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रविवार, 24 नवंबर 2019

मेरी प्रिय पुस्तकें-(सत्र-03)

मेरी प्रिय पुस्तकें-ओशो

सत्र-तीसरा

अब मेरा काम शुरू होता है। यह कैसा मजाक है! सबसे बड़ा मजाक यह कि चीनी संत सोसान मेरी चेतना का द्वार खटखटा रहे थे। ये संत भी बड़े अजीब होते हैं। तुम कुछ नहीं कह सकते कि कब ये तुम्हारे दरवाजे खटखटाने लगें। तुम अपनी प्रेमिका के साथ प्रेम कर रहे हो और सोसान लगे दरवाजा खटखटाने। वे कभी भी आ जाते हैं--किसी भी समय--वे किसी शिष्टाचार में विश्वास नहीं करते। और वे मुझसे क्या कह रहे थे? वे कह रहे थे कि तुमने मेरी पुस्तक शामिल क्यों नहीं की?’
हे परमात्मा, यह सच है! मैंने उनकी पुस्तक को केवल इसलिए अपनी सूची में शामिल नहीं किया, क्योंकि उनकी पुस्तक में सभी कुछ समाहित है। अगर मैं उनकी पुस्तक शामिल करूं, तो फिर और किसी की जरूरत नहीं रहेगी, फिर किसी और पुस्तक की आवश्यकता ही नहीं रही। सोसान अपने आप में पर्याप्त हैं। 

उनकी पुस्तक का नाम है: 
शिन शिन मिंग।
शिन को अंग्रेजी शब्द एस-आइ-एनकी तरह नहीं लिखा जाता है, बल्कि एच-एस-आइ-एनलिखा जाता है। अब तुम चीनियों को तो जानते ही हो: सिनकरने का कैसा अदभुत ढंग! शिन... शिन शिन मिंग।
ठीक है सोसान, आपकी पुस्तक को मैंने शामिल कर लिया है। आज की यह पहली पुस्तक होगी। क्षमा करना, बिलकुल शुरुआत से ही इसे प्रथम होना चाहिए था, लेकिन मैं पहले ही बीस के बारे में बात कर चुका हूं। पर कोई बात नहीं। मैं कहूं या न कहूं शिन शिन मिंगसर्वप्रथम है, पहली है। देवगीत, ‘पहलीको बड़े अक्षरों में लिखना।
शिन शिन मिंगइतनी छोटी सी पुस्तक है कि अगर सोसान को कभी पता चलता कि उनके बाद गुरजिएफ ऑल एंड एवरीथिंगनामक पुस्तक लिखेंगे, तो वे बहुत हंसते, क्योंकि यही शीर्षक उनकी अपनी पुस्तक का भी है। और गुरजिएफ को एक हजार पृष्ठ लिखने पड़े, लेकिन फिर भी सोसान के शब्द कहीं ज्यादा प्रभावी हैं, कहीं अधिक महत्वपूर्ण हैं। वे सीधे हृदय में उतर जाते हैं।
मुझे आवाज भी सुनाई पड़ रही है--उन शब्दों की नहीं जो तुम्हारे हृदय तक पहुंच रहे हैं, बल्कि किसी चूहे की, किसी शैतान की, जो अपना काम कर रहा है। उसे अपना काम करने दो।
