युवक कौन—ग्याहरवां प्रवचन
युवकों
के लिए कुछ भी
बोलने के पहले
यह ठीक से समझ
लेना जरूरी है
कि युवक का
अर्थ क्या है?
युवक
का कोई भी
संबंध शरीर की
अवस्था से
नहीं है। उम्र
से युवा है।
उम्र का कोई
भी संबंध नहीं
है। बूढ़े भी
युवा हो सकते
हैं,
और युवा भी
बूढ़ा हो सकते
हैं। लेकिन
ऐसा कभी—कभी
ही होता है कि
बूढ़े युवा हो,
ऐसा अकसर
होता है कि
युवा बूढ़े
होते हैं। और
इस देश में तो
युवक पैदा
होते हैं यह
संदिग्ध बात
है।
युवा
होने का अर्थ
है—चित्त की
एक दशा, चित्त
की एक जीवंत
दशा,
लिविंग स्टेट
ऑफ माइंड। बूढ़े
होने का अर्थ
है—चित्त की
मरी हुई दशा।
'इस
देश में युवक
पैदा ही शायद
नहीं होते
हैं। 'जब
ऐसा मैं कहता
हूं तो उसका
अर्थ यही है
कि हमारा
चित्त जीवंत
नहीं है। वह
जो जीवन का
उत्साह, वह
जो जीवन का
आनंद और संगीत
हमारे हृदय की
वीणा पर होना
चाहिए, वह
नहीं है।
आंखों में, प्राणों में,
रोम—रोम में,
वह जो जीवन
को जो। की
उद्दाम लालसा
होनी चाहिए, वह हममें
नहीं है। जीवन
को जियें, इससे
पहले ही हम
जीवन से उदास
हो जाते हैं।
जीवन को जानें,
इससे
पहले।। हम
जीवन को जानने
की जिज्ञासा
की हत्या कर
देते हैं।
मैंने
सुना है, स्वर्ग
के एक
रेस्तरां में
एक दिन सुबह
एक छोटी—सी
घटना घट गई।
उस रेस्तरां
में तीन अदभुत
लोग एक टेबिल
के आसपास बैठे
हुए थे—गौतम
बुद्ध, कन्फ्यूशियस,
और
लाओत्से। वे
तीनों स्वर्ग
के रेस्तरां
में बैठ कर
गपशप करते थे।
फिर एक अप्सरा
जीवन का रस
लेकर आयी
उस
अप्सरा ने कहा, जीवन
का रस पियेंगे?
बुद्ध
ने सुनते ही
आंख बंद कर ली
और कहा, जीवन
व्यर्थ है, असार है, कोई
सार नहीं।
कन्फ्यूशियस
ने आधी आंख
बन्द कर ली और
आधी खुली रखी।
वह गोल्डन मीन
को मानता था, हमेशा
मध्य—मार्ग।
उसने थोड़ी—सी
खुली आंखों से
देखा और कहा, एक घूंट
लेकर चखूंगा।
अगर आगे भी
पीने योग्य लगा
तो विचार
करूंगा। उसने
थोड़ा—सा
जीवन—रस लेकर
चखा और कहा, न पीने
योग्य है, न
छोड़ने योग्य;
कोई सार भी
नहीं, कोई
असार भी नहीं।
उसने मध्य की
बात कही।
लाओत्से
ने पूरी की
पूरी सुराही
हाथ में ले ली
और जीवन—रस को
कुछ कहे बिना
पूरा पी गया।
और तब नाचने
लगा और कहने
लगा,
आश्रर्य कि
गौतम तुमने
बिना पिये ही
इन्कार कर
दिया और
आश्चर्य कि कन्फ्यूशियस,
तुमने थोड़ा
सा चखा। लेकिन
कुछ चीजें ऐसी
होती हैं कि
पूरी ही जानी
जायें तो ही
जानी जा सकती हैं।
थोड़ा चखने से
उनका कोई भी
पता नहीं
चलता।
अगर
किसी कविता का
एक छोटा—सा
टुकड़ा किसी को
दिया जाये—दो
पंक्तियों का, तो
उससे पूरी
कविता के
संबंध में कुछ
भी पता नहीं
चलता। एक
उपन्यास का
पन्ना फाड़कर
किसी को दे
दिया जाये, तो उससे
पूरे उपन्यास
के संबंध में
कोई पता नहीं
चलता है। कोई
वीणा पर संगीत
बजाता हो, उसका
एक स्वर किसी
को सुनने ०
मिल जाये तो
उससे उसको, वीणाकार ने
क्या बजाया था,
इसका कुछ भी
पता नहीं
चलता। एक बड़े
चित्र का छोटा—सा
टुकडा फाड़कर
किसी को दे
दिया जाये, तो उसे बड़े
चित्र में
क्या है, उस
छोटे टुकड़े
से कुछ भी पता
नहीं चल सकता।
कुछ
चीजें हैं, जिनके
थोड़े स्वाद से
कुछ पता नहीं
चलता, जिन्हें
उनकी होलनेस
में, उनकी
समग्रता, टोटेलिटी '' ही
पीना पड़ता है,
तभी पता
चलता है।
लाओत्से
कहने लगा, नाच
उठा हूं मैं।
अदभुत था जीवन
का रस।
और अगर
जीवन का रस भी
अदभुत नहीं है
तो अदभुत क्या
होगा? जिनके
लिए जीवन का
रस ही व्यर्थ
है, उसके
लिए सार्थकता
कहां मिलेगी?
फिर वे
खोजें और
खोजें। वे
जितना
खोजेंगे, उतना
ही खोते चले
जायेंगे। क्योंकि
जीवन ही है एक
सारभूत, जीवन
ही है एक रस, जीवन ही है
एक सत्य।
उसमें ही छिपा
है सारा सौन्दर्य, सारा आनंद, सारा संगीत।
लेकिन
भारत में युवक
उस जीवन के
उद्दाम वेग से
आपूरित नहीं
मालूम पड़ते और
न ऐसा लगता है
कि उनके है
में,
उनके
प्राणों में
उन शिखरों को
छूने की कोई
आकांक्षा है,
जो जीवन के
शिखर हैं। न
ऐसा लगता है
कि अतीत शिखरों
को खोजने के
लिए प्राणों में
कोई प्रबल
पीड़ा है—उन
शिखरों को जो
जीवन के शिखर
हैं, जीवन
के अंधेरे को,
न जीवन के
प्रकाश को, न जीवन की
गहराई को, न
जीवन की ऊंचाई
को, न जीवन
की को, न
जीवन की जीत
को, कुछ भी
जानने का जो
उद्दाम वेग, जो गति, जो
ऊर्जा होनी
चाहिए, वह
युवक के पास नहीं
है। इसलिए
युवक भारत में
हैं—ऐसा कहना
केवल
औपचारिकता है,
फार्मिलिटी
है।
भारत
में युवक नहीं
हैं,
भारत
हजारों साल से
बूढ़ा देश है।
उसमें बूढ़े पैदा
होते हैं, बूढ़े
ही जीते हैं
और बूढ़े मरते
हैं। न बच्चे
पैदा होते हैं,
न जवान पैदा
होते हैं।
हम
इतने बूढ़े हो
गये है कि हमारी
जड़ें ही जीवन
के रस को नहीं
खींचती और न
हमारी शाखाएं
जीवन के आकाश
में फैलती हैं
और न हमारी
शाखाओं में
जीवन के पक्षी
बसेरा करते
हैं और न
हमारी शाखाओं पर
जीवन का सूरज
उगता है और न
जीवन का चांद
चांदनी
बरसात। है, सिर्फ
धूल जमती जाती
है, जड़ें
सूखती जाती
हैं, पत्ते
कुम्हलाते
जाते हैं। फूल
पैदा नहीं होते,
फल आते नहीं
हैं। वृक्ष
हैं, न
उनमें पत्ते
हैं, न फूल
हैं। सूखी
शाखाएं खड़ी
हैं। ऐसा
अभागा हो गया
है यह देश!
