झेन शुद्ध धर्म है--(प्रवचन-आठवांं)
(ओशो झेनः दि पाथ ऑफ पैराडॉक्स अंग्रेजी से अनुवादित)
Zen: The Path of Paradox, Vol 1, Chapter #1, Chapter title: Join the Farthest Star,
11 June 1977 am, Poona.
झेन कोई दर्शनशास्त्र नहीं है, बल्कि एक धर्म है। और धर्म जब बिना दर्शनशास्त्र के होता है, बिना किसी शाब्दिक जाल के तो वह घटना बहुत अनोखी हो जाती है। बाकी के सभी धर्म परमात्मा की धारणा के आसपास घूमते हैं। उनके अपने दर्शन हैं। वे धर्म परमात्मा की ओर केंद्रित हैं, मनुष्य केंद्रित नहीं हैं; उनके लिए मनुष्य लक्ष्य नहीं है, परमात्मा उनका लक्ष्य है।लेकिन झेन के लिए ऐसा नहीं है। झेन के लिए, मनुष्य ही अंतिम लक्ष्य है, मनुष्य स्वयं अपने आप में लक्ष्य है। झेन के लिए परमात्मा मनुष्य से ऊपर नहीं है, परमात्मा मनुष्य में छिपी हुई सत्ता का ही नाम है। झेन कहता है कि मनुष्य अपने स्वयं के भीतर परमात्मा को एक संभावना की तरह लिए हुए है।
तो झेन में परमात्मा भी कोई धारणा नहीं है। यदि तुम चाहो तो तुम ऐसा भी कह सकते हो कि झेन कोई धर्म ही नहीं है- क्योंकि परमात्मा की धारणा के बिना कोई धर्म हो कैसे सकता है? निश्चित ही जो लोग एक ईसाई की तरह, एक मुसलमान की तरह, एक हिंदू की तरह, एक यहूदी की तरह बड़े किए गए हैं, जिनका पालन-पोषण इन धर्मों में हुआ है, वे तो विश्वास भी नहीं कर सकते कि किस प्रकार का धर्म है झेन। यदि परमात्मा न हो तो पूरी बात नास्तिकता वाली हो जाती है। लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं है। झेन शुद्धतम धर्म है- बस परमात्मा भर की जगह उसमें नहीं है।
यह बात सबसे पहले समझ लेने की है। इसे अपने भीतर गहरे उतर जाने दो, तभी तुम्हें झेन का अर्थ स्पष्ट हो सकेगा। झेन के लिए प्रार्थना भी व्यर्थ है- प्रार्थना करोगे तो किसकी करोगे? कहीं किसी स्वर्ग में परमात्मा नहीं बैठा है जो कि जीवन को नियंत्रित कर रहा है। इस समूचे अस्तित्त्व का नियंत्रण करने वाला कोई भी नहीं है। पूरा जीवन अपने आप लयबद्धता में, स्वरबद्धता में चल रहा है।
इस जीवन से बाहर बैठा न तो कोई आदेश दे रहा है, न कोई आज्ञा दे रहा है। जब कोई अथारिटी बाहर से बैठकर आज्ञा दे या तुम्हें नियंत्रित करे तो उसके साथ जो संबंध है वह अधिक से अधिक गुलामी भर का हो सकता है... जैसे एक ईसाई गुलाम बन जाता है परमात्मा का, ऐसा ही मुसलमान के साथ होता है, ऐसा ही हिंदू के साथ होता है। जब परमात्मा आदेश देने वाला, नियंत्रण करने वाला हो, तो तुम अधिक से अधिक उसके नौकर हो सकते हो या गुलाम हो सकते हो। तब तुम सारी गरिमा खो देते हो।
लेकिन झेन के साथ ऐसा नहीं है। झेन तुम्हें अथाह गरिमा देता है। तुम्हारे अतिरिक्त कहीं कोई और नियंता नहीं है। तुम्हारी स्वतंत्रता परम है, अंतिम है।
परमात्मा के बिना भी धार्मिक हुआ जा सकता है। वास्तव में, परमात्मा के होते तो तुम धार्मिक हो भी कैसे सकते हो? यही प्रश्न है जो झेन पूछता है। परमात्मा के होते व्यक्ति कैसे धार्मिक हो सकता है?- क्योंकि परमात्मा तो तुम्हारी स्वतंत्रता को नष्ट कर देगा, परमात्मा तुम्हारे ऊपर आधिपत्य जमा लेगा।
तुम ओल्ड टेस्टामेंट देखो। परमात्मा कहता है, ‘मैं बहुत ईर्ष्यालु हूं और किसी दूसरे परमात्मा को सहन नहीं कर सकता। जो लोग मेरे साथ नहीं हैं, उन्हें मेरे विरुद्ध ही समझो। मैं बहुत ही क्रोधी किस्म का हूं। यदि तुम मेरी आज्ञा का पालन नहीं करते तो मैं तुम्हें नर्क में डाल दूंगा, तुम्हें सजा दूंगा।’
अब ऐसे परमात्मा के साथ तुम किस तरह धार्मिक हो सकते हो? कैसे तुम स्वतंत्र हो सकते हो और कैसे तुम खिल सकते हो? स्वतंत्रता के बिना तो कोई खिलावट हो ही नहीं सकती। तुम अपनी चरम संभावना को कैसे उपलब्ध हो सकते हो, जब सदा ही तुम्हारे सामने कोई परमात्मा खड़ा है, और तुम्हें आदेश दे रहा है, तुम्हें कह रहा है तुम यह करो, तुम वह करो- तुम्हारा नियंत्रण कर रहा है?