सोसान की पुस्तक बहुत छोटी है, ‘ईशा उपनिषदकी भांति, और कहीं अधिक महत्वपूर्ण। जब मैं यह कहता हूं तो मेरा दिल टूट रहा है, क्योंकि मैं चाहता हूं कि ईशापरम पुस्तक हो, लेकिन मैं क्या कर सकता हूं?--सोसान ने उसे हरा दिया है। मेरी आंखों में आंसू आ जाते हैं कि ईशाहार गया, और इसलिए भी कि सोसान जीत गया है।
पुस्तक इतनी छोटी है कि तुम उसे अपनी हथेली पर लिख सकते हो; लेकिन अगर तुम लिखो, तो कृपया स्मरण रखना... कि बाएं हाथ पर लिखना। दाहिने हाथ की हथेली पर मत लिखना, ऐसा करना अनुचित होगा। लोग कहते हैं कि ‘‘दाहिना ठीक है और बायां गलत है।’’ मैं कहता हूं, बायां ठीक है और दाहिना गलत है, क्योंकि तुम्हारे भीतर जो भी सुंदर है बायां उसका प्रतिनिधित्व करता है, और सोसान केवल बाएं से ही प्रवेश कर सकते हैं। मैं जानता हूं, क्योंकि मैंने हजारों हृदयों में बाएं हाथ के माध्यम से प्रवेश किया है, बाईं तरफ से, उनके स्त्री-चित्त वाले भाग से, उनके यिन से--मेरा मतलब जिसे चीन में यिन कहते हैं; मैं कभी भी किसी के भीतर उसके यांग, पुरुष-चित्त के माध्यम से प्रवेश नहीं कर पाया हूं। किसी को रोकने के लिए यह शब्द ही काफी है: यांग।यह कहता हुआ लगता है कि ‘‘दूर रहो!’’ यह कहता है कि ‘‘रुको! यहां मत आओ! दूर रहो! कुत्ते से सावधान!’’
दाहिना भाग ऐसा ही है। दाहिना भाग चेतना के गलत पक्ष से जुड़ा हुआ है। यह उपयोगी है, लेकिन एक सेवक की भांति। इसे मालिक नहीं बन जाना चाहिए। इसलिए अगर तुम्हें सोसान की शिन शिन मिंगलिखना ही हो, तो उसे बाईं हथेली पर लिखना।
यह इतनी सुंदर पुस्तक है कि इसका प्रत्येक शब्द स्वर्णिम है। मैं सोच नहीं सकता कि इसका एक भी शब्द हटाया जा सकता है। सत्य को कहने के लिए जो जरूरी है, जो आवश्यक है, यह एकदम वही है। सोसान निश्चय ही एक महान तार्किक व्यक्ति रहे होंगे, कम से कम शिन शिन मिंगलिखते समय।
मैंने इस पर बोला है और इस पर बोलना मुझे इतना अच्छा लगा उतना किसी और पर बोलते हुए नहीं लगा है। मेरे बोलने के महानतम क्षण थे जब मैं सोसान पर बोल रहा था। बोलना और मौन एक साथ... बोलते हुए भी न बोलना, क्योंकि सोसान को बिना बोले ही समझा जा सकता है। वे शब्दों के व्यक्ति नहीं थे, वे मौन के व्यक्ति थे। वे कम से कम बोले हैं। सोसान, क्षमा करना, मैं आपको भूल गया था। आपके कारण ही कुछ और लोग मुझे याद आ रहे हैं, जो मेरे द्वार पर दस्तक दे सकते हैं और मेरी दोपहर की नींद खराब कर सकते हैं। इसलिए अच्छा तो यही है कि मैं उनका भी उल्लेख कर दूं।