जब
युवकों के
संबंध में कुछ
बोलना हो तो
पहली बात यही
ध्यान देनी
जरूरी है। यदि
युवक कोई शारीरिक
अवस्था है, तब
तो हमारे पास
भी युवक हैं।
युवक अगर कोई
मानसिक दशा है,
स्टेट आफ
माइंड है, तो
युवक हमारे
पास नहीं हैं।
अगर
युवक हमारे
पास होते तो
देश में इतनी
गंदगी, इतनी
सड़ांध, इतना
सड़ा हुआ समाज
जीवित रह सकता
था? कभी की
उन्होंने आग
लगा दी होती।
अगर युवक हमारे
पास होते, तो
हम एक हजार
साल तक गुलाम
रहते? कभी
की गुलामी को
उन्होंने
उखाड़ फेंका
होता। अगर
युवक हमारे
पास होते तो
हम
हजारों—हजारों
साल तक
दरिद्रता और
दीनता और दुख
में बिताते? हमने कभी की
दरिद्रता
मिटा दी होती
या खुद मिट
गये होते।
लेकिन
नहीं, युवक
शायद नहीं
हैं। युवक
हमारे पास
होते तो इतना
पाखंड, इतना
अंधविश्वास
पलता इस देश
में? युवक
बरदाश्त करते?
एक—एक करोड़
रुपये यज्ञों
में जलाने
देते, युवक
अगर मुल्क के
पास होते? अब
मैं सुनता हूं
कि और भी
करोड़ों रुपये
जलाने का
इंतजाम करने
के लिए
साधु—संन्यासी
लालायित हैं।
और युवक ही
जाकर चंदा
इकट्ठा
करेंगे और
वालंटियर बनकर
उस यज्ञ को
करवाये
जायेंगे, जहां
देश की
संपत्ति
जलेगी निपट
गंवारी में! अगर
युवक मुल्क
में होते तो
ऐसे लोगों को
क्रिमिनल्स
कहकर, पकड़कर
अदालतों में
खड़ा किया होता,
जो मुल्क की
संपत्ति को इस
भांति बर्बाद
करते हैं। एक
करोड़ रुपये की
संपत्ति
जलाने में जो
आदमी जितना
अपराधी हो
जाता है, उससे
भी ज्यादा
अपराधी एक
करोड़ रुपये यश
में जलाने से
होता है।
क्योंकि एक
करोड़ रुपये की
संपत्ति को
जलाने वाला
थोड़ा बहुत
अपराध भी अनुभव
करेगा। यश में
जलाने वाले
पायस
क्रिमिनल है,
पवित्र
अपराधी हैं!
उनको अपराध भी
नहीं मालूम
पड़ता है।
लेकिन
युवक मुल्क
में नहीं हैं, इसलिए
किसी भी तरह
की मूढ़ता चलती
है, इसलिए
मुल्क में
किसी भी तरह
का अंधकार
चलता है।
युवकों के
होने का सबूत
नहीं मिलता
देश को देखकर!
क्या चल रहा
है देश में? युवक किसी
भी चीज पर
राजी हो जाते
हैं!
वह
युवक कैसा
जिसके भीतर
विद्रोह न हो, रिवोल्युशन
न हो? युवक
होने का मतलब
क्या हुआ उसके
भीतर? जो
गलती के सामने
झुक जाता हो, उसको युवक
कैसे कहें? जो टूट जाता
हो लेकिन
झुकता न हो, जो मिट जाता
हो लेकिन गलत
को बरदाश्त न
करता हो, वैसी
स्पिरिट, वैसी
चेतना का नाम
ही युवक होना
है। टु बी
यंग—युवा होने
का एक ही मतलब
है। संभोग से
समाधि की ओरा
वैसी
आत्मा
विद्रोही की, जो
झुकना नहीं
जानती, टूटना
जानती है, जो
बदलना चाहती
है। जो जिंदगी
को नयी दिशओ
में, नये
आयामों में ले
जाना चाहते
हैं, जो
जिंदगी को
परिवर्तित
करना चाहते
हैं। क्रांति
की वह उद्दाम
आकांक्षा ही
युवा होने के
लक्षण हैं।
कहां
है क्रांति की
उद्दाम
आकांक्षा?
एक
विचारक भारत
आया था, काउंट
केसरले।
लौटकर उसने एक
किताब लिखी
है। उस किताब
को मैं पढ़ता
तो मुझे बहुत
हैरानी होने
लगी। उसने एक
वाक्य लिखा है,
जो मेरी समझ
के बाहर हो
गया, क्योंकि
वाक्य कुछ
मालूम पड़ता था,
जो कि
कंट्राडिक्टरी
है, विरोधाभासी
है।
फिर
मैंने सोचा कि
छापेखाने की
कोई भूल हो
गयी होगी। तो
ख्याल आया कि
किताब जर्मनी
में छपी है।
में छापेखाने
की तो भूलें
होती नहीं। वह
तो हमारे ही
देश में होती
हैं। यहां तो
किताब छपती है, उसके
ऊपर —छ:
पन्ने की
भूल—सुधार छपी
रहती है और उन
पांच—छह
पन्नों को गौर
से पढ़िये तो उसमें
भूलें मिल
जायेंगी!
किताब जर्मनी
में छपी है, भूल नहीं हो
सकती।
फिर
मैंने गौर से
पढ़ा,
फिर बार—बार
सोचा, फिर
ख्याल आया, भूल नहीं की
है, उस
आदमी ने मजाक
की है। लिखा
है कि मैं
हिन्दुस्तान
गया। मैं एक
नतीजा लेकर
वापस आया हूं 'इण्डिया इज
ए रिच कंट्री,
व्हेअर
पीपुल लिव। ' हिन्दुस्तान
एक अमीर देश
है, जहां
गरीब आदमी
रहते हैं!
मैं
बहुत हैरान
हुआ,
यह कैसी बात
है! अगर देश
अमीर है तो
गरीब आदमी क्यों
रहते हैं वहां?
और देश अमीर
है तो वहां के
लोग गरीब
क्यों हैं? लेकिन वह
मजाक कर रहा
है। वह यह कह
रहा है कि हिन्दुस्तान
पास जवानी
नहीं है, जो
कि देश के
छिपे हुए धन
को प्रगट कर
दे और देश को
धनवान बना दे।
देश में धन
छिपा हुआ है, लेकिन देश
बूढ़ा है।
बूढ़ा
कुछ कर नहीं
सकता। धन
खजाने में पड़ा
रह जाता है, का
भूखा मरता
रहता है। धन
जमीन में दबा
जाता है, बूढ़ा
भूखा मरता है!
देश का है, इसलिए
गरीब है। देश
जवान हो तो
गरीब होने का
कोई कारण
नहीं। देश के
पास क्या कमी
है?
लेकिन
अगर हमें कुछ
सूझता है तो
एक ही बात सूझती
है कि जाओ
दूनिया में और
भीख मांगो।
जाओ अमरीका, जाओ
रूस, हाथ
फैलाओ सारी
दुनिया में।
भिखारी होने
में हमें शर्म
भी नहीं आती!
हम जवान हैं?
