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गुरुवार, 24 सितंबर 2009

क्षणभंगुर में शाश्वतत---



मैं तुम्‍हें उदा‍सी सिखाने को नहीं हूँ।
मैं तुम्‍हें संगीत देना चाहता हूँ।
लेकिन मैं जानता हूँ तुम्‍हारी अड़चन।
तुम्‍हें उदास चित लोगों ने बहुत प्रभावित किया है।
सदियों से धर्म के नाम पर,
तुम्‍हें जीवन का निषेध सिखाया गया है।
जीवन का विरोध सिखाया गया है।
सब पाप है, प्रेम पाप है, संबंध पाप है, मैत्री पाप है।
नाता-रिश्‍ता पाप है, तुम पाप से घिर गए हो।
नहीं कि‍ सब पाप है,
लेकिन तुम्‍हारी धारणाओं में सब पाप हो गया है।
जो छुओ वही गलत है, जो करो वही गलत है।
तुम नकार से घिर गये हो,
तुम्‍हारी फांसी लग गई हैं नकार में।
मैं तुम्‍हें नकार से मुक्‍त करना चाहता हूँ: मैं कहता हूँ।

यह क्षणभंगुर भी उसी शाश्‍वत की ही लीला हैं।

यह उसका ही रास है, वहनाच रहा है इसके मध्‍य में

तुम्‍हें दिखाई पड़े न दिखाई पड़े, मगर नाच में तो सम्मिलित हो जाओ।

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