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शुक्रवार, 19 अप्रैल 2019

क्रांति सूत्र-(ओशो)

क्रांति सूत्र (23 अध्याय, 22 वां 4 खंड में)

क्रांति सूत्र (1) मैं कहता आंखन देखी, संस्करण 2006 में-11, मैं कौन हूं
क्रांति सूत्र (2) मैं कहता आंखन देखी, संस्करण 2006 में-12, धर्म क्या है
क्रांति सूत्र (3) मैं कहता आंखन देखी, संस्करण 2006 में-13, विज्ञान की अग्नि में धर्म और विश्वास
क्रांति सूत्र (4) मैं कहता आंखन देखी, संस्करण 2006 में-14, मनुष्य का विज्ञान
क्रांति सूत्र (5) मैं कहता आंखन देखी, संस्करण 2006 में-15, विचार के जन्म के लिएः विचारों से मुक्ति
क्रांति सूत्र (6) मैं कहता आंखन देखी, संस्करण 2006 में-16, जीएं और जानें
क्रांति सूत्र (7) मैं कहता आंखन देखी, संस्करण 2006 में-17, शिक्षा का लक्ष्य
क्रांति सूत्र (8) मैं कहता आंखन देखी, संस्करण 2006 में-18, जीवन-संपदा का अधिकार

क्रांति सूत्र (9) मैं कहता आंखन देखी, संस्करण 2006 में-19, समाधि योग
क्रांति सूत्र (10) मैं कहता आंखन देखी, संस्करण 2006 में-20, जीवन की अदृश्य जड़ें
क्रांति सूत्र (11) मैं कहता आंखन देखी, संस्करण 2006 में-21, अहिंसा क्या है
क्रांति सूत्र (12) मैं कहता आंखन देखी, संस्करण 2006 में-22, आनंद की दिशा

क्रांति सूत्र (13) मैं कहता आंखन देखी, संस्करण 2006 में-23, मांगो और मिलेगा
क्रांति सूत्र (14) मैं कहता आंखन देखी, संस्करण 2006 में-24, प्रेम ही प्रभु है
क्रांति सूत्र (15) मैं कहता आंखन देखी, संस्करण 2006 में-25, नीति, भय और प्रेम
क्रांति सूत्र (16) मैं कहता आंखन देखी, संस्करण 2006 में-26, अहिंसा का अर्थ
क्रांति सूत्र (17) मैं कहता आंखन देखी, संस्करण 2006 में-27, मैं मृत्यु सिखाता हूं
क्रांति सूत्र (18) मैं कहता आंखन देखी, संस्करण 2006 में-28, यह मन क्या है
क्रांति सूत्र (19) मैं कहता आंखन देखी, संस्करण 2006 में-29, जो बोएंगे बीज वही काटेंगे फसल
क्रांति सूत्र (20) मैं कहता आंखन देखी, संस्करण 2006 में-30, मृत्यु और परलोक
क्रांति सूत्र (21) मैं कहता आंखन देखी, संस्करण 2006 में-31, भगवत-प्रेम
क्रांति सूत्र (22) मैं कहता आंखन देखी, संस्करण 2006 में-32, जागते- जागते- चार खंडों में
क्रांति सूत्र (23) मैं कहता आंखन देखी, संस्करण 2006 में-33, ब्रह्म के दो रूप

भूमिका (प्रवचन अंश-10 का हिस्सा)


समय में जो कुछ भी है, सभी मरणधर्मा है। समय मृत्यु की गति है, उसके ही चरणों का वह माप है। समय में दौड़ना मृत्यु में दौड़ना है और सभी वहीं दौड़े जाते हैं। मैं सभी को स्वयं मृत्यु के मुंह में दौड़ते देखता हूं। ठहरो और सोचो! आपके पैर आपको कहां लिए जा रहे हैं? आप उन्हें चला रहे हैं या कि वे ही आपको चला रहे हैं।  प्रतिदिन ही कोई मृत्यु के मुंह में गिरता है और आप ऐसे खड़े रहते हैं जैसे यह दुर्भाग्य उस पर ही गिरने को था। आप दर्शक बने रहते हैं। यदि आपके पास सत्य को देखने की आंखें हों तो उसकी मृत्यु में अपनी भी मृत्यु दिखाई पड़ती है। वही आपके साथ भी होने को है- वस्तुतः हो ही रहा है। आप रोज-रोज मर ही रहे हैं। जिसे आपने जीवन समझ रखा है, वह क्रमिक मृत्यु है। हम सब धीरे-धीरे मरते रहते हैं। मरण की यह प्रक्रिया इनती धीमी है कि जब तक कि वह अपनी पूर्णता नहीं पा लेती तब तक प्रकट ही नहीं होती। उसे देखने के लिए विचार की सूक्ष्म दृष्टि चाहिए।  चर्मचक्षुओं से तो केवल दूसरों की मृत्यु का दर्शन होता है किंतु विचार-चक्षु स्वयं को मृत्यु से घिरी और मृत्योन्मुख स्थिति को भी स्पष्ट कर देते हैं। स्वयं को इस संकट की स्थिति में घिरा जानकर ही जीवन को पाने की आकांक्षा का उर्द्भाव होता है। जैसे कोई जाने कि वह जिस घर में बैठा है उसमें आग लगी हुई है और फिर उस घर के बाहर भागे, वैसे ही स्वयं के गृह को मृत्यु की लपटों से घिरा जान हमारे भीतर भी जीवन को पाने की तीव्र और उत्कट अभीप्सा पैदा होती है। इस अभीप्सा से बड़ा और कोई सौभाग्य नहीं, क्योंकि वही जीवन के उत्तरोत्तर गहरे स्तरों में प्रवेश दिलाती है।  क्या आपके भीतर ऐसी कोई प्यास है क्या आपके प्राण ज्ञात के ऊपर अज्ञात को पाने को आकुल हुए हैं?  यदि नहीं, तो समझें कि आपकी आंखें बंद हैं और आप अंधे बने हुए हैं। यह अंधापन मृत्यु के अतिरिक्त और कहीं नहीं ले जा सकता है।  जीवन तक पहुंचने के लिए आंखें चाहिए। उमंग रहते चेत जाना आवश्यक है। फिर पीछे से कुछ भी नहीं होता।  आंखें खोलें और देखें तो चारों ओर मृत्यु दिखाई पड़ेगी। समय में, संसार में मृत्यु ही है। लेकिन समय के- संसार के बाहर स्वयं में अमृत भी है। तथाकथित जीवन को जो मृत्यु की भांति जान लेता है, उसकी दृष्टि सहज ही स्वयं में छिपे अमृत की ओर उठने लगती है।  जो उस अमृत को पा लेता है, जी लेता है, उसे फिर कहीं भी मृत्यु नहीं रह जाती है। फिर बाहर भी मृत्यु नहीं है। मृत्यु भ्रम है और जीवन सत्य है। 

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