रास्ते
पर एक जवान, स्वस्थ
आदमी भीख
मांगता हो तो
हम उससे कहते
हैं कि जवान
होकर भीख
मांगते हो? हम कभी नहीं
सोचते कि
हमारा पूरा मुल्क
सारी दुनिया
में भीख मांग
रहा है! हमें
जवान होने का
हक रह है? सड़क
पर भीख मांगते
आदमी को कोई
भी कह देता है
कि जवान होकर
भीख मांगते
हो। हम जानते
है कि होकर
भीख मांगना
लज्जा से भरी
हुई बात है, अपमानजनक
है। जवान को
पैदा करना
चाहिए। हां, बूढ़ा छ
मांगता हो तो हम
क्षमा कर सकते
हैं, अब
उससे आशा नहीं
पैदा करने की।
सारी
दुनिया में हम
भीख मांग रहे
हैं! 1947 के बाद अगर
हमने कोई महान
कार्य किया है
तो वह यही कि सारी
दूनिया से भीख
मांगने में
सफलता पायी
है! शर्म भी
नहीं आती
हमें! दूनिया
क्या सोचती
होगी कि बूढ़ा
देश है, कुछ
कर नहीं सकता,
सिर्फ भीख
मांग सकता है!
लेकिन
उन्हें पता
नहीं है कि हम
पहले से ही पैदा
करने की बजाय, भीख
मांगने को आदर
देते रहे हैं।
हिन्दुस्तान
में जो भीख
मांगता है, वह आदृत है।
ब्राह्मण
हजार साल तक
देश में आश्रित
रहे, सिर्फ
इसलिए कि वे
पैदा नहीं
करते और भीख
मांगते हैं।
और
हिन्दुस्तान
ने बड़े—बड़े
भिखारी पैदा
किये हैं!
महापुरुष—बुद्ध
से लेकर
विनोबा तक भीख
मांगने वाले
महापुरुष! अगर
सारा मुल्क
भीख मांगने
लगा हो तो
हर्ज क्या है? हम
सब महापुरुष
हो गये हैं।
महापुरुषों
का देश है, सारा
देश महापुरुष
हो गया है। हम
सारी दुनिया में
भीख मांग रहे
हैं!
भिक्षा—वृत्ति
बड़ी धार्मिक
वृत्ति है!
पैदा
करने में
हिंसा भी होती
है,
पैदा करने
में हमें श्रम
भी उठाना पड़ता
है। और फिर हम
पैदा क्यों
करें? जब
भगवान ने हमें
पैदा कर दिया
है तो भगवान
इंतजाम करे।
जिसने चोंच दी
है, वह ऋ
देगा। हम अपनी
चोंच को
हिलाते
फिरेंगे सारी
दुनिया में कि
चून दो, क्योंकि
हमें पैदा
किया है और जो
हमें भीख न देंगे,
हम गालियां
देंगे उन्हें
कि तुम
भौतिकवादी हो—यू
मैटीरियालिस्ट—तुम
भौतिकवाद में
मरे जा रहे हो,
हम
आध्यात्मिक
लोग हैं! हम
इतने
आध्यात्मिक
हैं कि हम
पैदा भी नहीं
करते! हम खाते
हैं; खाना
आध्यात्मिक
काम है, पैदा
करना भौतिक
काम है! भोगना
आध्यात्मिक
काम है! श्रम? श्रम
आध्यात्मिक लोग
कभी नहीं करते,
हीन आत्माएं
श्रम करती
हैं! महात्मा
भोग करते हैं।
पूरा देश
महात्मा हो
गया है!
1962 में
चीन में अकाल
की हालत थी।
ब्रिटेन के
कुछ भले
मानुषों ने एक
बड़े जहाज पर
बहुत—सा सामान, बहुत—सा
भोजन, कपड़े,
दवाइयां
भरकर वहां
भेजे। हम अगर
होते तो चन्दन
तिलक लगाकर
फूल मालाएं
पहनाकर उस
जहाज की पूजा
करते, लेकिन
चीन ने उसको
वापस भेज दिया
और जहाज पर बड़े—बड़े
अक्षरों में
लिख दिया, हम
मर जाना पसंद
करेंगे, लेकिन
भीख स्वीकार
नहीं कर सकते।
शक
होता है कि
यहां कुछ जवान
लोग होंगे!
जवान
ही यह हिम्मत
कर सकता है कि
भूखे मरते देश
में,
और आया हो
भोजन बाहर से
और लिख दे
जहाज पर कि हम भूखों
मर सकते हैं, लेकिन भीख
नहीं मांग
सकते।
भूखा
मरना इतना
बुरा नहीं है, भीख
मांगना बहुत
बुरा है।
लेकिन जवानी
हो तो बुरा
लगे, भीतर
जवान खून हो
तो चोट लगे, अपमान हो।
हमारा अपमान
नहीं होता! हम
शांति से
अपमान को
झेलते चले
जाते हैं! हम
बड़े तटस्थ हैं,
अपमान को
झेलने में कुछ
भी हो जाये, हम आंख बंद
करके झेल लेते
हैं। यह तो
संतोष का, शांति
का लक्षण है
कि जो भी हो, उसको झेलते
रहो, बैठे
रहो चुपचाप और
झेलते रहो।
हजारों
साल से देश
दुख झेल—झेल
कर मर गया तो
कैसे हम
स्वीकार कर
लें कि देश के
पास जवान आदमी
हैं,
अथवा युवक
हैं। युवक देश
के पास नहीं
हैं।
और
इसलिए पहला
काम तथाकथित
युवकों के
लिए.. जो उम्र
से युवक
दिखायी पड़ते
हैं,
वह यह है कि
वह मानसिक
यौवन को पैदा
करने की देश
में चेष्टा
करें। वे शरीर
के यौवन को
मानकर तृप्त न
हो जायें।
आत्मिक यौवन,
स्प्रीचुअल
यंगनेस पैदा
करने का एक
आदोलन सारे
देश में चलना
चाहिए। हम
इससे राजी
नहीं होंगे कि
एक आदमी शकल
सूरत से जवान
दिखायी पड़ता है
तो हम जवान
मान लें। हम
इसकी फिक्र
करेंगे कि
हिन्दुस्तान
के पास जवान
आत्मा हो।
स्वामी
राम भारत के
बाहर यात्रा
में पहली दफा गये
थे। जिस जहाज
पर वे यात्रा
कर रहे थे, उस
पर एक बूढ़ा
जर्मन था, जिसकी
उम्र कोई 90 साल
होगी। उसके
सारे बाल सफेद
हो चुके थे, उसकी आंखों
में 90 साल की
स्मृति ने
गहराइयां भर
दी थीं, उसके
चेहरे पर
झूर्रियां
थीं लम्बे
अनुभवों की; लेकिन वह
जहाज के डैक
पर बैठकर चीनी
भाषा सीख रहा
था!
चीनी
भाषा सीखना
साधारण बात
नहीं है, क्योंकि
चीनी भाषा के
पास कोई
वर्णमाला
नहीं है, कोई
अ ब स नहीं
होता चीनी
भाषा के पास।
वह पिक्टोरियल
लैंग्वेज है,
उसके पास तो
चित्र हैं।
साधारण आदमी
को साधारण शान
के लिए कम से
कम पांच हजार
चित्रों का ज्ञान
चाहिए तो एक
लाख चित्रों
का ज्ञान हो, तब कोई आदमी
चीनी भाषा का
पंडित हो सकता
है। दस—पन्द्रह
वर्ष का श्रम
मांगती है
चीनी भाषा। 90
साल का बूढ़ा
सुबह से बैठकर
सांझ तक चीनी
भाषा सीख रहा
है!
