितना धीमे चाहूंगा उतना धीमे बोलूंगा।
मैं ‘शिव-सूत्र’ की बात कर रहा था। इस पुस्तक की तरह कोई दूसरी पुस्तक नहीं है, यह अतुलनीय है, अनूठी है।

आठवीं: एक भारतीय रहस्यदर्शी गौरांग की अत्यधिक सुंदर रचना। ‘गौरांग’ शब्द का अपने आप में अर्थ है ‘गोरा आदमी।’ वे इतने सुंदर थे... मैं उन्हें अपने सामने खड़ा देख रहा हूं, एकदम गोरे, या कहा जाए बर्फ जैसे श्वेत। वे इतने सुंदर थे कि उनके गांव की सभी लड़कियां उनके प्रेम में पड़ गई थीं। और वे अविवाहित ही रहे। कोई भी लाखों लड़कियों के साथ तो विवाह कर नहीं सकता है। उनमें से एक ही काफी है; लाखों, हे भगवान!--यह तो किसी को भी मार डालेगा! अब तुम मेरे अविवाहित रहने का रहस्य समझ गए होंगे।
गौरांग अपना संदेश गीत गाकर और नाच कर अभिव्यक्त किया करते थे। उनका संदेश शब्दों में नहीं था, बल्कि उससे भी अधिक गीतों में था। गौरांग ने कोई पुस्तक नहीं लिखी है; उनके प्रेमियों ने--और वे कई थे, असल में बहुत प्रेमी थे, उन्होंने उनके गीतों का संग्रह किया है। गीतों का यह संकलन सर्वाधिक सुंदर गीत-संग्रहों में से एक है; उन गीतों जैसी चीज मुझे न पहले कभी मिली और न बाद में। उनके विषय में क्या कहूं? बस यही कि मैं उन्हें प्रेम करता हूं।

नौवीं: फिर एक भारतीय रहस्यदर्शी, तुमने उनके बारे में नहीं सुना होगा। उनको दादू कहते थे, जिसका अर्थ है भाई। वे इतने प्यारे थे कि लोग उनका असली नाम ही भूल गए और उनको बस दादू के नाम से याद करते थे। दादू ने हजारों गीत गाएं हैं, लेकिन उन्होंने कुछ लिखा नहीं है, उनके गीतों को दूसरे लोगों ने एकत्रित किया है, जैसे माली गिरे हुए फूलों को एकत्रित कर लेता है।
दादू के बारे में जो मैं कहता हूं वह सभी संतों के बारे में सत्य है। लिखने में उनको रस नहीं होता है। वे गाते हैं, वे बोलते हैं, वे नाचते हैं, वे इशारा करते हैं, लेकिन वे लिखते नहीं हैं। लिखने से बात सीमित हो जाती है। शब्द की सीमा होती है; केवल तभी वह शब्द हो सकता है। यदि यह असीम है, तो आकाश होगा, जिसमें सभी तारे समा जाएं। संत का अनुभव ऐसा ही है।
मैंने भी स्वयं कुछ नहीं लिखा है... जो मेरे बहुत ही अंतरंग थे उनको ही मैंने कुछ पत्र लिखे हैं, यह सोच कर, इस आशा से कि शायद वे कुछ समझ जाएं। मैं नहीं जानता कि वे समझे या नहीं। इसलिए मेरी पुस्तक ‘ए कप ऑफ टी’ ही एकमात्र पुस्तक है जिसके बारे में कहा जा सकता है कि उसे मैंने लिखा है। यह मेरे पत्रों का संग्रह है। अन्यथा मैंने कुछ नहीं लिखा है।
दादू के गीतों को संगृहीत किया गया है। मैं उन पर बोला हूं। वे उन ऊंचाइयों पर पहुंच जाते हैं जहां पहुंचने के लिए लोग कामना करते हैं।