झेन कहता है कि परमात्मा के रहते तो मनुष्य गुलाम ही रहेगा; परमात्मा के रहते, मनुष्य पूजा-पाठ से ऊपर नहीं उठ सकता; परमात्मा के रहते मनुष्य भय में ही रहेगा। भय में तुम भला कैसे खिल सकोगे? तुम सिकुड़ जाओगे, सूख जाओगे, धीरे-धीरे मरते रहोगे। झेन कहता है कि यदि परमात्मा न हो तो अथाह स्वतंत्रता मनुष्य को उपलब्ध हो जाती है, कहीं कोई नियंत्रण नहीं बचता। और इसके साथ ही एक बड़ा उत्तरदायित्व मनुष्य के ऊपर आ जाता है।
इसे ऐसा समझो जब तक कोई तुम्हारे बारे में निर्णय ले रहा है, तुम्हारा नियंत्रण कर रहा है तब तक तुम्हें महसूस ही नहीं होता कि तुम्हें भी कुछ अपने लिए करना है। यदि तुम्हारे ऊपर कोई हो तो तुम उत्तरदायित्व भी भूल जाते हो; जब तुम्हारे ऊपर कोई होता है, तो अधिक से अधिक तुम्हारे भीतर उसके खिलाफ प्रतिक्रिया हो सकती है, या विद्रोह हो सकता है। लेकिन उत्तरदायित्व का कोई सवाल पैदा नहीं होता।
परमात्मा को तो समाप्त करना होगा। उसके बिना स्वतंत्रता की कोई संभावना नहीं है, उसके विदा होने पर ही तुम स्वतंत्र हो सकते हो। लेकिन फिर एक बात और- परमात्मा के बिना जीने के लिए बड़ा साहस चाहिए, परमात्मा के बिना जीने के लिए गहरे ध्यान की आवश्यकता है, परमात्मा के बिना जीने के लिए एक सजगता, एक जागरूकता चाहिए।
झेन के लिए यह एक सत्य है कि परमात्मा नहीं है। मनुष्य अपने लिए जिम्मेदार है और उस सारे जगत के लिए भी जिसमें वह जी रहा है। यदि दुख है तो मनुष्य स्वयं उत्तरदायी है; किसी और की ओर तुम नहीं देख सकते। तुम अपना उत्तरदायित्व किसी और के कंधों पर नहीं डाल सकते। यदि यह संसार कुरूप है और पीड़ा में है, तो हम खुद उत्तरदायी हैं- कोई और नहीं है जो इस उत्तरदायित्व को सम्हाल सके। यदि हम विकसित नहीं हो पा रहे हैं तो यह भी हमारा ही उत्तरदायित्व है, इसे किसी और के कंधों पर नहीं डाला जा सकता। हमें अपना उत्तरदायित्व स्वयं लेना होगा।
जब परमात्मा नहीं बचता तो तुम स्वयं पर फेंक दिए जाते हो। और तब विकास होता है। तुम्हें विकसित होना ही पड़ेगा। तुम्हें अपना जीवन अपने हाथों में लेना पड़ेगा; तुम्हें अपनी लगाम अपने हाथों में लेनी पड़ेगी। अब तुम अपने स्वयं के मालिक हो। अब तुम्हें अधिक जागरूक होना पड़ेगा और सजग होना पड़ेगा, क्योंकि जो कुछ भी होने वाला है उसके लिए तुम स्वयं उत्तरदायी होगे। इससे बड़ी जिम्मेदारी तुम्हारे ऊपर आ जाती है। तुम एक-एक कदम फिर फूंककर रखते हो। बिल्कुल अलग ही ढंग से तुम जीने लगते हो। तुम जागने लगते हो। तुम हर चीज के साक्षी हो जाते हो।
और जब परमात्मा नहीं रहा, तो कहीं पार भी नहीं जाना है। पार तुम्हारे भीतर ही है। तुम्हारे पार कोई और पार का जगत नहीं है। क्रिश्चियनिटी में पार का जगत तुम्हारे पार है; झेन में वह जगत तुम्हारे भीतर ही है। तो किसी आकाश की ओर आंखें उठाकर प्रार्थना करने का सवाल नहीं है- वे प्रार्थना व्यर्थ है, तुम खाली आकाश से प्रार्थना कर रहे हो। आकाश तो तुम्हारी चेतना से कहीं नीचे है।
अब कोई बैठा किसी पेड़ की ही पूजा कर रहा है... । कई हिंदू पेड़ों की पूजा करते हैं, तो कई हिंदू जाकर गंगा की या दूसरी नदियों की पूजा करते हैं, कोई किसी पत्थर की मूर्ति की पूजा कर रहा है, कोई आकाश की ओर हाथ उठाकर प्रार्थना कर रहा है। ऊंची चेतना निम्न चेतना की पूजा कर रही है। प्रार्थना बिल्कुल व्यर्थ है।
झेन कहता हैः ‘केवल ध्यान।’ ऐसा नहीं कि तुम्हें किसी और के सामने घुटने टेकने हैं। गुलामी की यह पुरानी आदत छोड़ दो। बस इतना भर चाहिए कि तुम घड़ी-दो घड़ी के लिए शांत हो जाओ और बैठ जाओ और भीतर की ओर आंखें कर लो और अपने केंद्र पर पहुंच जाओ। वही केंद्र अस्तित्त्व का केंद्र भी है। जब तुम अपने अंतर्तम केंद्र पर पहुंच जाते हो तो तुम अस्तित्त्व के अंतर्तम केंद्र पर भी पहुंच जाते हो। झेन में परमात्मा यह केंद्र ही है। लेकिन वे इसे परमात्मा कहते नहीं। और अच्छा ही है कि वे इसे परमात्मा नहीं कहते।
तो पहली बात जो स्मरण रखने जैसी है कि झेन कोई थियोलॉजी, कोई दर्शनशास्त्र नहीं है। झेन एक धर्म है और वह भी बहुत अलग किस्म का। झेन ऐसा धर्म नहीं है जैसे इस्लाम। इस्लाम में तीन बुनियादी बातें हैंः एक परमात्मा, एक किताब, और एक पैगंबर। झेन में कोई परमात्मा नहीं है, कोई किताब नहीं है, कोई पैगंबर नहीं है। पूरा का पूरा अस्तित्त्व स्वयं अपने आप में एक संदेश है; पूरा अस्तित्त्व एक संदेश है।
