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मंगलवार, 2 जुलाई 2024

विमल कीर्ति की मृत्‍यु – (ओशो का अंतिम प्रयोग)

 विमल कीर्ति  की  मृत्‍यु – (ओशो  का  अंतिम प्रयोग)


 

पश्चिम को शून्यता की सुन्दरता का कोई अंदाज़ा नहीं है।

पश्चिमी दृष्टिकोण बहिर्मुखी है, वस्तुओं की ओर उन्मुख है, कार्यों की ओर उन्मुख है। 'कुछ नहीं' शून्यता जैसा लगता है - ऐसा नहीं है। यह पूरब की सबसे बड़ी खोजों में से एक है, कि कुछ भी खाली नहीं है, इसके विपरीत यह शून्यता के ठीक विपरीत है। यह पूर्णता है, यह अतिप्रवाह है। 'कुछ नहीं' शब्द को दो भागों में तोड़ें, इसे 'नो-थिंगनेस' बनाएं, और फिर अचानक इसका अर्थ बदल जाता है, गेस्टाल्ट बदल जाता है।

संन्यास का लक्ष्य कुछ भी नहीं है। व्यक्ति को ऐसी जगह पर आना है जहां कुछ भी नहीं हो रहा है; सब कुछ गायब हो गया है। करना चला गया, कर्ता चला गया, इच्छा चली गई, लक्ष्य चला गया। व्यक्ति बस है - चेतना की झील में एक लहर भी नहीं, कोई ध्वनि भी नहीं।....

20 - पोनी - एक कुत्‍ते की आत्‍म कथा -(मनसा-मोहनी)

अध्‍याय - 20

सन्यास के बाद फिर वही काम

मम्मीपापा के आ जाने के कारण सूने घर में फिर से जैसे बहार लोट आई। मानो किसी सुखे वृक्ष को जी भर कर पानी मिल गया। उसके मुरझाए पत्तों में फिर से ताजगी फेल गई थी। जो मन कुछ क्षण पहले तक एक भय के आगोश में समाए हुए था। फिर लहलहाने के सपने देखने लगा था। हम सब का मन कितना प्रसन्न था, ये बात शब्दों मैं आप को बता नहीं सकता।

मम्‍मी जी ने जैसे ही मेरे सर पर हाथ फेरना चाहा मैं उछला और अपनी जीभ सीधी मम्‍मी जी के मुंह में डाल दी। और कोई दिन होता तो मेरी शामत आ जाती मम्मी जी को ये सब पसंद नहीं आता था। पर आज मम्‍मी जी ने मेरी इस बेहूदगी को हंसी में टाल दिया। मम्‍मी जी के मुंह की सुगंध और एक अंजान सी मीठा पन मेरे रोएंरोएं में समा गया। जिस स्‍वाद को मैं आपको शब्‍दों में नहीं बता सकता। केवल उसे महसूस कर सकता हूं। पर वो स्‍वाद इतना अनूठा था जिसे सालों बाद भी में नहीं भूल पाया।

परंतु उससे मिलता झुलता सुस्‍वाद मुझे अलगअलग कई बार मैंने महसूस किया था। कभी जब मैं मस्‍त हो कर बच्‍चों के साथ खेलता या ध्‍यान के कमरे में आँख बंद किए ओशो जी के प्रवचन सुन रहा होता था। वह स्‍वाद ऐसा था जो केवल मुंह तक ही सीमित नहीं रहता था, पूरे बदन के रोएंरोएं में फेल जाता था। मस्‍तिष्‍क उससे आच्छादित हो जाता था। आंखों में एक अंजान ख़ुमारी सी छा जाती थी।

14-औषधि से ध्यान तक – (FROM MEDICATION TO MEDITATION) का हिंदी अनुवाद

औषधि से ध्यान तक – (FROM MEDICATION TO MEDITATION)

अध्याय -14

उम्र बढ़ने- (Ageing)

 

पश्चिमी समाज में, कम से कम, युवावस्था को ही सब कुछ माना जाता है - और कुछ हद तक ऐसा लगता है कि अगर हमें जीवन के हर आयाम में आगे बढ़ना है तो ऐसा ही होना चाहिए। लेकिन इसका स्वाभाविक परिणाम यह है कि जैसे-जैसे कोई युवावस्था से दूर होता जाता है, जन्मदिन बधाई का कारण नहीं रह जाता, बल्कि जीवन का एक शर्मनाक और अपरिहार्य तथ्य बन जाता है। किसी से उसकी उम्र पूछना अशिष्टता हो जाती है; सफ़ेद बालों को रंगा जाता है, दाँतों को कैप किया जाता है या पूरी तरह से बदल दिया जाता है, निराश स्तनों और चेहरों को ऊपर उठाना पड़ता है, पेट को टाइट किया जाता है, और वैरिकाज़ नसों को सहारा दिया जाता है - लेकिन छुपकर। अगर कोई आपसे कहता है कि आप अपनी उम्र के हिसाब से दिखते हैं, तो आप निश्चित रूप से इसे तारीफ़ के तौर पर नहीं लेते। लेकिन मेरा अनुभव यह है कि जैसे-जैसे मैं बूढ़ा होता जा रहा हूँ, हर साल बेहतर और बेहतर होता जा रहा है; फिर भी किसी ने मुझे नहीं बताया कि ऐसा होगा, और मैंने कभी लोगों को बढ़ती उम्र की तारीफ़ करते नहीं सुना। क्या आप बढ़ती उम्र की खुशियों के बारे में बताएँगे?