पहली है: सोसान की पुस्तक शिन शिन मिंग।

दूसरी है: पी.डी. ऑस्पेंस्की की टर्शियम आर्गानम।यह एक चमत्कार है कि इस पुस्तक को उसने तब लिखा जब उसने गुरजिएफ का नाम भी नहीं सुना था। उसने इसे तब लिखा जब उसे होश भी नहीं था कि वह क्या लिख रहा है। वह स्वयं भी इसे गुरजिएफ से मिलने के बाद ही समझ पाया। गुरजिएफ से मिलते ही उसके पहले शब्द थे: ‘‘आपकी आंखों में झांक कर मैं टर्शियम आर्गानमको समझ पाया। यद्यपि मैंने ही इसे लिखा है, लेकिन अब मैं कह सकता हूं कि यह मुझे माध्यम बना कर किसी अज्ञात शक्ति द्वारा लिखी गई है, जिसका मुझे पता नहीं था।’’ शायद उस शरारती गुरजिएफ ने ही ऑस्पेंस्की को माध्यम बना कर इसे लिखा था, या फिर कोई और व्यक्ति जिसको सूफी परम शरारतीकहते हैं, जो चमत्कार करता रहा है--टर्शियम आर्गानमजैसे चमत्कार।
शीर्षक का अर्थ है: विचार का तीसरा सिद्धांत।सूफी उस परम सत्ता को एक नाम देते हैं; वह कोई व्यक्ति नहीं है, बल्कि बस एक उपस्थिति मात्र है। मैं अभी भी उस उपस्थिति को अनुभव कर रहा हूं, यहीं... इसी क्षण। वे इसे एक नाम देते हैं, क्योंकि प्रत्येक चीज को कोई नाम देना पड़ता है। लेकिन इस सौंदर्य, इस भव्यता, इस उत्साह, इस उमंग, इस आनंद की उपस्थिति को मैं कोई नाम नहीं दूंगा।
जैसा मैंने कहा कि यह एक चमत्कार है कि ऑस्पेंस्की विश्व की किसी भी भाषा में लिखी गई श्रेष्ठतम पुस्तकों में से एक टर्शियम आर्गानमलिख सका। वस्तुतः ऐसा कहा जाता है, और ठीक ही कहा जाता है--याद रखना, मैं जोर देकर दोहरा रहा हूं कि ठीक ही कहा जाता है कि केवल तीन श्रेष्ठतम पुस्तकें हैं: पहली है: आर्गानम’--जिसे अरस्तू ने लिखा है; दूसरी है: दि सेकेंड आर्गानम’--जिसे बैकन ने लिखा है; और तीसरी है ऑस्पेंस्की की: टर्शियम आर्गानम।’ ‘टशिर्र्यमयानी तीसरा। और ऑस्पेंस्की ने बड़ी शरारत से--और केवल एक संत ही इतना शरारतपूर्ण हो सकता है--अपनी पुस्तक का परिचय बिना किसी अहंकार के, विनम्रता और सादगी से इस प्रकार दिया है: ‘‘पहला सिद्धांत अस्तित्व में है लेकिन तीसरे सिद्धांत से पहले नहीं। पहला सिद्धांत जब जगत में नहीं था, तब भी यह तीसरा सिद्धांत मौजूद था।’’
ऐसा लगता है कि टर्शियम आर्गानमलिख कर ऑस्पेंस्की बिलकुल ही पूरी तरह से थक गया था, क्योंकि फिर वह कभी उसी ऊंचाई पर नहीं पहुंच पाया। यहां तक कि इनसर्च ऑफ दि मिरैकुलसमें गुरजिएफ के बारे में बताते हुए भी वह उस ऊंचाई को नहीं पा सका। जब उसने गुरजिएफ को धोखा दिया, तो अंत में उसने टर्शियमसे बेहतर कुछ लिखने का प्रयास किया। अपने अंतिम प्रयास में उसने दि फोर्थ वेनामक पुस्तक लिखी, लेकिन वह बुरी तरह असफल रहा। किताब अच्छी है, लेकिन केवल विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम के लिए अच्छी है। तुम देखते हो, किसी चीज की आलोचना करने के लिए मेरे अपने ही ढंग हैं...
दि फोर्थ वेविश्वविद्यालय के नियमित पाठ्यक्रम का अंश बन सकती है, लेकिन इससे अधिक कुछ नहीं। हालांकि वह अपनी तरफ से सर्वश्रेष्ठ लिखने का प्रयास कर रहा था, और ऑस्पेंस्की ने जो कुछ भी लिखा है उसमें यह निकृष्टतम पुस्तक है। यह उसकी अंतिम पुस्तक थी।
जो भी श्रेष्ठ है उसके साथ यही कठिनाई है: अगर तुम प्रयास करोगे, तो तुम चूक जाओगे। या तो वह अनायास आता है या फिर बिलकुल नहीं। टर्शियम आर्गानममें वह अज्ञात शक्ति ऑस्पेंस्की पर अवतरित हुई थी, लेकिन उसे पता नहीं था। टर्शियममें शब्द इतने प्रभावशाली हैं कि कोई भरोसा नहीं कर सकता कि लेखक ज्ञान को उपलब्ध नहीं है, कि वह अभी भी मास्टर की खोज में है, कि वह अभी भी सत्य की खोज में है।