और स्मरण रखो, परमात्मा अपने संदेश से अलग नहीं है। यह संदेश स्वयं ही दिव्य है। कोई संदेशवाहक नहीं है, झेन इस पूरी की पूरी बेवकूफी को छोड़ देता है। दर्शनशास्त्र खड़ा होता है किताबों के साथ। दर्शनशास्त्र के लिए बाइबिल चाहिए, कुरान चाहिए। दर्शनशास्त्र के लिए ऐसी किताब चाहिए जो पवित्र होने का दावा करे, जो यह दावा करे कि वह विशेष है- कि उसके जैसी कोई और किताब नहीं, कि यह सीधी परमात्मा के मुख से उतरकर आ रही है।
झेन कहता है कि सभी कुछ दिव्य है। तो कुछ भी अलग से विशेष कैसे हो सकता है? सभी कुछ विशेष है। जब ऐसी कोई चीज ही नहीं है जो कि विशेष न हो तो कुछ चीज विशेष कैसे हो सकती है। हर वृक्ष की हर पत्ती और हर समुद्र तट पर पड़ा हर छोटे से छोटा पत्थर भी विशेष है, अनूठा है, पवित्र है। ऐसा नहीं कि कुरान ही पवित्र है, ऐसा नहीं कि बाइबिल ही पवित्र है। जब कोई प्रेमी अपनी प्रेमिका को पत्र लिखता है तो वह पत्र भी पवित्र होता है।
झेन साधारण जीवन में पवित्रता ले आता है।
एक झेन गुरु, बोकूजू, कहा करता था, मैं लकड़ी काटकर लाता हूं, मैं कुएं से पानी लाता हूं। यह सब कितना रहस्यपूर्ण है।
यह कितना रहस्यपूर्ण है! लकड़ी काटकर लाना, कुएं से पानी भर लाना और वह कहता है, कितना रहस्यपूर्ण! यह झेन का दृष्टिकोण है, इससे साधारण चीजें असाधारण में बदल जाती हैं। सांसारिक को पवित्र में बदलने की कीमिया है झेन। जगत और जगत के पार दोनों के भेद आकर झेन में मिट जाते हैं।
इसीलिए मैं कहता हूं कि झेन कोई दर्शनशास्त्र नहीं है। यह शुद्ध धर्म है। दर्शनशास्त्र से तो धर्म प्रदूषित हो जाता है। जहां तक धर्म का संबंध है, वहां तक इस्लाम में और ईसाइयत में और हिंदू धर्म में कोई फर्क नहीं है, लेकिन जहां तक थियोलॉजी का, दर्शनशास्त्र का सवाल है वहां आकर फर्क पड़ने शुरू हो जाते हैं। उनकी अपनी-अपनी थियोलॉजीस हैं। इन अलग-अलग धारणाओं के कारण ही लोग आपस में लड़ते रहे हैं।
धर्म तो एक है; दर्शनशास्त्र कई हैं। दर्शनशास्त्र का अर्थ हैः परमात्मा के संबंध में जानकारी, परमात्मा के संबंध में दिए गए तर्क। ये सब व्यर्थ की लफ्फाजियां हैं, क्योंकि परमात्मा को सिद्ध करने का कोई उपाय ही नहीं है- और न ही उसके न होने को सिद्ध करने का कोई उपाय है। उस बारे में दिया गया कोई भी तर्क, कोई भी विवाद व्यर्थ है। हां, अनुभव किया जा सकता है लेकिन सिद्ध नहीं किया जा सकता- और यही बात करने का प्रयास थियोलॉजी करती है।
अब थियोलॉजी, दर्शनशास्त्र ऐसी बेवकूफियां करता चला जाता है, ऐसी बेवकूफियां करता चला जाता है कि व्यक्ति में यदि जरा भी प्रतिभा हो तो वह उन पर हंसेगा। तुम थोड़े दूर हटकर देखो तो तुम्हें हंसी आएगी। इतनी बेवकूफी भरी बातें की जाती हैं। मध्ययुग में क्रिश्चियन थियोलॉजियन एक बात को लेकर बहुत चिंतित थे, एक पहेली थी जिसे वे सब सुलझाने में लगे थे। और तुम उस समस्या को देखोगे तो तुम हंसोगे। वे यह सिद्ध करने कि कोशिश में लगे थे कि एक सुई की नोक पर कितने फरिश्ते खड़े हो सकते हैं। इस बारे में किताबें लिखी गईं, बड़े विवाद चले।
थियोलॉजी सब कूड़ा-कर्कट है। और थियोलॉजी के कारण, धर्म विषाक्त हो जाता है। व्यक्ति वास्तव में धार्मिक होगा तो उसके पास कोई दर्शनशास्त्र नहीं होगा। हां, उसके पास अनुभव होगा, उसके पास सत्य होगा, उसके पास वह चमक होगी, लेकिन कोई थियोलॉजी नहीं, कोई दर्शनशास्त्र नहीं। लेकिन विद्वानों के लिए, पंडितों के लिए, तथाकथित जानकारों के लिए थियोलॉजी बड़ी सहायक रही है। पंडितों का बड़ा रस रहा है दर्शनशास्त्र में- पोप्स का, शंकराचार्यों का इसी में ही रस रहा है। उनको इससे लाभ भी बहुत हुआ है। उनका पूरा व्यवसाय इस पर आधारित है।
झेन इस सब की जड़ को काट डालता है। पुरोहित का पूरा व्यवसाय ही नष्ट कर देता है झेन। और पुरोहित का व्यवसाय संसार में कुरूपतम व्यवसाय है, क्योंकि उसका व्यवसाय लोगों को धोखा देने पर टिका है। पुरोहित ने खुद तो जाना नहीं और वह दूसरों को शिक्षा दिए चला जाता है; दार्शनिक ने स्वयं तो जाना नहीं और वह लोगों को दर्शन दे रहा है। वह उतना ही अज्ञानी है जितना कि कोई और- और हो सकता है कि वह सामान्य लोगों से अधिक अज्ञानी हो।
लेकिन उसका अज्ञान बहुत कुशलता से भरा हुआ है। उसका अज्ञान आभूषणों से ढंका है- शास्त्रों से, धारणाओं से; और इतनी चालाकी से वह अपनी अज्ञान को ढंक लेता है, इतनी धूर्तता से कि उसमें कोई भी गलती ढूंढ पाना बहुत कठिन हो जाता है। थियोलॉजी आज तक मनुष्यता के लिए किसी भी प्रकार से सहायक सिद्ध नहीं हुई, लेकिन उससे कुछ लोगों को तो निश्चित ही लाभ हुआ हैः पुरोहित को। थियोलॉजी के कारण वे लोग मनुष्यता को ठगने में कामयाब रहे हैं।
