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गुरुवार, 18 अप्रैल 2019

अमृृृत कण-(अप्रमाद)-05

अप्रमाद-ओशो

मैं मृत्यु के तथ्य को अनुभव करने से अप्रमाद को उपलब्ध हुआ हुआ। जीवन में भविष्य में एक भी क्षण का भरोसा नहीं। जो क्षण हाथ में है, वही है। वही निश्चित है और उसके अतिरिक्त शेष सब अनिश्चित। वर्तमान के क्षण के सिवाय और किसी की कोई भी सत्ता नहीं है। न अतीत है, न भविष्य है। जब है और जो है, वह वर्तमान है।  जीवन वर्तमान में है- अभी और यही। इसलिए वर्तमान के जीवन को भविष्य में जीने के लिए आंखें रहते स्थगित नहीं किया जा सकता। और न ही उसे अतीत की मृत स्मृतियां में डूबकर ही गंवाया जा सकता है। जो क्षण हाथ में है उसके कार्य को आने वाले क्षण पर छोड़ने से बड़ी और क्या भूल हो सकती है? ऐसी भूल ही प्रमाद है। जीवन में स्थगन की प्रवृत्ति ही प्रमाद है। प्रत्येक क्षण को उसकी पूर्णता में जी लेना अप्रमाद है।  प्रमाद मृत्यु के क्षण तक स्थगित ही करता रहता है और अंततः पाया जाता है कि जीवन बिना जिए ही चुक गया है। मृत्यु यह देखने को भी तो नहीं ठहरती है कि आप अभी जी भी पाए थे या नहीं? किंतु अधिकतर लोगों की प्रमाद निद्रा मृत्यु के पहले नहीं टूटती है। वे तो मरकर ही जानते हैं कि जीवन जा चुका है।
और जिए बिना जीवन निकल जाने से बड़ी पीड़ा नहीं है। मृत्यु भी उन्हें ही पीड़ा दे जाती है, जो कि जीवन को जिए ही नहीं और उसे सदा स्थगित ही करते रहे। जो जीवन को उसकी पूर्णता और समग्रता में जीते हैं, वे मृत्यु को भी आनंद से जीने में समर्थ होते हैं। मृत्यु बता देती है कि जीवन कैसा बीता। जो मृत्यु में भी आनंद में है, केवल वही जीवन में भी आनंद में रहा है।  क्या जीवन की खोज को कल पर छोड़ रहे हो? क्या सत्य की दिशा में कदम उठाने का विचार कल के लिए स्थगित कर रखा है। तो स्मरण रखना कि आज ही केवल हमारा है। एक कल मर गया है और एक अभी पैदा ही नहीं हुआ। जो हो सकता है, वह अभी ही हो सकता है। वस्तुतः कल के लिए टालना किसी काम को न करने की अपनी वृत्ति को स्वयं से ही छिपाने के उपाय से ज्यादा नहीं है। कल पर टाला हुआ काम सदा के लिए ही टल जाता है और दुर्भाग्य का तो अंत ही नहीं है जो कि जीवन को ही कल के लिए टाल देता है।  कल के स्वप्न शील आज के वास्तविक समय और शक्ति को व्यर्थ व्यय हो जाने देते हैं और कल के आदर्श के लिए जीने वाले आज की विकृति को उस आदर्श के सम्मोहन में सहन और भूलने में समर्थ हो जाते हैं। जिन्हें जीवन को बदलना है, वे कल का नहीं, आज का विचार करते हैं। उनके लिए वास्तविकता आदर्श से कहीं ज्यादा मूल्यवान होती है और वे जानते हैं कि आदर्श स्वप्नों में से नहीं, वरन आज की वास्तविकताओं के परिवर्तन से ही जन्मते और जीवंत बनते हैं।
ओशो

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