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मंगलवार, 15 सितंबर 2009

उगते सूरज की प्रशंसा में ‘’ध्या न’’


सूर्योदय से पहले पाँच बजे उठ जाएं और आधे घंटे तक बस गाएं, गुनगुनाएं, आहें भरे, कराहें। इन आवाज़ों का कोई अर्थ होना जरूरी नहीं—ये अस्तित्व गत होनी चाहिए, अर्थपूर्ण नहीं। इनका आनंद लें, इतना काफी है—यही इनका अर्थ है। आनंद में झूमें। इसे उगते सूरज की स्तुंति बनने दे और तभी रुके जब सूरज उदय हो जाए। इससे दिन भर भीतर एक लय बनी रहेगी। सुबह से ही आप एक लयबद्धता अनुभव करेंगे और आप देखेंगे कि पूरे दिन का गुणधर्म ही बदल गया है—आप ज्यानदा प्रेमपूर्ण, ज्यागदा करुणापूर्ण, ज्या दा जिम्मेंवार, ज्यायदा मैत्रीपूर्ण हो गए है: और आप अब कम हिंसक, कम क्रोधी, कम महत्वा्कांक्षी, कम अहंकारी हो गए हैं।

ओशो---(आरेंज बुक)

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