थियोलॉजी तो राजनीति है। वे लोगों को बांटती है। और यदि तुम लोगों को बांटो तभी तुम उनके ऊपर शासन कर सकते हो।
झेन मनुष्यता की ओर अखंडित आंखों से देखता है- लोगों को बांटता नहीं। झेन की दृष्टि व्यापक है। इसीलिए मैं कहता हूं कि झेन भविष्य का धर्म है। मनुष्यता धीरे-धीरे उस चेतना की ओर बढ़ रही है जहां थियोलॉजी तो विदा हो जाएगी, केवल अपने शुद्धतम अनुभव में धर्म स्वीकृत होगा।
जापानी भाषा में इसके लिए एक विशेष शब्द है। इसे वे कहते हैंः कोनोमामा या सोनोमामा- अस्तित्त्व का होना। जीवन का यह होना ही परमात्मा है। ऐसा नहीं कि परमात्मा है, लेकिन यह सब होना- जीवन का और अस्तित्त्व का- यही अपने आप में दिव्य है।
वृक्ष का होना, पत्थर का होना, मनुष्य का होना, बच्चे का होना। और होने की यह जो घटना है यह अपरिभाष्य है। इसमें तुम खो तो सकते हो, इसमें तुम मिट तो सकते हो, इसका तुम स्वाद तो ले सकते हो- कितना रहस्यपूर्ण! लेकिन इसकी तुम परिभाषा नहीं कर सकते, तुम तर्क से उसे सिद्ध नहीं कर सकते, तुम उसके लिए कोई धारणाएं निर्मित नहीं कर सकते।
सभी धारणाएं इस घटना को मार डालती हैं। फिर यह होना शुद्ध होना ही नहीं रहता, फिर तो सारी बात मन की निमर्ति हो जाती है। परमात्मा शब्द परमात्मा नहीं है। परमात्मा की धारणा परमात्मा नहीं है। और न ही प्रेम की धारणा प्रेम है। और न ही प्रेम शब्द प्रेम है। झेन कहता है कि यह बड़ी साधारण सी बात है। झेन कहता है, ‘यह याद रखो कि मेन्यू कार्ड भोजन नहीं है। और मेन्यू कार्ड को खाने मत लग जाओ।’ और सदियों-सदियों से लोग यही कर रहे हैंः मेन्यू कार्ड को खा रहे हैं।
और फिर स्वभावतः यदि वे कुपोषित हैं, वे बढ़ नहीं पा रहे हैं, उनमें कोई शक्ति नहीं है, वे पूरी तरह से जी नहीं पा रहे, तो यह स्वाभाविक है, ऐसा होना ही था। उन्होंने असली भोजन तो लिया ही नहीं। वे भोजन के बारे में बात करते रहे हैं और यह भूल ही गए हैं कि भोजन क्या है? परमात्मा को तो खाना है, परमात्मा का स्वाद लेना है, परमात्मा को जीना है- उसके बारे में कोई विवाद नहीं करना है।
किसी चीज के संबंध में बात करने की प्रक्रिया थियोलॉजी है। और यह संबंध में की जाने वाली बात गोल घेरे में घूमती रहती है, कभी भी वास्तविक चीज तक नहीं पहुंच पाती। यह एक दुश्चक्र की तरह है। तर्क एक दुश्चक्र है। और झेन हर प्रयास करता है कि तुम्हें उस दुश्चक्र से बाहर निकाल लिया जाए।
किस प्रकार तर्क एक दुश्चक्र है?- तुम्हारी धारणा में ही निष्पत्ति छिपी हुई है। निष्पत्ति कोई नई बात नहीं होने वाली है, वह तुम्हारी धारणा में ही छिपी हुई है। और एक बार निष्पत्ति निकालने के बाद फिर तुम उसमें से धारणा बना लेते हो। यह ऐसे ही है जैसे एक बीजः बीज में वृक्ष छिपा हुआ है और फिर वृक्ष और कई बीजों को पैदा करेगा और उन बीजों में कई और वृक्ष छिपे हुए हैं। यह एक दुश्चक्र है; बीज, वृक्ष, बीज। यह चलता चला जाता है। या जैसे, अंडा, मुर्गी; अंडा, मुर्गी; अंडा... यह अनंत श्रृंखला चलती चली जाती है। यह एक चक्र की तरह है।
इस चक्र को तोड़कर बाहर निकल आने का उपाय ही झेन है- शब्दों और धारणाओं के चक्र को तोड़कर स्वयं अस्तित्त्व में उतर जाने का नाम झेन है।
एक झेन गुरु, नानइन, एक बार जंगल में लकड़ी काट रहा था। युनिवर्सिटी का एक प्रोफेसर उससे मिलने आया। स्वभावतः प्रोफेसर को लगा कि यह लकड़हारा जानता होगा कि नानइन पहाड़ों पर कहां रहता है? सो उसने नानइन से पूछा। लकड़हारे ने अपनी कुल्हाड़ी की ओर इशारा करते हुए कहा, इस कुल्हाड़ी के लिए मैंने काफी धन दिया है।
प्रोफेसर ने तो कुल्हाड़ी के बारे में पूछा भी न था। वह पूछ रहा था कि नानइन कहां रहता है? वह पूछ रहा था कि नानइन इस समय अपने आश्रम में होगा भी या कहीं और गया होगा। और नानइन ने अपनी कुल्हाड़ी उठाई और कहा, ‘देखो, इस कुल्हाड़ी के लिए मैंने बहुत धन दिया है।’ प्रोफेसर को थोड़ी परेशानी हुई और इससे पहले कि वह आगे कुछ पूछता, नानइन उसके पास आया और अपनी कुल्हाड़ी प्रोफेसर के सिर पर रख दी। प्रोफेसर तो भय के मारे कांपने लगा और नानइन बोला, यह कुल्हाड़ी बहुत तेज भी है। और प्रोफेसर तो बेचारा भाग गया।
बाद में, जब वह प्रोफेसर आश्रम पहुंचा तो उसने देखा कि वह लकड़हारा और कोई नहीं स्वयं नानइन ही था। फिर उसने दूसरों से पूछा, ‘क्या यह पागल है?’