रामतीर्थ
बेचैन हो गये।
यह आदमी पागल
है,
90 साल की उस
में चीनी भाषा
सीखने बैठा है,
कब सीख
पायेगा? आशा
नहीं कि मरने
के पहले सीख
जायेगा। और
अगर कोई दूर
की कल्पना भी
करे कि यह
आदमी जी जायेगा
दस—पन्द्रह
साल, सौ
साल पार कर
जायेगा, जो
कि भारतीय कभी
कल्पना नहीं
कर सकता कि सौ
साल पार कर
जायेगा। 35 साल
पार करना तो
मुश्किल हो
जाता है, सौ
कैसे पार
करोगे? लेकिन
समझ लें
भूल—चूक भगवान
की कि यह सौ
साल से पार
निकल जायेगा
तो भी फायदा
क्या है? जिस
भाषा को सीखने
में 15 वर्ष
खर्च हों, उसका
उपयोग भी तो
दस—पच्चीस
वर्ष करने का
मौका मिलना
चाहिए। सीखकर
भी फायदा क्या
होगा?
दो तीन
दिन देखकर
रामतीर्थ की
बेचैनी बढ़
गयी। वह का तो
आंख उठाकर भी
नहीं देखता था
कि कहां क्या
हो रहा है, वह
तो अपने सीखने
में लगा था।
तीसरे दिन
उन्होंने
जाकर उसे
हिलाया और कहा
कि महाशय, क्षमा
करिये, मैं
यह पूछता हूं
कि आप यह क्या
कर रहे हैं? इस उम्र में
चीनी भाषा
सीखने बैठे
हैं? कब
सीख पाइयेगा?
और सीख भी
लिया तो इसका
उपयोग कब
करियेगा? आपकी
उम्र क्या है?
तो उस
बूढ़े ने कहा, उम्र?
मैं काम में
इतना व्यस्त
रहा कि उम्र
का हिसाब रखने
का कुछ मौका
नहीं मिला।
उम्र अपना
हिसाब रखती
होगी। हमें
फुर्सत कहां
कि उम्र का
हिसाब रखें।
और फायदा क्या
है उम्र का
हिसाब रखने
में? मौत
जब आनी है, तब
आनी है। तुम
चाहे कितने
हिसाब रखो, कि कितने हो
गये, उससे
कोई फर्क पड़ने
वाला नहीं है।
मुझे फुर्सत
नहीं मिली
उम्र का हिसाब
रखने की, लेकिन
जरूर नब्बे तो
पार कर गया
हूं।
रामतीर्थ
ने कहा कि फिर
यह सीखकर क्या
फायदा? बूढ़े
हो। अब कब सीख
पाओगे? उस
बूढ़े आदमी ने
क्या कहा? उसने
कहा, मरने
का मुझे ख्याल
नहीं आता, जब
तक मैं सीख
रहा हूं। जब
सीखना खत्म हो
जाएगा तो
सोचूंगा मरने
की बात। अभी
तो सीखने में
जिंदगी लगा
रहा हूं अभी
तो मैं बच्चा
हूं क्योंकि
मैं सीख रहा
हूं। बच्चा
सीखता है।
लेकिन उस बूढ़े
ने कहा कि
चूंकि मैं सीख
रहा हूं इसलिए
बच्चा हूं।
यह
आध्यात्मिक
जगत में
परिवर्तन हो
गया।
उसने
कहा,
चूंकि मैं
सीख रहा हूं
और अभी सीख
नहीं पाया, अभी तो
जिंदगी की
पाठशाला में
प्रवेश किया
है। अभी तो
बच्चा हूं अभी
से मरने की
कैसे सोचें? जब सीख
लूंगा, तब
सोचूंगा मरने
की बात।
फिर उस
बूढ़े ने कहा, मौत
हर रोज सामने
खड़ी है। जिस
दिन पैदा हुआ
था, उस दिन
उतनी ही सामने
खड़ी थी,
जितनी अभी
खड़ी है। अगर
मौत से डर
जाता तो उसी दिन
सीखना बंद कर
देता। सीखने
का क्या फायदा
नहीं था? मौत
आ सकती है कल, लेकिन 90 साल का
अनुभव मेरा
कहता है कि
मैं 90 साल मौत
को जीता हूं।
रोज मौत का डर
रहा है कि कल आ
जायेगी, लेकिन
आयी नहीं। 90
साल तक मौत
नहीं आयी तो
कल भी कैसे
आयेगी? 90
साल का अनुभव
कहता है कि अब
तक नहीं आयी
तो कल भी कैसे
आ पायेगी?
अनुभब करे
मानता हूं। 90
साल तक डर
फिजूल था। वह
बूढ़ा पूछने
लगा रामतीर्थ
से आपकी उम्र
क्या है?
रामतीर्थ
तो घबरा ही
गये थे उसकी
बात सुनकर। उनकी
उम्र केवल 30
वर्ष थी।
उस
बूढ़े ने कहा, तुम्हें
देखकर, तुम्हारे
भय को देखकर
मैं कह सकता
हूं, भारत
बूढ़ा क्यों हो
गया। तीस साल
का आदमी मौत
की सोच रहा है!
मर गया। मौत
की सोचता कोई
तब है, जब
मर जाता है।
तीस साल का
आदमी सोचता है
कि सीखने से
क्या फायदा, मौत करीब आ
रही है! यह
आदमी जवान
नहीं रहा। उस
बूढ़े ने कहां, मैं समझ गया
कि भारत बूढा
क्यों हो गया
है? इन्हीं
गलत धारणाओं
के कारण।
भारत
को एक युवा
अध्यात्म
चाहिए। युवा
अध्यात्म।
बूढा
अध्यात्म
हमारे पास
बहुत है।
हमारे पास ऐसा
अध्यात्म है, जो
बूढ़ा करने की
कीमिया है, केमिस्ट्री
है। हमारे पास
ऐसी
आध्यात्मिक तरकीबें
हैं कि किसी
भी जवान के
आसपास उन
तरकीबों का
उपयोग करो, वह फौरन
बूढ़ा हो
जायगा। हमने
बूढ़े होने का
राज खोज लिया
है, सीक्रेट
खोज लिया है।
बूढ़े होने का
क्या राज है?