मैं एक गरीब विद्यार्थी था, पूरे दिन पत्रकार के रूप में काम करता था--जो तुम कर सकते हो उनमें यह निकृष्टतम काम है, किंतु उस समय मेरे लिए यही उपलब्ध था--और मैं इतना जरूरतमंद था कि मुझे रात के कॉलेज में जाना पड़ा। इसलिए दिन भर मैं पत्रकार का काम करता और रात को कॉलेज जाता। एक तरह से मेरा नाम रात्रि से संबंधित है। रजनीश का अर्थ है चंद्रमा: रजनी यानी रात, ईश यानी देवता--रात्रि का देवता।
तो लोग हंसते थे और कहते थे: ‘‘यह तो अजीब है: तुम दिन भर काम करते हो और रात को पढ़ने जाते हो। क्या अपने नाम को सार्थक कर रहे हो?’’
अब मैं उन्हें उत्तर दे सकता हूं, हां--बड़े अक्षरों में लिखना--हां,’ मैं सारे जीवन इसे सार्थक करने का प्रयास करता रहा। पूर्णिमा के चांद से और अधिक सुंदर और हो भी क्या सकता है? तो मैं एक गरीब छात्र होने के कारण दिन भर काम करता था। लेकिन मैं दीवाना हूं, अमीर या गरीब इससे कोई फर्क नहीं पड़ता...
दूसरों से पुस्तक उधार लेकर पढ़ना मैंने कभी पसंद नहीं किया। वस्तुतः पुस्तकालय से लेकर पुस्तक पढ़ना भी मुझे पसंद नहीं है, क्योंकि पुस्तकालय की पुस्तकें वेश्या जैसी होती हैं। उनमें दूसरे लोगों के द्वारा लगाए गए निशानों, पंक्तियों के नीचे खींची गई रेखाओं को देख कर मुझे घृणा होती है। मैंने हमेशा ताजगी को पसंद किया है, बर्फ सी सफेद ताजगी।
टर्शियम आर्गानममहंगी पुस्तक थी। भारत में, उन दिनों में, मैं केवल सत्तर रुपया प्रतिमाह पाता था, और संयोग से इस पुस्तक का मूल्य भी सत्तर रुपये ही था--लेकिन मैंने इसे खरीद लिया। पुस्तक विक्रेता आश्चर्यचकित था। उसने कहा: ‘‘यहां तक कि हमारे समाज के सबसे धनी व्यक्ति भी इसे नहीं खरीद सकते। पांच सालों से मैंने इसे बेचने के लिए रखा हुआ था, पर इसे किसी ने नहीं खरीदा। लोग आते हैं और इसे देखते हैं, उसके बाद खरीदने का खयाल छोड़ देते हैं। तो तुम एक निर्धन छात्र, जो दिन भर काम करता है और रात को पढ़ने जाता है, और हर रोज लगभग चौबीसों घंटे काम करता है, तुम इसे कैसे खरीद सकते हो?’’
मैंने कहा: ‘‘अगर जीवन देकर भी मुझे खरीदना पड़े तो भी मैं इस पुस्तक को खरीद सकता हूं। इसकी पहली पंक्ति पढ़ना ही पर्याप्त है। मुझे यह चाहिए ही चाहिए, चाहे जो भी मूल्य हो।’’
भूमिका में पहला वाक्य जो मैंने पढ़ा वह था: ‘‘यह विचार का तीसरा सिद्धांत है, और केवल तीन ही हैं। पहला अरस्तू का; दूसरा बैकन का, और तीसरा मेरा खुद का।’’ ऑस्पेंस्की के साहस से मैं रोमांचित हो उठा, जब उसने कहा: ‘‘तीसरा सिद्धांत प्रथम के पहले भी मौजूद था।’’ यही वह वाक्य था जिसने मेरे हृदय की आग को भड़का दिया।
पुस्तक विक्रेता को मैंने अपनी पूरे महीने की तनख्वाह दे दी। तुम समझ नहीं सकते, क्योंकि उस पूरे महीने मुझे करीब-करीब भूखा ही रहना पड़ा। लेकिन यह पुस्तक इसके योग्य थी। उस सुंदर महीने को मैं याद कर सकता हूं: न भोजन, न कपड़े--और न ही सिर पर छप्पर; क्योंकि किराया अदा न कर पाने के कारण मुझे अपने छोटे से कमरे के बाहर निकाल दिया गया था। लेकिन टर्शियम आर्गानमके साथ आसमान के नीचे भी मैं प्रसन्न था। मैंने पुस्तक को सड़क के खंभे की रोशनी में पढ़ाहै--यह एक स्वीकारोक्ति है--और मैंने इस पुस्तक को जीया है। यह पुस्तक इतनी सुंदर है, और इसलिए भी कि मुझे मालूम है कि लेखक को खुद कुछ भी मालूम नहीं है। लेकिन उसने ऐसा कैसे कर लिया? यह सब देवताओं का षडयंत्र रहा होगा, उस पार से कुछ हुआ होगा। सूफियों द्वारा उपयोग किए गए नाम का प्रयोग करने से मैं अपने को रोक नहीं सकता; सूफी उसे खिद्रकहते हैं। खिद्र ही वह शक्ति है जो उन्हें वह मार्गदर्शन देती है जिन्हें उसकी जरूरत होती है।

