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बुधवार, 30 सितंबर 2009

प्रेम और ध्यान—


मैं तो दो ही शब्‍दों पर जोर देता हूं, प्रेम और ध्‍यान।
क्‍योंकि मेरे लेखे अस्तित्‍व के मंदिर के दो ही विराट दरवाजे है,
एक का नाम प्रेम और दूसरे का नाम ध्‍यान,
चाहो तो प्रेम से प्रवेश कर जाओ।
चाहो तो ध्‍यान से प्रवेश कर जाओ।
हालांकि दोनों में से प्रवेश की शर्त एक ही है।
इसलिए तुम्‍हारी मौज।
फासला कुछ भी नहीं हैं।
शर्त एक ही है, अहंकार दोनों में छोड़ना होता है।
ध्‍यान में भी अहंकार को छोड़ना होता है,
प्रेम में भी अहंकार को छोड़ना होता है।
तो चाहो तो यूँ कह लो कि एक ही सिक्‍के के दो पहलू है।
एक तरफ प्रेम, एक तरफ ध्‍यान।

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