बूढ़ा
होने का राज
है : जीवन पर
ध्यान मत रखो, मौत
पर ध्यान रखो।
यह पहला
सीक्रेट है।
जिंदगी पर ध्यान
मत देना, ध्यान
रखना मौत पर।
जिंदगी की खोज
मत करना, खोज
करना मोक्ष
की। इस पृथ्वी
की फिक्र मत
करना, फिक्र
करना परलोक की,
स्वर्ग की।
यह बूढ़ा होने
का पहला
सीक्रेट है। जिन—जिन
को बूढ़ा होना
हो, इसे
नोट कर लें।
कभी जिंदगी की
तरफ मत देखना।
अगर फूल खिल
रहा हो तो तुम
खिलते फूल की
तरफ मत देखना,
तुम बैठकर
सोचना कि जल्द
ही यह मुरझा
जायेगा। यह
बूढ़े होने की
तरकीब है।
अगर एक
गुलाब के पौधे
के पास खड़े
हों तो फूलों
की गिनती मत
करना, कांटों
की गिनती करना
की सब असार है,
कांटे ही
कांटे पैदा
होते हैं। एक
फूल खिलता है,
मुश्किल से
हजार कांटों
में। हजार
कांटों की गिनती
कर लेना। उससे
जिंदगी असार
सिद्ध करने में
बड़ी आसानी
मिलेगी।
अगर दिन
और रात को
देखो, तो कभी
मत देखना कि
दो दिन के बीच
एक रात है। हमेशा
ऐसा देखना कि
दो रातों के
बीच में एक
छोटा—सा दिन
है।
बूढ़े
होने की तरकीब
कह रहा हूं।
जिंदगी में जहां
अंधेरे हों, उनको
मैग्रीफाई
करना। बड़ा
दिखाने वाला
कौन अपने पास
रखना, जहां
अंधेरा दिखाई
पड़े, फौरन
मैग्रीफाई
ग्लास लगा
देना, बड़ा
भारी अंधेरा
देखना है। और
जहां रोशनी
दिखाई पड़े, वहां छोटा
कर देने वाला
ग्लास अपने
पास रखना, जो
जल्दी से
रोशनी को छोटा
कर दे। जहां
फूल दिखाई पड़े,
गिनती मत
करना और फौरन
सोच लेना क्या
रखा है फूल
में? क्षण
भर को है, अभी
खिला है, अभी
मुरझा
जायेगा। और
कांटा स्थायी
है, शाश्वत
है, सनातन
है, न कभी
खिलता है, न
कभी मुरझाता
है। हमेशा है।
इन बातों पर
ध्यान देने से
आदमी बहुत
जल्दी बूढ़ा हो
जाता है।
मैंने
सुना है कि
न्यूयार्क की
सौवीं मंजिल से
एक आदमी गिर
रहा था। सौवी
मंजिल से वह
आदमी गिर रहा था।
जब वह पचासवीं
मंजिल के पास
से गुजर रहा था, तो
खिड़की से एक
आदमी ने
चिल्लाकर
उससे पूछा कि
दोस्त क्या
हाल है? उसने
कहा कि अभी तक
तो सब ठीक है।
यह आदमी गड़बड़ आदमी
है। यह आदमी
जवान होने का
ढंग जानता है।
लेकिन
यह ठीक नहीं
है। उस आदमी
ने कहा, अभी
तक सब ठीक है, अभी जमीन तक
पहुंचे नहीं
हैं, जब
पहुंचेंगे तब
देखेंगे। अभी
पचासवीं खिड़की
तक सब ठीक चल
रहा है। ओके।
यह आदमी जवान
होने की तरकीब
जानता है।
लेकिन
हमको ऐसी
तरकीबें कभी
नहीं सीखनी
चाहिए। हमें
तो बूढ़े होने
के रास्ते पर
चलना चाहिए।
बूढ़ा होने का
रास्ता—कभी
जिंदगी में जो
सुन्दर हो, उसकी
तरफ ध्यान मत
देना, जो
असुन्दर हो
उसकी खोज—बीन
करना। और कोई
आदमी आकर आपको
कहे कि फलां
आदमी बहुत बड़ा
संगीतज्ञ है,
कितनी
अदभुत
बांसुरी
बजाता है। तो
फौरन उसको कहना
कि वह बांसुरी
क्या खाक
बजायेगा। वह
आदमी चोर है, बेईमान है, वह बांसुरी
कैसे बजा सकता
है। आप धोखे
में पड़ गये
होंगे, वह
आदमी पका
बेईमान है, वह बांसुरी
नहीं बजा
सकता। यह बूढ़े
होने की तरकीब
है।
अगर
जवान आदमी उस
गांव में
जायेगा और कोई
उससे कहेगा, उस
आदमी को जानते
हो? वह बड़ा
चोर, बेईमान
है? तो वह
जवान आदमी
कहेगा कि यह
कैसे हो सकता
है कि वह चोर
है, बेईमान
है। मैंने उसे
बड़ी सुन्दर
बांसुरी बजाते
देखा है। इतनी
अदभुत
बांसुरी जो
बजाता है, वह
चोर नहीं हो
सकता।
बूढे
का जिंदगी को
देखने का ढंग
है—दुखद को देखना, अंधेरे
को देखना, मौत
को देखना, कांटे
को देखना।
हिंदुस्तान
हजारों साल से
दुखद को देख
रहा है। जन्म
भी दुख है, जीवन
भी दुख है, मरण
भी दुख है!
प्रियजन का
बिछुड़ना दुख
है, अप्रियजन
का मिलना दुख
है, सब दुख
है! मां के पेट
का दुख झेलो, फिर जन्म का
दुख झेलो, फिर
बड़े होने का
दुख झेलो, फिर
जिंदगी में
गृहस्थी के
चक्कर झेलो, फिर बुढ़ापे
की बिमारियां
झेली, फिर
मौत झेलो, फिर
जलने की अस
में अंतिम
पीड़ा झेलो!
ऐसे जीवन की
एक दुख की
लम्बी कथा है।
बूढ़ा होना हो
तो इसका स्मरण
करना चाहिए।
बूढ़ा
होना है तो
बगीचे में
नहीं जाना
चाहिए, हमेशा
मरघट पर बैठकर
ध्यान करना
चाहिए, जहां
आदमी जलाये
जाते हों। सुंदर
से बचना चाहिए,
असुंदर को
देखना चाहिए।
विकृत को
देखना चाहिए,
स्वस्थ को
छोडना चाहिए।
सुख मिले तो
कहना चाहिए
क्षणभंगुर है,
अभी खत्म हो
जायेगा। दुख
मिले तो छाती
से लगाकर बैठ
जाना चाहिए।
और सदा आंखें रखनी चाहिए
जीवन के उस
पार, कभी
इस जीवन पर
नहीं।
इस
जीवन को समझना
चाहिए एक
वेटिंग रूम
है।
जैसे
बड़ौदा के
स्टेशन पर एक
वेटिग रूम हो, उसमें
बैठते हैं आप
थोड़ी देर।
वहीं छिलके फेंक
रहे हैं वहीं
पान थूक रहे
हैं, क्योंकि
हमको क्या
करना है, अभी
थोड़ी देर में
हमारी ट्रेन
आयेगी और फिर
हम चले
जायेंगे।
तुमसे पहले जो
बैठा था, वह
भी वेटिंग रूम
के साथ यही
सदव्यवहार कर
रहा था, तुम
भी वही
सदव्यवहार
करो, तुम्हारे
बाद वाला भी
वही करेगा।
वेटिंग
रूम गंदगी का
एक घर बन
जायेगा, क्योंकि
किसी को क्या
मतलब है। हमको
थोड़ी देर रुकना
है तो आंख बंद
करके राम—राम
जप के गुजार देंगे।
अभी ट्रेन आती
है, चली
जायेगी।
जिंदगी
के साथ जिन
लोगों की
आंखें
मौत के पार
लगी हैं उनका
व्यवहार
वेटिंग रूम का
व्यवहार है।
वे कहते हैं, क्षण
भर की तो
जिंदगी है; अभी जाना है,
क्या करना
है हमें।
हिंदुस्तान
के संत—महात्मा
यही समझा रहे
हैं लोगों को—
क्षणभंगुर है
जिंदगी, इसके
मायामोह में
मत पड़ना।
ध्यान वहां
रखना आगे, मौत
के बाद। इस
छाया में सारा
देश बूढा हो
गया है।
अगर
जवान होना है
तो जिंदगी को
देखना, मौत
को लात मार
देना। मौत से
क्या प्रयोजन
है? जब तक
जिंदा हैं, तब तक जिंदा
हैं। तब तक
मौत नहीं है।
सुकरात मर रहा
था। ठीक मरते
वक्त जब उसके
लिए बाहर जहर
घोला जा रहा
था। वह जहर
घोलने वाला
धीरे—धीरे घोल
रहा है। वह सोचता
है, जितने
देर सुकरात और
जिंदा रह ले, अच्छा है।
जितनी देर लग
जाय।
वक्त
हो गया है, जहर
आना चाहिए।
सुकरात उठकर
बाहर जाता है
और पूछता है
मित्र, कितनी
देर और?