टर्शियम आर्गानमदूसरी पुस्तक है।

तीसरी: गीत गोविंद’--‘परमात्मा के गीत।
इस पुस्तक को जिस कवि ने लिखा था उसे भारतीयों ने बहुत निंदित किया है, क्योंकि गीत गोविंदमें, ‘परमात्मा के गीतमें, उसने प्रेम की बहुत अधिक बात की है। भारतीय प्रेम के इतने विरुद्ध हैं कि उन्होंने इस श्रेष्ठ कृति की कभी प्रशंसा नहीं की।
गीत गोविंदऐसी पुस्तक है जिसे गाया जाना चाहिए। इसके बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता। यह एक बाउल गीत है, एक बावले का गीत। यदि उसे गाओगे और नाचोगे, तभी समझ पाओगे--और कोई दूसरा रास्ता नहीं है।
मैं उस आदमी के नाम का उल्लेख नहीं कर रहा हूं जिसने इसे लिखा है। वह महत्वपूर्ण नहीं है। क ख ग कुछ भी हो... ऐसा नहीं कि मुझे उसका नाम मालूम नहीं है, लेकिन मैं उसका उल्लेख नहीं कर रहा हूं उसका सरल सा कारण यह है कि वह संबुद्धों के संसार का नहीं है। फिर भी उसने महान सेवा की है।

चौथी: अब धैर्य रखो, क्योंकि मुझे दस की सूची पूरी करनी है। मैं इससे आगे गिनती नहीं कर सकता। दस क्यों?--क्योंकि मेरी दस अंगुलियां हैं। इसी तरह दस की गिनती शुरू हुई: दस अंगुलियों से। आदमी ने अपनी अंगुलियों पर गिनना प्रारंभ किया इसलिए दस मूलभूत संख्या हो गई।
चौथी है: कुंदकुंद की समयसार।
मैंने इस पर कभी नहीं बोला है। कई बार मैंने बोलने का निश्चय किया, लेकिन फिर विचार त्याग दिया। यह जैनियों द्वारा लिखी हुई श्रेष्ठतम पुस्तकों में से एक है, लेकिन यह बहुत ही गणितीय है; इसलिए मैं इस पर कभी नहीं बोला। मुझे काव्य प्रिय है। यदि यह काव्यात्मक होती तो मैं इस पर भी बोलता। यहां तक कि मैं असंबुद्ध कवियों पर भी बोल चुका हूं, लेकिन संबुद्ध गणितज्ञों और तर्कशास्त्रियों पर नहीं। गणित बहुत रूखा-सूखा होता है, तर्क मरुस्थल है।
शायद वे यहीं मेरे संन्यासियों के बीच में हों... लेकिन हो नहीं सकते। कुंदकुंद संबुद्ध सदगुरु थे, उनका पुनर्जन्म नहीं हो सकता। मैं केवल इतना ही कह सकता हूं कि उनकी पुस्तक सुंदर है। मैं इससे अधिक कुछ और नहीं कहूंगा, क्योंकि वह गणितीय है... गणित की अपनी सुंदरता है, अपनी लयबद्धता है, इसलिए मैं उसकी प्रशंसा करता हूं। उसका अपना खुद का सत्य है लेकिन वह बहुत सीमित है, बहुत तर्क के घेरे में है।
समयसार का अर्थ है: सारतत्व। यदि संयोग से कभी तुम्हें कुंदकुंद की समयसारमिल जाए, तो कृपया कभी भी इसे बाएं हाथ में मत लेना। दाहिने हाथ में ही रखना। यह दाहिने हाथ की पुस्तक है, हर ढंग से ठीक-ठीक। इसलिए इस पर बोलने से मैं इनकार करता रहा हूं। यह इतनी ठीक है कि मुझे इससे थोड़ी विरक्ति अनुभव होती है--निस्संदेह मेरी आंखों में आंसू हैं, क्योंकि जिस व्यक्ति ने इसे लिखा है उसके सौंदर्य को मैं जानता हूं, कुंदकुंद मुझे प्रिय हैं, लेकिन उनकी गणितीय अभिव्यक्ति को मैं सख्ती से नापसंद करता हूं।

