26-भगवान महावीर-भारत के संत
महावीर मेंरी दृष्टि में-ओशो प्रवचन-01
महावीर से प्रेम
मैं महावीर का अनुयायी तो नहीं हूं, प्रेमी हूं। वैसे ही जैसे क्राइस्ट का, कृष्ण का, बुद्ध का या लाओत्से का। और मेरी दृष्टि में अनुयायी कभी भी नहीं समझ पाता है।और दुनिया में दो ही तरह के लोग होते हैं, साधारणतः। या तो कोई अनुयायी होता है, और या कोई विरोध में होता है। न अनुयायी समझ पाता है, न विरोधी समझ पाता है। एक और रास्ता भी है--प्रेम, जिसके अतिरिक्त हम और किसी रास्ते से कभी किसी को समझ ही नहीं पाते। अनुयायी को एक कठिनाई है कि वह एक से बंध जाता है और विरोधी को भी यह कठिनाई है कि वह विरोध में बंध जाता है। सिर्फ प्रेमी को एक मुक्ति है। प्रेमी को बंधने का कोई कारण नहीं है। और जो प्रेम बांधता हो, वह प्रेम ही नहीं है।
तो महावीर से प्रेम करने में महावीर से बंधना नहीं होता। महावीर से प्रेम करते हुए बुद्ध को, कृष्ण को, क्राइस्ट को प्रेम किया जा सकता है। क्योंकि जिस चीज को हम महावीर में प्रेम करते हैं, वह और हजार-हजार लोगों में उसी तरह प्रकट हुई है।
महावीर को थोड़े ही प्रेम करते हैं। वह जो शरीर है वर्धमान का, वह जो जन्मतिथियों में बंधी हुई एक इतिहास रेखा है, एक दिन पैदा होना और एक दिन मर जाना, इसे तो प्रेम नहीं करते हैं। प्रेम करते हैं उस ज्योति को जो इस मिट्टी के दीए में प्रकट हुई। यह दीया कौन था, यह बहुत अर्थ की बात नहीं। बहुत-बहुत दीयों में वह ज्योति प्रकट हुई है।
जो ज्योति को प्रेम करेगा, वह दीए से नहीं बंधेगा; और जो दीए से बंधेगा, उसे ज्योति का कभी पता नहीं चलेगा। क्योंकि दीए से जो बंध रहा है, निश्चित है कि उसे ज्योति का पता नहीं चला। जिसे ज्योति का पता चल जाए उसे दीए की याद भी रहेगी? उसे दीया फिर दिखाई भी पड़ेगा?
जिसे ज्योति दिख जाए, वह दीए को भूल जाएगा। इसलिए जो दीए को याद रखे हैं, उन्हें ज्योति नहीं दिखाई दी। और जो ज्योति को प्रेम करेगा, वह इस ज्योति को, उस ज्योति को थोड़े ही प्रेम करेगा! जो भी ज्योतिर्मय है--जब एक ज्योति में दिख जाएगा उसे, तो कहीं भी ज्योति हो, वहीं दिख जाएगा। सूरज में भी, घर में जलने वाले छोटे से दीए में भी, चांदत्तारों में भी, आग में--जहां कहीं भी ज्योति है, वहीं दिख जाएगा।
लेकिन अनुयायी व्यक्तियों से बंधे हैं, विरोधी व्यक्तियों से बंधे हैं। प्रेमी भर को व्यक्ति से बंधने की कोई जरूरत नहीं। और मैं प्रेमी हूं। और इसलिए मेरा कोई बंधन नहीं है महावीर से। और बंधन न हो तो ही समझ हो सकती है, अंडरस्टैंडिंग हो सकती है।
यह भी ध्यान में रखना जरूरी है कि महावीर को चर्चा के लिए क्यों चुना?