उस आदमी
ने कहा, तुम
पागल हो गये
हो सुकरात, मैं देर लगा
रहा हूं इसलिए
कि थोड़ी देर
तुम और रह लो, थोड़ी देर
सांस
तुम्हारे
भीतर और आ जाय,
थोड़ी देर
सूरज की रोशनी
और देख लो, थोड़ी
देर खिलते
फूलों को, आकाश
को, मित्रों
की आंखों को
और झांक लो, बस थोड़ी देर
और। नदी भी समुद्र
में गिरने के
पहले पीछे
लौटकर देखती है।
तुम थोड़ी देर
लौटकर देख लो।
मैं देर लगाता
हूं तुम जल्दी
क्यों कर रहे
हो? तुम
इतनी उतावली
क्यों किये जा
रहे हो?
सुकरात
ने कहा, मैं
जल्दी क्यों
किये जा रहा
हूं! मेरे
प्राण तड़पे
जा रहे हैं
मौत को जानने
को। नयी चीज
को जानने की
मेरी हमेशा से
इच्छा रही है।
मौत बहुत बड़ी
नयी चीज है; सोचता हूं
देखूं क्या
चीज है!
यह
आदमी जवान है, यह
का नहीं है।
मौत को भी
देखने के लिए
इसकी आतुरता
है। मित्र
कहने लगा कि
थोड़ी देर और
जी लो।
सुकरात
ने कहा, जब तक
मैं जिन्दा
हूं मैं यह
देखना चाहता
हूं कि जहर
पीने से मरता
हूं कि जिंदा
रहता हूं।
लोगों ने कहा
कि अगर मर गये
तो?
उसने
कहा कि यदि मर
ही गये तो
फिक्र ही खअ
हो गयी। चिंता
का कोई कारण न
रहा और जब तक
जिंदा हूं जिंदा
हूं।। जब मर
ही गये, चिंता
की कोई बात
नहीं, खत्म
हो गयी बात।
लेकिन जब तक
मैं जिंदा हूं
जिंदा हूं तब
तक मैं मरा
हुआ नहीं हूं
और पहले से
क्यों मर जाऊं?
मित्र सब
डरे हुए बैठे
हैं पास, रो
रहे हैं, जहर
की घबराहट आ
रही है।
वह
सुकरात
प्रसन्न है!
वह कहता है, जब
तक मैं जिन्दा
हूं तब तक मैं
जिंदा हूं तब
तक जिंदगी को
जानूं। और
सोचता हूं कि
शायद मौत भी
जिंदगी में एक
घटना है।
सुकरात
को बूढ़ा नहीं
किया जा सकता।
मौत सामने खड़ी
हो जाय तो भी
यह बूढ़ा नहीं
होता।
और
हम?..
जिंदगी
सामने खड़ी
रहती है और
बूढ़े हो जाते
हैं। यह रुख
भारत में युवा
मस्तिष्क को
पैदा नहीं
होने देता है।
जीवन का
विषादपूर्ण
चित्र फाड़कर
फेंक दो। और
उसमें जिंदगी
के दुख और
जिंदगी के
विषाद को
बढ़ा—चढ़ा कर
बतलाते हैं; वे जिंदगी
के दुश्मन हैं,
देश में
युवा को पैदा
होने देने में
दुश्मन हैं।
वह युवक को
पैदा होने के
पहले का बना
देते हैं।
अभी
मैं कुछ दिन
पहले भावनगर
में था। एक
छोटी सी लड़की
ने,
तेरह चौदह
साल उम्र थी, उसने मुझे
आकर कहा कि
मुझे आवागमन
से छुटकारे का
रास्ता बताइए!
तेरह—चौदह साल
की लड़की कहती है
कि आवागमन से
कैसे छूटूं
फिर इस मुल्क
में कैसे
जवानी पैदा
होगी? तेरह—चौदह
साल की लड़की
बूढ़ी हो गयी!
वह कहती है, मैं मुक्त
कैसे होऊं? जीवन से छूटने
का विचार करने
लगी है!
अभी
जीवन के द्वार
पर थपकी भी
नहीं दी, अभी
जीवन की खिड़की
भी नहीं खुली,
अभी जीवन की
वीणा भी नहीं
बजी, अभी
जीवन के फूल
भी नहीं खिले।
वह द्वार के
बाहर ही पूछने
लगी, छुटकारा,
मुक्ति, मोक्ष कैसे
मिलेगा?
जहर
डाल दिया होगा
किसी ने उसके
दिमाग में।
मां—बाप ने, गुरुओं
ने, शिक्षकों
ने उसको पायजन
बना दिया।
उसकी जवानी
पैदा नहीं
होगी अब। अब
वह बूढ़ी ही
जियेगी। उसका
विवाह भी होगा
तो वह एक बूढ़ी
औरत का विवाह है,
जवान लड़की
का नहीं। उसके
घर के द्वार
पर शहनाइयां
बजेगी तो एक
बूढ़ी औरत
सुनेगी उन शहनाइयों
को, एक
जवान लड़की
नहीं। उन
शहनाइयों से'
भी मौत की
आवाज सुनाई
पड़ेगी, जीवन
का संगीत नहीं?
वह बूढ़ी हो
गयी!
पहली
बात,
अगर बूढ़ा
होना है तो
मौत पर ध्यान
रखना, जीवन
पर नहीं।
और अगर
जवान होना है
तो मौत को लात
मार देना। वह
जब आयेगी, तब
मुकाबला कर
लेंगे। जब तक
जीते हैं, तब
तक पूरी तरह
से जियेंगे, उसकी
टोटलिटी में
जीवन के रस को
खोजेंगे, जीवन
के आनन्द को
खोजेंगे।
रवीन्द्रनाथ
मर रहे थे। एक
बूढे मित्र
आये और उन्होंने
कहा,
अब मरते
वक्त तो भगवान
से प्रार्थना
कर लो कि अब
दोबारा जीवन
में न भेजे।
अब आखिरी वक्त
प्रार्थना कर
लो कि अब
आवागमन से
छुटकारा हो जाये।
अब इस ख्वाब, इस गंदगी के
चक्कर में न
आना पड़े।
रवीन्द्रनाथ
ने कहा, क्या
कहते हैं आप? मैं और यह
प्रार्थना
करूं? मैं
तो मन ही मन यह
कह रहा हूं कि
हे प्रभु, अगर
तूने मुझे
योग्य पाया हो,
तो बार—बार
तेरी पृथ्वी
पर भेज देना।
बड़ी रंगीन थी,
बड़ी सुन्दर
थी; ऐसे
फूल नहीं देखे,
ऐसा चांद, ऐसे तारे, ऐसी आंखें , ऐसा सुन्दर
चेहरा! मैं
दंग रह गया
हूं मैं आनन्द
से भर गया
हूं। अगर तूने
मुझे योग्य
पाया हो तो हे
परमात्मा, बार—बार
इस दूनिया में
मुझे भेज
देना। मैं तो यह
प्रार्थना कर
रहा हूं मैं
तो डरा हुआ
हूं कि कहीं
मैं अपात्र न
सिद्ध हो जाऊं
कि दोबारा न
भेजा जाऊं।
रवीन्द्रनाथ
को बूढ़ा बनाना
बहुत मुश्किल
है। शरीर बूढ़ा
हो जायेगा।
लेकिन इस आदमी
के भीतर जो
आत्मा है, वह
जवान है, वह
जीवन की मांग
कर रही है।
रवीन्द्रनाथ
ने मरने के
कुछ ही घड़ी
पहले, कुछ
कड़ियां
लिखवायी।
उनमें दो
कड़ियां हैं। देखा
तो मैं नाचने
लगा! क्या
प्यारी बात
कही है!