नहीं, उसके शिष्यों ने कहा। तुमने पूछा कि क्या नानइन आश्रम में है और उन्होंने कहा कि हां। वे कुल्हाड़ी की ओर इशारा करके यह बता रहे थे कि जैसे यह कुल्हाड़ी अभी यहां मौजूद है, वैसे ही वे भी यहां मौजूद हैं। उस क्षण वे लकड़हारे थे; उस क्षण उनके हाथ में जो कुल्हाड़ी थी, उस कुल्हाड़ी के साथ वे पूरी तरह तल्लीन थे। उस समय उस कुल्हाड़ी की जो तेजी है, वही वे थे। तुमसे उन्होंने कहा, ‘मैं यहीं हूं।’ लेकिन तुम पूरी बात ही चूक गए। वे तुम्हें झेन की गुणवत्ता सिखा रहे थे।
झेन के पास कोई धारणा नहीं है। झेन गैर-बुद्धिवादी है। यह संसार में अकेला धर्म है जो तुम्हें अभी और यहीं होना सिखाता है; क्षण-क्षण जीना; इस क्षण में उपस्थित होना, न अतीत, न भविष्य।
लेकिन लोग तो धारणाओं में जीते रहे हैं। और वे धारणाएं उन्हें बचकाना बनाए रखती हैं, वे उन्हें विकसित नहीं होने देतीं। जब तक तुम किसी धारणा में सीमित हो, तब तक तुम विकसित नहीं हो सकते। एक ईसाई होते हुए, या हिंदू होते हुए, या मुसलमान होते हुए, या बौद्ध होते हुए तुम्हारा विकास नहीं हो सकता। तुम बढ़ नहीं सकते; तुम्हारे पास विकसित होने के लिए पर्याप्त स्थान ही नहीं होता; तुम कैद में होते हो।
एक युवा पादरी चर्च के एक लाख डालर स्टॉक मार्केट में हार गया। फिर अगले दिन उसकी सुंदर पत्नी उसे छोड़कर चली गई। वह बेचारा इतना निराश हो गया कि एक दिन नदी के किनारे जाकर उसने आत्महत्या करने की ठान ली। वह नदी में कूदने को ही था कि एक बूढ़ी जर्जर देह वाली स्त्री उसके सामने आई और उसे बोली, ‘बेटे, कूदो मत। मैं जादूगरनी हूं, और यदि तुम तुम मेरे लिए कुछ करोगे तो मैं तुम्हारी तीन इच्छाएं पूरी करूंगी!’
”मेरी कोई मदद नहीं कर सकता’ युवा पादरी ने जवाब दिया।
”पागल मत बनो’ वह बोली। छू मंतर! तुम्हारे चर्च की तिजोरी में सारा पैसा वापस पहुंच गया है। छू मंतर! तुम्हारी पत्नी घर वापस पहुंचकर तुम्हारा इंतजार कर रही है। छू मंतर! अब तुम्हारे अपने बैंक में दो लाख डालर भी पहुंच चुके हैं!
वाह! वाह! मजा आ गया, पादरी खुशी से चिल्लाया। अब मैं आपके लिए क्या कर सकता हूं?
एक रात मेरे साथ प्रेम करते हुए बिताओ।
बिना दांत की इस जर्जर देह वाली बूढ़ी स्त्री के साथ एक रात प्रेम करते हुए बिताने का ख्याल ही अपने आप में घृणापद था। तब भी वचन तो वह दे ही चुका था और बूढ़ी स्त्री उसकी इच्छाएं भी पूरी कर चुकी थी, तो उन्होंने पास ही एक होटल में अपना कमरा बुक किया। सुबह जब यातना भरी रात बिताकर वह घर वापस पहुंचने की तैयारी कर रहा था और कपड़े पहन रहा था तो वह स्त्री उठकर बैठी और बोली, ‘बेटे, तुम्हारी उम्र कितनी है?’
मैं बयालीस साल का हूं! पादरी ने जवाब दिया। लेकिन क्यों?
तुम इतने बड़े हो, तब भी क्या तुम्हें इतना नहीं पता कि जादूगर होते ही नहीं?
यही होता है। यदि तुम परमात्मा में विश्वास करते हो तो तुम किसी भी चीज में विश्वास कर सकते हो- चाहे वह जादूगर हो, जादूगरनी हो, भूत-प्रेत हों। यदि तुम एक तरह की बेवकूफी में विश्वास कर सकते हो, तो तुम किसी भी तरह की बेवकूफी में विश्वास कर सकते हो। लेकिन तुम कभी विकसित नहीं हो पाते हो। तुम बचकाने बने रहते हो।
झेन का अर्थ हैः प्रौढ़ता। झेन का अर्थ हैः सारी इच्छाएं गिर जाने दो और देखो कि वास्तव में क्या है? अपने सपनों को वास्तविकता में लाने की कोशिश मत करो। अपनी आंखों को सपनों से पूरी तरह साफ हो जाने दो, ताकि तुम देख सको कि वास्तविकता क्या है? यह वास्तविकता ही जापानी भाषा में कोनोमामा या सोनोमामा कहलाती है।
सारी धारणाएं और सारे दर्शनशास्त्र तुम्हें वास्तविकता को देखने से रोकते हैं। धारणाएं सारी की सारी आंख पर बांधी जाने वाली पट्टी की तरह है, वे तुम्हारी दृष्टि को रोक देती हैं। न तो कोई ईसाई देख पाता है, न कोई हिंदू देख पाता है, न कोई मुसलमान देख पाता है। क्योंकि तुम धारणाओं से इतने भरे हुए होते हो कि तुम वही देखते हो, जो तुम देखना चाहते हो। तुम वही देखते हो, जो वहां पर नहीं है। तुम चीजें प्रक्षेपित किए चले जाते हो। तुम अपनी स्वयं की एक वास्तविकता निर्मित कर लेते हो जो कि है ही नहीं। और इसी से सारी विक्षिप्तता पैदा होती है। तुम्हारे तथाकथित संतों में सौ में से निन्यानबे तो विक्षिप्त लोग हैं।
झेन एक तरह की प्रौढ़ता लेकर आता है। झेन सभी धारणाओं को गिरा देता है। झेन कहता है, ‘खाली हो जाओ। सब धारणाएं गिरा दो। चीजों की स्वभाव की ओर देखो लेकिन बिना किसी धारणा के, बिना किसी पूर्वाग्रह के, बिना किसी पूर्व धारणा के। चीजों को पहले से मान मत लो- यह आधारभूत नियम है झेन का। तो दर्शनशास्त्र को पूरी तरह से गिरा देना होगा, वरना तुम पूर्वाग्रहों से ग्रस्त रहोगे।’
समझ रहे हो तुम? यदि तुम्हारी पहले से ही कोई धारणा हो, तो इस बात की हर संभावना है कि तुम उसको वास्तविकता में खोज लोगे- क्योंकि मन बहुत ही सृजनात्मक है। स्वभावतः वह सृजन केवल कल्पना में ही होगा। यदि तुम क्राइस्ट को खोज रहे हो तो तुम्हारे सपनों में क्राइस्ट आने लगेंगे, और वह सारी बात कल्पना में ही होगी। अगर तुम कृष्ण को खोज रहे हो तो तुम कृष्ण को पा लोगे, लेकिन वह तुम्हारी कल्पना ही होगी।
झेन बहुत यथार्थवादी है। उसका कहना है कि कल्पना को पूरी तरह गिराना होगा। कल्पना आती है तुम्हारे अतीत से। बचपन से ही तुम किन्हीं खास धारणाओं में संस्कारित किए गए हो। बचपन से ही तुम्हें चर्च ले जाया गया है, मंदिर ले जाया गया है, मस्जिद ले जाया गया है; तुम्हें किसी पंडित के पास, किसी पुरोहित के पास ले जाया गया है; तुम्हें बाध्य किया गया है कि तुम उपदेशों को सुनो- हर तरह की चीजें तुम्हारे मन में ठूंस दी गई हैं। उस सब के बोझ से भरे और दबे हुए, तुम वास्तविकता को नहीं देख पाते।
बोझ से मुक्त हो जाओ। बोझ से मुक्त हो जाना ही झेन है।
झेन बहुत सरल है और फिर भी बहुत कठिन है। जहां तक झेन का अपना संबंध है, वह तो बहुत सरल है- सरलतम, क्योंकि झेन से सहज और कुछ भी नहीं। लेकिन तुम्हारे संस्कारित मनों के कारण वह बहुत कठिन हो जाता है। जिस विक्षिप्त संसार में हम रह रहे हैं उसके कारण झेन बहुत कठिन हो जाता है। जिन धारणाओं और जिन दर्शनशास्त्रों को लेकर हमारा पालन-पोषण हुआ है, उन सब के कारण झेन बहुत कठिन हो जाता है।
दूसरी बातः झेन कोई दर्शन नहीं, एक कविता है। झेन न तो कोई उपदेश देता है, न कोई विवाद करता है, न कोई तर्क उठाता है। झेन केवल अपना गीत गाता है, यदि तुम्हारा हृदय खुला हो तो तुम उसे सुन लो।
झेन सौंदर्य बोध से भरा हुआ धर्म है। झेन की पूरी की पूरी चिंता सौंदर्य को लेकर है- सत्य को लेकर नहीं। क्यों? क्योंकि सत्य का मार्ग तो रूखा-सूखा है। ऐसा नहीं कि सत्य स्वयं में सूखा है, लेकिन जो लोग सत्य को पाने में उत्सुक होते हैं वे रूखे-सूखे होते हैं। क्योंकि उनकी खोज मस्तिष्क की, बुद्धि की होती है, तो उनके हृदय सिकुड़ जाते हैं, उनमें कोई रसधार नहीं बहती। उनके प्रेम के स्रोत सूखने लगते हैं, वे हिंसक हो जाते हैं, क्योंकि किसी भी तरह उन्हें सत्य को पा लेना है।
झेन के जगत में तुम्हारी बुद्धि की नहीं, तुम्हारे पूरे प्राणों की जरूरत है। ऐसा नहीं कि वहां बुद्धि अस्वीकृत है, लेकिन उसे उसकी सही जगह पर रखा गया है। बुद्धि के हाथों में तुम्हारी पूरी बागडोर झेन में नहीं रहती। तुम्हारी पूरी समग्रता में उसका अपना कार्य है। जैसे, झेन में पांव भी उतने ही महत्त्वपूर्ण हैं जितना कि तुम्हारा सिर, हाथ भी उतने ही महत्त्वपूर्ण हैं जितनी कि तुम्हारी बुद्धि, हृदय भी उतना ही महत्त्वपूर्ण है जितनी कि तुम्हारी बुद्धि। तुम्हें वहां एक ऑरगेनिज्म की तरह हो जाना पड़ता है। न तुम्हारा कोई हिस्सा ऊपर है, न नीचे है।