गुड़िया, तुम अगर चाहो तो थोड़ी और आजादी ले लो, क्योंकि मुझे अभी चार पुस्तकों पर और बोलना है। अगर तुम चाहो तो फिर से बाहर जा सकती हो।

पांचवीं है: जे. कृष्णमूर्ति की दि फर्स्ट एंड लास्ट फ्रीडम।
मैं इस व्यक्ति से प्रेम करता हूं, और इस व्यक्ति से घृणा भी करता हूं। मैं प्रेम करता हूं, क्योंकि यह व्यक्ति सत्य बोलता है; लेकिन घृणा करता हूं उनकी बौद्धिकता से। वे शुद्ध तर्क हैं, तर्कसंगत हैं। मैं सोचता हूं कि शायद वे उस तर्कवादी ग्रीक अरस्तू के अवतार हैं। उनके तर्क से मैं घृणा करता हूं, उनके प्रेम का मैं आदर करता हूं--लेकिन उनकी पुस्तक सुंदर है।
बुद्धत्व की उपलब्धि के बाद यह उनकी पहली पुस्तक थी, और अंतिम भी। यद्यपि उनकी अनेक पुस्तकें आईं, लेकिन वे इसी की कमजोर पुनरक्तियां हैं। दि फर्स्ट एंड लास्ट फ्रीडमसे बेहतर कुछ लिखने में वे असमर्थ रहे हैं।
यह अजीब बात है: खलील जिब्रान ने अपनी श्रेष्ठ पुस्तक दि प्रॉफेटतब लिखी जब वे मात्र अठारह वर्ष के थे, और सारे जीवन उससे बेहतर लिखने के लिए संघर्ष करते रहे, किंतु असफल रहे। ऑस्पेंस्की टर्शियम आर्गानमसे आगे नहीं जा सका, यद्यपि वह गुरजिएफ के साथ वर्षों रहा, वर्षों काम किया। और यही बात कृष्णमूर्ति के साथ हुई: उनकी पुस्तक दि फर्स्ट एंड लास्ट फ्रीडमवस्तुतः पहली और आखिरी है।

छठवीं: छठवीं पुस्तक है एक अन्य चीनी लेखक की: दि बुक ऑफ हुआंग पो।यह एक छोटी सी पुस्तक है, कोई ग्रंथ नहीं, मात्र कुछ अंश। सत्य को ग्रंथों में अभिव्यक्त नहीं किया जा सकता, इस पर तुम कोई पीएच.डी. नहीं लिख सकते। पीएच.डी. एक ऐसी डिग्री है जो मूर्खों को दी जानी चाहिए। हुआंग पो अंशों में लिखते हैं। ऊपर से देखने पर वे अंश असंबंधित लगते हैं, लेकिन ऐसा है नहीं। तुम्हें ध्यान में उतरना होगा और तभी तुमको उनके संबंध का पता चलेगा। यह अभी तक लिखी गई पुस्तकों में सबसे अधिक ध्यानमय पुस्तक है।
अंग्रेजी में दि बुक ऑफ हुआंग पोका अनुवाद अंग्रेजी शैली में किया गया है दि टीचिंग्स ऑफ हुआंग पो’--‘हुआंग पो की शिक्षाएं।यहां तक कि यह शीर्षक ही गलत है। हुआंग पो जैसे व्यक्ति शिक्षा नहीं देते। इसमें कोई शिक्षा नहीं है। इसे समझने के लिए तुम्हें ध्यान में उतरना होगा, मौन में उतरना होगा।

सातवीं है: दि बुक ऑफ हुई हाई।
फिर से अंग्रेजी में इसका अनुवाद उसी तरह से किया गया है दि टीचिंग्स ऑफ हुई हाई’--‘हुई हाई की शिक्षाएं।ये बेचारे अंग्रेज, ये सोचते हैं कि जीवन में शिक्षण के अलावा और कुछ है ही नहीं। ये सभी अंग्रेज लोग शिक्षक हैं। और अंग्रेज महिलाओं से तो सावधान रहना; वरना तुम किसी महिला स्कूल टीचर द्वारा पकड़ लिए जाओगे!
हुई हाई और हुआंग पो दोनों सदगुरु हैं। वे बांटते हैं, वे सिखाते नहीं। इसलिए मैं इसे दि बुक ऑफ हुई हाईकहता हूं, हालांकि पुस्तकालयों में इस नाम से तुम न पाओगे। पुस्तकालयों में तुम दि टीचिंग्स ऑफ हुई हाईपाओगे।