किसी
मित्र ने
रवीन्द्रनाथ
को कहा कि तुम
तो महाकवि हो, तुमने
छह हजार गीत
लिखे, जो
संगीत में
बांधे जा सकते
है! शेली को
लोग पश्चिम
में कहते हैं,
उसके तो
सिर्फ दो हजार
गीत संगीत में
बंध सकते हैं,
तुम्हारे
तो छह हजार
गीत! तुमसे
बड़ा कोई कवि दुनिया
में कभी नहीं
हुआ।
रवीन्द्रनाथ
की आंखों से
आंसू बहने
लगे। रवीन्द्रनाथ
ने कहा क्या
कहते हो, मैं
तो भगवान से
कह रहा हूं कि
अभी मैंने गीत
गाये कहां थे,
अभी तो साज
बिठा पाया था
और विदा का
क्षण आ गया।
अभी तो
ठोक—पीटकर तंबूरा
ठीक किया था
सिर्फ, अभी
मैंने गीत
गाया ही कहां
था। अभी तो
मैंने तंबूरे
की तैयारी की
थी, ठोक—पीटकर
तैयार हो गया
था, साज
बैठ गया था।
अब मैं गाने
की चेष्टा
करता और यह तो
विदा का क्षण
आ गया। और
मेरे तंबूरे
के ठोकने—पीटने
से लोगों ने
समझ लिया है
कि यह महाकवि
हो गया है!
भगवान से कह
रहा हूं कि ' का साज
तैयार हो गया
और मुझे विदा
कर रहे हो? अब
तो मौका आया
था कि मैं गीत
गाऊं। मरते
रवीन्द्रनाथ
कहते हैं कि
अभी तो मौका
आया है कि मैं
गीत गाऊं!
वह यह
कहे रहे थे कि
अभी मौका आया
था कि मैं
जवान हुआ था।
वह यह कह रहे
हैं कि अब तो
मौका आया था
कि सारी
तैयारी हो गयी
थी और मुझे
विदा कर रहे
हो। बूढ़ा आदमी
यह कह सकता है
तो फिर वह
आदमी बूढ़ा
नहीं है।
अगर
जवान होना है
तो जिंदगी को
उसको सामने से
पकड़ लेना
पड़ेगा। एक—एक
क्षण जिन्दगी
भागी जा रही
है,
उसे मुट्ठी
में पकड़ लेना
पड़ेगा, उसे
जीने की पूरी
चेष्टा करनी
पड़ेगी। और जी
केवल वे ही
सकते हैं जो
उसमें रस का
दर्शन करते हैं।
और वहां दोनों
चीजें है
जिन्दगी के
रास्ते पर, कांटे भी
हैं और फूल
भी। बूढ़ा होना
हो वे कांटों
की गिनती कर
लें। जिन्हें
जवान होना हो
वे फूल को गिन
लें।
और मैं
कहता हूं कि
करोड़ कांटे भी
फूल की एक पंखुड़ी
के मुकाबले कम
हैं। एक गुलाब
की छोटी—सी पंखुड़ी
इतना बड़ा
मिरेकल है, इतना
बड़ा चमत्कार
है कि करोड़ों
कांटे इकट्ठे कर
लो, उससे
और कुछ सिद्ध
नहीं होता
उससे सिर्फ
इतना ही सिद्ध
होता है कि
बड़ी अदभुत है
यह दुनिया।
जहां इतने
कांटे हैं, वहां मखमल
जैसा गुलाब का
फूल पैदा हो
सका है। उससे
सिर्फ इतना
सिद्ध होता है
और कुछ भी
सिद्ध नहीं
होता। लेकिन
यह देखने कि
दृष्टि पर निर्भर
है कि हम कैसे
देखते हैं।
पहली
बात,
जिन्दगी पर
ध्यान चाहिए।
मेडीटेशन आन
लाइफ, मौत
पर नहीं। तो
आदमी जवान से
जवान होता चला
जाता है।
बुढ़ापे के
अंतिम क्षण तक
मौत द्वार पर
भी खड़ी हो तो
वैसा आदमी
जवान होता है।
दूसरी
बात,
जो आदमी
जीवन में
सुंदर को
देखता है, जो
आदमी जवान है;
वह आदमी
असुंदर को
मिटाने के लिए
लड़ता भी है। जवानी
फिर देखती
नहीं, जवानी
लड़ती भी है।
जवानी
स्पेक्टेटर
नहीं, जवानी
तमाशबीन है कि
तमाशा देख रहे
हैं खड़े होकर।
जवानी
का मतलब है
जीना, तमाशगीरी
नहीं।
जवानी
का मतलब है
सृजन।
जवानी
का मतलब है
सम्मिलित
होना, पार्टिसिपेशन।
दूसरा
सूत्र है।
खड़े
होकर रास्ते
के किनारे अगर
देखते हो
जवानी की
यात्रा को, तुम
तमाशबीन हो; तुम जवान
नहीं हो, एक
निक्रिय
देखने वाले।
निष्क्रिय
देखने वाला
आदमी जवान
नहीं हो सकता।
जवान
सम्मिलित होता
है जीवन में।
और जिस
आदमी को
सौंन्दर्य से
प्रेम है, जिस
आदमी को जीवन
का आल्हाद है,
वह जीवन को बनाने
के लिए श्रम
करता है, सुन्दर
बनाने के लिए
श्रम करता है।
वह जीवन की
कुरूपता से
लड़ता है, वह
जीवन को कुरूप
करने वालों के
खिलाफ विद्रोह
करता है।
कितनी
कुरूपता है
समाज में और
जिन्दगी में?
अगर
तुम्हें
प्रेम है
सौंदर्य से..
तो एक युवक एक
सुंदर लड़की की
तस्वीर लेकर
बैठ जाये और
पूजा करने लगे? एक
युवती एक
सुंदर युवक की
तस्वीर लेकर
बैठ जाय और
कविताएं करने
लगे? इतने
से जवानी का
काम पूरा नहीं
हो जाता?
सौंदर्य
से प्रेम का
मतलब है? सौंदर्य
को पैदा करो, क्रियेट, करो; जिन्दगी
को सुंदर
बनाओ। आनंद की
उपलब्धि और
आनंद की आकांक्षा
और अनुभूति को
बिखराओ।
फूलों को चाहते
हो तो फूलों
को पैदा करने
की चेष्टा में
संलग्र हो
जाओ। जैसा तुम
चाहते हो
जिन्दगी को वैसी
बनाओ।
जवानी
मांग करती है
कि तुम कुछ
करो,
खड़े होकर
देखते मत रहो।
हिन्दुस्तान
की जवानी
तमाशबीन है।
हम ऐसे रहते
हैं खड़े होकर
जीवन में, जैसे
कोई जुलूस जा
रहा है। वैसे
रुके हैं, देख
रहे हैं; कुछ
भी हो रहा है!
शोषण हो रहा
है, जवान
खड़ा हुआ देख
रहा है!
बेवकूफियां
हो रही हैं, जवान खड़ा
देख रहा है!
बुद्धिहीन
लोग देश को नेतृत्व
दे रहे हैं, जवान खड़ा
देख रहा है।
जड़ता
धर्मगुरु
बनकर बैठी है,
जवान खड़ा
हुआ देख रहा
है! सारे
मुल्क के
हितों को नष्ट
किये जा रहे
हैं, जवान
खड़ा हुआ देख
रहा है! यह
कैसी जवानी है?
