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शुक्रवार, 26 जुलाई 2024

होना और न होना -(भाग-01) - मनसा-मोहनी दसघरा

मार्ग की अनुभूति-मनसा-मोहनी

(होना और न होना) -भाग-01

अध्यात्म जगत का अगर सरल और सिधा विभाजन करें तो होना-या-न होना सबसे आसान विभाजन है। संसार में हम केवल होने के लिए आये है। हमें कुछ करना है, होना है, नाम रोशन करना है। कुछ बन के दिखाना है। यही संसार का नियम है और यहीं जीवन है।

दूसरा संन्यास का मार्ग न कुछ होगा। यानि अपने अहं को मिटाना। न कुछ होना।

"कुछ भी नहीं होने से क्या प्रभाव पड़ता है?" जब हम इस मार्ग में प्रवेश करते है तो , "यह भय पैदा करता है।"

जीवन भी कैसा है और क्यों है इसे समझना कितना कठिन है। न होने की ये प्रक्रिया प्रत्येक के जीवन में प्रवेश नहीं करती। क्योंकि इसके लिए या तो आप को प्रेम में डूबना होगा या फिर ध्यान में वह कम ही लोग इस मार्ग पर चलते है। सौभाग्य से हमारे जीवन में न कुछ होने की प्रक्रिया तब से ही शुरू हो गई थी जब है दोनों मिले थे। यानि मैं और मोहनी प्रेम में उतरे थे।  मेरा और मोहनी का मिलना केवल प्रकृति की ही देन था। न वह जानती थी और न ही मैं जानता था की हम क्यों मिले है। और कल क्या होगा। बस हम दोनों ने अपने को प्रकृति के हाथों छोड़ दिया। जो भी मन की सारी चालबाजी या खेल को अपने तक नहीं आने दिया था। यही से जीवन एक रहस्य की और अग्रसर हो गया। क्योंकि प्रेम का मार्ग इतना सीधा नहीं होता। वह आपको अंधेरी अंजान कंदराओं की और ले जायेगा। जो अपने न देखी होंगी और न सूनी होगी। यानि एक अंजान डगर। केवल साथ तो एक दूसरे का प्रेम।  

जो मार्ग अति बीहड़ तो था ही परंतु वह आगे चल कर अति खतरनाक रूप ले लेता है। मैं आज सोचता हूं की मोहनी जब मुझ से इतना प्रेम करती थी तो वह अपनी पहली बीमारी में मुझे ही क्यों भूल गई। मैं उसके आस-पास 24 घंटे रहता था। अपने हाथ से खिलता, अपनी हाथ से नहलाता, वह भी मुझे एक पल के लिए भी अपने से दूर होने नहीं देना चाहती थी। इसी सब के कारण मैं नौकरी पर भी जाना बंद हो गया और बाद में वह सहारा एंड सेविंगकम्पनी 6 महीने का मासिक वेतन घर भेजती रही परंतु बाद में उसका दिवाला निकल गया और वह भी बंद हो गई।  परंतु मैं उसके लिए एक अंजान फकीरा था। न विश्वास करने जैसा है।

जीवन में बहुत कुछ जो सुंदर और रहस्य से भरा आता है तो वह बुद्धि से समझा नहीं जा सकता। उसके लिए ह्रदय ही सही उपाय है। ठीक ऐसा ही हमारे साथ हुआ। प्रेम का इतना बड़ा कदम उठा कर उसने (मोहनी ) ने अपने पूरे परिवार, समाज, अपने धर्म, धारण सब को पीछे छोड़ दिया। वह जब यहां मेरे घर आई तो नितांत अकेली रह गई। यहां इस अंजान नये घर में उस के लिए सब अंजान थे। वह किसी को नहीं जानती थी। न ही भाषा, न खानपान, न रहन सहन। सब बदल गया था। एक प्रकार से वह किसी दूसरे ही लोक में प्रवेश कर गई थी।

आज जब ओशो के ये सूत्र पढ़ रहा था। ह्रदय सूत्र में जब सारीपुत्र से संवाद में कहे। मिटना या न कुछ होना एक वास्तविक अनुभव नहीं है। हर व्यक्ति इसे आसानी से प्राप्त नहीं कर सकता। इसे गहरे ध्यान या गहरे में ही प्राप्त किया जा सकता है। यह अनुभव एक प्रकार से मृत्यु के जैसा ही होता है। आप मिट रहे है, खत्म हो रहे है, आपका होना खो रहा है। उस अवस्था में आपको एक सहायक या साहास की जरूरत होती है। आप सब के पास ऐसा व्यक्ति होना तो अति कठिन है जो आप को समझ सके, तब ही वह आपकी कुछ सहायता कर सकता है। और उस मिटने के भय में हम अगर हम विश्वास और साहास को खो देते है।  तो वह और भी खतरनाक हो जाता है। और जो साहास को नहीं खोता वह उस में डूब कर उसका आनंद उठता है। वह उस मधुर रहस्य में जीता है और फिर बहार आ जाता है। लेकिन सो भाग्य से चलने वाले कम ही ऐसा कर पाते है।