आठवीं: और आखिरी पुस्तक--कम से कम आज के लिए, क्योंकि कल के बारे में कोई नहीं जानता। हो सकता है कोई और दूसरे शैतान मेरे दरवाजों पर दस्तक देना शुरू कर दें। इस पृथ्वी पर जीवित किसी भी व्यक्ति से अधिक पुस्तकें मैं पढ़ चुका हूं, और याद रखना, मैं कोई डींग नहीं मार रहा हूं, बस एक तथ्य कह रहा हूं। मैंने कम से कम एक लाख पुस्तकें पढ़ी होंगी, शायद इससे भी अधिक, लेकिन इससे कम नहीं, क्योंकि उसके बाद मैंने गिनती करना बंद कर दिया। तो मुझे कल के बारे कुछ पता नहीं, लेकिन आज के लिए आठवीं... गीत गोविंदके लिए मुझे थोड़ा सा अपराध-भाव महसूस हो रहा है, क्योंकि मैंने तुम्हें उसके लेखक का नाम नहीं बताया है। मैं बता दूंगा, लेकिन पहले मुझे आठवीं पूरी कर लेने दो।
आठवीं पुस्तक जिसने कि मुझे अत्यधिक प्रभावित किया है, वह कुछ अजीब है, स्वभावतः; वरना वह मुझे प्रभावित ही नहीं करती। तुम्हें हैरानी होगी! अनुमान लगाओ कि आठवीं कौन सी पुस्तक हो सकती है... मुझे पता है कि तुम अनुमान नहीं लगा सकते हो--ऐसा नहीं है कि वह संस्कृत, या चीनी, जापानी या अरबी भाषा में है। तुमने इसके बारे में सुना है, हो सकता है वह तुम्हारे घर में ही हो। वह है ओल्ड टेस्टामेंट की दि सांग ऑफ सोलोमन।यह वह पुस्तक है जिसे मैं पूरे दिल से प्रेम करता हूं। केवल दि सांग ऑफ सोलोमनको छोड़ कर यहूदियों का बाकी जो कुछ भी है उसे मैं घृणा करता हूं।
तथाकथित मनोवैज्ञानिकों के कारण दि सांग ऑफ सोलोमनको बहुत गलत समझा गया है, विशेष रूप से फ्रायड को मानने वाले--फ्राड लोगों--की वजह से। वे दि सांग ऑफ सोलोमनकी जितनी संभव हो सके उतनी निकृष्टतम तरीके से व्याख्या करते रहे हैं; उन्होंने इसे सेक्सुअल-सांग बना दिया है, यौन-गीत बना दिया है। यह ऐसा नहीं है। यह सच है कि यह सेंसुअल है, ऐंद्रिक है, अत्यधिक ऐंद्रिक है, लेकिन सेक्सुअल, कामुक नहीं है। यह बहुत ही जीवंत है, इसी कारण यह ऐंद्रिक है। यह बहुत ही रसपूर्ण है, इसीलिए यह ऐंद्रिक है... लेकिन सेक्सुअल नहीं है। सेक्स इसका एक अंश हो सकता है, लेकिन मनुष्य-जाति को गुमराह मत करो। यहां तक कि यहूदी भी इससे भयभीत हो गए हैं। वे सोचते हैं कि ओल्ड टेस्टामेंट में इसे दुर्घटनावश शामिल कर लिया गया है। सच पूछो तो यह गीत ही एकमात्र बचाने योग्य है; बाकी सब जला देने लायक है।
क्या मेरा समय पूरा हो गया? धत्‌ तेरे की। तुम कहते हो हां,’ लेकिन मैं क्या कर सकता हूं?--यही तो इसका सौंदर्य है। तुम दोनों को धन्यवाद।

ॐ मणि पद्मे हुम।

इस सौंदर्य पर रुक जाना कितना अच्छा है। नेति, नेति, नेति। इस नेतिका उच्चार भारतीय तब करते हैं जब वे बुद्धत्व को उपलब्ध हो जाते हैं। फिर वे दुबारा जन्म नहीं लेना चाहते। वे कहते हैं: नेति, नेति, नति...इस सुंदर अनुभव के उपरांत फिर जन्म लेने का क्या अर्थ है?
आज इतना ही 

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