कुल पेज दृश्य

गुरुवार, 24 सितंबर 2009

सौंदर्य: परमात्मा का निकटतम द्वार--

सौंदर्य परमात्‍मा का निकटतम द्वार है।
जो सत्‍य को खोजने निकलते है,
वे लंबी यात्रा पर निकले है।
उनकी यात्रा ऐसी है, जैसे कोई अपने हाथ को
सिर के पीछे से घुमा कर कान पकड़े।
जो सौंदर्य को खोजते है, उन्‍हें सीधा-सीधा मिल जाता है।
क्‍योंकि सौंदर्य अभी मौजूद है-
इन हरे वृक्षों में, पक्षियों की चहचहाहट में,
इस कोयल की आवज में, --सौंदर्य अभी मौजूद है।
सत्‍य को तो खोजना पड़े।
और सत्‍य तो कुछ बौद्धिक बात मालूम होती है, हार्दिक नहीं।
सत्‍य का अर्थ होता है—गणित बिठाना होगा, तर्क करना होगा।

और सौंदर्य तो ऐसा ही बरसा पड़ रहा है।

न तर्क बिठाना, न गणित करना है--

सौंदर्य चारों तरफ उपस्थित है।

धर्म को सत्‍य से अत्‍यधिक जोर देने का परिणाम यह हुआ।

कि धर्म दार्शनिक होकर रह गया, विचार होकर रह गया।

मैं भी तुमसे चाहता हूँ कि तुम सौंदर्य को परखना शुरू करो।

सौंदर्य को, संगीत को, काव्‍य को--

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें