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बुधवार, 4 दिसंबर 2013

जरथुस्‍थ--नाचता गाता मसीहा--प्रवचन-26

स्वास्थ्य— लाभ करनेवाला—छब्‍बीसवां-प्रवचन


प्यारे ओशो,  

एक प्रात: अपनी गुफ़ा में अपनी वापसी के थोड़ी देर बाद ही जरमुस्त्र सात दिनों की एक अवधि से गुजरते हैं जब वह मृतवत हैं। जब वह अंतत: अपने—आप में लौटते हैं वह पाते हैं कि वह फलों और मधुरगंधी जड़ी— बूटियों से घिरे हुए हैं जो उनके लिए उनके जानवरों द्वारा लायी गयी हैं। उन्हें जगा हुआ देखकर उनके जानवर जरमुस्त्र से पूछते हैं कि क्या वे अब बाहर दुनिया में कदम नहीं रखेगे जो उनकी प्रतीक्षा कर रही है :


'हवा भारी सुवास से बोझिल है जो आपकी अभीप्सा करती है और सारे नदी— नाले आपके पीछे— पीछे दौड़ना चाहेगे ' वे उनसे कहते हैं..
'क्योंकि देखो हे जरथुस्त्र! तुम्हारे नये गीतों के लिए नयी वीणाओं की जरूरत है। '

