न पूरब का अनुकरण करना है,
न अतीत का अनुकरण करना है।
अनुकरण ही नहीं  करना है।
बोध से  जीना है।
बोध की हवा  और वातावरण  पैदा कर सके।
यही मेरा प्रयास  है।
काश हम जगत  में
बोध को  सम्मान दे सकें, सत्कार दे सकें।
तो न पश्चिम बचेगा, न पूरब बचेगा।
न मुसलमान बचेंगे, न हिंदू बचेंगे
न ईसाई, न जैन, न बौध ही बचेंगे।
सिर्फ बोध  बचेगा और  बोध को  उपलब्ध व्यक्ति बचेंगे।
ऐसे  ही व्यक्तियों से इस जगत  में  गौरव है, गरिमा है।
ऐसे ही व्यक्ति इस जगत के नम क
 

 
 
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