अगर हमें मृत्यु से भय भीत ने हो तो मृत्यु वह कुल्हाड़ी नहीं है जो जीवन के वृक्ष को काटती है, यह तो उस पर उगने वाला फल है। मृत्यु ही वह पदार्थ है जिससे तुम बने हो। शून्यता ही तुम्हारा अस्तित्व है। इस शून्यता को या तो प्रेम से या ध्यान से प्राप्त करो, और इसकी झलकें प्राप्त करते रहो।

‘’या तो आप इसे गहरे ध्यान में अनुभव कर सकते हैं, या जब मृत्यु आती है। मृत्यु और ध्यान इसे अनुभव करने की दो संभावनाएँ हैं। हाँ, कभी-कभी आप इसे प्रेम में भी अनुभव कर सकते हैं। यदि आप किसी के साथ गहरे प्रेम में विलीन हो जाते हैं, तो आप एक तरह की शून्यता का अनुभव कर सकते हैं। यही कारण है कि लोग प्रेम से डरते हैं - वे केवल एक सीमा तक ही जाते हैं, फिर घबराहट पैदा होती है, फिर वे भयभीत हो जाते हैं। यही कारण है कि बहुत कम लोग कामोन्माद में रह पाए हैं - क्योंकि कामोन्माद आपको शून्यता का अनुभव कराता है। आप गायब हो जाते हैं, आप किसी चीज़ में पिघल जाते हैं और आपको पता नहीं होता कि वह क्या है। आप अपरिभाषित, अव्यक्त में चले जाते हैं। आप सामाजिकता से परे चले जाते हैं। आप किसी ऐसी एकता में चले जाते हैं जहाँ अलगाव अब वैध नहीं है, जहाँ अहंकार का अस्तित्व नहीं है। और यह भयावह है, क्योंकि यह मृत्यु जैसा है।‘’

ओशो (ह्रदय सूत्र- (The Heart Sutra)

प्रवचन-02

तो यह एक अनुभव है, या तो प्रेम में, जिससे लोगों ने बचना सीख लिया है -- बहुत से लोग प्रेम के लिए लालायित रहते हैं, और शून्यता के भय के कारण इसकी सभी संभावनाओं को नष्ट करते रहते हैं -- या, गहरे ध्यान में जब विचार रुक जाते हैं। आप बस देखते हैं कि भीतर कुछ भी नहीं है, लेकिन उस किसी चीज की उपस्थिति नहीं है; यह केवल विचार की अनुपस्थिति नहीं है, यह किसी अज्ञात, रहस्यमय, किसी बहुत विशाल चीज की उपस्थिति है। एक अंजान जगह जिसे आप पहली बार महसूस करते है। आप घबरा जाते है। आप मिट रहे है। आपका होना मिट रहा है। इस लिए प्रेम में ये अवस्था जब आने लगती है तो लोग प्रेम से भी भागने लग जाते है। क्योंकि कौन मिटना चाहता है। प्रेम में तो हम होना चाहते है, उस के रस पान में डूबना चाहते हे। परंतु ये तभी संभव है जब आप का अहं मिट जाये। तब आप प्रेम में साहस कर सकते है।

मोहनी ने नाता रिश्ता, भाषा परिवार, रहन सहन, परिवार के संस्कार सब पहले ही छूट चूका था। वह सब उसके लिए अपने आप  मिट गया था। अब वह उसकी पकड़ से अति दूर था। आपके पास पकड़ने के लिए कुछ भी नहीं था। और आप प्रेम में सब खो रही थी। वह लगातार प्रेम और भय में घिरी लगाता डूब रही थी। यहां आपका परिचय केवल एक व्यक्ति से है, केवल मनसा’….. अब बेचारा नमक या कच्ची मिट्टी का  पुतला यह तो नहीं जानता की वह जितना गहरे जा रहा उतना ही मिट रहा है। वह मिटने का आनंद-आनंद न रह कर अगर वह एक भय बन जाता है तो आप द्वंद्व में फंस जाते हे। आप उन सब नातों रिश्तों को फिर से पकड़ना चाहते है जो आप कोसो दूर रहा गया है। उस समय मनुष्य की सब कोशिश बेकार हो जाती है। आपकी अवस्था एक खतरनाक रूप धारण कर लेती है। आप ये सोच भी नहीं सकती की ये सब आपने खूद ही शुरू किया था। आप खूद ही इसमें डूब जाना चाहते थे।

उसके लिए वहां केवल एक प्रेम बचा था, जब आप खूद ही मिट रहे है तो प्रेम का दूसरा हिस्सा कैसे बच सकता है, अब वह भी मिट गया। अगर वहां भय न होकर मोहनी के पास थोड़ा होश होता तो आप समझ सकते है कि उसका जीवन कैसा होता। वह एक खिला फूल होता। एक सहज, एक मीरा एक दया या लल्ला बाघ। परंतु एक परिचित था ‘’मनसा’’ वह भी खो गया। आप इस बात पर विश्वास नहीं करेंगे वह उस अवस्था से जब तक बाहर नहीं आई मेरे साथ रहते हुए भी मुझे ही ढूंढती रही। कितना विरोधा भास है। जिन लोगों से वह केवल कुछ दिनों से परिचित थी, या मेरी बेटी उस समय के नौ महा की थी। उसे भी वह जानती है, मेरी मां, मेरे परिवार, मेरे यार दोस्त, सब के साथ अपने परिवार के सभी प्राणियों को, उस सब याद था। केवल और केवल मिट गया तो ‘’मैं’’ था। वह मुझे ही भूल गई थी।

कितने सालों में इस रहस्य को नहीं जान पाया। ये चमत्कार असंभव हे। जिसे आप सबसे अधिक प्यार करते है, जिसके लिए आपने सब कुछ छोड़ा उसे ही भूल गये। परंतु अंजाने तोर पर मैं कहीं जानता था की मैं मोहनी को उस भय से बाहर ला सकता हूं। क्योंकि में उसे उसके मन को, उसके होने को, उसके भाव को, उसके शरीर को जानता था। और लगाता तार तीन साल की सत्त मेहनत के बाद मोहनी ठीक हुई, यानि की समय तो लगा धीर-धीर... क्योंकि वह मेरे लिए आसान था। हम दोनों के तार एक दूसरे से जूड़े हुए थे। खिंचाव था लगाव था, चाहता थी। उसके और मेरे बीच का संबंध था। प्रेम का संबंध था। सच जिसे हम केवल एक बीमार समझते है वह सौभाग्य होता है। परंतु हम उसे नहीं समझ पाते क्योंकि हम उसकी पूर्णता को नहीं जानते केवल एक हिस्से को जानते है, आप एक दूख दर्द आप अकेले पड़ गये है। आपका साहास और विश्वास धीर-धीरे कम होता जाता है। और आप हार जाते हो। परंतु मैं नहीं हारा।

परिवार भी समाज भी आपको किसी हय नजर से देखता है। मेरी मां को छोड़ कर सारा परिवार मन-ही मन थोड़ा खुश था। एक दिन तो उन सब ने मीटिंग की और मुझे बुलाया। की आपने इस बेचारी मोहनी की बहुत सेवा की। परंतु क्या किया जा सकता है। अब इसे पागल खाने में भेज देते है। जहां वह ठीक रहेगी। मैंने कहां की इस बात को आप भूल जाओ। न तो मैं पहले शादी करना चाहता था और न आज। ये जब तक जिंदा रहेगी। मैं इसकी देखभाल करूंगा अगर मर गई तो एक आंसू भी आप मेरी आंखों में नहीं देखोगे। मेरी इस बात को सून कर पूरे परिवार ने आपने सपने अपने हथियार डाल दिये जो दूसरी शादी के देख रहे थे।

परंतु अब की बीमारी दूसरी तरह की है। मोहनी उसी अवस्था में प्रवेश कर गई परंतु वह उस पहली से भिन्न है। क्योंकि वह एक लम्बे मार्ग पर चलने के बाद इस खाई में गिरी है। यानि की 28-30 साल ध्यान के बाद। अब ये ध्यान और गुरु का मामला है। पहले वह प्रेम का मामला था। ....क्रमशः:

मनसा-मोहनी दसघरा 

(अगले भाग में मोहनी के अध्यात्म के बारे में गहरे से जानेंगे। जो अवस्था शायद किसी दूसरे की भी हो सकती है, उसके भी  काम आ जाये। क्योंकि आगे चलते जाने पर इस अवस्था में अनेक साधक होते है, परंतु उसके आस पास का माहोल  ध्यान का नहीं होता। उसके परिचित उसकी गहराई को नहीं समझ पाते है, और वह भी उसे पागल ही समझ लेते है। और इस सब को जीवन की किसी अधुरी घटना के साथ जोड़ कर इसे एक बीमारी समझ केवल दवाइयों के भरोसे छोड़ दिया जाते है। जो उसके या किसी के लिए कभी भी उचित नहीं है)

मनसा-मोहनी दसघरा

 

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