बहाना है सिर्फ। जैसे एक खूंटी होती है, कपड़ा टांगना प्रयोजन होता है, खूंटी कोई भी काम दे सकती है। महावीर भी काम दे सकते हैं ज्योति के स्मरण में--बुद्ध भी, कृष्ण भी, क्राइस्ट भी। किसी भी खूंटी से काम लिया जा सकता है। स्मरण उस ज्योति का जो हमारे दीए में भी जल सकती है।
स्मरण मैं महान मानता हूं, अनुकरण नहीं। और स्मरण भी महावीर का जब हम करते हैं, तो भी महावीर का स्मरण नहीं है वह, स्मरण है उस तत्व का, जो महावीर में प्रकट हुआ। और उस तत्व का स्मरण आ जाए तो तत्काल स्मरण आत्म-स्मरण बन जाता है। और वही सार्थक है, जो आत्म-स्मरण की तरफ ले जाए।
लेकिन महावीर की पूजा से यह नहीं होता। पूजा से आत्म-स्मरण नहीं आता। बड़े मजे की बात है, पूजा आत्म-विस्मरण का उपाय है। जो अपने को भूलना चाहते हैं, वे पूजा में लग जाते हैं। और उनके लिए भी महावीर खूंटी का काम देते हैं, बुद्ध, कृष्ण, सब खूंटी का काम देते हैं। जिसे अपने को भूलना ही हो, वह अपने भूलने का वस्त्र उनकी खूंटी पर टांग देता है। अनुयायी, भक्त, अंधे, अनुकरण करने वाले भी महावीर, बुद्ध, कृष्ण की खूंटियों का उपयोग कर रहे हैं आत्म-विस्मरण के लिए! पूजा, प्रार्थना, अर्चना--सब विस्मरण हैं।
स्मरण बहुत और बात है। स्मरण का अर्थ है कि हम महावीर में उस सार को खोज पाएं, देख पाएं--किसी रूप में, कहीं पर भी--वह सार हमें दिख जाए, उसकी एक झलक मिल जाए, उसका एक स्मरण आ जाए कि ऐसा भी हुआ है, ऐसा भी किसी व्यक्ति में होता है, ऐसा भी संभव है। यह संभावना का बोध तत्काल हमें अपने प्रति जगा देगा, कि जो किसी एक में संभव है, जो एक मनुष्य में संभव है, वह फिर मेरी संभावना क्यों न बने! और तब हम पूजा में न जाएंगे, बल्कि एक अंतर्पीड़ा में, एक इनर सफरिंग में उतर जाएंगे। जैसे जले हुए दीए को देख कर बुझा हुआ दीया एक आत्म-पीड़ा में उतर जाए, और उसे लगे कि मैं व्यर्थ हूं, मैं सिर्फ नाम मात्र को दीया हूं, क्योंकि वह ज्योति कहां? वह प्रकाश कहां? मैं सिर्फ अवसर हूं अभी जिसमें ज्योति प्रकट हो सकती है, लेकिन अभी हुई नहीं।
लेकिन बुझे हुए दीयों के बीच बुझा हुआ दीया रखा रहे, तो उसे खयाल भी न आए, पता भी न चले। तो करोड़ बुझे हुए दीयों के बीच में भी जो स्मरण नहीं आ सकता, वह एक जले हुए दीए के निकट आ सकता है।
महावीर या बुद्ध या कृष्ण का मेरे लिए इससे ज्यादा कोई प्रयोजन नहीं है कि वे जले हुए दीए हैं। और उनका खयाल और उनके जले हुए दीए की ज्योति की लपट एक बार भी हमारी आंखों में कौंध जाए, तो हम फिर वही आदमी नहीं हो सकेंगे, जो हम कल तक थे। क्योंकि हमारी एक नई संभावना का द्वार खुलता है, जो हमें पता ही नहीं था कि हम हो सकते हैं। उसकी प्यास जग गई। यह प्यास जग जाए, तो कोई भी बहाना बनता हो, उससे कोई प्रयोजन नहीं। तो मैं महावीर को भी बहाना बनाऊंगा, कृष्ण को भी, क्राइस्ट को भी, बुद्ध को भी, लाओत्से को भी।
