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गुरुवार, 24 सितंबर 2009

रंगना है तुम्हा रे प्राणों को




रँगना है तुम्‍हारे प्राणों को
रस के नये-नये आयामों में।
नयी-नयी भाव-भंगिमाएँ तुममें उदित हों।
नये-नये मंदिरों के शिखर तुममें उठे।
नये गीतों रंगना है तुम्‍हारी चूनर को
रहस्‍य के अनंत-अनंत रंगों में।
का जन्‍म हो।
नये नृत्‍य तुम नाचो।
नये वीणाएं तुम बजाओ, नित नूतन।
तुम खोजों, और जितना खोजों,
उतना ही पाओ कि और खोजने को मौजूद।
जितना खोजों, उतनी खोज बढ़ती जाएं।
खोज कभी अंत पर न आए।
यात्रा सिखाता हूं मैं, मंजिल तो बहाने है।
मंजिल की बात करता हूं, ताकि तुम चलो।
मजा तो यात्रा का ही हैं, यात्रा ही मंजिल है।

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