मैं आचरण नहीं सिखाता,
मैं तो सिर्फ एक बात ही सिखाता हूँ—ध्यान।
तुम शांत होने लगो,
तुम मौन होने लगो,
फिर एक दिन ब्रह्रम्चर्य भी आएगा।
और एक दिन तुम्हारा भोजन में जो पागल रस है,
वस्त्रों से तुम्हारा जो मोह है, वह भी छूट जाएगा।
मगर मैं कहता नहीं कि छोड़ो,
छूटना चाहिए—सहज, अपने आप।
तो फिर कभी इस तरह की विक्षिप्तता नहीं आती।
नहीं तो आज नहीं कल तुम विमला देवी जैसी स्थिति में उलझ जाओगे।
करोड़ों लोग उलझे है, इसी तरह,
मैं इस उलझा व से तुम्हें मुक्त करना चाहता हूँ।
आचरण नहीं, आत्मा।
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