फिर हममें बहुत तरह के लोग हैं। और कई बार ऐसा होता है कि जिसे लाओत्से में ज्योति दिख सकती है, उसे हो सकता है बुद्ध में ज्योति न दिखे। और यह भी हो सकता है कि जिसे महावीर में ज्योति दिख सकती है, उसे लाओत्से में ज्योति न दिखे। एक बार अपने में ज्योति दिख जाए, तब तो लाओत्से, बुद्ध का मामला ही नहीं है, तब तो सड़क पर चलते हुए साधारण आदमी में भी ज्योति दिखने लगती है। तब तो फिर ऐसा आदमी ही नहीं दिखता, जिसमें ज्योति न हो। तब तो आदमी बहुत दूर की बात है, पशु-पक्षी में भी वही ज्योति दिखने लगती है। पशु-पक्षी भी बहुत दूर की बात है, पत्थर में भी वह ज्योति दिखने लगती है। एक बार अपने में दिख जाए, तब तो सबमें दिखने लगती है। लेकिन जब तक स्वयं में नहीं दिखी है, तब तक जरूरी नहीं है कि सभी लोगों को महावीर में ज्योति दिखे।
उसके कारण हैं। व्यक्ति-व्यक्ति के देखने के ढंग में भेद है। और व्यक्ति-व्यक्ति की ग्राहकता में भेद है। और व्यक्ति-व्यक्ति के रुझान और रुचि में भेद है। एक सुंदर युवती है, जरूरी नहीं सभी को सुंदर मालूम पड़े।
महावीर के संबंध में कुछ थोड़ी सी बातें कहूंगा और कुछ थोड़ी सी बातें आपके संबंध में कहूंगा। क्योंकि जो बातें केवल महावीर के संबंध में हों, वे आपके किसी काम की नहीं होंगी। और जो बातें केवल आपके संबंध में हों, उनसे महावीर का कोई संबंध नहीं होगा। इसलिए उचित है कि मैं थोड़ी सी बातें आपके संबंध में कहूं और थोड़ी सी बातें महावीर के संबंध में कहूं, ताकि आप महावीर से संबंधित हो सकें। ताकि रास्ता बन सके और आप उनके विचार तक, उनके उस आकाश तक आपकी आंखें खुल सकें। इसलिए थोड़ी सी बात आपकी और थोड़ी सी बात महावीर की।
इसके पहले कि महावीर के संबंध में कुछ कहूं, बहुत उचित है कि आपके संबंध में कहूं। क्योंकि आप महावीर को समझना चाहते हैं, आप महावीर को प्रेम करना चाहते हैं, आप महावीर के प्रति निष्ठावान होना चाहते हैं। और आप महावीर के विचार और उनकी साधना से लाभान्वित होना चाहते हैं, तो आपके संबंध में कुछ बातें बहुत जरूरी हैं।
पहली बात तो यह जरूरी है कि आप इस बात को समझ लें कि अगर आप जैन घर में पैदा हुए हैं इसलिए महावीर को श्रद्धा देते हों तो वैसी श्रद्धा का मूल्य दो कौड़ी से ज्यादा नहीं है। अगर आप जैन घर में पैदा होने से महावीर को आदर देते हों तो क्षमा मुझे करें, आप कोई भी आदर नहीं देते हैं। आपके किसी घर में पैदा होने से महावीर को दिए गए आदर का क्या संबंध हो सकता है? आपका किसी समाज में पैदा हो जाना, आपका किसी परिवार में पैदा हो जाना, महावीर से आपको संबंधित नहीं करता।
तो दूसरी बात आपसे मैं यह कहूं कि अगर महावीर के सिद्धांत आपको मालूम हों तो उसका कोई बहुत मूल्य नहीं है। अगर महावीर की जीवन-चर्या आपको मालूम हो तो उसका मूल्य है। महावीर क्या कहते थे कि सृष्टि कैसे बनी, महावीर क्या कहते थे कि कितने पदार्थ हैं और कितने तत्व हैं, महावीर क्या कहते थे कि तर्क क्या है और सत्य क्या है, इसे जान लेने का कोई मूल्य नहीं है। मूल्य इस बात का है कि महावीर कैसे चलते थे, कैसे उठते थे, कैसे जीते थे। महावीर के तत्व-चिंतन का मूल्य नहीं है, महावीर की जीवन-चर्या का मूल्य है।
जो जीवन-चर्या को साधेगा, वह महावीर के तत्व-ज्ञान को अपने आप उपलब्ध हो जाएगा। जो महावीर के तत्व-ज्ञान को सीख कर बैठा रहेगा, वह तत्व-ज्ञानी बन कर रह जाएगा, वह महावीर की जीवन-चर्या को उपलब्ध नहीं होगा। जीवन-चर्या मूल है, तत्व-ज्ञान गौण है। जीवन-चर्या का वृक्ष कोई लगाए, तो तत्व-ज्ञान की शाखाएं अपने आप फूट आती हैं। और जो तत्व-ज्ञान की शाखाओं को इकट्ठा करता रहे, उसके हाथ में लकड़ियों का बंडल तो बहुत इकट्ठा हो जाता है, भार तो बहुत हो जाता है, उसके जीवन में मुक्ति का प्रकाश उपलब्ध नहीं होता है। इसलिए दूसरी बात आपसे यह कहूं।
और तीसरी बात आपसे यह कहूं कि धर्म केवल उनके काम का है, जिन्हें प्यास हो। एक कुएं के पास हम खड़े हों। कुएं में जो पानी है, वह पानी केवल उन्हीं के लिए है, जिन्हें प्यास हो, अन्यथा पानी पानी नहीं है। पानी का होना पानी के भीतर नहीं है, आपकी प्यास में है। प्यास हो तो पानी पानी बन जाता है, प्यास न हो तो पानी कुछ भी नहीं रह जाता।
यह प्रकाश जल रहा है यहां। इस प्रकाश का होना प्रकाश में ही नहीं है, मेरी आंख में भी है। अगर आंख हो तो यह प्रकाश बन जाता है, आंख न हो तो सब अंधकार हो जाता है।
महावीर एक बहुत बड़ी संस्कृति के अंतिम व्यक्ति हैं, जिस संस्कृति का विस्तार कम से कम दस लाख वर्ग है। महावीर जैन विचार और परंपरा के अंतिम तीर्थंकर हैं..चैबीसवें। शिखर की, लहर की आखिरी ऊंचाई। और महावीर के बाद वह लहर और वह सभ्यता और वह संस्कृति सब बिखर गई। आज उन सूत्रों को समझना कठिन है; क्योंकि वह पूरा का पूरा ‘मिल्यू’, वह वातावरण जिसमें वे सूत्र सार्थक थे, आज कहीं भी नहीं है।
ऐसा समझें कि कल तीसरा महायुद्ध हो जाए, याददाश्त रह जाएगी। वह याददाश्त हजारों साल तक चलेगी और बच्चे हंसेंगे, वे कहेंगे कि कहां है हवाई जहाज, जिनकी तुम बात करते हो? ऐसा मालूम होता है कहानियां हैं, पुराण-कथाएं हैं, ‘मिथ’ हैं।
जैन चैबीस तीर्थंकरों की ऊंचाई..शरीर की ऊंचाई..बहुत काल्पनिक मालूम पड़ती है। उनमें महावीर भर की ऊंचाई आदमी की ऊंचाई है, बाकी तेईस तीर्थंकर बहुत ऊंचे हैं, जैसे-जैसे जमीन सिकुड़ती गई है, वैसे-वैसे जमीन पर ग्रेवीटेशन, गुरुत्वाकर्षण भारी होता गया है। और जिस मात्रा में गुरुत्वाकर्षण भारी होता है, लोगों की ऊंचाई कम होती चली जाती है। आपकी दीवाल की छत पर छिपकली चलती है, आप कभी सोच नहीं सकते कि छिपकली आज से दस लाख साल पहले हाथी से बड़ा जानवर थी। वह अकेली बची है, उसकी जाति के सारे जानवर खो गए।
उतने बड़े जानवर अचानक क्यों खो गए? अब वैज्ञानिक कहते हैं कि जमीन के गुरुत्वाकर्षण में कोई राज छिपा हुआ मालूम पड़ता है। अगर गुरुत्वाकर्षण और सघन होता गया तो आदमी और छोटा होता चला जाएगा। अगर आदमी चांद पर रहने लगे तो आदमी की ऊंचाई चैगुनी हो जाएगी, क्योंकि चांद पर चैगुना कम है गुरुत्वाकर्षण पृथ्वी से। अगर हमने कोई और तारे और ग्रह खोज लिए जहां गुरुत्वाकर्षण और कम हो तो ऊंचाई और बड़ी हो जाएगी। इसलिए आज एकदम कथा कह देनी बहुत कठिन है।
महावीर मेंरी दृष्टि में-ओशो
THANK YOU GURUJI
जवाब देंहटाएं