कुरूपता
से लड़ना
पड़ेगा, असौंदर्य
से लड़ना पड़ेगा,
शोषण से
लड़ना पड़ेगा, जिन्दगी को
विकृत करने
वाले तत्वों
से लड़ना पड़ेगा।
जो आदमी जवान
होता है, वह
सागर की लहरों
और तूफानों
में जीता है, फिर आकाश
में उसकी उड़ान
होनी शुरू
होती है। लेकिन
लड़ोगे तुम? व्यक्तिगत
लड़ाई ही नहीं
हैं यह, सामूहिक
लड़ाई की बात
है। कोई फाइट
नहीं!
और
बिना फाइट के, बिना
लड़ाई के, जवानी
निखरती नहीं।
जवानी सदा
लड़ाई के बिना
निखरती नहीं।
जवानी सदा
लड़ती है और
निखरती है, जितनी लड़ती
है, उतनी
निखरती है।
सुंदर के लिए,
सत्य के लिए
जवानी जितनी
लड़ती है, उतनी
निखरती है।
लेकिन क्या
लड़ोगे?
तुम्हारे
पिता आ
जायेंगे, तुम्हारी
गर्दन में
रस्सी डालकर
कहेंगे, इस
लड़की से
विवाह करो और
तुम घोड़े पर
बैठ जाओगे!
तुम जवान हो? और तुम्हारे
बाप जाकर
कहेंगे कि दस
हजार रुपये
लेंगे इस लड़की
के पिता से और
तुम मजे से मन
में गिनती
करोगे कि दस
हजार में
स्कूटर
खरीदें कि
क्या करें? तुम जवान हो?
ऐसी जवानी
दो कौड़ी की
जवानी है।
जिस
लड़की को तुमने
कभी चाहा नहीं, जिस
लड़की को तुमने
कभी प्रेम
नहीं किया, जिस लड़की को
तुमने कभी छुआ
नहीं, उस
लड़की से विवाह
करने के लिए
तुम पैसे के
लिए राजी हो
रहे हो? समाज
की व्यवस्था
के लिए राजी
हो रहे हो? तो
तुम जवान नहीं
हो। तुम्हारी
जिन्दगी में कभी
भी वे फूल
नहीं खिलेंगे,
जो युवा
मस्तिष्क
छूता है। तुम हो
ही नहीं; तुम
एक मिट्टी के
लौदें हो, जिसको
कहीं भी
सरकाया जा रहा
हो, कहीं
पर भी लिया जा
रहा हो। कुछ
भी नहीं तुम्हारे
मन में, न
संदेह है, न
जिज्ञासा है,
न संघर्ष है,
न पूछ है, न इन्क्वायरी
है कि यह क्या
हो रहा है! कुछ
भी हो रहा है, हम देख रहे
हैं खड़े होकर!
नहीं, ऐसे
जवानी नहीं
पैदा होती है।
इसलिए
दूसरा सूत्र
तुमसे कहता
हूं और वह यह
कि जवानी
संघर्ष से
पैदा होती है।
संघर्ष
गलत के लिए भी
हो सकता है और
तब जवानी कुरूप
हो जाती है।
संघर्ष बुरे
के लिए भी हो
सकता है, तब
जवानी विकृत
हो जाती है।
संघर्ष अधूरे
की लिए भी हो
सकता है, तब
जवानी
आत्मघात कर
लेती है।
लेकिन
संघर्ष जब
सत्य के लिए, सुन्दर
के लिए, श्रेष्ठ
के लिए होता
है, संघर्ष
जब परमात्मा
के लिए होता
है, संघर्ष
जब जीवन के
लिए होता है; तब जवानी
सुन्दर, स्वस्थ,
सत्य होती
चली जाती है।
हम
जिसके लिए
लड़ते हैं, अंततः
वही हम हो
जाते हैं।
लड़ो
सुन्दर के लिए
और तुम सुन्दर
हो जाओगे। लड़ो
सत्य के लिए
और तुम सत्य
हो जाओगे। लड़ो
श्रेष्ठ के
लिए तुम
श्रेष्ठ हो
जाओगे। और
मरो—सड़ो
तुम—खड़े—खड़े
सडोगे और मर
जाओगे और कुछ
भी नहीं होओगे।
जिंदगी
संघर्ष है और
संघर्ष से ही
पैदा होती है।
जैसा हम
संघर्ष करते
हैं,
वैसे ही हो
जाते हैं।
हिन्दुस्तान
में कोई लड़ाई
नहीं है, कोई
फाइट नहीं है!
सब कुछ हो रहा
है, अजीब
हो रहा है। हम
सब हैं, देखते
हैं, सब हो
रहा है और
होने दे रहे
हैं! अगर
हिन्दुस्तान
की जवानी खड़ी
हो जाय, तो
हिन्दुस्तान
में फिर ये सब
नासमझियां
नहीं हो सकती
हैं, जो हो
रही हैं। एक
आवाज में टूट
जायेंगी।
क्योंकि जवान
नहीं है, ' कुछ
भी हो रहा है।
मैं यह दूसरी
बात कहता हूं।
लड़ाई के मौके
खोजना सत्य के
लिए, ईमानदारी
के लिए।
अगर
अभी न लड़
सकोगे तो
बुढ़ापे में
कभी नहीं लड़ सकोगे।
अभी तो मौका
है कि ताकत है, अभी
मौका है कि
शक्ति है, अभी
मौका है कि
अनुभव ने
तुम्हें
बेईमान नहीं बनाया
है। अभी तुम
निर्दोष हो, अभी तुम
सकते हो, अभी
तुम्हारे
भीतर आवाज उठ
सकती है, यह
गलत है।
जैसे—जैसे
उम्र बढ़ेगी, अनुभव
बढ़ेगा
चालाकी
बढ़ेगी।
अनुभव
से ज्ञान नहीं
बढ़ता है, सिर्फ
कनिंगनेस
बढ़ती है, चालाकी
बढ़ती है।
अनुभवी
आदमी चालाक हो
जाता है, उसकी
लड़ाई कमजोर हो
जाती है, वह
अपना हित
देखने लगता है
हमें क्या
मतलब है, अपनी
फिक्र करो, इतनी बड़ी
दुनिया के
झंझट में मत
पड़ो।
जवान
आदमी जूझ सकता
है,
अभी उसे कुछ
पता नहीं। अभी
उसे अनुभव नहीं
है चालाकियों
का।
इसके
पहले कि
चालाकियों
में तुम
दीक्षित हो जाओ
और तुम्हारे
उपकुलपति और
तुम्हारे
शिक्षक और? मां—बाप
दीक्षांत
समारोह में
तुम्हें
चालाकियों के
सर्टिफिकेट
देंगे, उसके
पहले लड़ना।
शायद लडाई
तुम्हारी रहे,
तो तुम
चालाकियों
में नहीं, जीवन
के अनुभव में
दीक्षित हो
जाओ। और शायद
लड़ाई तुम्हारी
जारी रहे, वह
जो छिपी है
भीतर आत्मा, वह निखर
जाये, वह
प्रकट हो
जाये। और जैसे
आदमी अपने
भीतर छिपे हुए
का पूरा अनुभव
करता है, उसी
दिन पूरे
अर्थों में
जीवित होता
है।
और मैं
कहता हूं कि
जो आदमी एक
क्षण को भी
पूरे अर्थों में
जीवन का रस
जान लेता है, उसकी
फिर कभी
मृत्यु कभी
नहीं होती। वह
अमृत से
संबंधित हो
जाता है।
युवा
होना अमृत से
संबंधित होने
का मार्ग है। युवा
होना आत्मा की
खोज है। युवा
होना परमात्मा
के मंदिर पर
प्रार्थना
है।
'युवक
कौन'
बडौदा
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