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शनिवार, 19 सितंबर 2009

संतुलन ‘’ध्‍यान’’—2

तिब्बहत में एक बहुत छोटी सी विधि है—बैलेंसिंग, संतुलन उस विधि का नाम है। कभी घर में खड़े हो जाएं सुबह स्नातन करके, दोनों पैर फैला लें और खयाल करें कि आपके बाएं पैर पर ज्याखदा जोर पड़ रहा है। अगर बाएं पर पड़ रहा है तो फिर आहिस्तेप से जार को दाएं पर ले जाएं। दो क्षण दांए पर जोर को रखे, फिर बाएं पर ले जाएं। एक पंद्रह दिन, सिर्फ शरीर का भार बांए पर है कि दाएं पर, इसको बदलते रहें। और वह तिब्बदती प्रयोग कहता है कि फिर इस बात का प्रयोग करें कि दोनों पर भार न रह जाएं, आप दोनों पैर के बीच में रह जाएं। और एक तीन सप्ताचह का प्रयोग और आप बिलकुल बीच में होंगे—भार न बाएं पर होगा, न दाएं पर होगा—जब आप बिलकुल बीच में होंगे—तब आप ध्या न में प्रवेश कर जाएंगे। ठीक उसी क्षण में आपके आस पास गहन शांति होगी, आप आनंद से लबरेज होगें। ऊपर से देखने पर लगेगा, इतनी सी आसान बात, करेंगे तो आसान भी मालूम पड़ेगी और कठिन भी मालूम पड़ेगी। बहुत सरल मालूम पड़ती है, दो पंक्तियों में कहीं जा सकती ह।, लेकिन लोगों ने इस छोटे से प्रयोग के द्वार परम आनंद को उपलब्धत किया है। जैसे ही आप बैलेंस होते है—न बाएं पर रह जाते, न दाएं पर रह जाते, जैसे ही दोनें के बीच में रह जाते हैं। वैसे ही आप पाते है कि वह बैलेंसिग, वह संतुलन आपकी कांशसनेस का, चेतना का भी बैलेंसिग हो गया। चेतना भी बैलेंस्डं हो गई, चेतना भी संतुलित हो गई। तत्काल तीर की तरह भीतर गति हो जाती है। ओशो—‘’हसिबा खेलिबा धरिबा ध्यानम्‍ा’’

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