......ऐसा जरमुस्त्र ने कहा।

प्राचीन साहित्य में बहुत सी सुंदर दृष्टात—कथाएं हैं। लोगों ने उनका आनंद लिया है लेकिन कभी—कभार ही उनको समझा है। दृष्टात—कथा कुछ कविता जैसी बात है; वह प्रतीकात्मक ज्यादा है। व्यक्ति को गहरे टटोलना पड़ता है उसमें छिपे हुए 'खजाने को पाने के लिए। ऊपरी तौर से वह केवल एक कहानी है और ऐसा लगता है कि वह केवल मनोरंजन के लिए है, लेकिन यह सच नहीं है।
एक प्रात: अपनी गुफा में अपनी वापसी के थोड़ी देर बाद ही जरमुस्त्र सात दिनों की एक अवधि से गुजरते हैं जब वह मृतवत हैं)। दृष्टात—कथाओं में हर चीज को खोजना पड़ता है, क्योंकि व्यक्ति को कुछ पता नहीं होता कि तात्पर्य को उसके शब्दों में कहां छिपाकर रखा गया है। उदाहरण के लिए : जरथुस्त्र सात दिन की एक अवधि से गुजरते हैं। सात दिन प्रतीकात्मक और अर्थपूर्ण हैं; वे मानव चेतना के सात तलों के प्रतीक हैं। शताब्दियों से मानवता की तथाकथित भीड़ ने केवल एक तल को जाना है, जिसमें हम जीते हैं — तथाकथित चेतना।
यह केवल इस शताब्दी में जाकर पश्चिम में था कि सिग्मंड फ्रायड और उसके सहकर्मियों ने एक बहुत स्तब्ध करने वाली अचेतन मन की अवधारणा पेश की — क्योंकि वह सपनों पर, सम्मोहन पर, विश्लेषण पर काम कर रहा था, और उसे मनुष्य के भीतर एक विशाल अचेतन क्षेत्र मिला, जिसका उसे कुछ पता नहीं है, यद्यपि यह उसके कृत्यों को, उसके विचारों को, उसके व्यवहार को, उसकी पूरी जीवनशैली को प्रभावित करता है।
सिग्मंड फ्रायड तुम्हारे अचेतन में ज्यादा उत्सुक हुआ बजाय उसमें जिसे तुम अपनी चेतना कहते हो, क्योंकि तुम्हारी चेतना, उसने पाया, विश्वसनीय नहीं है। तुम झूठ बोलते हो, और तुम झूठ इतनी निष्ठा से बोलते हो कि उसका पता लगा पाना बहुत कठिन है। तुम्हें पता तक नहीं चलता कि तुम झूठ बोल रहे हो। तुम झूठ बोलने के इतने आदी हो गये हो कि तुम्हें ऐसा लगता है कि तुम सत्य ही बोल रहे हो।
लेकिन जब तुम नींद में होते हो तब तुम समस्त धर्मों के, समस्त तथाकथित नैतिकताओं, समाजों, संस्कृतियों, सभ्यताओं के नियंत्रण के बाहर होते हो। अचानक तुम ज्यादा प्रामाणिक होते हो। तुम्हारे सपने तुम्हारे संबंध में ज्यादा सच्ची बातें कहते हैं अपेक्षा उसके जो तुम स्वयं कहते हो। यहौ तक कि तुम उनका उलटा भी कह सकते हो। तुम्हें इस पर यकीन करना बहुत मुश्किल हो सकता है कियह तुम्हारे अपने ही अचेतन से आया है।
सिग्मंड फ्रायड तुम्हारी चेतना की एक और पर्त को प्रकाश में लाया जिसे उसने अचेतन मन कहा। उसके शिष्य और बाद में उसके प्रतिद्वंदी, कार्ल गुस्ताव जुग, ने अचेतन से भी गहरे जाने का प्रयास किया, और पाया कि हर व्यक्ति अपने प्राणों में एक सामूहिक अचेतन भी लिए हुए है — जो उसका नहीं है, जो हजारों—हजारों वर्षों का है, जो स्वयं में समूचा अतीत समेटे हुए है।
यह और भी धक्का पहुंचाने वाली बात थी : हमें पता नहीं है कि हम मानवता का समूचा इतिहास ढो रहे हैं। लेकिन पूरब में हमें इन तलों का पता रहा है : अचेतन, सामूहिक अचेतन, और एक और, जिसे संभवत: जल्दी ही पश्चिम को पता लगाना होगा — जागतिक अचेतन। सामूहिक अचेतन का संबंध केवल मानवता से है, जागतिक अचेतन का संबंध समूचे जगत से है। तुम न केवल, सूक्ष्म रूपों में, मनुष्यजाति का समूचा इतिहास ढो रहे हो, तुम अपने भीतर स्वयं जगत का ही समूचा इतिहास ढो रहे हो। ये हैं तीन तl तुम्हारे तथाकथित चेतन मन के नीचे। मैं इसे तथाकथित कह रहा हूं क्योंकि पूरब में हमने असली चेतन मन पा लिया है। तथाकथित चेतन मन केवल व्यावहारिक उपयोग के लिए है — एक छोटा सा अंश जो रोजमर्रा के काम के लिए उपयोगी है, लेकिन वह तुम्हें सत्य की झलक नहीं दे सकता। ठीक जैसे कि ये तल हैं तुम्हारे चेतन मन के नीचे के, पूरब को तुम्हारे चेतन मन के ऊपर के तीन ऐसे ही तलों का भी पता रहा है। और वह बहुत तर्कसंगत और बहुत वैज्ञानिक प्रतीत होता है, क्योंकि वह तुम्हें समतुलित करता है। पूरब, कम से कम पच्चीस सदियों से, निपट रूप से जानता रहा है कि तुम्हारे चेतन मन के ऊपर परम चेतन मन है, और परम चेतन मन के ऊपर सामूहिक परम चेतन मन है, और सामूहिक परम चेतन मन के ऊपर जागतिक परम चेतन मन है।
इन सात तलों का उल्लेख बहुत ढंग से किया गया है, लेकिन जरथुस्त्र की दृष्टात—कथा में उनका सात दिनों तक एक अजीब दशा में होना जो ऐसी दिखती थी जैसे कि वे लगभग मृत हो चुके हों — वह जीवित थे.. वह इन सारे ही सात तलों से गुजरे, निम्नतम से उच्चतम तक। उन्हेंने चेतना के समूचे इंद्रधुनष का अनुभव कर लिया — सातों रंग, समूचा वर्णक्रम (स्पेक्ट्रम )। और जब वह सात दिनों बाद जगे वह पहले वाले जरथुस्त्र न थे। परममानव आ चुका था, जो अपनी समूची सत्ता के प्रति पूर्णत: चेतन था। उनके भीतर अब कोई छोटा कोना—कातर भी न था जो अंधेरा हो। सब कुछ प्रकाश हो गया था। और यही है जिसका आत्मज्ञान, अथवा संबोधि, अथवा अपने परम सत्य के प्रर्ति जागरण के रूप में उल्लेख किया गया है।
जब वह अंतत: अपने—आप में लौटते हैं वह पाते हैं कि वह फलों आऊऐर मधुरगंधी जड़ी— बूटियों से घिरे हुए हैं जो उनके लिए उनके जानवरों द्वारा लायी गयी हैं।
संभवत: जानवर ऐसे व्यक्ति के साथ एक सौहर्दमय संबंध—सेतु (रैपेर्ट ) में पड़ सकते हैं जो अपनी पूरी सत्ता के प्रति जाग गया है; किसी भाषा की जरूरत नहीं। लेकिन वे जरथुस्त्र की देखभाल कर रहे थे। वे फल और जड़ी—बूटियां लाए थे और वे उनके जागने की प्रतीक्षा कर रहे थे।
उन्हें जगा हुआ देखकर उनके जानवर जरमुस्त्र से पूछते हैं कि क्या वे अब बाहर दुनिया में कदम नहीं रखेगे जो उनकी प्रतीक्षा कर रही है
अब वह तैयार हैं। वह बात जिसके लिए वह प्रतीक्षा कर रहे थे उन्हें घट चुकी है। वह सर्वोत्तम जागरण तक पहुंच चुके हैं। यही समय है : लोगों तक जाओ; वे अंधकार में टटाले रहे हैं।
'हवा भारी सुवास से बोझिल है जो आपकी अभीप्सा करती है और सारे नदी— नाले आपके पीछे— पीछे दौड़ना चाहेगे: वे उनसे कहते हैं। यह दृष्टात—कथा एक महत्वपूर्ण बात की तरफ संकेत करती है : जरथुस्त्र जैसा व्यक्ति केवल निदाषिता द्वारा समझा जा सकता है। जानकारों द्वारा नहीं, विद्वानों द्वारा नहीं; उनके द्वारा नहीं जो स्वयं को सुंदर—सुंदर शब्दों और दर्शनशास्त्रों में खो चुके हैं बल्कि उनके द्वारा जो निपट मौन हैं।
'क्योंकि देखो हे जरथुस्त्र! तुम्हारे नये गीतों के लिए नयी वीणाओं की जरूरत है। ' तुम अब वही पुराने जरथुस्त्र नहीं रह गये हो जो नींद में गया था। इन सात दिनों में तुम मर चुके हो और तुम पुनरुज्जीवित हुए हो; तुम एक सर्वथा नये व्यक्ति हो। तुम्हें अपने नये गीतों के लिए नयी वीणाओं की जरूरत होगी।

........ऐसा जरथुस्त्र ने कहा।




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