दर्शनशास्त्र बुद्धि केंद्रित होता है; काव्य समग्र होता है। कविता में एक बहाव होता है। कविता का संबंध सौंदर्य के साथ होता है। और सौंदर्य अहिंसक होता है, और सौंदर्य प्रेम से भरा होता है, और सौंदर्य में एक करुणा होती है।
झेन का खोजी सत्य को सौंदर्य में पाने का प्रयास करता है। पक्षियों के गीतों में, वृक्षों में, मोर के नृत्य में, बादलों में, बिजली में, सागरों में, रेगिस्तानों में- हर जगह वह सत्य को खोजता है। झेन का साधक सौंदर्य की खोज में उतर जाता है और सत्य को पा लेता है।
स्वभावतः सौंदर्य की खोज का एक अलग ही प्रभाव है। जब तुम सत्य को खोज रहे होते हो तो तुम अधिक पुरुष चित्त होते हो; जब तुम सौंदर्य को खोज रहे होते हो तो तुम स्त्री चित्त होते हो। जब तुम सत्य को खोज रहे होते हो तो तुम बुद्धि से, तर्क से चलते हो; जब तुम सौंदर्य को खोज रहे होते हो तो तुम भाव के जगत में उतरने लगते हो। झेन स्त्रैण चित्त धर्म है। काव्य स्त्रैण चित्त है। दर्शनशास्त्र पुरुष चित्त है, अधार्मिक है।
झेन अधार्मिक है- इसीलिए झेन में मात्र बैठे भर रहना एक महत्त्वपूर्ण ध्यान की विधि बन गई है। बस बैठना भर- झाझेन। झेन गुरु कहते हैं कि तुम बिना कुछ किए खाली बैठे रहो, और चीजें अपने आप घटती है। तुम्हें कुछ भी करना नहीं पड़ेगा; तुम्हें किसी चीज के पीछे भागना नहीं पड़ेगा, तुम्हें कुछ खोजना नहीं पड़ेगा। चीजें स्वयं आएंगी। तुम बैठ भर रहो।
यदि तुम मौन बैठ सको, यदि तुम पूरी तरह विश्रांत हो सको, यदि तुम स्वयं को शिथिल छोड़ सको, यदि तुम अपने सारे तनाव घड़ी भर को छोड़ दो और ऐसी दशा में आ जाओ जहां तुम्हें कहीं जाना नहीं है, कुछ खोजना नहीं है, तो भगवत्ता तुममें उतरने लगती है। हर ओर से दिव्यता तुम्हारी ओर दौड़ी चली आती है। बस, बैठे हुए, बिना कुछ किए, बसंत आता है और फूल अपने आप खिल उठते हैं।
और याद रखो, जब झेन कहता है बैठना भर तो उसका अर्थ बैठना भर ही है- कुछ और नहीं, मंत्र का उच्चार तक नहीं। यदि तुम किसी मंत्र का उच्चार कर रहे हो तो तुम बैठे नहीं हुए हो, तुम एक चक्र में घूम रहे हो, बार-बार, बार-बार किसी चीज को दोहरा रहे हो।
यदि तुम कुछ भी नहीं कर रहे... विचार आ रहे हैं; जा रहे हैं; आ रहे हैं, जा रहे हैं- वे आएं, तो अच्छा; वे न आएं, तो अच्छा। तुम्हें इसकी परवाह ही नहीं है कि क्या हो रहा है? तुम बस बैठे भर हो। और बैठे-बैठे यदि थक जाओ, तो लेट जाओ; यदि तुम्हें लगे कि तुम्हारे पांव दुखने लगे, तो उन्हें थोड़ा ढीला कर के बैठ जाओ। तुम स्वाभाविक दशा में रहो। चीजों को साक्षी होकर देखो भी मत। किसी तरह का कोई प्रयास ही मत करो। बैठने भर का यही अर्थ है। बस बैठे-बैठे ही घटना घट जाती है।
झेन की पहुंच स्त्रैण है, और धर्म मूलतः स्त्रैण होता है। विज्ञान पुरुष चित्त होता है, दर्शनशास्त्र पुरुष चित्त होता है- धर्म स्त्रैण होता है। इस जगत में जो भी कुछ सुंदर है- कविता, चित्रकारिता, नृत्य- सब कुछ स्त्रैण चित्त से आया है।
यह जरूरी नहीं कि यह सब स्त्रियों से आया हो, क्योंकि स्त्रियों तो आज तक सृजन करने के लिए स्वतंत्र रही ही नहीं। उनके दिन अब आ रहे हैं। जैसे-जैसे झेन इस संसार में महत्त्वपूर्ण होता जाएगा, स्त्रैण चित्त उभरकर ऊपर आएगा, उसमें एक विस्फोट होगा।
चीजें एक समग्रता में गति करती हैं। आज तक का अतीत पुरुष नियंत्रित रहा है- इसीलिए इस्लाम और क्रिश्चियनिटी और हिंदू धर्म का प्रभाव रहा। भविष्य स्त्रैण होने वाला है; कोमल, अधार्मिक, शांत, सौंदर्य बोध से भरा हुआ, काव्यात्मक होने वाला है। काव्यात्मक वातावरण में झेन संसार की सबसे महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया बन जाएगी।
दर्शनशास्त्र है तर्क; काव्य है प्रेम। दर्शनशास्त्र चीजों को तोड़ता है, उनका विश्लेषण करता है; कविता चीजों को जोड़ती है। दर्शनशास्त्र मूलतः विध्वंसात्मक है; काव्य जीवनदायी है। दर्शनशास्त्र की विधि है विश्लेषण- और यह विधि विज्ञान की भी है, मनोविज्ञान की भी है। देर या अबेर मनोविश्लेषण को हटा देना होगा और मनोसंश्लेषण को जगह देनी होगी। रवींद्रनाथ टेगोर सिग्मंड फ्रॉयड से अधिक महत्त्वपूर्ण हैं, क्योंकि संश्लेषण सत्य के अधिक करीब है, विश्लेषण सत्य से बहुत दूर ले जाता है।