दसवीं: और अंतिम। आज के अंतिम व्यक्ति हैं पृथ्वी पर हुए अनोखे व्यक्तियों में से एक, सरमद। वे एक सूफी थे, और एक मुसलमान बादशाह के आदेश पर मस्जिद में उनकी हत्या कर दी गई थी। उनकी हत्या सिर्फ इसलिए कर दी गई कि मुसलमानों का एक विशेष सूत्र है, जिससे वे अपनी प्रार्थना किया करते हैं। उनकी प्रार्थना है: ‘‘ला इलाहा इल्लल्लाह--एक ही अल्लाह है और कोई अल्लाह नहीं है।’’ और यह उनके लिए पर्याप्त नहीं है; वे इसमें कुछ और जोड़ना चाहते हैं। वे दुनिया में घोषणा करना चाहते हैं कि केवल मोहम्मद ही खुदा के एकमात्र पैगंबर हैं: ‘ला इलाहा इल्लल्लाह; मोहम्मद रसूलल्लाह। एक ही अल्लाह है और कोई अल्लाह नहीं है, और उसका एक ही पैगंबर है मोहम्मद।’’
सूफी दूसरे हिस्से को इनकार करते हैं, कि अल्लाह का एक ही पैगंबर है मोहम्मद। यही सरमद का पाप था। निस्संदेह कोई भी एकमात्र पैगंबर नहीं हो सकता है; बेशक कोई भी एकमात्र पैगंबर नहीं हो सकता है--न मोहम्मद, न जीसस, न मूसा, न बुद्ध। मुसलमान मौलवियों के साथ षडयंत्र करके भारत के मुसलमान बादशाह ने सरमद का बड़ी बेरहमी के साथ कत्ल कर दिया था। लेकिन वे हंसे, और बोले: ‘‘यहां तक कि मृत्यु के बाद भी मैं यही कहूंगा: ला इलाहा इल्लल्लाह--एक ही अल्लाह है और कोई अल्लाह नहीं है।’’
दिल्ली की विशाल मस्जिद, जामा मस्जिद, जहां सरमद का कत्ल किया गया था, आज भी इस महान व्यक्ति की हत्या की गवाह बनी खड़ी है। बहुत ही अमानवीय ढंग से सरमद की हत्या गई: उनकी गर्दन काट दी गई थी। उनकी गर्दन जामा मस्जिद की सीढ़ियों पर लुढ़कती चली गई। हजारों लोग वहां इकट्ठे थे उन्होंने सीढ़ियों पर लुढ़कती गर्दन से यह स्पष्ट आवाज सुनी: ‘‘ला इलाहा इल्लल्लाह--एक ही अल्लाह है और कोई अल्लाह नहीं है...’’
 मुझे नहीं पता कि कहानी सच है या नहीं, लेकिन इसे सच होना चाहिए। इसे सच होना ही चाहिए। सत्य को भी सरमद जैसे व्यक्ति के साथ समझौता करना पड़ता है। मैं सरमद को प्रेम करता हूं। उन्होंने कोई पुस्तक नहीं लिखी है, लेकिन उनके वचनों को संगृहीत किया गया है और सबसे महत्वपूर्ण है: एक ही अल्लाह है और कोई अल्लाह नहीं है, और कोई पैगंबर नहीं है, तुम्हारे और अल्लाह के बीच में कोई नहीं है। कोई मध्यस्थ नहीं है, अल्लाह सीधा उपलब्ध है। बस जरूरत है तो थोड़ी सी दीवानगी की और बहुत सारे ध्यान की, मेडिटेशन की।
उस समय मैं कुछ कहने जा रहा था, लेकिन मैं कुछ कहूंगा नहीं... उसे कहा नहीं जा सकता है। यह पहले भी नहीं कहा गया है और मुझे भी नहीं कहना चाहिए।

अभी भी यह सुंदर है
एक सूर्यास्त की तरह...
पंछी घर लौट रहे हैं,
संध्या के तारे निकल रहे हैं,
उनके रंग आकाश में हैं।
क्या तुम देख पा रहे हो
मेरे चेहरे पर मुस्कान?

आज इतना ही 

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