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रविवार, 13 सितंबर 2009

प्रकाश पर ध्‍यान


जितना अघिक आप प्रकाश पर ध्या्न करेंगे, उतना अघिक आप चकित होंगे कि भीतर कोई चीज खुलने लगी है। जैसे कि कोई कली खिलने लगी हो और फूल बनने लगी हो। प्रकाश पर ध्याखन करना बहुत ही प्राचीनतम विधियों में से एक है। सभी युगों में, सभी देशों में, सभी धर्मो में, एक विशेष कारण से इसे महत्वो दिया गया है। क्यों कि जिस क्षण आप प्रकाश पर ध्यांन करते है, कुछ जो आपके भीतर एक कली की तरह रूका हुआ था, अपनी पंखुडियां खोलने लगता है। प्रकाश पर ध्या न करना ही उसके खुलने के लिए एक परिवेश निर्मित करता है। तो इसे ही अपना ध्यापन बना लें। जब भी आपको समय मिले, अपनी आंखें बंद कर लें और प्रकाश का भाव करें। जहां भी आपको प्रकाश दिखे, उसमें डूबें। उसके प्रति उपेक्षापूर्ण रूख न रखें। उसके प्रति भक्तिभाव रखें। चाहे वो सूर्योदय हो, या कमरे में जलती एक साधारण सी मोमबत्तीप हो या बल्ब हो, लेकिन आप उसके प्रति प्रार्थनापूर्ण भाव रखें। आपका जीवन प्रकाश की तरह ऊचां और ऊचॉं उठता चला जायेगा। आपके जीवन के अनेको अंधेरे कोने प्रकाश पूर्ण हो उठेंगे। यदि कोई प्रकाश के सा‍थ निरंतर अनुकूलता अनुभव करता रहे तो बहुत आशीर्वाद बरसते है।
ओशो ( ध्याान विज्ञान )

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