यह जगत एक है। यहां कुछ भी अलग-थलग नहीं है। हर चीज एक साथ धड़क रही है। हम एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं, अंर्तसंबंधित हैं। यह पूरा जगत जीवन का एक ताना-बाना है। घास की एक छोटी सी छोटी पत्ती भी सुदूर तारे से जुड़ी हुई है। यदि इस पत्ती को कुछ होता है तो उस सुदूर के तारे में भी कुछ परिवर्तन जरूर होंगे। सब कुछ एक साथ है, जुड़ा हुआ है। यह अस्तित्त्व एक परिवार है।
झेन कहता है, ‘चीजों को तोड़ो मत, उनका विश्लेषण मत करो।’
झेन कहता है कि मनुष्य एक समग्रता है, एक ऑरगनिज्म है।
आधुनिक विज्ञान में एक नई धारणा बहुत प्रचलित हो गई है- इसे वे कहते हैं एन्ड्रोजिनी। प्रसिद्ध वैज्ञानिक, बक मिन्टर फुलर ने एन्ड्रोजिनी की परिभाषा देते हुए कहा है, ‘हर इकाई, हर ओरगनिज्म में ऐसा कुछ होता है जो कि केवल उसके टुकड़ों और खंडों का जोड़ भर ही नहीं होता। जब किसी ऑरगनिज्म के सब टुकड़े आपस में जोड़ दिए जाते हैं तो वह काम करने लगता है। जैसे, घड़ी के पुर्जें आपस में जोड़ दिए जाएं तो घड़ी टिक-टिक-टिक करने लगती है। तुम घड़ी को खोल दो और उसके सब पुर्जें अलग-अलग कर दो, तो टिक-टिक गायब हो जाती है। तुम फिर पुर्जों को आपस में जोड़ दो और ठीक पहले जैसी अवस्था में ले आओ, तो टिक-टिक वापस आ जाती है। ये टिक-टिक पुर्जों से अलग है। कोई भी एक पुर्जा इसके लिए जिम्मेदार नहीं हो सकता और न ही अलग-अलग पड़े हुए सब पुर्जें इसके लिए जिम्मेदार हो सकते हैं; इस टिक-टिक के लिए तुम्हें सब पुर्जों को आपस में जोड़ना पड़ेगा।’
यह टिक-टिक आत्मा है, सब पुर्जों को एक साथ जोड़ दिए जाने पर जो प्रकट होती है। तुम मेरा हाथ अलग कर दो, तुम मेरे पांव अलग कर दो, तुम मेरा सिर अलग कर दो, और जो मेरी धड़कन है वह समाप्त हो जाती है। यह धड़कन मेरी आत्मा है। लेकिन यह धड़कन तब तक ही रहती है जब तक मेरे सब हिस्से एक इकाई में बंधे रहें।
परमात्मा इस पूरे अस्तित्त्व की धड़कन है। तुम परमात्मा को इसके सब हिस्सों को अलग-अलग करके नहीं पा सकते। परमात्मा को पाना हो तो तुम्हें अपनी दृष्टि को अखंड रखना होगा। परमात्मा अखंडता का एक अनुभव है। विज्ञान कभी भी उसे खोज नहीं सकता, दर्शनशास्त्र कभी भी उस तक पहुंच नहीं सकता- केवल एक काव्यात्मक दृष्टि, एक अधार्मिकता, एक प्रेमपूर्ण पहुंच के साथ ही तुम उसे छू सकते हो। जब तुम अस्तित्त्व के साथ एक लयबद्धता में आ जाते हो, जब तुम एक साधक की तरह अलग नहीं रह जाते, जब तुम एक खोजी की तरह अलग नहीं रह जाते, जब तुम मात्र देखने वाले द्रष्टा नहीं रह जाते, तुम पूरी तरह अपने आप को इसमें खो देते हो- तब वह धड़कन प्रकट होती है।
तीसरी बातः झेन विज्ञान नहीं है, लेकिन जादू है। लेकिन यह कोई बाजीगरों वाला, जादूगरों वाला जादू नहीं है, यह ऐसा जादू है जो तुम्हें जीवन के करीब ले आता है। विज्ञान तो बौद्धिक है। वह जीवन के रहस्य को नष्ट करने का एक प्रयास है। विज्ञान सारे रहस्य को मार डालता है। यह जो तिलिस्म चारों और बिखरा है, विज्ञान उसके खिलाफ है। झेन इस तिलिस्म को जीने की कला है।
जीवन के रहस्य को सुलझाना नहीं है, क्योंकि उसे सुलझाया जा ही नहीं सकता। उसे जीना है, उसमें उतरना है, उसका स्वाद लेना है। यह जीवन एक रहस्य है, यही इसका आनंद भी है। इसका उत्सव मनाना है।
झेन जादू है। वह तुम्हें रहस्य को खोलने की कुंजी देता है। और मजे की बात यह है कि वह रहस्य भी तुममें है और कुंजी भी तुममें ही है।
जब तुम किसी झेन गुरु के पास पहुंचते हो, तो वह तुम्हारी मदद करता है कि तुम बस शांत हो जाओ, और जो कुंजी तुम सदा से अपने भीतर लिए चल रहे हो, वह तुम अपने भीतर ही पा लो। और उस कुंजी से जो द्वार खुलना है, वह भी तुम्हारे भीतर ही है। जब तुम शांत होते हो, तो उस द्वार के पास सहज ही तुम पहुंच जाते हो।
और अंतिम बुनियादी बातः झेन कोई आदर्श नहीं देता। झेन यह नहीं कहता कि तुम्हें ऐसा करना है और ऐसा नहीं करना। झेन बस तुम्हें सौंदर्य के प्रति संवेदनशील बना देता है, और वह संवेदनशीलता ही तुम्हारा आदर्श बन जाती है। लेकिन यह मॉरेलिटी, यह आदर्श कहीं तुम्हारे बाहर से नहीं आता, तुम्हारी चेतना से आता है। झेन तुम्हें चेतना देता है, तुम्हें कर्तव्य का कोई भाव नहीं देता। ऐसा नहीं कि तुम्हें किसी बाइबिल, किसी कुरान या किसी वेद को मानना है। जो कुछ है, तुम्हारे भीतर ही है।
और जब कुछ तुम्हारे भीतर से आता है, तो वह गुलामी नहीं होती, वह स्वतंत्रता होती है। और जब कुछ तुम्हारे भीतर से उठता है तो तुम उसे हिचकिचाते हुए नहीं करते। उसे करने में तुम्हें आनंद आता है। वह करना तुम्हारा प्रेम बन जाता है।
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